बीट प्लास्टिक, बीट प्लास्टिक, बीट प्लास्टिक…

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बीट प्लास्टिक, बीट प्लास्टिक, बीट प्लास्टिक…

आज विश्व पर्यावरण दिवस है। आओ आज पर्यावरण की कुछ बात‌ कर मन का बोझ हल्का करते हैं। इस वर्ष पर्यावरण दिवस की थीम “बीट प्लास्टिक” है यानि प्लास्टिक का उपयोग बंद करो और प्लास्टिक को मानवीय दुनिया से मार भगाओ, यदि प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्ति पाना है तो यही एकमात्र रास्ता है। इस थीम को पढ़कर मुझे हाल ही में अपनी मुंबई यात्रा का स्मरण हो आया। परिवार सहित हम “गेट वे ऑफ इंडिया” देखने पहुंचे। गेटवे ऑफ इंडिया (भारत का प्रवेश द्वार) भारत के मुम्बई शहर के दक्षिण में समुद्र तट पर स्थित एक स्मारक है। स्मारक को दिसंबर 1911 में अपोलो बंडर, मुंबई (तब बॉम्बे) में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी के प्रथम आगमन की याद में बनाया गया था। आगे बात करें तो यहां का एक प्रमुख आकर्षण होटल ताज है। इसके सामने जब हम समुद्र के किनारे खड़े हुए, तो देखा कि समुद्र के पानी में कचरा ही कचरा तैर रहा है। यह कचरा प्लास्टिक का ही था। मेरी दस साल की बेटी प्रांजलि ने तुरंत कहा कि पापा मुंबई कितना गंदा है। यहां लोग समुद्र के पानी को भी साफ नहीं रहने देते, कितना गंदा है। यहां नगर निगम कोई ध्यान नहीं देता साफ सफाई पर… वगैरह वगैरह। और तब मुझे भी लगा कि वास्तव में बच्चे कितनी खरी-खरी सुनाते हैं और कितनी बारीकी से हर गतिविधि पर नजर रखते हैं। यह भी लगा कि शायद देश की स्वच्छतम राजधानी भोपाल में रहकर बच्चे यह फील गुड कर पा रहे थे। हालांकि यहां भी कई जगह बहुत गंदी होंगीं, लेकिन फिर भी भोपाल की स्वच्छता की स्थिति मुंबई से बेहतर है… दोनों शहरों को देखकर यह सहज ही महसूस किया जा सकता है। और तब हमने ताज के सामने समुद्र में गंदगी के वह कुछ फोटो मोबाइल में कैद किए थे। वहां गंदगी देखकर मुझे भी फील गुड नहीं हुआ था और शायद आपको भी नहीं होगा। रोज हजारों पर्यटक यहां घूमने आते हैं। शिप पर बैठकर समुद्री लहरों का लुत्फ लेते हैं। बॉटल से पानी पीते हैं, पैक्ड फूड खाते हैं और प्लास्टिक को समुद्र की भेंट चढ़ा देते हैं। यह भेंट हमारे पर्यावरण के लिए मौत की तरह ही है।
हालांकि प्रदूषण से मुक्ति पाने के प्रयास जारी हैं। अच्छी बात यह है कि पिछले साल 175 देशों ने 2024 तक विधिक रूप से बाध्यकारी समझौते को अंतिम रूप देने के लिए एक अंतर सरकारी समिति बनाकर प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए एक ऐतिहासिक संकल्प अपनाया है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रकृति के लिए कार्यों को सशक्त करने हेतु पांचवें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट असेंबली/यूएनईए 5.2) नैरोबी में आयोजित किया गया था।बैठक में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए तीन मसौदा प्रस्तावों पर विचार किया गया था। महत्वपूर्ण रूप से, विचाराधीन प्रस्तावों में से एक भारत का प्रस्ताव था। भारत द्वारा प्रस्तुत मसौदा प्रस्ताव में देशों द्वारा तत्काल सामूहिक स्वैच्छिक कार्रवाई का आह्वान किया गया था। 2024 तक विधिक रूप से बाध्यकारी समझौता करने का संकल्प पेरिस समझौते के बाद से सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय बहुपक्षीय समझौता था।
