Aap Karo Maaf: केजरीवाल नहीं चाहते दिल्ली में सरकार बने !

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Aap Karo Maaf: केजरीवाल नहीं चाहते दिल्ली में सरकार बने !

रमण रावल

इस बारे में कुछ भी दावे से कहना अरविंद केजरीवाल की ही तरह बोलकर बदल जाने जैसा होगा, लेकिन हालात तो उस ओर ही संकेत दे रहे हैं । यदि संक्षेप में कहें तो ऐसा इसलिये कि आप की सरकार बनने पर केजरीवाल तो सुप्रीम कोर्ट की जमानत शर्तों के चलते कतई मुख्यमंमत्री बन नहीं सकते। तब किसी अन्य को मौका देना याने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा, जो केजरीवाल जैसे नेता के लिये संभव नहीं है। केजरीवाल के ज्ञात राजनीतिक इतिहास के पन्ने तो अपने तमाम विश्वसनीय साथियों और संरक्षक तक को हाशिये पर ठेल देने की दास्तान से भरे पड़े हैं। इसका यह मतलब भी नहीं कि केजरीवाल के चाहने भर से वे विजयी भी हो सकते हैं। वह तो अपनी आसन्न पराजय से निश्चिंत होने के कारण ही कांग्रेस से खुलकर पंगा ले रहे हैं, ताकि हार का ठीकरा उस पर फोड़ सकें। ऐसे हालात में भाजपा की बल्ले-बल्ले होने के भरपूर अवसर हैं। याने बाजी पूरी तरह से पलट सकती है।इसका यह आशय निकालना कि भाजपा की दिल्ली में कमजोर उपस्थिति है, राजनुतिक अपरिपक्वता ही होगी। इसमें अब कोई संदेह शेष नहीं रहा कि अरविंद केजरीवाल के सत्ता सुख का संयोग समाप्त होने जा रहा है और इसके लिये वे स्वयं ही सर्वाधिक जवाबदार हैं । समय के साथ तमाम वादों से मुंह फेर लेना, बड़े-बड़े झूठ बोलना, जिस कांग्रेस को पानी पी-पीकर दस साल कोसते रहे और सोनिया,राहुल गांधी को जेल में डाल देने की केंद्र को चुनौती देने जैसी बातें कहते रहें, वे उनके बगलगीर होकर लोकसभा चुनाव लड़े तो ऐसा लगा जैसे कांग्रेस देश की सबसे पवित्र पार्टी हो गई।

फिर दिल्ली की जनता जिस तरह के त्रास भोग रही है,उसने केजरीवाल एंड कंपनी की चिकनी-चुपड़ी बातों से परदा भी हटा दिया। सोशल मीडिया के इस दौर में दिल्ली की सड़कों पर पसरी गंदगी, यमुना जैसी पवित्र नदी में गटरों व कारखानों का रासयानिक पानी मिलने,शराब दुकानों के किराना दुकान की तरह खुल जाने,भ्रष्टाचार के इंतिहाई कारनामों ने जन-जन को उद्वेलित कर दिया। अरविंद केजरीवाल के न्यूनतम 50 तो ऐसे वीडियो प्रसारित हो चुके होंगे, जिसमें वे पहले कुछ कह रहे हैं और बाद में कुछ । इसमें सरकारी बंगला,कार,नौकर-चाकर न लेने,बच्चों की कसमें खाकर यकीन दिलाने,कांग्रेस के भ्रष्टाचार से आजीवन लड़ने,अपने साथियों के भ्रष्टाचार करने पर जेल भेज देने,दिल्ली की सड़कों को पेरिस की तरह चमकीली बना देने, यमुना को विश्व स्तरीय साफ नदी बना कर उसका जल आचमन कर लेने जैसे असंख्य वादों का भांडाफोड़ किया गया। इन सबसे केजरीवाल की प्रतिष्ठा तो धूमिल हुई ही, आम आदमी पार्टी की साख पर भी बट्‌टा लगा।

