देश में जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों के बीच केरल की चर्च आबादी बढ़ाने की पक्षधर

974

भारत की जनसंख्या 139 करोड़ की सीमा लांघ चुकी है। इसी मुद्दे पर पूरे देश में चिंतामिश्रित बहस चल रही है। जनसंख्या के लिहाज से देश की सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में राज्य विधि आयोग ने प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून का मसौदा तैयार कर के दे दिया है जिसपर मंथन व विमर्श चल रहा है। मध्यप्रदेश व असम में ऐसा ही कानून लाने पर विमर्श अंतिम स्तर पर चल रहा है। कमोवेश देश के हर राज्य में जनसंख्या को लेकर बहस चल रही है, यह बात अलग है कि कुछ प्रदेश इस मामले को राजनीतिक चश्मे से देखते हुए इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं। देश हित के इस मामले को जाति व धर्म के नजरिए से देखना सबसे त्रासद पहलु है और कुछ दल व गुट देश हित को तिलांजलि देते हुए इस नीति के विरोध में झंडाबरदारी कर रहे हैं।
जनसंख्या नियंत्रण कानून पर देश में चल रही बहस के बीच इसके उलट केरल के एक चर्च ने ऐलान किया है कि पांच या अधिक बच्चों वाले परिवारों को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक मदद का ऐलान किया है। केरल के कोट्टायम जिले के पाला में स्थित एक कैथोलिक चर्च ने कहा है कि ‘बच्चे भगवान की ओर से एक उपहार हैं’। चर्च के पाला बिशप मार जोसेफ कल्लारंगट द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि 4 से अधिक बच्चों वाले परिवारों को आर्थिक व शैक्षिक सहायता सहित अन्य कल्याणकारी योजना लागू की जाएगी। गौरतलब है कि चर्च द्वारा यह घोषणा तब की गई है जब उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने को लेकर कदम उठाए जा रहे हैं।
केरल में चर्च के इस फैसले को समुदाय की संख्या को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन के तौर पर देखा जा रहा है। सिरो-मालाबार गिरजाघर ने कहा है कि वर्ष 2000 के बाद जिन इसाइयों की शादी हुई है और उनके 5 या अधिक बच्चे हैं तो चर्च की ओर से उन्हें 1500 रुपए हर माह की मदद प्रदान की जाएगी। फैमिली अपोस्टलेट का नेतृत्व करने वाले फादर कुट्टियानकल ने कहा कि यह घोषणा गिरजाघर के ‘इयर ऑफ द फैमिली’ उत्सव के हिस्से के तौर पर की गई है। गिरजाघर ने यह भी कहा है कि इसके द्वारा संचालित अस्पतालों में चौथे बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं को प्रसव शुल्क भी नहीं देना होगा।
अपने निर्णय पर संभावित विरोध को भांपते हुए चर्च ने पहले ही सफाई पेश करते हुए कहा है कि हम कोविड-19 काल के बाद बड़े परिवारों को आर्थिक सहायता मुहैया कराना चाहते हैं। चर्च के मुताबिक इस संबंध में जैसे ही आवेदन प्राप्त होंगे, आर्थिक मदद संबंधित परिवारों को पहुंचाना शुरू कर दी जाएगी। पता चला है कि अगस्त के दूसरे सप्ताह तक राशि का वितरण शुरु हो जाएगा।
फादर कुट्टियानकल ने कहा कि केरल में इसाइ समुदाय की जसंख्या नीचे गिर रही है। हमारी वृद्धि दर कम है। उन्होंने कहा कि आर्थिक मदद देने की योजना के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है लेकिन तत्कालीन वजह महामारी काल में जरूरतों को पूरा करने में बड़े परिवारों को आ रही दिक़्क़तों से उन्हें कुछ राहत प्रदान करना है।’ इस योजना पर बिशप जोसेफ कलारागंट ने एक ऑनलाइन बैठक भी की थी और 2019 में चांगानाचेरी आर्चडायोसिस द्वारा केरल में इसाइयों की जनसंख्या घटने संबंधी जानकारी को लेकर लिखे गए पत्र से जोड़कर पूछे गए सवाल पर फादर कुट्टियानकल ने कहा कि यह मुद्दा ‘वास्तविक है। गौरतलब है कि केरल के गठन के दौरान इसाइ समुदाय राज्य का दूसरा सबसे बड़ा समुदाय था लेकिन 2011 की जनगणना के अनुसार अब राज्य की कुल आबादी का अब वे 18.38 फीसदी रह गए हैं। बीते कुछ सालों में इसाइ समुदाय में जन्म दर घटकर 14 प्रतिशत रह गई।