यूएनईपी त्रिपक्षीय भूमण्डलीय संकट की बात करता है। इन तीन पक्ष में पहला जलवायु परिवर्तन का संकट, दूसरा जैव विविधता की हानि का संकट एवं तीसरा प्रदूषण तथा अपशिष्ट का संकट। यह तीनों संकट समग्र रूप से मानव शांति एवं समृद्धि के लिए एक व्यापक संकट उत्पन्न करते हैं। जलवायु परिवर्तन का संकट की बात करें तो वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता दो मिलियन वर्षों की सांद्रता से अधिक है तथा एक अरब बच्चे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों  के कारण अत्यधिक जोखिम में हैं। जैव विविधता की हानि का संकट की बात करें तो हम प्राकृतिक विश्व को निरंतर नष्ट कर रहे हैं। हिम मुक्त भूमि की सतह का सत्तर प्रतिशत मानवीय गतिविधियों द्वारा प्रभावित हुआ है तथा दस लाख प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं। प्रदूषण एवं अपशिष्ट का संकट की बात करें तो 11 मिलियन टन प्लास्टिक प्रत्येक वर्ष हमारे महासागरों में  प्रवाहित हो जाता है एवं हम में से 90 प्रतिशत से अधिक लोग ऐसे शहरों में निवास करते हैं, जहाँ वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों को पूरा नहीं करती है।यह त्रिपक्षीय भूमण्डलीय संकट दशकों की मानवीय गड़बड़ी और बेतरतीब उपभोग के कारण उत्पन्न हुआ है। निजात पाने या सुधार की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए यूएनईपी की सिफारिशें थीं कि हमें एक अविभाज्य चुनौती के रूप में पृथ्वी की पर्यावरणीय आपात स्थितियों तथा मानव कल्याण से निपटना चाहिए। हमें अपनी आर्थिक एवं वित्तीय प्रणालियों में बदलाव करना होगा। हमें अपने भोजन, पानी तथा ऊर्जा प्रणालियों को एक न्यायसंगत, लचीला तथा पर्यावरण के अनुकूल बदलना चाहिए।
आज हम समुद्रों की ही बात करें तो अरबों पाउंड प्लास्टिक पृथ्वी के पानी स्त्रोतों खासकर समुद्रों में पड़ा हुआ है। 50 प्रतिशत प्लास्टिक की वस्तुएं हम सिर्फ एक बार काम में लेकर फेंक देते हैं। प्लास्टिक के उत्पादन में पूरे विश्व के कुल तेल का 8 प्रतिशत तेल खर्च हो जाता है।  प्लास्टिक को पूरी तरह से खत्म होने में 500 से 1,000 साल तक लगते हैं। पृथ्वी पर सभी देशों में प्लास्टिक का इस्तेमाल इतना बढ़ चुका है कि वर्तमान में प्लास्टिक के रूप में निकलने वाला कचरा विश्व पर्यावरण विद्वानों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। विकसित देश अक्सर भारत जैसे विकासशील या अन्य विभिन्न अविकसित देशों में इस तरह का कचरा भेज देते हैं। अथवा ऐसे कचरे को जमीन में भी दबा दिया जाता है। जमीन में दबा यह कचरा पानी के स्त्रोतों को प्रदूषित कर हमारे जीवन के लिए बड़े खतरे के रूप में सामने आता है। प्लास्टिक की चीजें, अक्सर ही पानी के स्त्रोतों में बहुत ज्यादा मात्रा में पड़ी मिलती हैं। प्लास्टिक बैग्स बहुत से जहरीले केमिकल्स से मिलकर बनते हैं। जिनसे स्वास्थ्य और पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचती है। प्लास्टिक बैग्स बनाने में जायलेन, इथिलेन ऑक्साइड और बेंजेन जैसे केमिकल्स का इस्तेमाल होता है। इन केमिकल्स से बहुत सी बीमारियां और विभिन्न प्रकार के डिसॉडर्स हो जाते हैं। प्लास्टिक के केमिकल पर्यावरण के लिए भी बेहद हानिकारक होते हैं जिससे इंसान, जानवरों, पौधों और सभी जीवित चीजों को नुकसान पहुंचाते हैं।  प्लास्टिक को जलाने और फेंकने पर जहरीले केमिकल्स का उत्सर्जन होता है।
तो समुद्र की तरह यह प्लास्टिक पुराण असीमित और अनंत है। समाधान एक ही नजर आता है कि इस प्लास्टिक जैसे महादानव का अंत कर दिया जाए। यह तभी संभव है, जब हम सब जागरूक होकर प्लास्टिक से बने उत्पाद और इनमें संग्रहित खाद्य पदार्थों का उपयोग पूरी तरह बंद कर दें। विश्व पर्यावरण दिवस पर सिर्फ पौधे लगाने से अब काम चलने वाला नहीं है। हम सभी को संकल्प लेने की जरूरत है कि हम समुद्र और जलस्रोतों में प्लास्टिक का कचरा नहीं फेंकेगे। यही नहीं बल्कि प्लास्टिक का कचरा कहीं नहीं फेंकेंगे। हम शपथ लेते हैं कि “बीट प्लास्टिक, बीट प्लास्टिक, बीट प्लास्टिक…” के मंत्र पर हम तब तक अमल करते रहेंगे, जब तक हमारी पृथ्वी पूरी तरह से प्लास्टिक मुक्त नहीं हो जाती।