Red ant (लाल चींटी) की चटनी के लिए लड़ाई

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Red ant

हमारे देश में लोग फालतू हैं और उनके पास पहले से काम बाढ़ के बोझ के नीचे दबी अदालतों को परेशान करने का भी खूब समय है.हमारे यहां न्याय व्यवस्था भी ऐसी है की आप अपील पर अपील करते हुए न सिर्फ पत्नी जान बचने के लिए बल्कि लाल चींटी की चटनी को कोरोना (Corona) की राष्ट्रीय दवा घोषित करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटा सकते हैं .हाल ही में लाल चींटी की चटनी के एक मामले ने ये सवाल खड़ा कार दिया है कि -क्या जीवनरक्षा और सम्पत्ति से जुड़े मामलों कि अलावा फालतू कि तमाम मामलों को अपीलीय सुविधा से वंचित किया जा सकता है ?
लालचीटीं की चरनी कि दीवाने ओडीशा के एन. पढियाल हैं याचिकाकर्ता ओडिशा के ट्राइबल कम्युनिटी के मेंबर हैं।पढियाल चाहते थे की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) कोरोना के इलाज के लिए लाल चींटी की चटनी के इस्तेमाल का निर्देश दे । पढियाल की याचिका ओडीशा हाईकोर्ट(हाई Court) ने ख़ारिज कर दी थी इसलिए वे सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) तक जा पहुंचे.जाहिर है की पढियाल पहुंचे हए याचिकाकर्ता हैं अन्यथा देश में असंख्य लोग ऐसे भी हैं जो निचली अदालतों में सजा सुनाये जाने के बाद उसकी अपील हाईकोर्ट तक में करने की हैसियत नहीं रखते .गनीमत है की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अर्जी ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि वह वैक्सीन लें ।अदालत ने कहा कि वह कोविड के इलाज के लिए इस बात का निर्देश जारी नहीं कर सकता कि जो परंपरागत ज्ञान या घरेलू उपचार के साधन हैं, उन्‍हें पूरे देश के लिए लागू किया जाए।
चींटी की चटनी वाली याचिका ख़ारिज करने वाले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि आप देख सकते हैं कि बहुत सारे परंपरागत तरीके हैं। यहां तक कि हमारे घरों में भी परंपरागत जानकारियां होती हैं। लेकिन, इस तरह के तमाम उपचार के तरीके आपको खुद पर प्रयोग करने होते हैं। अगर कोई नतीजे आते हैं तो उसे आप खुद सामना करते हैं। लेकिन, हम इस बात के लिए नहीं कह सकते कि पूरे देश के लिए इसे लागू किया जाए।
आपको जानकार हैरानी होगी कि अर्जी में कहा गया था कि लाल चींटी की चटनी में लाल चींटी और हरी मिर्च होती है। यह परंपरागत तौर पर ट्राइबल (Tribal) इलाके में औषधि के तौर पर इस्तेमाल होती है। इससे ओडिशा और छत्तीसगढ़ इलाके में फ्लू, कफ, कॉमन कोल्ड और सांस लेने की तकलीफ का इलाज होता है। याचिकाकर्ता का दावा है कि लाल चींटी दवाई के तौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि उसमें फॉर्मिक एसिड, प्रोटीन, कैल्शियम, विटामीन बी 12 और जिंक होता है। इससे कोविड ठीक हो सकता है।
अपनी चीन यात्रा कि दौरान मैंने चींटी की चटनी कि अलावा विभिन्न प्रकार कि छोटे और मोठे जीवों से बने खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल होते हुए देखा था .कोरोना भी इन्हीं में से किसी एक जीव कि इस्तेमाल की वजह से पूरी दुनिया में व्याप्त हुआ ,और अब इसी कि खात्मे कि लिए चींटी की चटनी की वकालत की जा रही है .दरअसल हमारे देश की अदालतों में ऐसे मामले कुछ तो प्रक्रिया संबंधी दोष कि कारण सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) तक पहुँच जाते हैं और कुछ मामलों को अदालतें ही अपने अजीबो-गरीब निर्देशों और कदाचित फैसलों की वजह से आमंत्रित कर लेती हैं .बहरहाल आभारी हिना चाहिए सुप्रीम कोर्ट कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का की उन्होंने ऐसे मामलों को हतोत्साहित किया .
देश की छोटी-बड़ी अदालतों में लंबित मामलों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है और इसकी वजह शायद लाल चीटी जैसे मामलों का आना भी है. देश की सबसे बड़ी अदालत में लंबित मामलों की संख्या इस समय 62 हजार से भी ज्यादा है और इसमें सालाना 4 फीसदी का इजाफा हो रहा है. हाईकोर्ट में तो 44 .64 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं और छोटी अदालतों में तो ये संख्या 3 .14 करोड़ से भी ज्यादा है .ये आंकड़े भी अद्यतन नहीं हैं . इनमें कमी कि बजाय बढ़ोत्तरी ही हुई है .इसलिए बहुत जरूरी है की बेसिर-पैर कि मामलों को नीचे ही समाप्त किया जाये.हालांकि ऐसी कोशिश होती भी है फिर भी समर्थ याचिकाकर्ता प्रचार पाने कि लिए ऐसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच ही जाते हैं .
आपको याद होगा की पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौहत्या कि एक आरोपी की जमानत खारिज करते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषत करने कि लिए केंद्र सरकार को सुझाव दे डाला है की वो इस बाबद एक विधेयक लेकर आये .माननीय अदालत कि इस निर्देश को खूब सुर्खियां हासिल हुई .मै क़ानून का एक साधारण छात्र होने कि नाते देश की अदालतों की दुर्दशा को लेकर सदैव चिंतित रहता हूँ. मैंने स्वयं देखा है कि जाब्ता फौजदारी कि मामूली से माले को सुल्टाने में कैसे वर्षों बीत जाते हैं जबकि ऐसे मामले समयबद्ध तरीके से आसानी से निबटाये जा सकते हैं .
जहाँ तक लाल चींटी की चटनी का मामला तो प्रथम दृष्टया न्याय का मामला है ही नहीं,इसे सुप्रीम कोर्ट तक आना ही नहीं चाहिए था .लाल चीटीं की चटनी की याचिका को तो पंजीबद्ध ही नहीं किया जाना चाहिए,लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे यहां सभी के लिए प्रावधान हैं .हमारी कार्यपालिका,न्यायपालिका और विधायका का चरित्र जहां एक और बड़ा कठोर है वहीं दूसरी और बेहद उदार भी .अब इसे बदले बिना तो तस्वीर नहीं बदली जा सकती .यहां तो अदालत की अवमानना पर किसी को एक रूपये का जुर्माना लगता है तो किसी को लाखों का,किसी को अदालत उठने तक की सजा होती है तो किसी को एक दिन की सांकेतिक जेल .यानि विसंगतियों की कोई कमी नहीं है .बहरहाल जान बची और लाखों आये वाला मामला है,अन्यथा लाल चींटी की चटनी भी बाबा जी की कोरोनिल की तरह बाजार पर हावी हो सकती थी .अब जिसे कोरोना का इलाज लाल चींटी की चटनी से करना-कराना है वो अपने घर पर करने के लिए आजाद है.

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RAKESH ANCHAL
राकेश अचल

राकेश अचल ग्वालियर - चंबल क्षेत्र के वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार है। वर्तमान वे फ्री लांस पत्रकार है। वे आज तक के ग्वालियर के रिपोर्टर रहे है।