बिहू:पूरे देश की जरूरत

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बिहू:पूरे देश की जरूरत

दुनिया में नृत्य मानवीय संवेदनाओं के विविध स्वरूपों को प्रकट करने की ऐसी कला है जो आपको बिना औषधि तमाम मनोविकारों से मुक्त करा देती है। कोई माने या न माने लेकिन यदि मैं पत्रकार ने बना होता तो एक स्थापित नर्तक होता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
मै जिस बिहू नृत्य की बात कर रहा हूं वो बिहू असम का लोक नृत्य है।बेहद सरल,मोहक और आकर्षक भी।असम ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की मौजूदगी में विश्व कीर्तिमान बनाया है।वे न भी होते तो भी ये कीर्तिमान बनता ही क्योंकि बिहू के 11304 कलाकारों ने ये विश्व कीर्तिमान बनाने का निर्णय कर लिया था।इन नर्तकों के साथ 2548 ड्रम बजाए गए ।
बिहु नृत्य भारत के असम राज्य का लोक नृत्य है जो बिहु त्योहार से संबंधित है।]यह नृत्य युवा पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जाता है और इसकी विशेषता फुर्तीली नृत्य मुद्राएँ तथा हाथों की तीव्र गति है। नर्तक पारंपरिक रंगीन असमिया परिधान पहनते हैं।मै जब भी बिहू नृत्य देखता हूं अभिभूत हो जाता हूं। बिहू नर्तकों के पोर -पोर से खुशी,विरह वेदना टपकती सी लगती है।
दक्षिण और उत्तर के शास्त्रीय नृत्यों के मुकाबले बिहू नृत्य में न वेशभूषा का बोझ है और न व्याकरण की दुरूहता। अनपढ़ भी इस नृत्य में शामिल हो सकता है। मैंने पकी उम्र की महिलाओं और पुरुषों को बिहू नृत्य करते देखा है। बिहू दर असल एक संस्कार है। ये संस्कार असम की जनता को संघर्ष का जीवन जीने में सहायक होता है।दुख,सुख सब पर हावी है बिहू।
बिहू नर्तकों एक मोहोर ख़िंगोर पेपा (सींग) के साथ बिहु नृत्य करते हैं। बिहु नृत्य का मूल अज्ञात है, लेकिन इसका पहला आधिकारिक प्रमाण तब मिलता है जब अहोम राजा रूद्र सिंह ने 1694 के आसपास रोंगाली बिहु के अवसर पर बिहु नर्तकों को रणघर क्षेत्रों में इसका प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया था।
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक उत्तर पूर्व भारतीय समूहों के बीच इस नृत्य के कई प्रकार हैं, उदाहरण के लिए “देओरी बिहु नृत्य”, “माइजिंग बिहु नृत्य” इत्यादि, हालाँकि नृत्य का मूल लक्ष्य एक ही रहता है परस्पर दर्द और खुशी दोनों को महसूस करने की इच्छा व्यक्त करना।
दूसरे लोकनृत्यों की भांति बिहु भी एक समूह नृत्य है । इसमें पुरुष और महिलाएं साथ-साथ नृत्य करते हैं । आमतौर पर महिलाएं पंक्ति या वृत्त संरचना का सख्ती से पालन करती हैं। पुरुष नर्तक और संगीतकार नृत्य क्षेत्र में सबसे पहले प्रवेश करते हैं और वे अपनी पंक्ति को बनाए रखते हैं और समक्रमिक आकृतियां बनाते हैं। जब बाद में महिला नर्तकियां प्रवेश करती हैं तो पुरुष नर्तक महिला नर्तकियों, जो अपनी संरचनाओं तथा नृत्य क्रम को बनाए रखती हैं, के साथ मिलने के लिए अपनी पंक्तियां भंग कर देते हैं।
बिहू नृत्य की विशेषता उसकी निश्चित मुद्राएं और लय में कूल्हे, बाजू, कलाइयां हिलाना, घूमना, घुटनों को मोड़ना तथा झुकना है। इसमें छलांगें नहीं हैं। बहुत मामूली लेकिन सूक्ष्म अंतर के साथ पुरुष और महिलाओं की नृत्य मुद्राएं एक समान हैं।
बिहू नृत्य का पारंपरिक बिहु संगीत है। सबसे महत्वपूर्ण संगीतकार ढोलकिये हैं इन्हें ढुलिया कहा जाता है।, ढोल , गर्दन से लटका होता है तथा एक लकड़ी तथा हथेली की सहायता से बजाया जाता है। आम तौर पर एक से अधिक ढुलिया प्रदर्शन करते हैं और वे प्रदर्शन के अलग-अलग चरणों में अलग-अलग ताल बजाते हैं। ये तालबद्ध रचनाएं, जिन्हें सिउ कहा जाता है, पारंपरिक रूप से कूटबद्ध हैं। नृत्य क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले, ढोलकिये एक छोटी तथा तेज गति वाली ताल बजाते हैं। सिउ में परिवर्तन होता है और आमतौर पर ढोलकिये पंक्ति बना कर नृत्य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। आम तौर पर शुरुआत में दर्दनाक मूल भाव देने के लिए एकल कलाकार द्वारा मोहोर ज़िंगोर पेपा बजाया जाता है तथा इससे नृत्य के लिए माहौल तैयार होता है।
बिहू में पुरुष नर्तक एक संरचना बना कर नृत्य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तथा गायन, जिसमे सभी भाग लेते हैं, के साथ प्रदर्शन करते हैं। इस नृत्य में प्रयुक्त होने वाले कुछ अन्य वाद्ययंत्र हैं ताला -एक मंजीरा, गोगोना -एक प्रकार की बांसुरी और बांस के वाद्ययंत्र टोका -बाँस का टुनटुना, तथा ज़ुटूली -मिटटी की सीटी। अक्सर बाँस की बाँसुरियों का प्रयोग भी किया जाता है। नृत्य के साथ गाये जाने वाले गीत कई पीढ़ियों से हस्तांतरित होते आ रहे हैं। गीतों के विषय असमिया नव वर्ष के स्वागत से ले कर एक किसान के दैनिक जीवन के वर्णन, असम पर आक्रमण के ऐतिहासिक सन्दर्भों से ले कर व्यंग्यपूर्ण सामयिक सामाजिक व राजनीतिक टिप्पणी तक समाहित होती हैं।
आप जब भी मंहगाई,गृह क्लेश, और दूसरे तनावों से परेशान हो तो कुछ समय के लिए बिहू संगीत सुन लें। बिहू नृत्य देख लें।एकदम तरोताजा महसूस कर उठेंगे। बिहू एक ऐसी खुराक है जो हर जगह नहीं मिलती।इसका मालिक कोई बाबा नहीं है। अभी तक बिहू राजनीति की चपेट में भी नहीं आया है, हालांकि कोशिश जारी है, क्योंकि असम की सत्ता भी सांस्कृतिक पुनरूत्थान के प्रयास कर रही है।