अपनी भाषा अपना विज्ञान :  ” शून्य से अनंत तक महा-विस्फोट”

अपनी भाषा अपना विज्ञान :  ” शून्य से अनंत तक महा-विस्फोट”

 

ब्रह्मांड की जिम्मेदारी नहीं है कि वह आपको समझ में आए या आप उसे समझ पाए ।

अंतरिक्ष को क्या पड़ी है कि आपके लिए उसका कोई अर्थ हो?”

“The universe is under No obligation to make sense to you.”

पिछले 1 वर्ष में मानव निर्मित सबसे शक्तिशाली दूरबीन ‘जेम्ब वेब टेलिस्कोप’ ने अंतरिक्ष के सुदूरतम पिण्डो के विस्तृत सटीक चमत्कारी चित्र भेजना शुरू किए हैं। ब्रह्मांड की शुरुआत महाविस्फोट से हुई थी। लगभग  14 बिलियन वर्ष पूर्व । नई दूरबीन से इस बात के और भी पुख्ता सबूत मिले हैं । गुरुत्वाकर्षण तरंगे, ब्लैक होल, कॉस्मिक बैकग्राउंड, नॉइस (“अनहद नाद”) आदि के प्रमाण मिले हैं।

अपनी भाषा अपना विज्ञान :  " शून्य से अनंत तक महा-विस्फोट"

अपनी भाषा अपना विज्ञान :  " शून्य से अनंत तक महा-विस्फोट"

 समय के पैमाने को समझने के लिए जरा सोचिए।

100 वर्ष – एक शताब्दी (A Century) 1917 प्रथम विश्वयुद्ध ।

1000 वर्ष – एक सस्त्राब्दी (A millennium) 1000 AD, भारत पर मुस्लिम आक्रमण

2000 वर्ष – दो सस्त्राब्दी 00 ईस्वी सन की शुरुआत ।

10000 वर्ष – दस हजार वर्ष – मानव सभ्यता की शुरुआत, खेती, पशुपालन ।

100,000 वर्ष – एक लाख – आदि-मानव ने अफ्रीका से निकल कर विश्व के अन्य भूखंडों को आबाद करना शुरू किया।

200,000 वर्ष – दो लाख = होमो सेपियंस का आविर्भाव ।

दस लाख वर्ष  = एक मिलियन ।

एक करोड़ वर्ष = दस मिलियन ।

1000 मिलियन (सौ करोड़) = एक बिलियन

14 बिलियन वर्ष = 14000 करोड़ (14.0 अरब वर्ष) महाविस्फोट Big Bang

उस समय ब्रह्मांड अति सूक्ष्म था ।

एक बिन्दु का 1 ट्रिलियन वां भाग

1 ट्रिलियन = 1000 बिलियन

बहुत गरम था / समस्त प्रकृतिक ऊर्जायेँ एकीकृत थी।


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ब्रह्मांड की शुरुआत के पहले क्या था , कोई नहीं जानता

हमारे ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में  ऐसी ही कुछ बात कही गई है – “सृष्टि की उत्पत्ति से पहले ना सत था,  ना असत, ना स्वर्ग, ना पाताल, न अंतरिक्ष और न ही उसके भी परे कुछ । जीव नहीं था। मृत्यु नहीं थी। रात और दिन नहीं थे। केवल प्राण ऊर्जा थी। क्रिया शून्य थी। पदार्थ नहीं था।”

 

  • अतिसूक्ष्म ब्रह्मांड ने स्फोट के साथ फैलना शुरू किया।
  • हमे तीन प्रकार की भौतिकी को समझना है।
    • न्यूटन की भौतिकी – धरती, सौरमंडल, निहारिका तक )
    • आइंस्टीन का सामान्य सापेक्षता सिद्धान्त – General theory of Relativity, गुरुत्वाकर्षण के बारे मे, समय और स्थान के बारे मे विराट स्तर की भौतिकी वर्ष 1916
    • क्वान्टम भौतिकी – अतिसूक्ष्म स्तर की भौतिकी – अणु, परमाणु, क्वार्क (परमाणु के कण) वर्ष 1920

तीनों का संश्लेषण कैसे हो?

