Analysis Before Election 2024 :अभी तो मोदी को मोदी ही हरा सकते हैं

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Analysis Before Election 2024 :अभी तो मोदी को मोदी ही हरा सकते हैं

 

जब अगले साल लोकसभा चुनाव के परिणाम आयेंगे, तब तमाम पत्रकार,विश्लेषक अपने-अपने अनुमान,अटकलें सही-गलत ठहरा रहे होंगे। उसके कारणों पर भी वे प्रकाश डालेंगे ही कि उनसे चूक कहां हुई या वे सटीक क्यों साबित हुए। इस दरम्यान की बात कर लेते हैं। यदि कांग्रेस व गैर भाजपा विपक्ष यह सोचता है कि वे नरेंद्र मोदी को केवल एकजुट होकर आसानी से पराजित कर लेंगे तो उनके गलत साबित होने की संभावना ज्यादा है। देश में विपक्ष हाल-फिलहाल इस स्थिति में नहीं है। बेशक, जनता-जर्नादन की लीला तो अपरंपार है ही। तब भी वह यह तो देखेगी कि मोदीजी को हरायें तो क्यों और विपक्ष को सत्तासीन करें तो क्यों? अभी वह किसी भ्रम में नजर नहीं आ रही। तो क्या 2024 के चुनाव में मोदीजी को कोई नहीं हरा सकता? बिल्कुल हरा सकता है, लेकिन वे खुद मोदीजी ही होंगे,कोई दूसरा नहीं । तो मोदीजी भला खुद को क्यों हराने लगे?

MODI JI

जब से देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, तब से समूचे विपक्ष के निशाने पर मोदीजी हैं, भाजपा नहीं। विपक्ष की पहली हार तो यही है कि वह मोदीजी को ही भाजपा मानता है। इसीलिये रात-दिन उनके खिलाफ ही बयानबाजी की जाती है,उन पर निजी हमले किये जाते हैं। वे सरकार की कमजोरियां,कमियां,नीतियों की विफलता पर प्रहार नहीं करते। वे अपनी नीतियां भी नहीं बताते। उनके पास विकास की कोई ठोस परिकल्पना नहीं है। उनके पास विभिन्न मत-मतांतर होते हुए भी एक मंच पर आ जाने का तार्किक कारण नहीं है।एक खुन्नस है मोदी को लेकर। विपक्ष ने हमेशा यही कहा कि उन्हें मोदी को हराना है तो एकजुट होना होगा। यह इस बात का संकेत है कि सक्षम सेनापति को पराजित कर दो तो बहादुर सेना भी मैदान छोड़ देती है। संभवत पहले इसीलिये सेनापति या राजा हाथी पर होदा लगाकर बैठते थे या घोड़े पर सवार होकर रणभूमि की परिक्रमा करते रहते थे, ताकि सेना में जोश बना रहे और उसका भरोसा भी बना रहे कि सेनापति हमारे बीच ही है।

सदियों बाद भी यह मानसिकता नहीं बदली। इसलिये विपक्ष का एकमेव निशाना नरेंद्र मोदी ही रहते हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि विपक्ष के तरकश में मोदी पर चलाने वाले तीक्ष्ण बाणों की कमी है। जबानी शोर से न तो युद्ध‌ जीते जाते हैं, न चुनाव, न खेल। नरेंद्र मोदी आज देश को विकास की जिन उंचाइयों पर ले आये हैं, वहीं खड़े होकर यदि कोई लड़ाई लड़ी जायेगी तो जीत की संभावना मौजूद रहेगी। किसी हवेली पर पत्थर फेंकने से उसकी खिड़की के कांच तो टूट सकते हैं, लेकिन भवन से एक ईंट भी नहीं हिलाई जा सकती। नरेंद्र मोदी ने अपने आभामंडल से, आधारभूत संरचनाओं का जाल बिछाकर,देश की सीमाओं से सात समंदर परे तक देश की साख के खाते में जो ख्याति जमा कर दी है, वह इतनी अकूत है कि चवन्नी-अठन्नी चुरा लेने से कुछ भी फर्क पड़ने वाला नहीं है। जो भवन खड़ा कर दिया है,उसे चिल्लाचोट से कोई नुकसान होने वाला नहीं है।

