उज्जैन से सुदर्शन सोनी की रिपोर्ट
उज्जैन। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सारी सृष्टि का कार्यभार बाबा महाकाल को सौप कर क्षीरसागर में शयन करने प्रस्थान करते है। इसी विशेष प्रयोजन के लिए बाबा महाकाल तीनों लौको की प्रजा का हाल चाल जानने निकलते है। इन्हीं किवंदतियों का दर्शन उज्जैन में साकार रूप में होता आया है।
जानकार बताते हैं उज्जैन नगरी को समस्त लोकों का प्रतिनिधित्व प्राप्त है। देवशयनी ग्यारस के तीन दिवस बाद श्रावण मास प्रारम्भ हो जाता है, इसी माह में बाबा महाकाल तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए सृष्टि में निवासरत समस्त प्राणियों के हाल चाल जानकर उनकी समस्याओं का निदान करते हैं।
उज्जैन में निकलने वाली बाबा महाकाल की सवारी इन्हीं दैवीय व्यवस्थाओं का प्रतीक है। चार माह उपरांत जब देवउठनी ग्यारस (देव दीपावली) पर भगवान विष्णु शयन कर वापस आते हैं तब कार्तिक माह चतुर्दशी तिथि (वैकुंठ चतुर्दशी पर्व) पर मध्य रात्रि में 12 बजे बाबा महाकाल अपने लाव-लश्कर के साथ नगर के श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर पहुँच भगवान विष्णु को सृष्टि का कार्यभार पुनः लौटा देते हैं। इस आयोजन को उज्जैन में “हरिहर मिलन” के रूप में मनाया जाता है।
इस वर्ष श्रावण-भादव माह में 6 सवारी निकलेगी
इस वर्ष श्रावण माह की शुरुआत 14 जुलाई से हो रही है। श्रावण माह के प्रथम सोमवार 18 जुलाई को शाम 4 बजे बाबा महाकाल की प्रथम सवारी परंपरागत मार्ग से नगर भ्रमण पर निकलेगी। इस वर्ष श्रावण माह की 4 व भादव माह में 2 सवारी निकलेगी।
श्री महाकालेश्वर मंदिर समिति के अध्यक्ष एवं कलेक्टर आशीष सिंह ने बताया कि बाबा महाकाल की श्रावण सवारियों से संबंधित विशेष व्यवस्थाएं की जा रही है। मंदिर के बाहर चल रहे निर्माण कार्यों को फिलहाल दरकिनार कर एक प्लेटफार्म बनाने में हमारे इंजीनियर जुटे हैं, इस प्लेटफार्म से ही पालकी को मंदिर से निकालकर बाहर मुख्य सडक़ तक लाया जाएगा, यह कार्य अब पूर्णता की ओर है।
श्री सिंह ने कहा कि पुलिस अधीक्षक सत्येंद्र शुक्ल एवं संबंधित अधिकारियों के साथ सवारी के परंपरागत मार्ग का निरीक्षण कर आवश्यक व्यवस्थाओं के निर्देश भी दे दिए गए है।
कलेक्टर आशीष सिंह ने कहा श्रावण माह में उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में होती है, सभी श्रद्धालुओं में बाबा महाकाल की सवारी को लेकर भी भारी उत्साह देखा जाता रहा है।
इसके दृष्टिगत समिति ने श्रावण माह में बाबा महाकाल के गर्भगृह में आम श्रद्धालुओं का प्रवेश निषेध करने का निर्णय लिया है एवं सवारी मार्ग पर श्रद्धालुओं को राजा महाकाल के सुलभ दर्शन हो इस तरह से व्यवस्था बनाई जा रही हैं।
करीब दो वर्ष बाद कोरोना काल में लगे प्रतिबंध हटने पर अब श्रावण माह की सवारी पुनः अपने परंपरागत मार्ग महाकाल चौराहा से गुदरी, बक्षी बाजार, पानदरीबा, रामानुज कोट होती हुई क्षिप्रा तट रामघाट पर पहुँचेगी, यहाँ अभिषेक पूजन के बाद सवारी पुनः रामानुजकोट, गणगौर दरवाजा, सत्यनारायण मंदिर, ढाबारोड, छत्रीचौक, गोपाल मंदिर पर आरती के पश्चात पटनी बाजार से पुनः महाकाल चौराहा होती हुई महाकाल मंदिर पहुँचेगी।
यह रहता है सवारी का क्रम
राजा महाकाल की सवारी पूरे राजसी ठाठ-बाठ से लावलश्कर के साथ निकलती है।
वारी के क्रम में सबसे पहले कड़ाबीन के धमाके राजा महाकाल के आगमन की सूचना दूर तक पहुँचाते हैं कड़ाबीन दल के पीछे चौबदार राजा के आगमन पर सावधान करते चलते हैं, उनके बाद पुलिस का अश्वारोही दल, पुलिस बैंड की टुकड़ी, सशस्त्र पुलिस बल के जवान एवं सेवादल की महिलाएं मार्च पास्ट करते हुए चलती है।
राजाधिराज भगवान महाकाल की रजत पालकी के आगे अनेकों भक्त मंडलियां भगवान शिव के भजन-कीर्तन करते हुए तथा झांझ-मंजीरे, डमरू बजाते हुए चलते है। हर सवारी के साथ बाबा महाकाल का एक स्वरूप बढ़ता जाता है।