धार्मिक समुदायों के जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल पर सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के प्रोफेसर के.सी.  जकारिया के द्वारा किए गए शोध के अनुसार 1901 की जनगणना के अनुसार केरल में मुसलमानों की संख्या 17.5 प्रतिशत थी जबकि इसाइ केवल 14 प्रतिशत थे। 1951 तक इसाइ आबादी 20.9% और मुस्लिम 17.5% हो जाने के साथ प्रवृत्ति बदल गई। फिर इसाइ आबादी में गिरावट की प्रवृत्ति शुरु हुई जो अभी भी जारी है जो 2011 की जनगणना के अनुसार घटकर 18.38 प्रतिशत हो गई, जबकि मुस्लिम आबादी 26.6 प्रतिशत तक पहुंच गई। इस ट्रेंड के अनुसार 2051 तक मुसलमान 34.6 प्रतिशत हो जाएंगे और इसाइ आबादी 16.1 प्रतिशत के साथ उनसे आधी हो जाएगी।
अध्ययन में कहा गया है कि 1901 की जनगणना के अनुसार केरल में हिन्दुओं की जनसंख्या 68.5 प्रतिशत थी। यह 2001 तक 56.3% और 2011 तक 54.9% पर आ गयी थी। इस प्रवृत्ति के अनुसार यह 2051 तक गिरकर 49.3 प्रतिशत हो जाएगी। सभी समुदायों की जनसंख्या वृद्धिदर दशक दर दशक घट रही है पर अध्ययन में कहा गया है कि मुसलमानों में गिरावट की दर बाकी समुदायों से कम है।  ‘केरल के धार्मिक संप्रदाय’ शीर्षक वाले अध्ययन में यह भी कहा गया है कि मुस्लिम सुन्नी, जो राज्य में मुसलमानों का 94 प्रतिशत हिस्सा हैं, केरल में सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय हैं, जिनकी आबादी 83 लाख है यानी राज्य की कुल आबादी का लगभग 25 प्रतिशत।
उधर लखनऊ में प्रदेशवासी और विभिन्न संगठनों ने सुझाव दिया  है कि यूपी में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बन रहा कानून और सख्त हो। उसका दायरा और बड़ा किया जाए। राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्यक (नियंत्रण, स्थिरीकरण व कल्याण) विधेयक-2021 का प्रारूप तैयार कर उसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर उस पर लोगों के सुझाव आमंत्रित किए थे। आयोग ने सुझाव देने की समय सीमा 19 जुलाई तय की थी। इस अवधि तक
आयोग को करीब 8500 सुझाव मिले हैं। पता चला है कि 8,500 में से सिर्फ 300 मेल इस कानून के विरोध में भी आए हैं।
राज्य विधि आयोग को मिले अधिकांश सुझावों में ज्यादातर लोगों ने दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों को आरक्षण से वंचित किए जाने से लेकर मताधिकार छीनने की सिफारिशें की हैं। बहुत से लोगों ने स्थानीय निकाय चुनाव (नगर निकाय से लेकर पंचायत चुनाव तक) के साथ ही एमपी व एमएलए के चुनाव को भी इस कानून के दायरे में लाने की पैरवी की है। जनसंख्या नियंत्रण के पक्ष में खड़े हुए लोगों ने कानून तोड़ने वालों को राशन तक न दिए जाने की सिफारिश तक की है। आयोग अब सभी सुझावों के व्यवहारिक, विधिक व सामाजिक पहलुओं का भी अध्ययन कर रहा है। आयोग अगस्त माह के दूसरे सप्ताह तक उत्तर प्रदेश जनसंख्यक (नियंत्रण, स्थिरीकरण व कल्याण) विधेयक-2021 का प्रारूप सौंपने की तैयारी में है। विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एएन मित्तल का कहना है कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर राजस्थान व मध्य प्रदेश में लागू कानूनों का अध्ययन किया जा रहा है। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने भी राज्य में बहुत जल्द जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की बात कह दी है।
ऐसे माहौल में जब हर तरफ जनसंख्या नियंत्रण के महत्व को स्वीकारा जा रहा है, केरल की एक चर्च द्वारा राष्ट्रीय नीति के विपरीत जाते हुए अपना अलग राग अलापना कितना उचित है।साथ ही यह भी पता लगाया जाना जरूरी है कि भारत विरोध की इस भावना के पीछे कौन सी ताकतों की शह उसे मिल रही है।