सबै बूथ गोपाल के…

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सबै बूथ गोपाल के…

आजकल भाजपा और कांग्रेस 2023 विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई हैं। मध्यप्रदेश में इन दोनों प्रमुख दलों का फोकस बूथ पर है। भाजपा संगठन जहां बूथ को मजबूत करने की हरसंभव कोशिश में जुटा है, तो हर बूथ पर 51 फीसदी मत हासिल करने का लक्ष्य भी 2023 के लिए तय‌ किया है। वहीं कांग्रेस भी वैसे खुलकर स्वीकार करती है कि संगठन के मामले में वह कैडर बेस पार्टी से कमजोर है, लेकिन 2023 के लिए बूथ सशक्तिकरण का लक्ष्य उसका भी है। हर बूथ पर 51 फीसदी मत हासिल करना चुनौतीपूर्ण है लेकिन अब भी ऐसे विधायक हैं जो कुल मतदान में औसत रूप से हर बूथ पर 51 फीसदी मत हासिल करने का लक्ष्य फतह कर रहे हैं। आज हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश विधानसभा के सर्वाधिक आठ बार विधायक पंडित गोपाल भार्गव की।

जी हां, हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश विधानसभा के वरिष्ठतम‌ सदस्य पंडित गोपाल भार्गव की। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक आठ बार लगातार जीत दर्ज करने वाले अजेय विधायक हैं गोपाल भार्गव। मध्यप्रदेश में लोक निर्माण विभाग मंत्री गोपाल भार्गव 1985 में पहली बार‌ रहली विधानसभा से विधायक चुने गए, तब उन्हें 30756 मत (कुल मतदान 53628 का 57.35 फीसदी) मिले थे, तो लगातार आठवीं बार इसी विधानसभा से जब वह चुने गए तो उन्हें 94305 मत (कुल मतदान 1,69,068 का 55.78 फीसदी) मिले थे। विशेष बात यही है कि पंडित जी को इन आठ बार में कुल मतदान के 54.28 फीसदी से लेकर 69.18 फीसदी तक मत मिले हैं। यानि कि हमेशा ही पंडित भार्गव को कुल मतदान के बहुमत 51 फीसदी से ज्यादा ही मत मिले हैं। हालांकि बूथवार यह थोड़ा ऊपर-नीचे हो सकता है लेकिन औसत बूथवार मत 54 फीसदी से 69 फीसदी मिले हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 2023 विधानसभा चुनाव के लिए यह लक्ष्य तय किया है कि हर बूथ पर 51 फीसदी मतदान प्रत्याशी के पक्ष में हो। अगर बूथवार औसत के हिसाब से देखा जाए तो प्रदेश के वरिष्ठतम सर्वाधिक बार चुने गए अजेय विधायक पंडित गोपाल भार्गव ऐसे हैं जो पार्टी के इस लक्ष्य पर पहली बार 1985 से ही खरे उतर रहे हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो भार्गव की बराबरी  मध्यप्रदेश का कोई विधायक नहीं कर सकता। रहली विधानसभा के लिए तो यह माना ही जा सकता है कि सबै बूथ गोपाल के। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अच्छे मतों से जीत का रिकॉर्ड बनाए हुए हैं लेकिन फिलहाल वह पांच बार के विधायक ही हैं और उन्होंने चार विधानसभा चुनाव तो मुख्यमंत्री बनने के बाद ही जीते हैं। सभी राजनेता कुल मतदान के 50 फीसदी से ज्यादा मत हासिल नहीं कर पाते। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह भी 1990 से लगातार सात बार के अजेय विधायक हैं लेकिन उन्हें कुल मतदान का 36 फीसदी से 45.69 फीसदी मत ही मिले हैं। इसीलिए लोक निर्माण विभाग मंत्री पंडित गोपाल भार्गव की उपलब्धि काबिले गौर है। बस रिकॉर्ड के मामले में गौर ही उनसे आगे हैं।