ब्रह्मांड का प्रथम युग – प्लांक युग

  • प्रकृति की मूल ऊर्जाओ (शक्तियों) मे गुरुत्वाकर्षण सबसे पहली हुई |
  • तब शून्य समय से लेकर 1 सेकंड का इतनावां भाग 1/1000,000,000,000,000,000,000,000,000,000,000,000,000,000,000

(एक के आगे 43 शुन्य) गुजरा था ।

एक सेकंड का इतना छोटा सा भाग ।

इस समय तक लघुतम ब्रह्मांड फैल कर 10-35 मीटर के आकार का हो चुका था । 1 मीटर का 10-35 वां हिस्सा ।

  • एक सेकंड का एक ट्रिलियनवा समय गुजर चुका था। इस वक्त परमाणु नहीं बने थे । अत्यंत छोटे कण थे जिनमें पदार्थ था। क्वार्क ,लेप्टान बोसॉन, और वैसे ही प्रतिरूप कण प्रतिपदार्थ (एंटीमैटर) बनाते थे ।

ऊर्जा का स्वरूप “फोटोन” थे जिनमे mass  या पदार्थ पदार्थ नहीं होता ।

आइंस्टाइन द्वारा प्रतिपादित प्रसिद्ध समीकरण E = MC2  इस युग से लागू थी।

बोसोन –  [सत्येंद्र नाथ बोस] नामक कण बन गए थे।

लेप्टान – Leptos (Greek) लघु या हल्का

क्वार्क

  • जब 1 सेकंड का एक मिलियन वां समय गुजर चुका था  तो ब्रह्मांड ठंडा हो रहा था । तापमान 1 ट्रिलियन केल्विन से नीचे आ गया था । ब्रह्मांड का आकार बढ़कर लगभग हमारे सौरमंडल जितना हो गया था ।

नाचने वाले क्वार्क कण अब चिपक कर कुछ बड़े कणों मे परिवर्तित होने लगे थे । इनका नाम पड़ा ‘hadron’ (हाड़रोंन ) ग्रीक शब्द Hadros = Thick मोटा।

पदार्थ और प्रतिपदार्थ की जोड़ियां लगभग बराबरी से बनी हुई थी ।

न्यूट्रॉन और प्रोटोन का जन्म हुआ था ।

  • पदार्थ और प्रतिपदार्थ के बीच एक अत्यंत सूक्ष्म असंतुलन पैदा हुआ था । क्वार्क लेप्टान युग से शुरू कर हाड्रान युग तक आते-आते इस असंतुलन के परिणाम दिखने लगे । पदार्थ ज्यादा होने लगा । दुनिया बनने लगी । उस असंतुलन के बिना दुनिया में सिर्फ फोटोन होते, प्रकाश होता, ऊर्जा होती, परंतु पदार्थ ना होता, तारे ना होते, आकाशगंगा और निहारिका ना होती ।
  • महाविस्फोट के बाद एक सेकंड गुजर चुका है ।

अब ब्रह्मांड फेल कर “कुछ प्रकाश वर्षों” के आकार का हो चुका है ।

प्रकाश वर्ष = प्रकाश द्वारा 1 वर्ष में तय की गई दूरी (लगभग 10 ट्रिलियन किलोमीटर)।

तापमान घटकर 1 बिलियन डिग्री रह गया है ।

इलेक्ट्रॉन और पाजीट्रन एक दूसरे को नष्ट करने में लगे हैं ।

  • महाविस्फोट के 2 मिनट गुजर चुकने के बाद का तापमान घटकर 100 मिलियन डिग्री रह गया है। प्रोटॉन और न्यूट्रॉन आपस में चिपक कर परमाणु के नाभिक की रचना करने लगे हैं । इनमें 90% हाइड्रोजन है । 10% हिलियम है ।

अति सूक्ष्म मात्रा में डुटेरियम है।

  • महीन कणों के इस युग में अगले 400000 वर्षों तक कुछ खास नहीं घटता ।

जब तापमान घटकर 3000 डिग्री (सूर्य की सतह पर 6000 डिग्री) रह जाता है तो समस्त स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन किसी न किसी नाभिक की परिक्रमा में स्थापित हो जाते हैं । आकाश में एक प्रकाश रह जाता है ।

  • अगले कुछ वर्षों में ब्रह्मांड फैलता जाता है, ठंडा होता जाता है । पदार्थ के बड़े-बड़े पिंड बनने लगे हैं – गैलेक्सी, आकाशगंगा, मंदाकिनी, निहारिका
  • सौ बलियन से अधिक गैलेक्सी बन जाती है । प्रत्येक गैलेक्सी में 100 बिलियन से अधिक तारे होते हैं । तारे सूर्य हैं । उनके केंद्र में ताप नाभिकीय संलयन की महाकाय भट्टी धधकती रहती है । सूर्य से 10 गुना बड़े तारों में इतना दबाव व तापमान रहता है कि अनेक भारी तत्वों का निर्माण होने लगता है । ऐसे तत्व (एलिमेंट्स) जो आगे चलकर पौधे व प्राणियों के रूप में जीवन का आधार बनेंगे।

इन तारों में समय-समय पर विस्फोट होते हैं । नाना प्रकार के तत्व समस्त आकाशगंगा में फैलते जाते हैं ।

