Analysis Before Elections-2024: कर्नाटक और राजनीति के नाटक में फर्क है

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Analysis Before Elections-2024: कर्नाटक और राजनीति के नाटक में फर्क है

 

हालिया कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम के कुछ स्पष्ट संदेश हैं। पहला,कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ता उत्साह से भर गये हैं। दूसरा,अब गरीब और पिछ़डों को ही नहीं, बल्कि निम्न मध्यम व मध्यम वर्ग को भी मुफ्तखोरी पसंद है। तीसरा, ईवीएम से चुनाव कराने में कोई बुराई नहीं है।चौथा, देश का मुस्लिम मतदाता भ्रमित नहीं है। वह केवल भाजपा को हराना चाहता है। इस नीति के तहत वह राज्यवार अलग-अलग विचारधारा वाले दल का समर्थन करता है। कर्नाटक में विजयी सभी 10 मुस्लिम प्रत्याशी कांग्रेस के हैं। कुछ जगह पर जनता दल सेक्यूलर(जेडीएस) ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे, किंतु मुस्लिम वोट बंटा नहीं। जेडीएस का एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं जीत पाया।

इसकी तुलना में देश के प्रत्येक राज्य का हिंदू मतदाता तीन-चार खेमों में बंट जाता है। वह भी सीट के हिसाब से। कहीं वह हिंदू है, कहीं यादव है, कहीं दलित है, कहीं ब्राह्मण है, कहीं जाट तो कहीं सिख है। इस चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस को अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये रणनीति बनाने और फेरबदल करने में आसानी होगी और जिसके लिये अभी पर्याप्त समय भी है।दूसरा,तीसरा मोर्चा भी यदि बने तो उसमें जुड़े दल अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में गुणा-भाग कर सकते हैं।

कांग्रेस,गैर भाजपाई विपक्ष और देश का आम मुस्लिम मतदाता कहीं खुले तौर पर तो कहीं मंद-मंद मुस्कान के जरिये बता रहा है कि आने दो 2024,बताते हैं हमारी ताकत। राजनीतिक दलों को किसी भी विजय से नैतिक बल मिलता है, जो उसे अगले मोर्चे पर जाने का हौसला देता है। भाजपा लाख कहे कि कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम न तो देश का जनादेश है, न ही उसके लिये 2024 का आम चुनाव फतह करना कोई बड़ी चुनौती है। जबकि हकीकत विपरीत है। भाजपा को चुनावी तिकड़म के नये सांचे ढालने पड़ेंगे। उससे पहले उसे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,राजस्थान मिजोरम और तेलंगाना को साधना होगा,जहां नवंबर-दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनाव हैं।

नवंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे बेशक देश के दो प्रमुख दलों के सामने नये लक्ष्य रखेंगे। मई 2024 में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर 6 महीने का ही समय मिलेगा,इसलिये दोनों दल विधानसभा चुनावों को एक दिवसीय मैच की तरह लेंगे। जो दल मतदाता के मानस पटल को प्रभावित करने की धुंआधार बल्लेबाजी करेगा, उसके प्रदर्शन के आधार पर लोकसभा चुनाव के टेस्ट मैच में उसका खेलना और परिणामों को अपने हक में करने का अवसर बढ़ जायेगा।

कर्नाटक के चुनाव परिणामों को लेकर जो बातें कहीं जा रही हैं, वे मोटे तौर पर सही हो सकती हैं, लेकिन महज उन्हीं आधार पर भाजपा के हाथ से जीत फिसली है, ऐसा भी नहीं है। भाजपा ने 2018 में वहां टेके से सरकार बनाई थी, बहुमत में तो वह तब भी नहीं थी। 2018 में भाजपा की 104 और जेडीएस की 37 सीटों की वजह से सरकार बना ली। जबकि कांग्रेस की 78 सीटें थीं। अब कांग्रेस की 135,भाजपा 67 और जेडीएस की 19 सीटें हैं। याने भाजपा की उतनी सीटें भी नहीं रहीं, जितनी पिछली बार कांग्रेस की थी। भाजपा-जेडीएस को क्रमश: 39 और 18 सीटों का नुकसान हुआ और कांग्रेस ने इन दोनों के हाथ से फिसली हुई कुल 57 सीटें अपने खाते में जमा कर ली।

आखिरकार ऐसा कैसे हुआ? कर्नाटक की राजनीति में भी जातिवाद काफी मायने रखता रहा है। वहां लिंगायत और वोक्कालिगा के अलावा मुस्लिम भी अहम भूमिका निभाते हैं। इस चुनाव में भी इन तत्वों के साथ मुफ्तखोरी के तड़के ने पूरा मजमा ही बदलकर रख दिया। यूं भी कह सकते हैं कि कर्नाटक के परिणामों को इस बार मुस्लिम मतदाता और मुफ्तखोरी ने ज्यादा प्रभावित किया। जबकि भाजपा मुफ्तखोरी को गैर जरूरी मानती रही और मुस्लिम मतों के कांग्रेस के पक्ष में एकजुट होने को समझ ही नहीं पाई। भाजपा को लगा कि अपने सहयोगी दल जेडीएस को भी मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिलेगा और वह गच्चा खा गई, जब जेडीएस का एक भी प्रत्याशी जीत नहीं पाया। याने भाजपा के खिलाफ वह नहीं बंटा। तीसरा झटका उसे कर्मचारी मतदाताओं से लगा, जिन्हें कांग्रेस ने पुरानी पेंशन बहाली का भरोसा दिलाया,जबकि भाजपा हिमाचल की हार से भी सबक नहीं ले सकी।

कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव में 5 प्रमुख वादे किये। पहला,गृह लक्ष्मी योजना में महिलाओं को दो हजार रुपये प्रतिमाह। दूसरा,गृह ज्योति योजना में प्रत्येक घर को 200 यूनिट बिजली मुफ्त । तीसरा, युवा निधि योजना के तहत स्नातक बेरोजगार को 3 हजार रुपये और डिप्लोमा वाले को 1500 रुपये प्रतिमाह। चौथा, अन्न भाग्य योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे वालों को 10 किलो चावल मुफ्त। पांचवां, महिलाओं को कर्नाटक की सीमा में बसों में मुफ्त यात्रा। भाजपा ने ऐसा कोई आकर्षक वादा नहीं किया और परिणाम सामने है। संभव है,आगामी विधानसभा चुनावों में इससे सबक लेकर वह भी मुफ्तखोरी का पिटारा खोल दे।

अब बड़ा सवाल यह है कि इन नतीजों का मप्र,छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव पर कितना असर होगा? इन उत्तरी राज्यों की भौगोलिक,सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियां बेहद भिन्न हैं। जिसका सीधा असर तो यहां नहीं होगा, लेकिन इन सभी प्रदेशों में भाजपा और कांग्रेस सीधे मुकाबले में रहेंगी तो रणनीतिक तौर पर बदलाव तो करना ही पड़ेगा। भाजपा इन तीन राज्यों में संगठनात्मक ढांचे में कुछ तो बदलाव निश्चित ही करना चाहेगी। अगले कुछ हफ्ते खासी हलचल के रहेंगे। (क्रमश:)

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।