आरती दशरथ नंदन की
आरती दशरथ नंदन की ।
सियापति रघुकुल चंदन की ।।
अंग पर नील कांति छायी ।
सूर्य सी आभा सुखदायी ।
मनोहर छबि अति मन भायी ।
कमल से नयन, विमल है वरन, सुकोमल चरन,
सत्यचित आनँद कंदन की ।।
सियापति रघुकुल चंदन की ।। १।।
शीश पर कंचन मुकुट धरे ।
कान में कुंडल रतन जड़े ।
गले में मणिमाला पहिरे ।
लिये शर चाप, हरें संताप, नसायें पाप,
हरें बाधा भव बंधन की ।।
सियापति रघुकुल चंदन की ।। २ ।।
वाम अँग सोहें जनक लली ।
संग लक्ष्मण बजरंग बली ।
भरत रिपुहन छबि लगे भली ।
अयोध्या भूप, मनोहर रूप, छटा है अनूप,
शील गुण निधि जग वंदन की ।।
सियापति रघुकुल चंदन की ।। ३ ।।
सुबाहू खर दूषण मारे ।
जटायू बाली उद्धारे ।
दशानन रावण संहारे ।
विडारे दनुज, उबारे मनुज, किये सब निरुज,
देव प्रिय असुर निकंदन की ।। ४ ।।
आरती प्रभु की जो गाये ।
पाप सब पल में मिट जाये ।
राम वल्लभ मन हर्षाये ।
नवायें माथ, जगत के नाथ, बढ़ाओ हाथ,
शरण दीजे निज चरणन की ।।
सियापति दशरथ नंदन की ।। ५ ।।
– डाॅ. राम वल्लभ आचार्य