Ambani wedding:स्वागत कीजिये कि 5 हजार करोड़ रुपये हजारों में बंटे
भारत में इक्कीसवीं सदी की सबसे चर्चित,खर्चीली,भव्य शादी के लिये मुकेश अंबानी की चर्चा एक बार फिर से दुनिया भर में हो रही है। मोटे अनुमान के अनुसार उनके बेटे अनंत की राधिका मर्चेंट से हुई शादी पर 5 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए होंगे। इस आयोजन को लेकर अलग-अलग स्तर की चर्चा में प्रमुख पहलू यह भी है कि यह दिखावा है ,फिजूल खर्ची है,शान बघारना है,धन की बरबादी है,वगैरह-वगैरह। यह एक ही पक्ष है। जबकि इस तरह से भी तो सोचा जा सकता है कि इस कथित फिजूल खर्ची और दिखावे के तौर पर सही, लेकिन क्या यह भी उतना बड़ा सच नहीं है कि जो भी धन खर्च हुआ, वह समाज के विभिन्न लोगों की जेब में ही गया, जिन्होंने सदी की इस चर्चित शादी में किसी भी रूप में सहभाग किया। याने अंबानी का ये धन बाजार में आया। हमi इस सकारात्मक पहलू पर भी तो गौर कर सकते हैं।
यदि आलोचनाओं का ही जिक्र करें तो क्या अंबानी परिवार सादगी से शादी करता तो यह रकम बाजार के हिस्से में आ सकती थी? मुश्किल यही है कि जो लोग शादी की भव्यता और खर्च को दिखावा निरूपित कर रहे हैं वे भी विरोध का दिखावा ही तो कर रहे हैं। किसी दूसरे के किसी भी काम का विरोध करना और उसे गरीब व गरीबी का उपहास उड़ाना बताना ज्यादा बड़ा दिखावा है। इतना ही नहीं तो ऐसे लोगों के जीवन में झांककर देख लीजिये, जब उनकी बारी आई होगी तो उन्होंने भी वे सारे शिष्टाचार निभाये होंगे,नेकचार किये होंगे, जो सामाजिक,पारिवारिक तौर पर किये जाने आवश्यक रहे होंगे। तब दूसरे पर अंगुली किसलिये उठाई जाती है ? इसलिये ना कि आप गरीब हितैषी, सुधारवादी,पूंजीवाद विरोधी,सादगी पसंद कहलाकर चर्चा में आना चाहते हैं?
आप एकबारगी इस तरह से सोच कर देखिये कि जिस शादी पर करीब 5 हजार करोड़ रुपये खर्च किये गये होंगे, वह रकम कितने हजारों-हजार लोगों के हाथ में गई होगी। कपड़े,सिलाई,खान-पान, सजावट,i उपहार, विमान, कार टैक्सी, होटल, कैटरर,वेटर,सफाईकर्मी,सुरक्षा गार्ड्स,सोने-चांदी,हीरे-जवाहरात,प्लेटिनम ज्वेलरी वाले,ब्यूटी सैलून,फोटोग्राफर,वीडियोग्राफर,इवेंट कंपनी,बैंड-बाजा,ढोल-ताशे,लाइट-साउंड,कोरियोग्राफर,डांस ग्रुप,सिंगर्स वगैरह,जो किसी भी शादी का अनिवार्य हिस्सा हो चले हैं, वे सब बहुतायत से इस आयोजन से जुड़कर लाभान्वित हुए हैं। यदि आपको इन सबको मिले रोजगार से तकलीफ है तो होती रहे।
जो लोग इस शादी की आलोचना कर रहे हैं, वे जरा अपने आसपास नजर दौड़ायें तो पायेंगे कि आम भारतीय तो कर्ज लेकर शादी जैसे आयोजन करता है। इतना ही नहीं तो जो जितना सक्षम है, वह उससे कहीं अधिक खर्च करता है, ताकि समाज में उसकी शानो शौकत के चर्चे हों। गांव से लेकर तो महानगरों तक शादी-ब्याह पर खर्च बेतहाशा बढ़ता जा रहा है। इसके मूल में दो बातें हैं-एक,यह किसी भी परिवार के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है,भले ही उस परिवार में कितने ही सदस्य हों। दूसरा,इस तरह के आयोजन से समाज में उस परिवार व मुखिया की छवि निर्मित होती है कि उसकी आर्थिक हैसियत कैसी है। ग्रामीण व नगरीय इलाके में एक तीसरा कारण भी बेहद मायने रखता है कि आपने दूसरे लोगों के यहां आना-जाना किया है,उनसे व्यवहार किया है तो अब उनकी भी तो बारी है,आपके यहां आने की। वे इसे सामाजिक प्रतिष्ठा भी मानते हैं। अनेक शादियां तो ऐसी होती हैं, जिनके बारे में बताकर व्यक्ति को गर्व होता है कि वह भी आमंत्रित था ।