अब जबकि दिल्ली में चुनाव का बिगुल बज चुका है, तब तो ऐसे नये-पुराने तमाम वीडियो और बयानों की बाढ़ आ चुकी है, जिससे केजरीवाल की थू-थू हो रही है। दिल्ली की जनता की उग्र प्रतिक्रियाएं भी कुछ ज्यादा ही सामने आ रही हैं, जो आप का रास्तो पूरी तरह रोक देने का संदेश दे रहे हैं।ऐसे में मतदाता का यह सोचना स्वाभाविक है कि दस साल में जो केजरीवाल और आप उनका भला नहीं कर सके, दिल्ली की तकदीर नहीं चमका सके,उसे इस बार सत्ता सौंपने से बेहतर है कि भाजपा को दिल्ली का चाबी सौंप दी जाये, ताकि दिल्ली व केंद्र में एक ही दल भाजपा की सरकार होने का दोहरा फायदा दिल्ली को मिल सके।

फिर,जिस तरह से कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली की सड़कों पर उतरकर केजरीवाल की बैंड बजाना शुरू किया है,उसने रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। कांग्रेस का यही रूख केजरीवाल की नींद उड़ा चुका है तो भाजपा नेतृत्व को राहत दे रहा है। इतना तो राहुल और कांग्रेस भी समझ रहे होंगे कि एक दशक से अधिक समय से दिल्ली से सत्ता से दूर रहकर वे रातोरात सत्ता तो प्राप्त नहीं कर सकते, लेकिन बड़बोले केजरीवाल को उनकी हैसियत में तो लाया ही जा सकता है। आखिरकार,गांधी परिवा्र कैसे भूल सकता है, जब जंतर-मंतर पर बैठकर केजरीवाल एंड कंपनी ने उन पर सीधे-सीधे तौर पर हमले किये थे और भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे। भले ही इस चक्कर में भाजपा की राह आसान हो जाये।

दिल्ली के विधानसभा चुनाव के आंकड़े देखें जायें तो स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास में वे काफी उल्लेखनीय कहे जायेंगे। 2008 में कांग्रेस ने 70 सदस्यीय विधानसभा में 40.31 प्रतिशत वोट से 43 सीट व भाजपा ने 36.34 प्रतिशत वोट से 23 सीट प्राप्त की थी।2013 में राजनीतिक पटल पर आम आदमी पार्टी उभरी,जिसने 29.5 प्रतिशत वोट से कड़ी टक्कर देते हुए 28 प्राप्त कर ली और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली । जबकि भाजपा ने 36 प्रतिशत वोट से 32 सीट लाकर भी सरकार बनाने से वंचित रही । 2015 में देश को अचंभित करते हुए केजरीवाल के नेतृत्व में आप ने 54.3 प्रतिशत वोट से 67 सीटें हासिल की व भाजपा 32.3 प्रतिशत वोट से केवल 3 सीट पर सिमट कर रह गई।जबकि कांग्रेस पूरी तरह साफ हो गई। भाजपा ने तब चुनाव किरण बेदी के चेहरे पर लड़ा गया था। 2020 के चुनाव में भी केजरीवाल का सितारा बुलंद रहा और 53.57 प्रतिशत वोट से वे 62 सीटें ले आये। जबकि मनोज तिवारी के चेहरे पर भाजपा 38.51 प्रतिशत वोट लेकर भी केवल 8 सीटें ही ला सकीं।

इस बार 2015 व 2020 की तरह कोई चमत्कारिक परिणाम भले न आयें, लेकिन दिल्ली केजरीवाल मुक्त तो हो ही रही है। यूं भाजपा के परचम फहराये जाने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिये। दिल्ली में आप सरकार व केजरीवाल एंड कंपनी के पैसे फूंक,तमाशा देख के युग का अंत तो पक्का है ही।