प्रभु राम के स्वागत में सज-धज कर तैयार मध्यप्रदेश की अयोध्या ‘ओरछा नगरी’…

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प्रभु राम के स्वागत में सज-धज कर तैयार मध्यप्रदेश की अयोध्या ‘ओरछा नगरी’…

कलियुग में प्रभु राम की नगरी अयोध्या में एक बार फिर त्रेतायुग में उनके जन्म के समय जैसी खुशियां चारों तरफ छाईं हैं। तो अयोध्या की तरह ही पूरा देश उल्लास में डूबा है। और देश की तरह ही पूरी दुनिया में खुशी का माहौल है। जहां जहां रामभक्त हैं, वहां-वहां मन खुशी में डूबे हैं। और मध्यप्रदेश की अयोध्या ‘ओरछा’ भी राम की प्राण प्रतिष्ठा की खुशियों में सराबोर है और सज-धजकर तैयार है। प्रभु राम यहां राजा के रूप में पूरे दिन रहते हैं और रात्रि में अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हैं। शयन आरती के बाद हर दिन दीपक के रूप में भगवान राम को मंदिर से बाहर उनके प्रिय भक्त हनुमान जी के मंदिर तक गाजे-बाजे और कीर्तन भजन के साथ मंदिर के पुजारी पहुंचाते हैं। ऐसी ओरछा पुरी में हर्ष की लहर होना स्वाभाविक ही है। तुलसीदास जी ने बालकांड में राम जन्म के बाद का वर्णन करते हुए लिखा है कि
‘अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥ देखि भानु जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥’

यानि अवधपुरी इस प्रकार सुशोभित हो रही है, मानो रात्रि प्रभु से मिलने आई हो और सूर्य को देखकर मानो मन में सकुचा गई हो, परन्तु फिर भी मन में विचार कर वह मानो संध्या बन (कर रह) गई हो॥

और हम ओरछा में जो अनुभव कर रहे हैं, वह अद्भुत है। यहां खुशियों की छटा बिखरी है। राम के बाल स्वरूप की अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा की खुशी में मध्यप्रदेश की अयोध्या ‘ओरछा नगरी’ सज-धजकर इठला रही है, सकुचा रही है और गर्व से भरी है। ऐसे में गोस्वामी तुलसीदास जी की चौपाई में एक शब्द को बदल दें तो भी यह सत्य ही है कि
‘ओरछापुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥ देखि भानु जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥’
यानि मध्यप्रदेश की अवधपुरी ‘ओरछा नगरी’ इस प्रकार सुशोभित हो रही है, मानो रात्रि प्रभु से मिलने आई हो और सूर्य को देखकर मानो मन में सकुचा गई हो, परन्तु फिर भी मन में विचार कर वह मानो संध्या बन (कर रह) गई हो॥

और फिर राम नाम की महिमा ही अपरंपार है। राम के जन्म की बालकांड की चौपाई पर गौर करें तो
‘नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥ मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥’ यानि पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित्‌ मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप (गरमी) थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था।
तुलसीदास जी अगर पांच सौ साल बाद भगवान राम की बाल स्वरूप में प्राण प्रतिष्ठा का वर्णन करते तो बहुत कुछ अलग लिख सकते थे, मगर उनके इसी वर्णन में थोड़ा बदल कर देखें तो
‘द्वादशी तिथि पौष मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥ मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥’

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यानि पवित्र पौष का महीना था, द्वादशी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित्‌ मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप (गरमी) थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था। क्योंकि अभी भी रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा पौष माह के द्वादशी तिथि (22 जनवरी 2024) को अभिजीत मुहूर्त, इंद्र योग, मृगशिरा नक्षत्र, मेष लग्न एवं वृश्चिक नवांश को होगा। यह शुभ मुहूर्त दिन के 12 बजकर 29 मिनट और 08 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट और 32 सेकंड तक का रहेगा।

तो सभी की पांच सौ साल की वह प्रतीक्षा अब खत्म हो रही है। अयोध्या भी खुशियां मना रही है और जहां राम राजा दरबार लगाते हैं, वह ओरछा नगरी भी स्वागत में जगमगा रही है। तो अयोध्या में भगवान श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की पूर्व संध्या पर भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने 5100 दीप जलाकर आतिशबाजी की। यानि पूरे प्रदेश में खुशी का माहौल है। वैसे तो सब प्रभु श्री राम की इच्छा से ही होता है। बिना उनकी इच्छा के कुछ भी संभव नहीं है। राम के शुभ चरित्र को भी प्रभु राम की कृपा के बिना मानव तो क्या देवता भी नहीं जान पाते। बालकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने वर्णन किया है जिसमें शिव जी पार्वती जी से कह रहे हैं कि
हे पार्वती! तुम्हारी बुद्धि (श्री रामजी के चरणों में) बहुत दृढ़ है, इसलिए मैं और भी अपनी एक चोरी (छिपाव) की बात कहता हूँ, सुनो। काकभुशुण्डि और मैं दोनों वहाँ (राम जन्म के समय) साथ-साथ थे, परन्तु मनुष्य रूप में होने के कारण हमें कोई जान न सका। परम आनंद और प्रेम के सुख में फूले हुए हम दोनों मगन मन से (मस्त हुए) गलियों में (तन-मन की सुधि) भूले हुए फिरते थे, परन्तु यह शुभ चरित्र वही जान सकता है, जिस पर श्री रामजी की कृपा हो…।