अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन ( 25 दिसम्बर ) पर स्मरण करते हुए सबसे बड़ा सवाल यही दिमाग में आता है कि उनकी निष्ठा , तपस्या और त्याग से खड़ी हुई भारतीय जनता पार्टी और पसंदीदा नेता नरेंद्र मोदी सत्ता में आकर अटलजी के कितने सपने साकार कर पा रहे हैं | हर परिवार में उत्तराधिकारी से यही अपेक्षा रहती है |
देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1957 के लोक सभा चुनाव में विजयी भारतीय जनसंघ के युवा सांसद के भाषण से प्रभावित होकर नेतृत्व करने योग्य होने की आशा व्यक्त की थी | करीब तीन दशक बाद यह अनुमान सही निकला | इसी तरह 2001 में अटलजी ने तेज तर्रार लेकिन संगठन , समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित नरेंद्र मोदी को सत्ता के किसी भी पद का अनुभव न होने के बावजूद नेतृत्व के लिए योग्य माना |
इस दृष्टि से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर 2014 से प्रधान मंत्री बने नरेंद्र मोदी के कदमों की समीक्षा इसी तथ्य से होती है कि वे अटलजी के सपने , संघ – भाजपा के सिद्धांतों और जनता के लिए किए गए वायदों को कितना पूरा कर पा रहे हैं |
पहले कुछ बातें अटलजी के मन , विचार और व्यवहार की | अटलजी से मेरा पहला परिचय 1972 में हुआ , जब मैं एक समाचार एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार में संवाददाता था | जनसंघ के गिने चुने सांसद , प्रखर वक्ता होने के साथ बेहद सरल स्नेहिल व्यवहार वाले वरिष्ठ नेता थे | तब वह 1 फ़िरोज़ शाह रोड की कोठी में रहते थे | संयोग और सौभाग्य से मैं सड़क के दूसरे छोर 5 विंडसर प्लेस ( जहाँ अब महिला प्रेस क्लब है ) पर अपने उज्जैन के राज्य सभा सांसद सवाई सिंह सिसोदिया के बंगले के एक हिस्से में रहता था |
उन दिनों सामने के बंगले तक फोन से संपर्क थोड़ा कठिन था | राजनीतिक गतिविधियों के लिए नेताओं से मिलना अधिक कठिन नहीं था | इसलिए जब भी avsar मिला , अटलजी से चाय के साथ लम्बी चर्चा के अवसर मिले | ताज़ी ख़बरों से अधिक उनके विचार सुनने समझने का लाभ मिला | राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और हिन्दू दर्शन से पूरी तरह जुड़े अटलजी असहमतियों वालों के प्रति पूरा सद्भाव सम्मान रखते थे |
इसे भी संयोग कह सकते हैं कि उन्हीं दिनों चार पांच बंगलों के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा रहते थे | बगल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक नेता का कार्यालय बना हुआ था |मुझ जैसे युवा पत्रकार के लिए विभिन्न विचार वालों के बीच सारे वैचारिक टकराव के बावजूद पारस्परिक मधुरता देखकर प्रसन्नता होती थी | मध्य प्रदेश की पृष्ठभूमि होने के कारण डॉक्टर शर्मा से सत्ता की और अटलजी से विपक्ष की राजनीति के कई आंतरिक समीकरणों को समझने का लाभ पत्रकारिता में मिला |
राजनीति के कितने ही रंग इन पचास वर्षों में देखने को मिलते रहे हैं | आदर्शवादी डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा ने 1991 में प्रधान मंत्री बनना स्वीकार नहीं किया , लेकिन अटलजी और नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बने और ऐतिहासिक सफलताएं मिली | यों 1993 में मैंने अपनी एक पुस्तक ” राव के बाद कौन ” के एक अध्याय के लिए अटलजी से लम्बी बातचीत की थी , तब उन्होंने कहा था – ” मैंने बहुत प्रतीक्षा कर ली |
