बिना बिके रंगकर्म को ‘आलोकित’ करते रहे ‘आलोक’…

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बिना बिके रंगकर्म को ‘आलोकित’ करते रहे ‘आलोक’…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

मध्यप्रदेश के रंगकर्म जगत में रंग भरने वाले प्रसिद्ध रंगकर्मी आलोक चटर्जी रंगभरी अनजान दुनिया में चले गए। एक इंटरव्यू के दौरान आलोक दा ने कहा था कि मैं रंगकर्मी बनने दिल्ली एनएसडी गया था। यदि फिल्मों में जाना होता तो फिल्म इंस्टीट्यूट पुणे में दाखिला लेता। मैं रंगकर्म के लिए अपनी जीवन जी रहा हूं। उन्होंने कहा था कि मैंने एनएसडी का नमक खाया है, जिससे रंगकर्म मेरे खून मेें है। मैं मंडी में बिकने वाला रंगकर्मी नहीं हूं। यह शब्द अक्षरश: आलोक के जीवन को आलोकित करते हैं। वह कभी बिके नहीं और रंगकर्म की दुनिया में कभी थके नहीं। ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ में प्रवेश पाना हर रंगकर्मी का सपना होता है। और यहां से निकलने के बाद बॉलीवुड में पहचान बनाना मानो सभी का लक्ष्य रहता है। इससे अलग आलोक चटर्जी को बॉलीवुड की चकाचौंध कभी लुभा ही नहीं पाई।

बॉलीवुड में चमक बिखेरने वाले इरफान की बर्थ एनिवर्सरी पर ही उनके करीबी दोस्त आलोक चटर्जी का निधन हो गया।आलोक चटर्जी थिएटर एक्टर और एनएसडी से गोल्ड मेडल पाने वाले दूसरे स्टार थे। उनसे पहले ओमपुरी ने ही एनएसडी में गोल्ड मेडल हासिल किया था। इरफान और आलोक चटर्जी एनएसडी में साथ पढ़े थे और तीन नाटक साथ में किए थे। इरफान की बर्थ एनिवर्सरी पर जिगरी दोस्त आलोक की मौत ने हर किसी को भावुक कर दिया। इरफान की 7 जनवरी को 58वीं बर्थ एनिवर्सरी पर जहां पूरा देश उन्हें याद कर रहा है, वहीं इरफान से मिलने के लिए इसी दिन दोस्त आलोक ने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया। इरफान के दोस्त और जाने-माने थिएटर एक्टर आलोक चटर्जी का 64 साल की उम्र में निधन हो गया। रंगमंच के दिग्गज अभिनेता, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के गोल्ड मेडलिस्ट और मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक आलोक चटर्जी ने 6-7 जनवरी 2025 की रात भोपाल में आखिरी सांस ली। उनकी और इरफान खान की खूब गहरी दोस्ती थी। दोनों ने एनएसडी में साथ पढ़ाई की थी। आलोक चटर्जी और इरफान साल 1984 से लेकर 1987 तक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एक साथ पढ़े। गायक और गीतकार स्वानंद किरकिरे ने आलोक चटर्जी के निधन की खबर दी और एक भावुक पोस्ट लिखा।

स्वानंद किरकिरे ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर आलोक चटर्जी के निधन के बारे में बताने के साथ ही यह भी रिवील किया कि वह और इरफान कितने करीबी दोस्त थे। स्वानंद किरकिरे ने इरफान और आलोक चटर्जी की तुलना कालिदास और विलोम से की। लिखा कि ‘विलोम अपने कालिदास से मिलने चला गया’। लिखा, ‘आलोक चटर्जी.. एक महान एक्टर चला गया।’ तो नेशनल अवॉर्डी थिएटर डायरेक्टर सरफ़राज़ हसन ने आलोक चटर्जी के निधन पर अपने भाव इस तरह व्यक्त किए कि ‘फैडआउट हुआ रंगमंच का एक अध्याय।’ उन्होंने लिखा कि रंगमंच पर अपनी ख़राशदार आवाज़ और सात्विक अभिनय से वशीभूत करने में महारत रखने वाले एनएसडी गोल्ड मैडलिस्ट आलोक चटर्जी का यूँ चला जाना वैसा ही जैसे चलते हुए नाटक के बीच अचानक पर्दा गिरना। सैकड़ों कलाकारों की प्रेरणा आलोक भाई अपने आप मे एक मुकम्मल एक्टिंग स्कूल थे और आखिरी वक़्त तक उन्होंने स्वयं को कठिन से कठिन परिस्थिति में भी ख़ुद को ऊर्जावान व कठोर बनाये रखा जो निश्चित ही हम सभी के लिए अनुकरणीय है। मंच पर कर्ण, रुस्तम, सोहराब, नटसम्राट जैसे चरित्र निभाते हुए आलोक चटर्जी को देखना किसी जादू से कम नहीं होता था।अभिनय के सभी रसों में सिद्ध आलोक भाई ने रंगमंच को ही अपनी कर्मभूमि मानकर अंतिम समय तक रंगमंच ही जिया और ख़ूब जिया। आलोक भाई से विगत 30 वर्षों से मेरा आत्मिक रिश्ता रहा और उनसे पल पल सीखा है। आलोक भाई की बनाई हुई जगह रंगमंच पर हमेशा ही खाली रहेगी उनका जाना अभिनय के एक अध्याय का समाप्त होना है।

मध्य प्रदेश के दमोह में जन्मे जाने-माने रंगकर्मी आलोक चटर्जी ने कई मशहूर नाटकों में हिस्सा लिया। विलियम शेक्सपियर के नाटक ‘ए मिड समर नाइट्स ड्रीम’ का निर्देशन उन्होंने ही किया था। इसके अलावा आर्थर मिलर के नाटक ‘डेथ ऑफ सेल्समैन’ का निर्देशन करने साथ ही उसमें अभिनय भी किया था। विष्णु वामन शिरवाडकर का मशहूर नाटक ‘नट सम्राट’ में उनका अभिनय काफी सराहनीय रहा, वहीं ‘शकुंतला की अंगूठी’, ‘स्वामी विवेकानंद’, और ‘अनकहे अफसाने’ उनके प्रमुख नाटकों में शामिल हैं। दमोह में कक्षा 8 वीं तक पढ़ाई करने के बाद चटर्जी जबलपुर चले गए और वहां से भोपाल में शिफ्ट हो गए थे उसके बाद में नई दिल्ली से एनएसडी की ड्रिगी प्राप्त की थी। सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से आलोक चटर्जी को गोल्ड मेडल मिला था, तो भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उन्हें वर्ष 2019 के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। रंगमंच के क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे आलोक चटर्जी को मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा का डायरेक्टर बनाया गया था। आलोक चटर्जी लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे। उनके शरीर में इन्फेक्शन फैल गया था। इसके अलावा उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था, जिसकी वजह से उनका निधन हो गया।

कुछ किए बिना जयजयकार नहीं होती और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, अपने कर्तव्य के प्रति ज़िद्द जुनून ,आत्मविश्वास, ही हमें बनाता है एक अजय योद्धा। कुछ ऐसे ही विचार आलोक चटर्जी के थे। आलोक चटर्जी अपने अंतिम समय में भोपाल में थे और यहीं पर थिएटर करते थे। वास्तव में आलोकित आलोक खुद बिना बिके ही सबके जीवन में रंग भरते रहे। दिग्गज रंगकर्मी और अभिनय गुरु आलोक चटर्जी के लिए फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि ‘ओ जाने वाले हो सके लौट के आना…।’