अपनी भाषा अपना विज्ञान :आवाज का चाकू: ध्वनि विज्ञान
मेडिकल जांच के रूप में अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी का नाम सबने सुना होगा ।
कभी सोचा है इसमें क्या होता है ? कैसे होती है यह जांच ? साउंड अर्थात आवाज या ध्वनि । अल्ट्रासाउंड मतलब पराध्वनि । इंसान के कान केवल उन आवाजों को सुन पाते हैं, जिनकी प्रति सेकंड आवृत्ति 20 से 20,000 होती है । ध्वनि की तरंगे होती है, लहरें होती है । लहरों की आवृत्ति (Frequency) होती है । 1 सेकंड में कितनी बार । प्रकाश भी तरंगे है, जिनकी आवृत्तियों की रेंज बहुत बड़ी है । उसकी चर्चा किसी अन्य लेख में करेंगे ।
कुत्ते व अन्य प्राणी 20000 Hertz (आवृत्ति नापने की इकाई) से ऊंची साउंड सुन पाते हैं जो मनुष्य नहीं सुन सकता । कुत्तों को बुलाने या संदेश देने के लिए गाल्टन नाम के एक महाशय (डाल्टन के भाई) ने एक खास सीटी का आविष्कार किया था । शिकारी लोग उसे बजाकर अपने कुत्तों को बुलाते हैं । मनुष्य नहीं सुन पाते ।
मरीज के शरीर की अल्ट्रासाउंड जांच में जब पेट या अन्य अंग पर एक क्रीम लगाकर, सोनोलोजिस्ट अपना प्रोब (बेलन नुमा यंत्र) फेरता है, तो उसमें से ध्वनि तरंगे निकलती है जो किसी को सुनाई नहीं पड़ती क्योंकि उनकी फ्रीक्वेंसी इंसानी कान की क्षमता से परे होती है ।
सभी तरंगो (ध्वनि, प्रकाश आदि) में एक और गुण होता है :- किसी सतह से टकराकर लौट कर आने का । रिफ्लेक्शन (परावर्तन) । काँच के सामने जब हम अपने आप को देखते हैं तो हमारे शरीर से निकलने वाली (रिफ्लेक्ट होने वाली) किरणें दर्पण से टकराकर पुनः परावर्तित होकर हमारी आंखों में प्रवेश कर जाती है।
पहाड़ी प्रदेश की घाटी में जोर से ‘ओम’ ‘ओम’ या कोई भी शब्द चिल्लाने पर ध्वनि तरंगे भी लौटती है और echo (अनुगूँज) के रूप में हमें सुनाई पड़ती है। चमगादड़ ध्वनि तरंगे निकलते हैं और पास या दूर की रचनाओं से टकराकर लौटने वाली तरंगों को रिसीव करके विस्तृत आकलन कर पाते हैं कि कहाँ , किस दिशा मे कितनी दूर, किस आकार की इमारत या वृक्ष या गुफा है। वायुयानों के यातायात के नियंत्रण में तथा दुश्मन के हमलवार बमवर्षकों का पता लगाने के लिए रेडार यंत्र पराध्वनि पर निर्भर रहते हैं।
अल्ट्रासाउंड जांच में शरीर के अन्य अंगों से लौटने वाली तरंगों को वही प्रोब ग्रहण करता है जो ध्वनियों को पैदा करके शरीर के अंदर भेज रहा है । परावर्तित साउंड वेव्स के गुणों के आधार पर मशीन का कंप्यूटर काले सफेद या रंगीन चित्र बनाता जाता है, जिन्हें डॉक्टर सहेज सकता है, प्रिंट कर सकता है, विभिन्न अंगों के बिंबों के आकार को नाप सकता है ।
पिछले 40 वर्षों में अल्ट्रासाउंड तकनीक में बहुत प्रगति हुई है । स्थिर चित्रों से आगे बढ़कर चलायमान (डायनेमिक) मूवी नुमा चित्र प्राप्त करना संभव है, जिसे डॉप्लर कहते हैं । उसकी चर्चा किसी अन्य लेख मे करेंगे ।
