Abhay ji’s Memories : मेरा नाम ‘विक्रम वर्मा’ अभय जी की ही देन! 

अभय छजलानी को लेकर BJP के वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा की श्रद्धांजलि! 

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Abhay ji’s Memories : मेरा नाम ‘विक्रम वर्मा’ अभय जी की ही देन! 

अभय छजलानीजी का निधन हिंदी पत्रकारिता के लिए एक ऐसी क्षति है, जिसकी पूर्ति कभी संभव नहीं। वे सिर्फ अच्छे पत्रकार और संपादक ही नहीं, बल्कि भविष्य को समझने वाले भी बेहतरीन व्यक्ति भी थे। वे जानते थे कि राजनीति का कौन सा कदम सही है और कौन सा नहीं! प्रदेश की राजनीति पर भी उनकी पकड़ का वक़्त मैंने देखा है। ये सिर्फ उनकी संपादकीय शैली वाले अखबार का ही कमाल नहीं था, बल्कि उनकी अपनी राजनीतिक समझ भी जबरदस्त थी।

मेरा और उनका साथ 60 के दशक के शुरूआती सालों से ही था। ये तब की बात है, जब ‘नईदुनिया’ कड़ावघाट इलाके से निकलता था और सुबह से शाम तक वहां नेताओं का जमघट सा लगा रहता था। तब मैं क्रिश्चियन कॉलेज में था और एक वक्ता के रूप में मेरी पहचान बन रही थी, तब भी मुझे अभय जी से बहुत सपोर्ट मिला। वे नए विषयों पर विचार विमर्श करते, दुनिया में क्या चल रहा है इस पर बात करते और राजनीति पर लम्बी बात करते! तब आज की तरह ख़बरों की तेज दुनिया नहीं थी इसलिए अखबार ही ख़बरों का जरिया हुआ करते थे। अभय जी के पास बैठने का एक फ़ायदा ये होता था कि कई नई जानकारियां एक दिन पहले ही मिल जाया करती थी।

ये वो समय था जब अभय जी लंदन से थॉमसन इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता की पढाई करके आए थे। उन्हें पता था कि दुनिया में पत्रकारिता का नया ट्रेंड क्या है? एक बार मैं और महेश जोशी उनके पास बैठे थे। हम अखबार के लिए एक विज्ञप्ति देने गए थे, जिसमें दोनों का नाम था। उन्होंने हम दोनों के नाम देखे! तब हम अपने नाम विक्रम सिंह वर्मा और महेशचंद्र जोशी लिखा करते थे। अभय जी ने हमें समझाया कि यदि भविष्य में तुम दोनों को राजनीति करना है, तो अपने नाम छोटे करो। इतने बड़े नाम लोगों के जहन में नहीं चढ़ते!

उसी समय अभय जी ने विज्ञप्ति में काटकर मेरा नाम ‘विक्रम वर्मा’ कर दिया उनका महेश जोशी कर दिया! तब से हम दोनों ने इसी नाम को अपना लिया। आज भी मतदाता परिचय पत्र और आधार कार्ड में मेरा नाम ‘विक्रम सिंह वर्मा’ ही है, पर राजनीति में इसका लघु रूप! दरअसल, ये अभय जी की भविष्यद्रष्टा नजर थी कि उन्होंने हम दोनों का राजनीतिक भविष्य भांप लिया था।

जहां तक मेरी बात है, मुझे उनका हर मामले में सपोर्ट मिलता रहा! कई बार वे मार्गदर्शन भी देते रहे कि मैं कौन सा मुद्दा उठाऊं क्या किसे छोड़ दूं! इसलिए कि वे हर मुद्दे का भविष्य जानते थे और उसके संभावित नतीजों से भी वाकिफ थे। जब मैं राज्य और केंद्रीय मंत्रिमंडल में खेल मंत्री बना, तब भी मेरी उनसे मुलाकात होती रही! क्योंकि, खेलों के प्रति उनका समर्पण जगजाहिर था, खासकर टेबल टेनिस को तो उन्होंने बहुत आगे बढ़ाया।

जब मैं प्रदेश में खेल मंत्री था, तब क्रीड़ा समिति में दो लोगों को मनोनीत करना मैं कभी नहीं भूला! एक थे अभय जी और दूसरे मुश्ताक अली खान। इंदौर में उत्कृष्ट खिलाड़ियों के चयन का मामला हो या इंदौर से संबंधित कोई और मामला, अभय जी ने हमेशा सरकार का सहयोग किया। यही कारण है कि अभय जी के चले जाने से इंदौर को नुकसान हुआ उसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

उन्होंने ‘नईदुनिया’ के जरिए और अपने व्यक्तिगत प्रयासों से इंदौर के लिए जो कुछ किया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता और न इंदौर भूल सकता है। इंदौर को भी उनका ऋणी रहना चाहिए कि कोई एक व्यक्ति किसी शहर के लिए क्या कुछ कर सकता है। वे इंदौर के विकास के लिए हमेशा चिंतित रहने के साथ सोचते भी रहते थे। लोगों को भले ही इंदौर में नर्मदा का पानी लाने में उनका योगदान याद हो, पर ऐसे कई मामले हैं जिनमें उनका परोक्ष या अपरोक्ष योगदान रहा है। अब ये इंदौर के लोगों की जिम्मेदारी है कि उनकी स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए वे क्या कदम उठाते हैं।