
Alirajpur v/s Jhabua: भ्रष्टाचार की प्रतिस्पर्धा, GST कटौती से अधिक जरूरी है जीरो टॉलरेंस नीति
✍️ राजेश जयंत
ALIRAJPUR–JHABUA: लगातार दो दिनों में सामने आए दो चौंकाने वाले मामले, दो पड़ोसी जिले- लेकिन विभाग वही, आरोपी उसी प्रणाली के अधिकारी और शिकायतकर्ता उन्हीं के कर्मचारी। सुशासन और जीरो टॉलरेंस के बीच जैसे अलीराजपुर और झाबुआ के बीच कोई अनचाही प्रतिस्पर्धा चल रही हो!

बुधवार को अलीराजपुर में लोकायुक्त की टीम ने कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी को ₹50,000 की रिश्वत लेते पकड़ा। वहीं गुरुवार को झाबुआ में जिला आपूर्ति अधिकारी और सहायक सेल्समैन ₹50,000 की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किए गए।

इन दोनों घटनाओं ने विभागीय भ्रष्टाचार की गहराई और उसके नियमित पैटर्न को उजागर कर दिया। यह साफ हो गया कि जहां नौकरी और जेल दोनों का खतरा हो, वहां भ्रष्टाचार का खेल बीच के रास्ते से सुलझा लिया जाता है।
भ्रष्टाचार रेवड़ी है- होता है तो बंटता है। पेंच वहां फंसता है जब मुनाफा छोटा और रिश्वत बड़ी हो। तब लोकायुक्त की एंट्री स्वाभाविक हो जाती है, वरना शिकायतकर्ता भी कोई दूध का धुला नहीं होता।
*अलीराजपुर और झाबुआ के मामले*
Alirajpur में लोकायुक्त इंदौर की टीम ने कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी को उस समय पकड़ा, जब वह पीडीएस दुकान से जुड़े प्रशासनिक काम निपटाने के लिए ₹50,000 की रिश्वत ले रहा था।

Jhabua में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी दुकान का निलंबन हटाने और एफआईआर रोकने के लिए जिला आपूर्ति अधिकारी और सहायक सेल्समैन बार-बार रिश्वत मांग रहे थे। लोकायुक्त ने जाल बिछाकर दोनों को रंगे हाथ गिरफ्तार किया और जांच शुरू की।
दो दिनों में एक ही विभाग और दो पड़ोसी जिलों में सामने आए ऐसे मामलों ने यह साबित कर दिया कि चाहे सरकार GST कम करने का कितना भी प्रचार कर ले, जड़ में भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है।
*भ्रष्टाचार का पैटर्न*
भ्रष्टाचार का एड्रेस छुपा नहीं होता। असली विवाद हिस्सेदारी की कमी पर रहता है। वरना अधिकतर शिकायतें तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं।

अधिकार संपन्नता ऐसा माहौल बना देती है कि सामने वाला सोच ले- अब नौकरी गई, जेल जाने के भी आसार हैं।
इसी भय में “जुगाड़” निकलता है, और बीच का रास्ता ढूंढ लिया जाता है। नतीजा- भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी दोनों गंगा स्नान कर लौट आते हैं।
दोनों जिलों की घटनाएं यह दिखाती हैं कि अब भ्रष्टाचार व्यक्तिगत लालच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि विभागीय स्तर पर एक स्थापित प्रवृत्ति बन चुका है।
*सरकार के लिए बड़ा संदेश*
ये घटनाएं सरकार के लिए चेतावनी हैं कि भाषणों और अभियानों के बजाय भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी पर सीधे और ठोस कार्रवाई जरूरी है। जनता तभी राहत महसूस करेगी जब अधिकारियों और कर्मचारियों पर जांच तेजी और सख्ती से होगी।
– AGMP चोरी पकड़े, FIR के आदेश दे, फिर राशि का “संधारण” करवा देना- यह चोरी को कम नहीं करता। कार्यवाही होना चाहिए थी, जो नहीं हुई!
– ICDS भर्ती प्रक्रिया में खुलेआम रिश्वतखोरी के वीडियो सामने आए, जबकि कैबिनेट मंत्री इसकी संभावना पहले ही जता चुके थे। मामला वायरल हुआ सब कुछ स्पष्ट दिखाई सुनाई दे रहा था, तत्काल एक्शन होना था, जांच में शिकायतकर्ता गायब, संभावना की चुप्पी..
ऐसे जग जाहिर मामलों में कड़ी कार्रवाई नहीं होने से आम जनता में गलत संदेश जाता है। जनता लिखती-बोलती है “ऊपर से नीचे तक, सब मिले हुए हैं..!”
**संस्थाओं की स्वतंत्रता**
जीरो टॉलरेंस नीति को सचमुच लागू करना है तो लोकायुक्त, सीबीआई और अन्य एजेंसियों को पूर्ण स्वतंत्रता देनी होगी। राजनीतिक दबाव और हस्तक्षेप से मुक्त होकर ही ये संस्थाएं भ्रष्टाचार का असली चेहरा सामने ला सकती हैं।
**निष्कर्ष**
अलीराजपुर और झाबुआ की ये घटनाएं केवल दो जिलों की रिश्वतखोरी नहीं हैं, बल्कि उस प्रशासनिक ढांचे का आईना हैं जिसमें भ्रष्टाचार एक “नियम” बन चुका है। सरकारें चाहे कितनी भी टैक्स कटौती की घोषणाएं कर लें, जब तक कठोर और निष्पक्ष तरीके से जीरो टॉलरेंस नीति लागू नहीं होगी, जनता को राहत नहीं मिलेगी।
लोकायुक्त जैसी संस्थाओं को स्वतंत्रता, दोषियों पर त्वरित कार्रवाई और कठोर सजा ही वह रास्ता है जिससे भ्रष्टाचार की जड़ें कमजोर होंगी। असली सवाल यही है- क्या सरकार लोकप्रिय नारों से आगे बढ़कर वास्तविक सख्ती दिखा पाएगी, या फिर अलीराजपुर-झाबुआ जैसे मामले यूं ही “भ्रष्टाचार की प्रतिस्पर्धा” बनकर सामने आते रहेंगे?





