American Politics:क्या ट्रम्प और मस्क मसखरी कर रहे हैं ?

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American Politics:क्या ट्रम्प और मस्क मसखरी कर रहे हैं ?

रमण रावल

सत्ता के मद में चूर होकर ऊलजलूल काम करने वालों का लंबा इतिहास है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सलाहकार एलन मस्क के साथ मिलकर जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, वह कभी-कभी उनके खतरनाक इरादे के संकेत करती है तो कभी लगता है कि वे दुनिया के साथ मसखरी के मूड में हैं। यह रवैया तानाशाही और सनक भरी मनमर्जी के बीच का तत्व होता है। इसमें सामने वाले की क्रियाओं का ठीक-ठीक अंदाज लगाना मुश्किल ही होता है। इसमें संदेह नहीं कि यह जुगलबंदी दुनिया में बहुत सारे नये गुल तो खिलायेगी। यह अमेरिका के अब तक के रवैये से पूरी तरह हटकर हो सकती है। आम तौर पर अमेरिका के बारे में माना जाता है कि वह अपने कारोबारी हितों को साधने के लिये किसी भी हद तक जा सकता है। वैसा सब कुछ तो यह जोड़ी करेगी ही, साथ ही यह भी आशंका है कि सब कुछ तानाशाहीपूर्ण तौर-तरीके से किया जायेगा, जो अमेरिकी छवि को बदलकर रख देगा।

कमोबेश दुनिया के तमाम विकसित,आर्थिक रूप से सुदृढ़ और सैन्य दृष्टि से सक्षम देश विस्तारवादी नीतियों के पोषक होते हैं। एक समय इंग्लैंड ने यही किया,फिर दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने उस तरफ का रूख किया। आहिस्ता-आहिस्ता यूएसएसआर याने रूस ने यही किया और अब चीन भी इस दौड़ में शामिल हो चुका है। तरीके बदल चुके हैं, लेकिन नियत एकसमान है। सबकी मंशा यही रही कि समूची दुनिया हमारी मुट्‌ठी में रहे। व्यापार हो, सैन्य जरूरत हो,तकनीक हो या और भी कोई ऐसा क्षेत्र जिससे अकूत धन कमाया जा सके।

इक्कीसवीं सदी के नायक कुछ बेहद अलग तरीकों से अपने खतरनाक इरादों को फलीभूत करने पर उतारू हैं।ट्रम्प कोई पहले राष्ट्राध्यक्ष नहीं हैं। भारत की ही बात करें तो हमने देखा है कि करीब सात सौ वर्ष तक विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा लूट-खसोट मचाने,कत्लेआम करने,बर्बर जुल्म ढाने और संपत्ति,संस्कृति को तहस-नहत करने के अविरल,अनगिनत प्रयासों के बाद भी आज हम फिर से विश्व शक्ति बनने की ओर अग्रसर हैं। फिर से मजबूत राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। मुगल वंश का नाश हो गया। अंग्रेज झोली फैलाने की स्थिति में आ गये हैं। वहां की पीढ़ी से उद्यमिता गायब हो चुकी है। अर्थ व्यवस्था बेपटरी हो चुकी है। अफगानिस्तान, वियतनाम, इराक,यूक्रेन,फलीस्तीन आदि ऐसे कई उदाहरण है, जब ताकत के बल पर दूसरे कमजोर समझे जाने वाले मुल्कों को युद्ध की विभीषिका में झोंका गया, फिर भी अटल,अडिग खड़े रहे। जापान तो ऐसा देश है, जिसने विध्वंस की पराकाष्ठा पर पहुंचकर पुनर्निर्माण की वो मिसाल कायम की, जो इस सृष्टि का अस्तित्व रहने तक बरकरार रहेगी। बावजूद इसके बलशाली व्यक्ति या राष्ट्र अपनी हरकतों से बाज नहीं आते।