सामाजिक सरोकार रखने वाले मुंबई के एक मित्र से जब अंबानी परिवार की शादी पर चर्चा हुई तो उनका अभिमत तो काफी चौंकाने वाला रहा। उन्होंने कहा कि अंबानी ने तो अपनी हैसियत से काफी कम खर्च किया है। इससे कहीं भव्य शादियां देश-विदेश में उनसे कम हैसियत वाले करते रहते हैं। एक जमाना था, जब लोगों के पास धन तो अपरंपार होता था, लेकिन खर्च काफी किफायत से करते थे। ग्रामीण इलाके में तो लोग अपने जीवन भर की पूंजी तिजोरियों में छुपाकर,जमीन में गाड़कर रखते थे, जिनके बारे में कई बार तो परिवार वालों को भी पता नहीं रहता था। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब ऐसे धनवान व्यक्ति की अनायास मौत हो गई और छुपे हुए धन के बारे में किसी से चर्चा ही नहीं कर पाये थे। वह धन बाद में भी किसी परिजन के हाथ नही लगा।
राजस्थान का ऐसा ही एक नगर है छोटी सादड़ी। उसके बारे में कहा जाता रहा है कि वहां का कोई भी पुराना मकान खरीद लो,लखपति-करोड़पति बन जाओगे। ऐसा काफी हुआ भी है। वहां जितने करोड़पति एक समय में राजस्थान के किसी अन्य स्थान पर नहीं थे, लेकिन दुभार्ग्यपूर्ण यह रहा कि अनेक की अगली पीढ़ी गरीबी में रही। ऐसे धन संचय से बेहतर है कि अंबानी की तरह खुलकर खर्च किया जाये।
इस दौर में भी गड़े हुए धन के मटके पुराने मकान तोड़ने पर निकलते रहते हैं। पिछले वर्ष ही मध्यप्रदेश के अलीराजपुर के कुछ मजदूरों को गुजरात के शहर सूरत में मकान की खुदाई में सोने के सिक्कों से भरा मटका मिला था, जिसे वे चुपचाप अलीराजपुर के पास अपने गांव लेकर आ गये। जब मजदूरों में बंटवारे को लेकर झगड़ा हो गया तो बात पुलिस तक पहुंच गई और फिर जैसा कि होता है, पुलिस ने हाथ साफ कर दिया। हालांकि वे भी बाद में पकड़ा गये और निलंबित भी हुए।
इसलिये मेरा मानना है कि पूंजीवाद को गलत ठहराने वाले,भव्य शादियों की आलोचना करने वाले, धन खर्ची को फिजूल करार देने वाले कभी अपने गिरेबान में भी झांककर देख लें कि कौन सा मौका आने पर उन्होंने कितना खर्च किया था। यूं भी शादी-ब्याह अब एक भरा-पूरा उद्योग बन चुका है। जानकारी के मुताबिक यह सालाना 10 लाख करोड़ के कारोबार वाला क्षेत्र है। जिसका सीधा सा आशय यह है कि प्रति वर्ष 10 लाख करोड़ रुपये बाजार में आते हैं। यदि एक शादी में औसत सौ लोगों को रोजगार मिले तो प्रतिवर्ष न्यूनतम 10 करोड़ लोगों की जेब में यह रकम जाती होगी। ऐसा तब है, ,जब शादियां साल भर नहीं होती। एक वर्ष में 50 से 75 के करीब मुहूर्त होते हैं। यदि इन नाममात्र के दिनों में होने वाले आयोजन से इतनी बड़ी तादाद में धन बाजार में आता है तो हमें उसका स्वागत करना चाहिये। यह धन यदि जमीन में गाड़ने लग जायेंगे तो बताइये, किसका भला होगा?