कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट
ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलते, जब राजा अपने राज्य की प्रजा के किसी गरीब परिवार के घर बुलाने पर या बिना बुलाए ही सम्मान की टोकरी लेकर पहुंच जाएं। और फिर घर में बना हुआ रूखा-सूखा या शुद्ध देशी भोजन खूब चटखारे लेकर खाएं भी और दिल खोलकर तारीफ करने में भी कोई कंजूसी न करें।
परिवार की पीर भी जानें और जब राजा हैं तो राहत मिलने की बात भी तय है ही। लोकतंत्र में इस राजा को चाहे प्रधान सेवक, चाहे मुख्यमंत्री, चाहे जनता का सेवक या फिर “मामा” के नाम से ही ख्याति क्यों न मिली हो या फिर मौका लोकतंत्र के महापर्व जनप्रतिनिधि के चुनाव के दौरान चुनावी सभाओं का ही क्यों न हो।
लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा अपने मंत्रियों और सहयोगियों के साथ कुटिया या कामचलाऊ छत के नीचे, घर-आंगन में बैठकर आदिवासी, दलित और गरीब के घर भोजन कर उसे कृतार्थ करने का जो कृत्य किया जाए, वह सम्मान उस गरीब के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट्स से कम नहीं माना जा सकता।
यह फोटो शायद उस परिवार के लिए जीवनभर की अमिट निशानी बनकर कलेजे को ठंडक देती रहेंगीं, भले ही मुख्यमंत्री और उसके मंत्री लोकतंत्र का यह पर्व निकलने के बाद उसके घर की तरफ जीवन में दोबारा मुंह मोड़कर भी न देखें। भूले-बिसरे भी याद न करें। और उसे भी पता हो कि यह कृपा निस्वार्थ प्रेम का अनूठा उदाहरण नहीं है।
यह संयोग राम और शबरी का संयोग भी नहीं है या यह संयोग कृष्ण-सुदामा की मित्रता और चने चबाने का भी नहीं है, लेकिन मुखिया शिवराज के पैर भी कुटिया में पड़ने का संयोग भी इन गरीब, दलित और आदिवासी परिवारों के लिए जीवन में सम्मान की सबसे बड़ी पूंजी से कम नहीं मानी जा सकती।
उपचुनावों के दौर में यह लाइफ टाइम अचीवमेंट्स जोबट विधानसभा के सरपंच भारचंद भूरिया, खंडवा संसदीय क्षेत्र के तुकाराम, पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्र के ठाकुरदास अहिरवार और रैगांव विधानसभा क्षेत्र की छोटी कोल को मिला है। सभी का मन प्रसन्न भी होगा और इच्छा बलवती हो गई होगी कि ऐसा मौका अगर बिना चुनाव के भी शिव का सान्निध्य पाने के रूप में मिल जाए तो शायद सम्मान के रूप में चांद-तारे सब फीके पड़ जाएं।
पर कहते हैं कि ऐसे संयोग तो बिरले ही होते हैं, पर हो सकता है कि मामा की मेहरबानी इन पर चुनाव के बाद दूसरी बार भी हो जाए तो यह परिवार डबल लाइफटाइम अचीवमेंट्स से भी हजार गुना ज्यादा खुशियां बटोरकर अपनी बाहों में समेट लें। शायद यह संभव न भी हो लेकिन एक बार का यह लाइफटाइम अचीवमेंट्स अवार्ड भी इनके दिलों में ताउम्र हरा भरा रहेगा और चेहरे पर संतुष्टि और मुस्कराहट के भाव बिखेरता रहेगा। गांव की चौपाल पर यह चर्चा जीवन भर चलेगी और उसके बाद भी।
उपचुनाव के पड़ाव में 19 अक्टूबर को सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जोबट में आदिवासी भाइयों के साथ रात गुजारी थी। भाबरा के निकट कबीरसेज गांव में सीएम ने रात्रि विश्राम किया था। गांव के आदिवासी भाई भारचंद भूरिया के घर सीएम ने भोजन भी किया था और खटिया पर लेटकर रात भी गुजारी थी।
खास बात यह भी कि आदिवासी भाई भारचंद भूरिया की पत्नी का कोरोना से निधन हुआ था, सीएम ने उन्हें श्रद्दांजलि भी दी थी। जोबट के कबीरसेज गांव में देर रात तक मुख्यमंत्री की चौपाल चली और दूसरे दिन सुबह भी सीएम ने आसपास के ग्रामवासियों की चौपाल लगाई और विभिन्न विषयों पर चर्चा की।
