Anant Chaturdashi 2022:अनंत भगवान कौन है?
अनंत का अर्थ है जिसके न आदि का पता है और न ही अंत का। अर्थात वे स्वयं श्री नारायण ही हैं। अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखकर एवं उनकी पूजा करके अनंतसूत्र बांधने से समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलती है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा करने से व्यक्ति को श्री नारायण के साथ लक्ष्मी जी के पूजन से प्राप्त होने वाले समस्त फलों की की प्राप्ति होती है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार भक्त श्री लक्ष्मी नारायण पूजा का प्रयोग लंबी आयु, स्वास्थ्य, समृद्धि, आध्यात्मिक विकास, व्यापार में सफलता.और भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए करते हैं. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अवसर पर अनंत चौदस अथवा अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है।
इसी दिन गणपति विसर्जन भी किया जाता है. साल में भगवान विष्णु की पूजा के लिए दो चतुर्दशी और पूर्णिमा और एकादशी का दिन महत्वपूण माना गया है.
अनंत चतुर्दशी को कई जगह नरक चौदस या चतुर्दशी भी कहा जाता है. इस तिथि पर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की तिथि के तौर पर माना गया है. अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. बता दें कि इस बार अनंत चतुर्दशी का व्रत 9 सितंबर 2022 को रखा जाएगा.
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र्योदय से पूर्व स्नान कर व्रत का संकल्प लें और पूजा स्थल पर कलश स्थापना करें. कलश के पास ही कुश रखें. इसके लिए पूजाघर में चौकी पर मंडप बनाकर उस पर सात फ़णों वाली शेषरूप अनंत की प्रतिमा स्थापित करें. फिर एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए. इसके बाद प्रतिमा के आगे 14 गांठ वाला रेशमी अनंत रखकर उसकी पंचोपचार या षोडषोपचार पूजन करें. अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें. पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें.
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव.
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते..
नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर, नमस्ते सर्वनागेन्द्र नमस्ते पुरुषोत्तम॥ मंत्र का जाप करते हुए प्रसाद ग्रहण करें. ध्यान रहें ये अंनत सूत्र पुरुष दांए और महिलाएं बाएं हाथ में बांधे. इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.