Cape of Good Hope; यहाँ से जहाज़ पूर्व की ओर अटलांटिक महासागर से हिन्द महासागर में जाते हैं।

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यात्रा वृत्तांत

Cape of Good Hope; यहाँ से जहाज़ पूर्व की ओर अटलांटिक महासागर से हिन्द महासागर में जाते हैं।

टेबल माउन्टेन देखने के बाद एक विशेष यात्रा अभी करनी थी जो हमें उस बिंदु या दुनिया के उस अंतिम छोर पर ले जाएगी जहाँ से पुर्तगाली यात्री वास्को डि गामा ने समुद्री मार्ग से भारत को खोजा था, यही वह जगह है जिसने ना केवल दक्षिण अफ्रीका का इतिहास बदल दिया था बल्कि भारत के इतिहास में भी जाने कितने पन्ने यहीं से शुरू हुए थे| एक आशावान व्यक्ति इसे देख कर खुश ही होगा यह मुझे पता था क्योंकि कहते हैं कि ये आशाओं के अंतरदीप हैं उम्मीद का दीपक हमें अधिक रोशनी से भर देता है| मेरे लिए बाग़ बगीचे, महल दुमहल, किले संग्रहालय देखने से कहीं ज्यादा रोमांचक होती है वो जगह जो इतिहास के पन्नों पर दर्ज होती है, उसके साथ ही यदि वह दुनिया का सबसे खूबसूरत पाइंट हो तो क्या कहने! ऐसी ही एक जगह है “द केप ऑफ गुड होप”।

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अटलांटिक ओशन और इंडियन ओशन को मिलाने वाले इस पाइंट को देखने हम सड़क मार्ग से पहुँचते हैं| यह बेहद खूबसूरत रास्ता है जिसके एक ओर महासागर अपनी पूरी समर्थता के साथ हिलोले ले रहा है| जी हाँ यह सागर नहीं महासागर है, अटलांटिक महासागर| यह एक विशाल जलराशि का नाम है जो यूरोप तथा अफ्रीका महाद्वीपों को नई दुनिया के महाद्वीपों से पृथक करती है। यह क्षेत्रफल और विस्तार में दुनिया का दूसरे नंबर का महासागर है जिसने पृथ्वी का १/५ क्षेत्र घेर रखा है। यूँ तो यहाँ जाने के लिए एक छोटी ट्रेन राइड मिलती है जिसके बाद थोड़ी सी सीढ़ियाँ चढ़कर इस केप पॉइंट पर पहुँचा जा सकता है। जहाँ पर बना लाइट हाउस काफी पुराना है।

 

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इसी लाइट हाउस को देखकर पहले यहाँ से जाने वाले पानी के जहाजों को ये पता चलता था कि वो अटलांटिक ओशन से इंडियन ओशन में जा रहे हैं। केप ऑफ गुड होप अफ्रीका के सुदूर दक्षिणी कोने पर एक स्थान है। यह क्षेत्र इसलिए जाना जाता है क्योंकि यहाँ से बहुत से जहाज पूर्व की ओर अटलांटिक महासागर से हिन्द महासागर में जाते हैं और हम दक्षिण अफ्रीका की इसी यात्रा पर हैं| इस स्थान का ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व है। इस स्थान तक पहुँचने वाला सर्वप्रथम यूरोपीय व्यक्ति था पुर्तगाल का बारटोलोमीयु डियास। उसने इस स्थान को १४८८ में देखा और इसका नाम “केप ऑफ स्टॉर्म्स (तूफ़ानों का केप) रख दिया था|

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किसी भी देश में बहुत कम ऐसे स्थान होते हैं, जिन्होंने इतिहास को बदल कर रख दिया हो। केप टाउन में स्थित केप ऑफ गुड होप एक ऐसा ही स्थान है। १४८८ ई. में पुर्तगालियों ने इसी स्थान से अफ्रीका महादेश में कदम रखा था। इसके बाद से ही अफ्रीका का इतिहास बदल गया। यह अटलांटिक महासागर के पास स्थित है। बिटिया ने अमेरिका में बैठ कर अफ्रीका का टूर प्लान करते हुए मुझे यह सब समझाया था कि कहीं और जाओ ना जाओ यहाँ जरुर जाना क्योंकि केप टाउन आने वाले पर्यटक इस स्थान पर घूमने जरूर आते हैं। दक्षिण अफ्रीका के इस कोने पर पहुँचना यानी खूबसूरत से रास्तों से गुजरना| दूर तक आँखें केवल नीला नीला पानी और उसमें उठती सफेद फेन सी लहरों को देख कर उस ऊपर कहीं बैठे चित्रकार सृष्टि निर्माता को याद करता है कि उसकी कूची में ये रंग इतने पवित्र क्यूँ लगते हैं और इतने विशाल चित्र वो बनता कैसे है? हमारी कल्पनाओं में वह रंग भरता कैसे है? हमारी पूरी यात्रा पहले से मिस्टर रॉबर्ट के साथ पल्लवी ने इंटरनेट के माध्यम से बुक करते हुए लगभग निर्धारित ही कर दी थी| मैं मेप देखती हूँ ताकि हमें पता हो कि हमें किस दिशा में कहाँ जाना है? सुबह जल्दी उठ कर मैं सब्जियाँ डाल कर एक बढ़िया राइस पुलाव और पैक्ड राजमा का डिब्बा खोल उसे मसालों में छोंक लगा कर इन्डियन दाल बना लेती हूँ मेरे पास इन्दौरी नमकीन है, कुछ रोस्टेड मेवे भी रख लेती हूँ| हम भारतीयों को कुछ चबेना लगता ही है फिर चाहे वो मूँगफली हो या रोस्टेड चना ही क्यों ना हो, कुछ होना चाहिए टाइम पास आयटम| अब हम विदेशियों की तरह च्विंगम तो चगलते नहीं न, ड्राइवर के साथ गाड़ी पिछले दो दिनों से हमारे साथ है ड्राइवर कम टूरिस्ट गाइड मिस्टर रॉबर्ट जिसे हम यूरोपियन अफ्रीकन कह सकते हैं क्योंकि वह अँग्रेज दिखता है एकदम गोरा लेकिन वह खुद को अफ्रीकन ही कहता है हमारा मित्र बन चुका है मैं उसे अपने नमकीन चखाती रहती हूँ उसके लिए भी पुलाव पैक करती हूँ