अल्ट्रासाउंड की उपयोगिता डायग्नोस्टिक (नैदानिक) से आगे बढ़कर थेराप्यूटिक (उपचारात्मक) भी है । बहुत पुराना उदाहरण है -किडनी व मूत्र मार्ग में पथरी को ध्वनि तरंगों से तोड़कर चूरा कर देना ताकि वह पेशाब के साथ आसानी से निकल जावे । फिजियोथेरपी में शरीर के विभिन्न अंगों में दर्द को कम करने हेतु अल्ट्रासाउंड काम में आता है ।
न्यूरोलॉजी में, मस्तिष्क की जांच में अल्ट्रासाउंड की भूमिका सीमित रही है क्योंकि हमारा दिमाग खोपड़ीनुमा जिसे बक्से मे बंद रहता है उसकी हड्डी वाली दीवार बहुत मोटी होने से ध्वनि तरंगे आसानी से बेध नहीं पाती है ।
दोनों कनपटी के ऊपर “टेंपोरल” नामक हड्डी का एक हिस्सा कुछ पतला होता है । वहां प्रोब रखकर मस्तिष्क की कुछ धमनियों में रक्त प्रवाह की गति को जरूर नापा जाता रहा है।
तकनालोजी में विकास के साथ पराध्वनि तरंगों में दो खास गुण बढ़ गए हैं- 1. उनकी ऊर्जा या एनर्जी या ताकत 2. उनका फोकस या पैनापन या सटीकता।
अब संभव है कि अल्ट्रासाउंड तरंगों की एक बहुत बारीक पेंसिल नुमा बीम, खूब ताकत के साथ दिमाग की गहराइयों में अत्यंत सूक्ष्म रचनाओं तक इतनी सफाई के साथ और इतने नियंत्रण के साथ पहुंचाई जा सके कि – कितनी गहराई ? X –Y-Z तीन axis पर कौन सा बिंदु ? उक्त बिंदु का क्षेत्रफल और आयतन कितना ? कितनी ऊर्जा ? कितनी अवधि ?
पिछले पाँच वर्षों में पार्किंसन रोग के उपचार में केन्द्रित (focused) अल्ट्रासाउंड पर अनेक शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं । पार्किंसन रोग एक प्रमुख न्यूरोलोजिकल बीमारी है – प्रायः वृद्धावस्था में होती है । 60 वर्ष से अधिक आयु वाली जनसंख्या में लगभग 1% लोगों में पाई जाती है । भारत में शायद 40 लाख के करीब मरीज होंगे । प्रमुख लक्षण है धीमापन, कमजोरी, अकड़न, असंतुलन, कंपन। यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है । शुरू के 5-10 साल इलाज से अच्छा फायदा रहता है । 10-15 वर्ष गुजरते-गुजरते रोग की तीव्रता इतनी हो जाती है कि व्यक्ति परिजनों पर आश्रित हो जाता है । अनेक मरीजों में रोग के लक्षण शरीर के किसी एक आधे भाग पर (दायाँ या बायाँ) पर अधिक होते हैं। समय के साथ औषधियों का डोज बढ़ाना पड़ता है, लेकिन फिर उनके दुष्प्रभाव (side effects) भी अधिक होने लगते हैं ।
इस रोग के बारे मे विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करिये । https://neurogyan.com/brochure#dearflip-df_1808/1/
एक शल्य उपचार पिछले 30 वर्षों से उपलब्ध है । “डीप ब्रेन स्टिमुलेशन” (DBS) “मस्तिष्क में गहरा उद्दीपन” । डी॰बी॰एस॰ में खोपड़ी में छोटे छेद करके कुछ तार अंदर गहराई में ऐसे घुसा दिए जाते हैं कि उनका सिरा “बेसल गेंगलिया” नामक रचना के एक अति सूक्ष्म नाभिक “ग्लोबस पैलिडस” या “सब-थेलेमिक न्यूक्लियस” में धंस जाता है । शरीर के बाहर, लेकिन चमड़ी के अंदर एक छोटी बैटरी फिट कर देते हैं ।
