
शिक्षा स्वास्थ्य के चुनावी वायदों पर बजट और घोटालों की सीमाएं
आलोक मेहता
चुनावी घोषणा या संकल्प पत्रों में हर राजनीतिक पार्टी एक बढ़कर एक लुभावने वायदें जनता के सामने पेश करती है | दुनिया के किसी अन्य लोतांत्रिक देश में इतने दावे नहीं होते | भारत ही नहीं अमेरिका ब्रिटेन जर्मनी जैसे संपन्न देश या अफ्रीका के घाना बुर्किना फासो जैसे छोटे विकासशील देश में भी बच्चों की शिक्षा और हर परिवार के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रहता है | इस दृष्टि से दिल्ली विधान सभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी , कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने जन समर्थन के लिए मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी जैसे वायदे किए हैं | लेकिन सवाल उठता है कि उन्होंने पिछले वर्षों के दौरान इन क्षेत्रों में जनता को कितनी सुविधाएं और राहत दी ? इसी मानदंड पर उनके वायदों पर भरोसा किया जा सकता है | वहीँ सामान्य नागरिक समझने लगा है कि सब कुछ मुफ्त नहीं मिल सकता , क्योंकि न तो इतना सरकारी बजट होता है और न ही पहले बनाई गई व्यवस्था से उन्हें पर्याप्त मिल पाई | जो मिलता है वह जनता से विभिन्न मदों में करों के रुप से ही वसूला गया | इसलिए अब हवाई और झूठे चुनावी वायदों पर उन्हें भरोसा नहीं होता | भारत ही क्यों अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा लाई गई ‘ ओबामा केयर स्वास्थ्य योजना ‘ लम्बी छोड़ी बहस पक्ष विपक्ष के बाद 2010 में लागू की गई , उसकी प्रक्रिया आज तक जारी है और इस साल उससे कर का भार बढ़ना मुद्दा बना है | जबकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की सिफारिश के आधार पर ‘आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना ‘ 2017 से लागू की और इससे देश के 34 राज्यों के कम आय वाले करीब 12 करोड़ परिवार यानी करीब 60 करोड़ लोगों को विश्वास के साथ बीमारी में पांच लाख रुपए की गारंटी मिल गई | फिर इस वर्ष तो 70 वर्ष से अधिक आयु वाले हर नागरिक को आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा का प्रावधान हो गया | मतलब करीब 6 करोड़ बुजुर्गों को स्वास्थ्य बीमा की गारंटी मिल गई | विश्व में ऐसी कोई योजना नहीं लागू हुई |
इस पृष्ठभूमि के बावजूद देश की राजधानी दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होते हुए सत्तारुढ़ मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की जिद के कारण आयुष्मान भारत योजना का लाभ नहीं उठा सका | यही नहीं उसके विकल्प के नाम पर मोहल्ला क्लिनिक में करीब 350 करोड़ के घोटाले की जानकारी सी ए जी रिपोर्ट में होने के आरोप सामने आए हैं | मोहल्ला क्लिनिक ही नहीं दिल्ली सरकार के अस्पतालों में पर्याप्त संसाधन नहीं होने या गरीबों को समय पर इलाज न मिलने की स्थितियां बनी हुई हैं | सरकारी स्कूलों की इमारतों की चमक दमक भले ही बढ़ गई , लेकिन शिक्षकों की कमी और अन्य सुविधाओं का अभाव है | अब चुनाव में आम आदमी पार्टी संजीवनी योजना के तहत 60 वर्ष से ऊपर के सभी बुजुर्गों को इलाज की सुविधा। छात्रों को डीटीसी बसों में यात्रा फ्री। केंद्र की मदद से मेट्रो के किराए में 50% की छूट जैसे वायदे कर रही है | दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए 15,000 रुपये की एकमुश्त वित्तीय सहायता दी जाएगी। दो बार की यात्रा और आवेदन शुल्क की प्रतिपूर्ति भी होगी। जरुरतमंद छात्रों को नर्सरी से पोस्ट ग्रेजुएट तक मुफ्त शिक्षा तथा अनुसूचित जाति वर्ग के छात्रों को हर महीने एक हजार रुपये की मदद तथा 70 साल से अधिक आयु के लोगों को 10 लाख रुपये का बीमा कवर देने का चुनावी वायदा किया है | दिलचस्प बात यह है कि केजरीवाल पुजारियों को मदरसों के उस्तादों की तरह 18 हजार रुपए मासिक देने या महिलाओं को ढाई हजार रुपए महीना मिलने के सपने बेच रही है | इतने भारी खर्च के लिए धन कहाँ से आएगा , इसका जवाब उनके नेता जनता को नहीं बता पा रहे हैं | इसी तरह कांग्रेस पार्टी महिलाओं युवको आदि को हजारों रुपए देने के वायदों से भ्रमित कर रही है |