मुझे यह भी शक है कि मैं इतना बड़ा दायित्व संभाल सकता हूँ | मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं सत्ता में बने रहने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने में अक्षम भी हूँ |” उनकी स्वीकार्यता में आदर्शों और जीवन मूल्यों की ध्वनि थी | तभी तो पहले उन्हें 13 दिन , फिर 13 महीने और बाद में जाकर 5 वर्ष प्रधान मंत्री के रूप में गठबंधन की सरकार चलानी पडी | लेकिन उन्होंने सत्ता की राजनीति को नई दिशा दी | वर्षों तक स्वयंसेवकों , कार्यकर्ताओं और सामान्य जनता के बीच काम करने से वह समस्याओं को अच्छी तरह समझते थे |
तभी तो उन्होंने सडकों के जाल बिछाकर शिक्षा , स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ ग्रामीण शहरी क्षेत्रों के विकास के कार्यक्रमों पर सर्वाधिक जोर दिया | संचार , परमाणु परीक्षण के साथ ऊर्जा उत्पादन , समाचार माध्यमों में नए टी वी समाचार चैनलों को अनुमति देने जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन शुरू किया |
कम्युनिस्ट विचार धारा और पाकिस्तान के आतंकवादी प्रयासों और हमलों के विरुद्ध कड़े रुख के बावजूद पाकिस्तान तथा चीन से सम्बन्ध सुधारने के लिए हर संभव प्रयास किए | लाहौर बस यात्रा के बावजूद पाकिस्तान से धोखा ही मिला | हाँ कारगिल में पाकिस्तान को शिकस्त देने का श्रेय अवश्य मिला | उनके उत्तराधिकारी नरेंद्र मोदी ने उसी रास्ते को अपनाकर न केवल पाकिस्तान बल्कि चीन को भी सीमाओं पर करारा जवाब देने में सफलता प्राप्त की |
यही नहीं अटलजी संसद से सड़क तक जिस धारा 370 से कश्मीर को मुक्त कराने , राम जन्म भूमि अयोध्या में भव्य मंदिर बनाने के लिए संघर्ष करते रहे , उस सपने को मोदी ने पूरा किया है | इसी तरह संचार सुविधा , ग्रामीण लोगों के सामाजिक आर्थिक जीवन में व्यापक बदलाव , रोटी कपड़ा मकान के अटल युग के नारे यानी उनके प्रेरक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय के सपनों को साकार करने के लिए मोदी ने सात वर्षों में अनेक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया है |
इसी तरह व्यापक आर्थिक सुधारों के लिए अटल बिहारी वाजपेयी जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री रहते या प्रधान मंत्री के रूप में कदम उठाने के लिए प्रयास करते रहे | आख़िरकार बिड़ला , टाटा , हिंदुजा , अम्बानी , अडानी के औद्योगिक समूहों के साथ अमेरिका , रूस , जर्मनी , जापान , ब्रिटैन , फ़्रांस ही नहीं इस्लामिक खाड़ी के देश संयुक्त अरब अमीरात और ईरान से आर्थिक सम्बन्ध बढ़ाने की पहल हाल के वर्षों में सफल हो रही है |
अटलजी से 1978 से 2003 के बीच मुझे कई बार अनौपचारिक बातचीत अथवा औपचारिक इंटरव्यू के अवसर मिले | उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा – ” सत्ता में रहने वाली हर पार्टी या गठबंधन और उससे जुड़े नेता को स्थायित्व के साथ विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए | राजनियेटिक लड़ाइयां जनता की अदालत में लड़ी जानी चाहिए | आर्थिक सामाजिक विकास की योजनाओं , भ्रष्टाचार पर अंकुश , प्रशासन में कसावट तथा पारदर्शिता और चुनाव सुधारों के लिए सभी दलों को आम सहमति बनानी चाहिए |
” एक हद तक उनके लक्ष्य के अनुरूप नरेंद्र मोदी ने कई कदम उठाए हैं | अटल पेंशन योजना अथवा हिमाचल से लद्दाख को जोड़ने वाली सुरंग सड़क योजना जैसे कार्यक्रम में नाम जुड़ा है , लेकिन अनगिनत ऐसे विभिन्न कार्यक्रम हैं , जिनसे यह आशा बनी रहेगी कि भारत सही अर्थों में सशक्त और आत्म निर्भर हो सकेगा |
( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ और दैनिक आज समाज के कार्यकारी निदेशक हैं )