बैटरी को तार से जोड़ कर विद्युत बहाते हैं । यह करंट अत्यंत सूक्ष्म होता है । उसे नापने की इकाई मिलीवॉल्ट और मिली एंपियर होती है (वॉल्ट और एंपियर का हजारवां हिस्सा) यह इलेक्ट्रिसिटी दिन-रात, अनेक वर्षों तक चालू रहती है । इन तारों को इलेक्ट्रोड कहते हैं । इस उपचार (DBS) की विस्तृत चर्चा किसी और अंक में करेंगे । यह उपचार बहुत महंगा है, भारत में 10-12 संस्थानों में उपलब्ध है ।
केंद्रित पराध्वनि (Focussed Ultrasound) के द्वारा Pallidotomy नामक ऑपरेशन करते हैं । मस्तिष्क की गहराई में ग्लोबस पेलिडस एक महत्वपूर्ण रचना है । दाएं और बाएं, इनका एक जोड़ा होता है, जो शरीर के विपरीत आधे भाग के अंगों की गति की fine tuning करता है – सूक्ष्म नियंत्रण करता है । ग्लोबस पेलिडस, बेसल गेंगलिया का एक भाग है।
पार्किंसन रोग में बेसल गेंगलिया में डोपामिन बनाने वाली कोशिकाओं की अकाल मृत्यु होने लगती है ।
पेलिडाटामी ऑपरेशन में ग्लोबस पेलिडस रचना को काटते हैं, नष्ट करते हैं। पूरी तरह से नहीं, आशिक रूप से, उसके एक छोटे से भाग को।
डीबीएस ऑपरेशन के विकास के पहले से 1960-1980 के दशक में खोपड़ी खोलकर या स्टीरियोटेक्टिक सर्जरी द्वारा थेलेमस या पेलिडस व अन्य गहरे अंगों के आपरेशन किए जाते थे । फिर उनका चलन कम हो गया था । क्योंकि लिवोडोपा औषधि उपलब्ध हो गई थी।
अब केंद्रित पराध्वनि (Focussed अल्ट्रासाउंड) की विधि के अविष्कार द्वारा पेलिडस विच्छेदन का ऑपरेशन मान्यता प्राप्त कर रहा है ।
New England Journal of Medicine के 23 फरवरी 2023 के अंक मे नॉर्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय (USA) के न्यूरोसर्जन डॉक्टर विभोर कृष्णा ने बताया कि उनके अध्ययन में पार्किंसन से प्रभावित 94 मरीज शामिल हुए । 69 मरीजों में focused ultrasound द्वारा पेलिडोटोमी ऑपरेशन किया गया ।
25 मरीजों में sham procedure (नकली या दिखावे का ऑपरेशन) किया गया । इस तरह का placebo-control समूह जरूरी होता है । मरीज व आकलनकर्ता को नहीं पता होता कि असली ऑपरेशन हुआ है या झूठ मूठ का । इसके बगैर परिणामों में bias या पूर्वाग्रह को हटाना मुश्किल होता है ।
वास्तविक अल्ट्रासाउंड प्राप्त करने वाले 69 में से 45 में लाभ देखा गया (69%) जबकि काल्पनिक ऑपरेशन वाले 22 में से 7 में कुछ फायदा हुआ (32%)। सांख्यिकीय दृष्टि से इस अंतर को “महत्वपूर्ण” माना गया। यह लाभ समय के साथ कुछ कम हुआ फिर भी 3 से 6 माह तक पर्याप्त सुधार बना रहा।
वास्तविक अल्ट्रासाउंड प्राप्त करने वालों में से 43 में कुछ प्रतिकूल घटनाएं (Adverse event) हुई जिनमें से 14 के बारे में माना गया कि वे ऑपरेशन के कारण हुई होगी । शेष में संयोगवश । प्रमुख दुष्परिणाम थे dysarthria (बोलने में तुतलाहट, उच्चारण में गड़बड़ी, चलने में दिक्कत (Gait disturbance) , स्वाद में कमी, दृष्टि में गड़बड़ी और चेहरे का तिरछापन । अधिकांश मरीजों में ये side effect कुछ ही सप्ताह में अपने आप ठीक हो गए ।
अमेरिकन FDA (खाद्य एवं औषधि प्रशासन) ने इस ऑपरेशन को मान्यता/ अनुमति प्रदान कर दी है , लेकिन केवल उन मरीजों के लिए जिनमें पार्किंसन रोग के लक्षण मुख्य रूप से शरीर के किसी एक आधे भाग (दाएं या बाएं) पर अधिक हो।