दरअसल लगातार जीत दर्ज करने वाले नेताओं के जीत के अलग-अलग समीकरण होते हैं। पर गोपाल भार्गव के बारे में यदि कहें तो रहली विधानसभा की जनता और मतदाताओं के दिलों पर वह राज करते हैं। 2013 विधानसभा चुनाव में तो गोपाल भार्गव चुनाव प्रचार के लिए क्षेत्र में ही नहीं निकले और और संख्या के हिसाब से सर्वाधिक एक लाख से ज्यादा मत पाकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। 2018 के विधानसभा चुनाव में कमलेश साहू को चुनाव मैदान में उतारकर गोपाल भार्गव के विरोधियों ने ऐसा माहौल बना दिया था, मानो रहली विधानसभा चुनाव में भारी उलटफेर होने वाला है। लेकिन जब चुनाव परिणाम आया तो एक बार फिर पंडित गोपाल भार्गव ऐतिहासिक जीत दर्ज कर रहली विधानसभा के जननायक साबित हुए। इस जीत के साथ ही गोपाल भार्गव मध्यप्रदेश विधानसभा के सर्वाधिक आठ बार के वरिष्ठतम विधायक का गौरव प्राप्त करने में सफल रहे। रहली की जनता ने यह जता दिया कि रहली में तो घर-घर में गोपाल का राज है। रहली विधानसभा के लिए सबै बूथ गोपाल के…कहना भी बेमानी है। यहां तो यही माना जा सकता है कि सबै भूमि गोपाल की। और यह भी कहा जा सकता है कि जनता की भावनाओं को सम्मान देते हुए उनकी उम्मीदों पर खरे उतरकर पुत्र अभिषेक भार्गव ने पिता की हर परीक्षा में सफल होने का तमगा हासिल कर लिया है।

रहली विधानसभा के इतिहास पर नजर डालें तो 1951 से 1980 तक यह विधानसभा कांग्रेस के कब्जे में रही है। सिवाय 1967 के, जब भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी एनपी तिवारी ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद जब 1985 से गोपाल भार्गव की विजय यात्रा शुरू हुई तब से कांग्रेस रहली विधानसभा से गायब है। और पार्टी और विधानसभा के मतदाताओं की उम्मीदों और भरोसे पर गोपाल लगातार खरे उतर रहे हैं। पार्टी ने भी 2018 में सरकार न बनने पर गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष बनाकर उनकी वरिष्ठता और रहली के मतदाताओं के भरोसे को सम्मान दिया। हालांकि जब 2020 में फिर से भाजपा की सरकार बनी, तब मंत्री बनने में थोड़ी देर जरूर हुई लेकिन शिवराज ने गोपाल भार्गव का सम्मान मंत्री बनाकर बरकरार रखा। गोपाल की जीत का सफर इतना लंबा हो गया है कि लगातार जीत दर्ज करने वाले अजेय विधायकों में अब उनकी नजर लगातार दस बार विधायक रहे स्वर्गीय बाबूलाल गौर के रिकॉर्ड की बराबरी करने पर ही होगी। गोपाल भार्गव की विधानसभा के बारे में एक बात और कही जाती है कि यहां अब कोई पूर्व विधायक जीवित नहीं है। अब जब गोपाल भार्गव को विधायक रहते लगातार 38 साल हो रहे हैं तो पूर्व विधायक के जीवित रहने की संभावना ही कहां बचती है। इतनी नौकरी कर पाने का अवसर तो अखिल भारतीय सेवा के भी गिने-चुने अफसरों को मिलता है।

लगातार जीत दर्ज करने वाले विधायकों की अपनी-अपनी काबिलियत तो होती है। पर कुल मतदान के 54 फीसदी से ज्यादा और 70 फीसदी तक मत हासिल करने के साथ आठ बार अजेय रहने वाले पंडित गोपाल भार्गव की काबिलियत निश्चित तौर पर यह कहती है कि पार्टी विचारधारा और अंत्योदय के प्रति उनका पूरा जीवन समर्पित रहा है। मदद का कोई मौका उन्होंने कभी नहीं छोड़ा, इसका उदाहरण भोपाल के सरकारी बंगले में पिछले पैंतीस साल से चल रही भोजन व्यवस्था, विधानसभा के हर मरीज का इलाज करवाने की अघोषित गारंटी, 21 हजार से ज्यादा कन्याओं का विवाह कराने का ग्रीनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनना, क्षेत्र का असीमित विकास सहित सैकड़ों खूबियां हैं, जो पंडित गोपाल भार्गव को विलक्षण जननायक बनाती है। अगर इस अजेय वरिष्ठतम विधायक के पदचिन्हों पर ईमानदारी से चलने की सीख पहली-दूसरी बार के विधायक ले लें, तो शायद राजनैतिक दलों को बूथ को मजबूत करने का लक्ष्य बनाने की जरूरत ही न पड़े। सबै बूथ गोपाल के…की तर्ज पर हर विधायक का नाम इस सम्मान का हकदार हो सकता है‌।