  • आरंभिक महाविस्फोट के 9 बिलियन वर्षों के बाद ब्रह्मांड के एक अनचिन्हे से भाग में (विर्गो महासंकुल), एक अनजानी सी आकाशगंगा (मिल्की वे) के एक क्षुद्रसे खंड (ओरियान भुजा) में एक छोटे से तारे (सूर्य) का जन्म होता है।  हमारा सूर्य ।
  • गैस के जिस विशाल बादल के संकुचित होने से सूर्य बनता है, उसी में से अनेक छोटे-बड़े गोल टुकड़े भी बनाते हैं। वे सौर मंडल के ग्रह (प्लानेट) होंगे । अनेक छुटपुट उल्काएँ मंडराती रहती है । टकराने, टूटने, जुड़ने, जमने का दौर कुछ सौ मिलियन वर्षों तक चलता है । ग्रहों की सतह सब ठंडी होने लगती है ।
  • इन्हीं में से एक सौभाग्यशाली ग्रह ऐसा है जो न तो सूर्य के बहुत करीब होने से बहुत गर्म है और न खूब दूर होने से अधिक ठंडा है । यह हमारी धरती है । इसकी सतह पर पानी के सागर है । अनेकों रासायनिक क्रियाओं के बाद बड़े-बड़े अणु (मॉलिक्यूल) बनने लगते हैं ।
  • कार्बन नामक तत्व को सबसे ज्यादा प्रकार के योगिक बनाने के गुण हासिल है । उनमें से एक ‘डीएनए’ योगिक की विशेषता है कि वह अपनी कॉपियां स्वतः बनाने लगता है। जीवन का आविर्भाव होता है ।
  • आरंभ के बैक्टीरिया बिना ऑक्सीजन के जीवन के आदी है । धरती के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड है पर ऑक्सीजन नहीं । यह बैक्टीरिया ऑक्सीजन पैदा करते हैं । वायुमंडल बदलता है । अब अक्सीजन पर निर्भर रहने वाले बैक्टीरिया पनपते हैं । कुछ ऑक्सीजन ओज़ोन में बदलती है । वायुमंडल में सूर्य की नुकसानदायक अल्ट्रावायलेट/ पराबैंगनी किरणों को धरती तक आने से रोकती है । जीवन बढ़ता है ।
  • ग्रहों की सतह पर टकराने वाले उल्का (एस्ट्राइड) कम हो गए हैं, पर बंद नहीं। आज से केवल 65 मिलियन वर्ष पूर्व (धरती के इतिहास का 2% ) 10 ट्रिलियन के एक उल्का ने यूकतान प्रायद्वीप टक्कर मारी थी । धरती के जीवन की 70% स्पीशीज नष्ट हो गई थी, जिनमें डायनासोर भी थे । खाली जगह को भरने के लिए स्तनपाई जंतुओं को अच्छा मौका मिल गया।  उन्हीं में से एक मानव है ।

इस ब्रह्मांड की शुरुआत हुई और यह फैलता जा रहा है । इस बात के पर्याप्त सबूत है । इसके पहले क्या था और यह सब क्यों शुरू हुआ, इसे कोई नहीं जानता ।

कुछ लोग मानते हैं कि ईश्वर ने किया ? परंतु ईश्वर कैसे बना ? यदि ईश्वर अपने आप बन सकता है तो ब्रह्मांड क्यों नहीं ?

शोधकर्ता वैज्ञानिकों के मन मस्तिष्क की सहज प्राकृतिक अवस्था होती है –

“हमें यह यह और यह नहीं मालूम”

“हमारा प्रश्न यह है ।“ “हमारी परिकल्पना यह है ।“ “चलो तथ्यों को इकट्ठा करें सबूत ढूंढे ।“

जो लोग मानते हैं कि उन्हें उत्तर मिल गया है उन्होंने ठीक से सोचा नहीं, ढूंढा नहीं, पूछा नहीं, ज्ञान और अज्ञान की सीमा रेखा पर ठोकरें नहीं खाई ।

हमारे शरीर और मस्तिष्क का प्रत्येक अणु ना जाने कितने कितने पुराने तारों के विस्फोट की धूल से बना है। उसी धूल के कणों का एक संयोजन कुछ ऐसा बन पड़ा कि उसने यह लेख लिख डाला।


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आभार स्रोत :

Neil deGrasse Tyson an American astrophysicist, author, and science communicator. 

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Author profile
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डॉ अपूर्व पौराणिक

Qualifications : M.D., DM (Neurology)

 

Speciality : Senior Neurologist Aphasiology

 

Position :  Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore

Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore

 

Some Achievements :

  • Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
  • International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
  • Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
  • Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
  • Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
  • Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
  • Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
  • Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
  • Charak Award: Indian Medical Association

 

Main Passions and Missions

  • Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
  • Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
  • Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
  • Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
  • Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
  • Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
  • Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
  • Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
  • Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
  • Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).