कबीरसेज गांव के क्षेत्र को यहां मिनी कश्मीर की संज्ञा दी गई है, प्राकृतिक रूप से सुंदर यह क्षेत्र छोटे-छोटे तालाबों के लिए जाना जाता है, जिसका मुख्यमंत्री ने अपने उद्बोधन में विस्तार से उल्लेख किया। तो भारचंद बने इस उपचुनावी दौर के पहले लाइफटाइम अचीवमेंट्स अवार्ड विजेता, जिनके जेहन में शिव स्थायी रूप से समा गए हैं और उनकी खाट को वह रात हमेशा याद आएगी।
इसी तरह 22 अक्टूबर को मुख्यमंत्री पृथ्वीपुर विधानसभा में धामना गांव पहुंचे। यहां ठाकुरदास अहिरवार ने काँठी की सभा में मुख्यमंत्री शिवराज से भोजन पर आने का आग्रह किया था। मुख्यमंत्री ने भोजन का निमंत्रण स्वीकार किया और दलबल के साथ यहां भोजन प्रसादी ग्रहण की।
धामना के ग्रामीणों ने सीएम का धन्यवाद किया तो समझा जा सकता है कि ठाकुरदास का दिल का हाल आसमान से बातें कर ही रहा होगा, जो इस उपचुनावी दौर में शिव का सम्मान पाकर दूसरे विजेता बन चुके थे लाइफटाइम अचीवमेंट्स अवार्ड के।
अगले ही दिन 23 अक्टूबर को बुरहानपुर के पीएम आवास योजना के हितग्राही तुकाराम का दिन था। शिवराज ने प्रधानमंत्री आवास योजना के हितग्राही भाई तुकाराम के घर पहुँच कर भोजन भी किया और रात भी बिताई। तुकाराम के 5 सदस्यीय परिवार और छोटे से घर में मामा शिवराज का स्वागत सत्कार आत्मीयता से हुआ तो मामा भी भावविभोर हुए बिना नहीं रह पाए।
उन्होंने केले के पत्ते पर बाजरे की रोटी का स्वाद लिया और परिजनों से दिल खोलकर बात भी की। तुकाराम बैंड बाजा बजाने का काम करते हैं। तो संयोग ही सही शिव का साथ पाकर इस उपचुनावी दौर के तीसरे लाइफटाइम अचीवमेंट्स अवार्ड विजेता बनने का अवसर मिला बुरहानपुर के तुकाराम को।
और 26 अक्टूबर का दिन था रैगांव विधानसभा के छिलोरी गांव की भाजपा जनपद सदस्य छोटी कोल का। सीएम रात का खाना खाने छोटी के घर पहुंचे। छोटी कोल ने खुद अपने हाथ से शिव को रोटी सेंक कर गरम-गरम परोसी तो सीएम चूल्हे के पास बैठकर छोटी की दिल खोलकर तारीफ करना नहीं भूले।
चूल्हे पर बनी रोटी के स्वाद को सराहा और यहां तक कहा कि गैस की रोटी में यह स्वाद नहीं है बहन। छोटी और परिजनों को गले भी लगाया और फोटो भी खिंचाई। तो छोटी बनी इस उपचुनावी दौर की चौथी और लाइफटाइम अचीवमेंट्स अवार्ड पाने वाली अंतिम विजेता।
तो यह चार नाम ऐसे हैं, जिनका कद, पद, रसद, धन और घरवार, रसूख और रुतबा ऐसा कतई नहीं है, जिसके चलते उन्होंने कभी यह सोचा भी होगा कि मुख्यमंत्री खुद उनके घर पधारेंगे तो दरवाजे पर मंत्रियों और रसूखदारों की फौज भी जमा होगी। मुख्यमंत्री भोजन करेंगे या रात घर में रुकेंगे, यह इनके सपने में भी कभी नहीं आया होगा।
पर ऐसा हुआ जो इन गरीब, आदिवासी, दलित परिवारों के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट्स अवार्ड की उपलब्धि से कम नहीं आंकी जा सकती। तो शिव के हिस्से में इससे क्या हासिल होगा, इसकी व्याख्या भले ही अलग-अलग नजरिए से होती रहे पर मामा का मानना है कि वल्लभ भवन में बैठकर गरीबों की समस्याएं नहीं जानी जा सकतीं।
जैसा कि एक समय कहा जाता था कि एसी चैंबर में बैठकर मानवविज्ञानी आदिवासियों की समस्याओं को कागज पर उकेरते रहते थे, जो कतई न्यायसंगत नहीं था। जरूरत इस बात की है कि मामा का यह ममत्व दूसरे गरीबों, दलितों और आदिवासियों के हिस्से में मिलना अनवरत जारी रहे।