घर-घर मोदी के बाद घर-घर तिरंगा (After Modi from house to house Tricolor from house to house)

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घर-घर मोदी के बाद घर-घर तिरंगा (After Modi from house to house Tricolor from house to house);

जो कभी नहीं होता वो अब होता है ,क्योंकि मोदी हैं तो मुमकिन है | काशी से पहला चुनाव लड़े माननीय प्रधानमंत्री ने सबसे पहले हर-हर गंगा की तर्ज पर घर-घर मोदी का जुमला उछाला और घर-घर मोदी पहुँच गए | अब आजादी के 75 वे वर्ष में घर-घर तिरंगा का अभियान चलाया जाएगा ताकि घर-घर तिरंगा पहुँच जाए | ये एक सराहनीय अभियान है | इसमें सबको शामिल होना चाहिए |जेब से तिरंगा खरीदें और न खरीद पाएं तो सरकार से मुफ्त में ले लें , लेकिन अपने घर पर तिरंगा फहराएं जरूर |

केंद्र सरकार की सबसे बड़ी खासियत ये है कि वो सबको साथ लेकर चलती है ताकि सबका विकास हो जाए | अब हो या न हो ये अलग बात है| सरकार घर-घर पहुँचने के मामले में अब सिद्ध हस्त हो चुकी है | पहले काशी में मोदी जी को घर-घर पहुंचाया , फिर 80 करोड़ भूखे,ननगे लोगों को प्रति माह पांच-पांच किलो अन्न पहुंचाया वो भी मुफ्त | कोरोना के टीके मुफ्त में लगवाए ही | मुफ्त का माल कहाँ से आता है ये बताने की जरूरत नहीं ,क्योंकि ये एक रहस्य है |

दरअसल तिरंगे को घर-घर पहुँचाने के पीछे सत्तारूढ़ दल के मन में छिपा एक प्रायश्चित है | सत्तारूढ़ दल और उसमें काम करने वाले लोगों को अतीत में स्वतंत्रता संग्राम में तिरंगा लेकर आत्माहुतियाँ देने का मौक़ा ही नहीं मिला | मिला भी तो माफियां मांग कर घर आ गए ,कौन जेल की यातनाएं सहता ? आजादी के आंदोलन में शामिल न हो पाने की आत्मग्लानि से मुक्ति का अभियान लगता है घर-घर तिरंगा अभियान ,अन्यथा इस समय तो घर-घर दवाएं,शिक्षा,रोजगार पहुँचाने का समय है | समय है घर-घर सौहार्द पहुँचाने का ,लेकिन पहुंचाए जाएंगे तिरंगे ,जो कि पहले से पहुंचे हुए हैं |
तिरंगा हमारा राष्ट्र ध्वज है | हमारी आन.बान,शान का प्रतीक | इसी तिरंगे को लेकर असंख्य भारतीय अतीत में अपने प्राण न्यौछावर कर चुके हैं | देश को आजाद कराने में ये तिरंगा ही हमारा संबल था ,एक रंगा या दुरंगा नहीं | दुर्भाग्य से सत्ता पाने के लिए अनेक राजनीतिक दलों ने [जिसमें भाजपा और कांग्रेस भी शामिल है ] राजनीति चमकाने के लिए तिरंगे का खूब दुरुपयोग,उपयोग किया | साम्प्रदायिक रंग छिपाने के लिए भी भगवा प्रेमियों ने भी तिरंगे की आड़ ली | बावजूद इसके घर-घर तिरंगा पहुँचना एक सराहनीय अभियान है .

घर-घर रोजगार,रोटी,दवा और शिक्षा तो बाद में भी पहुंचाई जा सकती है लेकिन आजादी के 75 वे वर्ष में घर-घर तिरंगा पहुँच जाये ये बड़ी बात है | हालाँकि न भूखे न भजन होता है और न तिरंगा फहराया जाता है | मै हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर देश के अधिकाँश चौराहों पर उन लोगों को तिरंगा बेचते देखता हूँ जिनके पास अपना कोई घर नहीं है | जो फुटपाथों पर सोते हैं ,जिनकी गोदी में कुपोषित बच्चे होते हैं ,ये लोग तिरंगा फहराते नहीं बल्कि उसे बेचकर अपने पेट की आग बुझाते हैं | ये भीड़ एक-दो आदमियों की नहीं है,करोड़ों की है .80 करोड़ तो खुद सरकार बताती है ,क्योंकि सरकार ही इन 80 करोड़ लोगों को हर महीने पांच किलो मुफ्त में अन्न देती है |

