
काला बक्सा, काली मौत, काला दिन, काली करतूत…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
मौत कितनी काली हो सकती है इसका गवाह बनी है अहमदाबाद में हुई विमान दुर्घटना। विमान में सवार 242 लोगों में से बमुश्किल दो लोग ही बच पाए। बाकी के शव भी मौत के काले होने की गवाही दे रहे हैं। वास्तव में कहा जाए तो 12 जून 2025 का दिन पूरी तरह से काला दिन बन गया है। अब काले बक्से का इंतजार है जो यह बताएगा कि वास्तव में किनकी काली करतूतों का खामियाजा इन निर्दोषों ने भुगता है। लापरवाही की भी हद होती है जो दिल्ली से अहमदाबाद आए एक यात्री के ट्वीट से साफ झलकती है। जिसमें वह विमान के अंदर खस्ताहाल सुविधाओं और व्यवस्थाओं की पोल खोल रहा था। अच्छा है कि टाटा ग्रुप के नेक दिल चेयरमैन रहे रतन टाटा अब इस दुनिया में नहीं हैं वरना ऐसी दुर्घटना या तो होती नहीं या फिर रतन टाटा का दिल इस कदर टूटता कि उनके जीने की इच्छा ही मर जाती। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार केंद्रीय मंत्री के रूप में एअर इंडिया के हवाई जहाज की अव्यवस्थाओं का जिक्र किया था। पर निष्कर्ष रहा था ढाक के वही तीन पात। और वही हाल आज इसी विमान की खामियां गिनाने वाले एक यात्री के ट्वीट का हुआ। आखिरकार सभी के शव इस कदर जलकर काले पड़े कि पहचान तक न हो पाए। आखिर कौन है गुनहगार? सोनम ने जो गुनाह किया था उसमें एक ही व्यक्ति की मौत हुई थी और पूरा देश उसका शोक मना रहा था। इस विमान दुर्घटना ने सैकड़ो बेगुनाहों का कत्ल किया है जिसका सबूत काले बक्से में दर्ज हो गया है। इसका शोक तो मानो करोड़ों दिलों को तोड़कर चकनाचूर कर रहा है। किसकी लापरवाही उजागर होती है और किसको सजा मिलती है अब तो ऐसे सवाल भी बेमानी हो गए हैं। कितने परिवार उजड़ गए हैं इसका हिसाब लगाना भी अब मुमकिन नहीं है। इस विमान दुर्घटना के बाद शब्द भी अपना दर्द बयां नहीं कर पा रहे हैं।
मुकेश की आवाज में यह गीत जरूर आज दिल को तड़पने पर मजबूर कर रहा है। जीत के बोल हैं ‘ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना’। फिल्म बंदिनी के इस गीत के संगीतकार सचिन देव बर्मन थे। गीतकार शैलेन्द्र और
गायक मुकेश थे। आओ आंसू बहाते हैं यह गीत गुनगुनाकर…
‘ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना ये घाट तू ये बाट कहीं भूल न जाना
बचपन के तेरे मीत तेरे संग के सहारे ढूँढेंगे तुझे गली-गली सब ये ग़म के मारे पूछेगी हर निगाह कल तेरा ठिकाना ओ जानेवाले…
है तेरा वहाँ कौन सभी लोग हैं पराए परदेस की गरदिश में कहीं तू भी खो ना जाए
काँटों भरी डगर है तू दामन बचाना
ओ जानेवाले…
दे दे के ये आवाज़ कोई हर घड़ी बुलाए फिर जाए जो उस पार कभी लौट के न आए
है भेद ये कैसा कोई कुछ तो बताना
ओ जानेवाले…
काले बक्से अब तू काली करतूत के बारे में बताते रहना और हो सके तो गुनहगारों का मुंह ऐसा काला करना कि फिर कोई दिन काला न बन पाए और सैकड़ों बेगुनाह जिंदगियां न लील पाए… आज यह समझ में आया कि वास्तव में मौत भी कितनी काली हो
सकती है…।





