शब्दों के दुश्मन हम या इमोजी ?

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शब्दों के दुश्मन हम या इमोजी ?

दुनिया की तमाम भाषाओं और उनकी लिपियों को तैयार करने में हजारों वर्ष लगे हैं, लेकिन हमारी अक्लमंदी हमारी इस पुरानी विरासत की दुश्मन बनती जा रही है।अब लिपियों का मुकाबला भाव चित्रों से है, जिन्हें आप इमोजी कहते हैं। पिछले 8 साल में लोकप्रियता की तमाम हदें पार कर चुकी इमोजी आज हर भाषा के शब्दों की दुश्मन बन गई है।

कालिख, खड़िया और बर्रू से लिखना -पढना सीखी हमारी पीढ़ी भी शब्दों पर है रहे इस आक्रमण से लापरवाह है।उसे पता ही नहीं है कि वो शब्दों की जिस डाल पर बैठे हैं उसे इमोजी की कुल्हाड़ी से काट रहे हैं।विग्यान हमारी विरासत के पीछे बांध धोकर पड़ा है।बर्रू से लिखते लिखते हम वालपेन तक आए।अब हमारे बाद की पीढ़ी लिखना भी छोड़ चुकी है।अब बोल कर बिना उंगलियां चलाऐ लिखा जाता है।

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सबसे बड़ा खतरा ये है कि अब जो पीढ़ी हमारे सामने है वो बोलकर लिखने की जहमत भी नहीं उठाना चाहती। मौजूदा पीढ़ी का काम चित्रों की भाषा से चलने लगा है। बच्चे लिखने के बजाय इमोजी से भावों की अभिव्यक्ति कर रहे हैं। भारतीय परंपरा में भावाव्यक्ति के लिए जितनी मुद्रायें हैं इमोजी उससे बहुत आगे है।

दूसरी भाषाओं को छोड़ भी दिया जाए तो अकेले हिंदी के हजारों देशज शब्द इस्तेमाल न होने की वजह पहले ही से लुप्त हो गये हैं,ऊपर से ये इमोजी हमारी दुश्मन बन गई है। मुमकिन है कि आपको शब्दों को लेकर मेरी चिंता काल्पनिक लगे लेकिन ये है हकीकत। इमोजी जापान में जन्मी है किन्तु जापानी समेत दुनिया की हर भाषा की दुश्मन बनती जा रही है।

दरअसल इमोजी एक इलेक्ट्रॉनिक चित्र का ऐसा समूह है जो कि आपके चेहरे के भाव को एक छोटी सी इमेज द्वारा व्यक्त करता है. सामाजिक नेटवर्क जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, स्नेपचैट, इन्स्टाग्राम और व्हाट्सएप पर इमोजी मौजूद है. आजकल इन उपकरणों में भी काफ़ी बदलाव आये है. बहुत सारे ऐसे एप्प मौजूद है, जिनमे स्माइली, दुखी, गुस्से इत्यादि हर तरह की भावना को व्यक्त करने वाले चेहरे के साथ इमेज मौजूद होती है. यह भावनाओं को व्यक्त करने का एक शार्टकट तरीका है.

इलेक्ट्रोनिक चित्रों का समूह इमोजी है। इसमें व्यक्ति अपनी भावना को व्यक्त इस इलेक्ट्रोनिक संचार का उपयोग करके करते हैं. इमोजी भावना, वस्तु या प्रतीक के एक दृश्य का रिप्रजेंटेशन होता है. यह विभिन्न फोन या सोशल नेटवर्किंग साईट पर विभिन्न रूपों में होता है.

इमोजी की खोज की लंबी कहानी है। कोई चार दशक पहले कंप्यूटर विज्ञानी स्काट फार्मेशन ने इमोजी की कल्पना की थी।स्काट से दो दशक पहले वाल्दीमिर नाबकोव ने संकेतों की भाषा की बात कही थी। नब्बे के दशक में इस विस्मृत विषय पर जापान, अमेरिका और यूरोप ने एक साथ काम शुरू किया।2011 में इमोजी बनकर जापान में तैयार हुई और दो साल के तमाम प्रयोगों के बाद 2014 में बाजार में छा गई। 17 जुलाई को विश्व इमोजी दिवस भी मनाया जाने लगा। विश्व इमोजी दिवस मनाने का श्रेय इमोजी संदर्भ वेबसाइट इमोजीपीडिया के आविष्कारक जेरेमी बर्ज (Jeremy Burge) को है. इमोजी आज हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं. आजकल इसके बिना तो चैट की दुनिया अधुरी है. यह ऐसा माध्यम है जिससे अपनी भावनाओं को बिना कुछ लिखे बयां किया जाता है. अब तो हर मैसेज के साथ इमोजी एड करना आदत में शुमार हो चुका है.

पहले हमारे पास शब्दों का विकल्प बनकर आए गिने चुने इमोजी थे।आज इनकी संख्या 3663 तक पहुंच गई है। इनमें से कोई 100 इमोजी ऐसे हैं जो सबसे ज्यादा 82 फीसदी तक इस्तेमाल किए जाते हैं।अब हमें शब्दों से अधिक इमोजी प्रिय हो गये हैं। हमारी पीढ़ी इमोजी पीढ़ी पन गई है। इमोजी के बिना आज की पीढ़ी अधूरी है। इमोजी के आगे शब्द बोने हो रहे हैं।

मुमकिन है कि भाषाविद मेरी फ़िक्र से इत्तफाक न रखते हों। उन्हें शब्दों के लिए इमोजी चुनौती न भी लगते हों, किंतु मैं भयभीत हूं। मैंने चबूतरे, देहलीज,आंगन, बैठक,अरगनी, छींके को अपनी आंखों के सामने मरता देखा है।जब फ्लैट नहीं बनते थे तब आंगन, बरामदे सब बचे थे। रेफ्रिजरेटर के आने तक छींके बचे थे। वाशिंग मशीन आने तक अरगनी महफूज थी।अब ये शब्द मर चुके हैं या मरणासन्न हैं। इमोजी शब्दों के नये शत्रु हैं।

विसंगति ये है कि हमारे शब्दकोश में हर साल नये शब्द जुड़ रहे हैं, लेकिन प्रयोग में इनकी संख्या कम हो रही है। भाषाविद पता नहीं क्यों नहीं मानते कि रोजमर्रा के संवाद शब्दकोश के मोहताज नहीं होते।मेरी तो सलाह है कि लोग भावाव्यक्ति के लिए शब्दों का प्रयोग ही प्राथमिकता से करें। चित्र चिन्हों (इमोजी) का प्रयोग तभी करें जब ऐसा करना बेहद अनिवार्य न हो।

@ राकेश अचल

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RAKESH ANCHAL
राकेश अचल

राकेश अचल ग्वालियर - चंबल क्षेत्र के वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार है। वर्तमान वे फ्री लांस पत्रकार है। वे आज तक के ग्वालियर के रिपोर्टर रहे है।