बहुत कुछ ऐसा ही इस समय अमेरिका राष्ट्रपति ट्रम्प कर रहे हैं। आशा,अनुमानों के विपरीत दूसरी बार सत्ता पाकर वे मदहोश हो रहे हैं। यूं भी ट्रम्प की छवि पहले कार्यकाल में भी एक गंभीर राजनेता की नहीं रही। इस बार तो एलन मस्क जैसे बिगड़ैल,बड़बोले और समूचे संसार पर कब्जा जमाने के इरादे वाले कारोबारी को सलाहकार की भूमिका में पाकर तो वे राजनयिक शिष्टाचार को भी ताक पर रखकर नियंत्रणहीन हो रहे हैं। वे संभवत: समझ नहीं पा रहे हैं कि मस्क जैसे महत्वाकांक्षी कारोबारी के अरमान इतने भर से पूरे होने वाले नहीं कि चुनाव में ट्रम्प को आर्थिक और नैतिक मदद के बदले उन्हें डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिसियंसी (डोजे)के प्रमुख बना दिया गया है। दुनिया को आश्चर्य नहीं होगा, यदि मस्क खुद को अगले राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन प्रत्याशी घोषित कर दें। इतना तो तय है कि ट्रम्प तो तब इस हालात में नहीं रहेंगे कि फिर खम ठोंक सकें।

इन दिनों ट्रम्प जितने भी फैसले ले रहे हैं, वे संसद की अनुमति के बिना सीधे लिये जा रहे हैं। वे अभी तक 72 एक्जीक्यूटिव ऑर्डर(ईओ) जारी कर चुके हैं, जिनमें से अनेक पर अदालत रोक लगा चुकी हैं। कई डेमोक्रेट राज्य उन आदेशों को मानने से इनकार कर चुके हैं। जिस राज्य में ट्रम्प को सबसे अधिक समर्थन मिला था, वहां उनके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। वे गाजा को खाली कर वहां मध्य पूर्व के रिवेरा(तट या किनारा) की तरह विकसित करना चाहते हैं। खाड़ी सहयोग परिषद के 6 देश इसके खिलाफ मैदान में आ गये हैं, जिसमें यूएई,मिस्त्र,जार्डन शामिल हैं।

अमेरिकी से अवैध प्रवासियों की हकाल-पट्‌टी के तौर-तरीकों के लिये भी ट्रम्प प्रशासन की छीछालेदार हो रही है। खासकर भारत के प्रवासियों को तीनों बार बेडी-हथकड़ी डालकर लौटाने की भारत सहित दुनिया में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। वहां के डिटेंशन सेंटर के अमानवीय हालात की भी आलोचना हो रही है। जबकि ट्रम्प और मस्क डिपोर्ट करने के वीडियो शान बघारते हुए डालते हैं और ट्वीटर हैंडल एक्स पर उपहास उड़ाते हैं। संभव है,इसमें भी मस्क का शातिरपना हो। वो भारत में अपना कोराबार अपनी शर्तों पर फैलाना चाहता है और भारत सरकार रियायतें नहीं दे रही है।

हाल ही में ट्रम्प ने एक और बयान देकर ब्रिक्स देशों का मजाक उड़ाया है कि वे जबसे आये हैं और परस्पर कारोबार के लिये अमेरिकी मुद्रा डॉलर में व्यापार न करने पर टैरिफ दुगनी करने की धमकी के बाद ब्रिक्स देश कहीं दिखाई नहीं दे रहे। ब्रिक्स में शामिल 10 देश अपनी मुद्राओं में व्यापार कर रहे हैं, न कि डॉलर में । इससे ट्रम्प तिलमिलाये हुए हैं। उनकी पूरी दादागीरी डॉलर के ऊपर टिकी हुई है और उसका चलन कम हुआ तो अर्थ व्यवस्था को तगड़ा झटका लगना् तय है। ब्रिक्स में भारत,चीन,रूस,ब्राजील,यूएई,अफ्रीका(5 देश),इथोपिया,ईरान,इंडोनेशिया,मिस्त्र शामिल हैं। इनकी जीडीपी दुनिया की 37 प्रतिशत है और आबादी 45 प्रतिशत है। यदि ये मुल्क अड़े रहे तो अमेरिका की मुश्किलें तो बढ़ना ही है। यूरोप के करीब तीन दर्जन देश यूरो में कारोबार करते हैं। ऐसे में ब्रिक्स के 10 देश भी अपनी मुद्रा चलाने लगे तो अमेरिकी अर्थ व्यवस्था का बंटाढार तो होना ही है। उस बौखलाहट में ट्रम्प कुछ भी बोल रहे हैं। सनक पर कायम रहते हुए उन्होंने कुछ अप्रिय कदम उठा लिये तो तात्कालिक तौर पर कुछ दिक्कतें भले ही हो, लेकिन शेष दुनिया को अलग राह भी मिल जायेगी।

जो भी हो,यह साल अंतरराष्ट्रीय मसलों के लिये विकट है और ट्रम्प-मस्क की जोड़ी कुछ अटपटा,सनक भरा करते हैं तो दुनिया में बड़ी हलचल मच सकती है।