यदि हालिया कुछ विधानसभा चुनाव परिणामों की भी बात करें तो कोई भ्रम् पालता रहे,उनके दल की जीत है। खासकर कर्नाटक की बात करें तो वहां कांग्रेस नहीं जीती है, बल्कि भाजपा हारी है। भाजपा सरकार की कमोजोरियां,राज्य के नेताओं की गलतियां, नीचले स्तर पर कार्यकर्ताओं की लापरवाही और आचरण की पराजय हुई है। इसे मोदी की पराजय मानना अहंकार होगा। संभव है कि मप्र,छत्तीसगढ़ व राजस्थान विधानसभाओं के चुनाव परिणाम भी भाजपा के अनुकूल न रहे। वैसा हुआ तो वह राज्य भाजपा की हार होगी।कांग्रेस या विपक्ष की जीत नहीं ।विपक्ष में कांग्रेस समेत एक भी दल में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं,जिसके चेहरे और नाम पर वोट दिया जा सके। विपक्ष तो छोड़िये, भाजपा में भी मोदीजी के अलावा फिलहाल तो कोई चमकदार चेहरा नहीं, जिसके पीछे पूरा देश खड़ा हो जाये। 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा यदि अप्रत्याशित तरीके से जीती थी तो बड़ी ताकत जनता थी। वह चुनाव जनता ने लड़ा था, मोदीजी के लिये।

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राहुल,सोनिया,अखिलेश,ममता,शरद पवार,अरविंद केजरीवाल,नीतीश कुमार ऐसे चेहरे तो नहीं हैं, जिन पर जनता आंख मींच कर भरोसा कर ले। यूं भी पंचायत,नगरीय निकाय चुनाव से लेकर तो विधानसभा तक के चुनाव में मतदाता अपने सीधे फायदे-नुकसान के मद्द‌ेनजर मतदान करता है। लोकसभा चुनाव के पैमाने बेहद अलग होंगे।

अब आम चुनाव को करीब एक साल बचा है। इस दौरान मोदी अपनी टीम को किस तरह से अधिक सक्रिय,जिम्मेदार बना पाते हैं। संगठन में कसावट होती है या ढर्रे को बदलने को जोखिम नहीं लेंगे। कौन-सी ऐसी दूरगामी नीतियां घोषित करेंगे, जो जनमानस में पैठ को गहरा करेगी। विपक्ष की तरफ मुस्लिम मतों के एकतरफा हो जाने के जवाब में वे शेष मतदाता के बीच भाजपा के पक्ष में धारा को मोड़ देने के कौन से उपाय करेंगे। अयोध्या की तरह मथुरा,काशी के मसले कानूनी तरीके से किस मोड़ पर पहुंचते हैं। समान नागरिक संहिता को लेकर क्या कदम उठाये जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसे भारत को अधिक सक्षम बनाकर खड़ा करते हैं। अर्थ व्यवस्था को कैसे थामे रखते हैं। रोजगार के साधन और अवसर कैसे जुटाये-बढ़ाये जा सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण मसला यह भी रहेगा कि विपक्ष के संयुक्त हमले से कैसे बचाव कर पाते हैं और मतदाताओं को ललचाने-लुभाने के लिये विपक्ष के पांसों के सामने कौन-सी मजबूत चाल चलते हैं।

2024 के चुनाव यह भी तय करेंगे कि देश राष्ट्रवाद,विकास,सनातनी परंपराओं की समर्थक और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ाने वाली सरकार चाहता है या तुष्टिकरण,बहुसंख्यक वर्ग की उपेक्षा और दुनिया में घूम-घूमकर देश की साख को नुकसान पहुंचाने वालों के साथ जाता है। अगला जनादेश भी स्पष्ट ही रहेगा। जो यह सोचते हैं कि उन्हें जोड़-तोड़ का अवसर मिल सकता है, वे शेर से बचे शिकार पर टूट पड़ने का इंतजार कर सकते हैं। शायद कोई बोटी नसीब हो जाये।
(क्रमशः)