हमारी सरकार बड़ी उदारमना है | लोग घर-घर झंडा फहरा सकें इसलिए उसने झंडा फहराने के नियमों में संशोधन कर दिया है | तिरंगा फहराने से भूखे हों या भरे पेट सबके मन में देशभक्ति की भावना पैदा की जाना है
| लगता है कि आजादी के 75 साल बाद देश में देशभक्ति का अचानक अकाल आ गया है| देशद्रोही ज्यादा हो गए हैं | घर-घर तिरंगा देखकर शायद देशद्रोही डर जाएँ ! तिरंगे से जब अंग्रेज डर सकते हैं तो देशद्रोही क्यों नहीं डरेंगे ? भूख,गरीबी,बेरोजगारी क्यों नहीं भागेगी,जब अंग्रेज भाग सकते हैं ? .आजादी के पहले हमारे पास कोई तिरंगा नहीं था | झंडे तो थे लेकिन वे रंग-बिरंगे थे ,किसी का भगवा,किसी का हरा किसी का सतरंगा,किसी का लाल ,किसी का पीला ,किसी का नीला | दोरंगे झंडे तो आज भी हैं |

भारत में झंडा गीत श्यामलाल गुप्ता पार्षद ने लिखा और ऐसा लिखा की बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया | कानपुर ज़िले के नरवल कस्बे में साधारण व्यवसायी विश्वेश्वर गुप्त के घर जन्में श्यामलाल अपने पांच भाइयों में सबसे छोटे थे। गुप्ता जी ने मिडिल की परीक्षा के बाद विशारद की उपाधि हासिल की। बाद में ज़िला परिषद तथा नगरपालिका में अध्यापक की नौकरी प्रारंभ की परन्तु दोनों जगहों पर तीन साल काअनुबंध भरने की नौबत आने पर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। वर्ष 1921 में गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता की। गुप्ता जी शुरूमें हमारी तरह ही व्यंग्यकार थे,उन्होंने एक व्यंग्य रचना लिखी जिसके लिये तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार ने आपके उपर 500 रुपये का जुर्माना लगाया। वर्ष 1924 में उन्होंने झंडागान की रचना की जिसे 1925 में कानपुर में कांग्रेस के सम्मेलन में पहली बार झंडारोहण के समय इस गीत को सार्वजनिक रूप से सामूहिक रूप से गाया गया।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झंडा उंचा रहे हमारा
सदा शक्ति बरसाने वाला
वीरों को हर्षाने वाला
शांति सुधा सरसाने वाला
मातृभूमि का तन मन सारा
गुप्ता जी का झंडा गान घर-घर पहुँचाने के लिए किसी को अलग से कोई अभियान नहीं चलना पड़ा | ये गीत अपने आप घर-घर पहुँच गया | इस गीत को लोकप्रिय बनाने के लिए जगह-जगह शाखाएं नहीं लगना पड़ीं | खैर बात तिरंगे को घर-घर पहुँचाने के अभियान की हो रही है | दुर्भाग्य ये है कि तिरंगे के तीन रंगों में से एक केसरिया रंग को सरकार भगवा समझ बैठी है और बाकायदा निर्देश दे रही है कि तिरंगा ऐसे फहराया जाये कि भगवा रंग ऊपर की और रहे | इस निर्देश पर मुझे हंसी आती है,किन्तु मै हँसता नहीं हूँ .किसी को भी नहीं हंसना चाहिए |.

संयोग है कि मै अक्सर अमेरिका जाता हूँ और देखता हूँ कि वहां लोग अमेरिका का राष्ट्रध्वज बिना किसी अभियान के अपने घरों के बाहर लगाते हैं | उसे उतारना भी नहीं पड़ता | जो जितना समपन्न होता है वो उतना बड़ा राष्ट्रध्वज अपने घर के बाहर लगाता है | वहां तो राष्ट्रध्वज के इतने दीवाने हैं कि स्लीपर से लेकर अंगिया तक पर उसे छाप लेते हैं .कोई मान-अपमान का मुद्दा नहीं उठाता | लेकिन हमारे यहां हमें अभियान चलना पड़ता है | अभियान में जनता से ज्यादा प्रशासन को सक्रिय करना पड़ता है | बेचारे कलेक्टर झंडा खरीदने के लिए न जाने किस-किस को दोहते फिर रहे हैं | पीड़ितों की सेवा के लिए बने रेडक्रास तक को तिरंगा खरीदने के लिए अपना धन खर्च करना पड़ रहा है | मैंने तो पहले से तिरंगा लाकर रखा हुआ है | आप भी ले आइये | घर न हो तो फ़्लैट की बालकनी में फहराइए .झुग्गी में फहराइए | अगर किसी पाइप में आपका डेरा हो तो वहां भी तिरंगा फहराना हमारा कर्तव्य है ,क्योंकि जिस देश का झंडा ऊंचा रहता है उस देश का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |

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RAKESH ANCHAL
राकेश अचल

राकेश अचल ग्वालियर - चंबल क्षेत्र के वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार है। वर्तमान वे फ्री लांस पत्रकार है। वे आज तक के ग्वालियर के रिपोर्टर रहे है।