डीबीएस (गहरा मस्तिष्क उद्दीपन ) की तुलना में अल्ट्रासाउंड वाले ऑपरेशन में यह फायदा है की खोपड़ी में छेद नहीं करना पड़ता, अंदर तार नहीं घुसा कर रखना पड़ते, बैटरी का ध्यान नहीं रखना पड़ता, खर्च कम है । लेकिन कुछ कमियां भी है । आवाज के चाकू ने दिमाग की गहराई में अपना काम कर दिया, यानी कर दिया । अब वापसी नहीं कर सकते । डीबीएस ऑपरेशन में बैटरी बंद चालू करना या कम ज्यादा करना अपने हाथ में है । कुल मिलाकर इस प्रक्रिया के परिणामों को फिलहाल अति उत्साह की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है । सुधार की गुंजाइश है । और अध्ययनों की जरूरत है।
इसी से मिलते जुलते एक और रिसर्च पेपर का उल्लेख यहां उपयुक्त होगा । New England Journal of Medicine के 25 अगस्त 2016 के अंक में केंद्रीत पराध्वनि (Focussed Ultrasound) द्वारा thalamotomy ऑपरेशन से Essential Tremor (अनिवार्य कम्पन) में अच्छे परिणामों का वर्णन किया गया है ।
अनिवार्य कंपन रोग और पार्किंसन रोग में ऊपरी, सतही साम्य है लेकिन दोनों एकदम भिन्न अवस्थाएं हैं ।
मस्तिष्क की गहराई में थैलेमस एक और महत्वपूर्ण रचना है जो शरीर के विपरीत आधे भाग से sensory information (संवेदी सूचनाएं) ग्रहण करता है तथा सेरिब्रल कोरटेक्स (जो सर्वोच्च अंग है) तक पहुंचाने के काम में रिले-स्टेशन की भूमिका निभाता है । सेरिब्रल कोर्टेक्स , बेसल गेंगलिया और थेलेमस का मिलकर एक त्रिकोण बनाता है। (Movement Disorders) मे इस तिगाड़े का काम बिगड़ जाता है।
आवाज का चाकू कैसे काटता है ? जलाता है । पराध्वनि की संकेंद्रित घनीभूत तरंगें जब अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वहां के उत्तक (टिशू) को कंपित करती है तो ऊष्मा रूपी ऊर्जा पैदा होती है । वह स्थान गर्म हो जाता है, इतना गर्म कि जल जाता है, नष्ट हो जाता है । तकनालजी का चमत्कार है कि कितने आकार का टिशु भस्म होगा, उसमें एक मिली मीटर भी इधर-उधर ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं नहीं होता ।
राजा दशरथ का शब्दभेदी बाण गलती से श्रवण कुमार को लगा था। नेत्र बाधित पृथ्वीराज चौहान ने चंद बरदाई के कवित्त और सुल्तान के खाँसने पर तीर चला दिया था । फोकस्ड अल्ट्रा साउण्ड का भाला सही निशाने पर बैठता है और लघु आग सुलगाता है ।
ऊर्जा, ऊर्जा तेरे कितने रूप ? कहाँ ध्वनि ? कहाँ अग्नि ?
Reference
- Schrag A. Focused Ultrasound Ablation of the Globus Pallidus internus for Parkinson’s Disease. The New England Journal of Medicine. 2023 Feb 23;388(8):759-60.
- Elias WJ, Lipsman N, Ondo WG, Ghanouni P, Kim YG, Lee W, Schwartz M, Hynynen K, Lozano AM, Shah BB, Huss D. A randomized trial of focused ultrasound thalamotomy for essential tremor. New England Journal of Medicine. 2016 Aug 25;375(8):730-9.