बहरहाल चुनाव तो आते जाते हैं | शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्तर पर लाभकारी योजनाओं को लागू करना हर प्रदेश की राज्य सरकार का कर्तव्य होना चाहिए |भारत की शिक्षा प्रणाली को बदलने में ऐसा ही एक साहसिक और दूरदर्शी कदम नई शिक्षा नीति 2024 है। यह अधिक समग्र, लचीला और छात्र-केंद्रित होगा ताकि यह उन्हें चुनौतियों का सामना करने और 21वीं सदी के अवसरों का लाभ उठाने के लिए तैयार करे। यह नीति रटने की विद्या, मीठे और तनावपूर्ण परीक्षाओं के बजाय आलोचनात्मक सोच, कल्पना और समस्या-समाधान कौशल पर जोर देती है। देश शिक्षा की इस प्रणाली को अधिक समावेशी, अधिक न्यायसंगत और अधिक गतिशील बनाने के लिए इन आवश्यक सुधारों को लागू करने की राह पर चल पड़ा है, साथ ही भारत वैश्विक ज्ञान महाशक्ति के रूप में अपनी सही स्थिति स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा हरी झंडी दी गई नई शिक्षा नीति 2024, देश में शिक्षा के विशाल परिदृश्य में नया क्षितिज है। शिक्षा नीति 2020 के अनुवर्ती के रूप में, नीति कई महत्वपूर्ण सुधारों पर जोर देती है जो भारतीय शिक्षा को अधिक संपूर्ण, लचीला और 21वीं सदी की मांगों के अनुकूल बनाएंगे। यहाँ उन प्रमुख परिवर्तनों पर विस्तृत जानकारी दी गई है जिनकी अपेक्षा की जा सकती है और वे शैक्षिक क्षेत्र को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में बड़े बदलाव की घोषणा भी की है। 2025 से लागू होने वाले ये नए नियम छात्र-छात्राओं के लिए कई महत्वपूर्ण परिवर्तन लेकर आएंगे। इन नियमों का उद्देश्य शिक्षा को अधिक प्रासंगिक, समावेशी और गुणवत्तापूर्ण बनाना है। नई शिक्षा नीति के तहत लाए जा रहे ये बदलाव स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के सभी स्तरों को प्रभावित करेंगे।इन नए नियमों में कई महत्वपूर्ण बदलाव शामिल हैं, जैसे शिक्षा की नई संरचना, बोर्ड परीक्षाओं में बदलाव, व्यावसायिक शिक्षा पर जोर, और डिजिटल शिक्षा का विस्तार। इसके अलावा, छात्रों को अधिक लचीलापन और विकल्प दिए जाएंगे ताकि वे अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार पढ़ाई कर सकें।
शिक्षा में प्रौद्योगिकी शिक्षा प्रदान करने और उस तक पहुँचने के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है, जिससे यह अधिक समावेशी और परिणामोन्मुखी बन रही है। डिजिटल कक्षाओं से लेकर ऑनलाइन संसाधनों तक, प्रौद्योगिकी का एकीकरण शहरी-ग्रामीण विभाजन को पाटने के लिए महत्वपूर्ण है, यह सुनिश्चित करता है कि दूरदराज के क्षेत्रों में भी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। यह बदलाव नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों के साथ पूरी तरह से मेल खाता है, जो एक आकर्षक और न्यायसंगत शिक्षण वातावरण बनाने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग के महत्व पर जोर देता है।साइबर स्कूल मैनेजर इस शैक्षिक परिवर्तन का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। स्कूल प्रबंधन सॉफ़्टवेयर स्कूलों को नई शिक्षा नीति को प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। शिक्षक ऐप का उपयोग गतिविधि-उन्मुख सीखने की सुविधा के लिए कर सकते हैं, ऐसे कार्य और प्रोजेक्ट असाइन कर सकते हैं जो व्यावहारिक, वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों पर नीति के फ़ोकस के साथ संरेखित हों। इसके अतिरिक्त, प्रवेश प्रबंधन मॉड्यूल , पाठ्यक्रम प्रबंधन के साथ एकीकृत है, स्कूलों को संचालन को सुव्यवस्थित करने की अनुमति देता है |
इसी तरह मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) को भी 5 साल के लिए बढ़ा दिया है। एनएचएम से 12 लाख स्वास्थ्यकर्मी जुड़े हुए हैं | राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनएचआरएम) की शुरुआत 2005 में की गई थी, जिसे कई बार बढ़ाया गया। एनएचएम की अवधि आखिरी बार 2021 में बढ़ाकर 2026 तक के लिए कर दिया गया था।सार्वजनिक स्वास्थ्य पर योजना के असर को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। सरकार ने कहा है कि ‘भारत में स्वास्थ्य सुधारों, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान में मिशन की भूमिका अहम रही है। इसने स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंच के भीतर बनाने और गुणवत्तायुक्त स्वास्थ सेवाएं देने में मदद पहुंचाई है।’ मिशन के प्रयासों से स्वास्थ्य क्षेत्र में अहम बदलाव हुआ है और भारत 2030 तक के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत स्वास्थ्य लक्ष्यों पर सही दिशा और समय से आगे चल रहा है। वर्ष 2012 में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन की अवधारणा बनाई गई और एनआरएचएम को दो उप-मिशनों यानी एनआरएचएम और एनयूएचएम के साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के रूप में पुनः नामित किया गया।मिशन के निरंतर प्रयासों ने भारत के स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य में नाटकीय परिवर्तन लाने में सफलता प्राप्त की है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि संविधान में शिक्षा और स्वास्थ्य राज्य सरकारों के अधीन है और वे पक्षपात , भ्र्ष्टाचार के घोटालों से बचकर भविष्य के लिए सम्पूर्ण समाज के लिए लाभकारी कार्यक्रमों को क्रियान्वित करें |