| चाय बनाती हूँ अदरक वाली यहाँ होटल में अटेच किचन-बर्तन सब है सामने ही एक बड़ा सा मार्केट है वहीं से सब्जियाँ, अदरक, फल और राइस लेकर आई थी रात का खाना भी खुद ही बनाया था| डिस्पोजेबल प्लेट चम्मच सब बेग में डाल हम निकलते हैं एक बेहद खूबसूरत रास्ते पर| कहा जा सकता है कि हमारी यह लम्बी ड्राइव दुनिया की सबसे खूबसूरत ड्राइव में से एक है| जितना कैमरा चलाना मुझे अब आता है यदि तब आता तो मैं दुनिया के सबसे खूबसूरत रास्ते के ऐसे अनोखे फोटो खींच सकती थी जो दुनिया के सबसे खूबसूरत फोटो हो सकते थे लेकिन खींचे और अच्छे ही खींचे, पर तब कम ज्ञान था फोटोग्राफी का, खींचते तो तब भी थे और आज उसी प्रेक्टिस ने फोटोग्राफर बना डाला|

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यहाँ अभी मौसम ठंडा है में हमें ठण्ड लग रही थी, सुरेश तिवारी जी ने जर्किन पहन रखी थी, मैंने भी स्वेटर और शॉल निकाल ली| यह वो रास्ता था जहाँ से अन्टार्टिका और हमारे मध्य यदि कुछ था तो वो केवल समंदर का जल ही था और थी वो ठंडी बयार जो अंटार्टिका से चलकर सीधे हमें मिल रही थी, ताजगी भरी इन हवाओं में जाने कितने गीत थे जो मन गुनगुना रहा था——-गाइड ने हमें पहले ही बता दिया था कि यह बेहद खूबसूरत रास्ता है| मैं पूछती हूँ उनसे हम पहुँचेंगे कब? वो हँसते हुए कहते हैं जब आप आगे बढ़ेंगी? मैं फिर पूछती हूँ मतलब? वो फिर अंग्रेजों की तरह सौम्य मुस्कान के साथ कहते हैं मैडम सारा रास्ता आपको जगह जगह रोकेगा, आप उतरना चाहेंगी रुकने के लिए, देखने के लिए, फिर आप वहीँ रुके रहना भी चाहने लगेंगी शायद आप कहें कि हमें आगे जाना ही नहीं, बस इसी जगह, इसी मौसम, इसी नीले जल में उड़ते पंछियों को देखना है|

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हो सकता है रास्ते में आपको वाइल्ड एनिमल्स दिखाई दे जायें आप वहीं रुक जाना चाहेंगी, पर यदि समय का ध्यान नहीं रखा तो आप पेंग्विन तक नहीं पहुँच सकतीं? मैं हँसती हूँ तो इसका वास्ता मेरे जैसे किसी शख्स से पहले भी पड़ा होगा तभी तो, उसका तो काम ही है यह रोज लोगों को देखता है जाने कितनी तरह के लोगों से मिलता है गाइड भी ना एक अच्छे मनोवैज्ञानिक हो जाते हैं, हमारी मनोवृतियों को पकड़ने लगते हैं, वे हमारे चेहरे के भाव से हमारी मानसिकताओं को समझ जाते हैं, मैं उन्हें अलर्ट करती हूँ अपनी भारतीय स्टाइल में कि भैया जहाँ मैं देर करूँ तो गाड़ी के हार्न को बजाते जाना मैं जल्दी से गाड़ी में बैठ जाऊँगी| सच मुझे रास्ता ऐसा ही मन को बाँधता सा, आँखों को कैमरे में बदलता सा लगता है, कुछ देर के लिए मैं मन ही मन फिल्म डायरेक्ट करने लगाती हूँ| ये जगह शूटिंग के लिए कितनी उपयुक्त है यहाँ यदि कोई शूटिंग हो तो? पता चला कई फिल्मों में यहां की शूटिंग हुई है|

हम लुडाडनो से 06 रोड पर आते हैं| यहाँ से आगे बढ़ते हैं एक हॉट-बे मिलता है और उसके बाद ही तो हमारी चैपमन्स ड्राइव शुरू होती है जो हमें नूरडॉक तक ले जाती है| यह एक ऐसा सफ़र है जिसके लिए कुछ भी कहना उसकी अद्वितीय अनुभूतियों को कमतर आँकना ही होगा| एक तरफ विशाल पर्वतों की श्रृंखला छोटे छोटे फूलों की कोई हरी रंग बिरंगी जाजम बिछाए हुए और दूसरी तरफ नीला उफनता उछलता-कूदता समंदर जो महासागर है| मैं उस समन्दर के नील फिरोजी रंग को थोड़ा सा चुरा लेती हूँ यह रंग दुकानदार को बताने के लिए कि मुझे बस इसी समुद्रीय नील फिरोजी रंग की प्लेन शिफॉन साड़ी निकाल कर दिखाए कि मैं समन्दर की उस शिफॉनी मुलायमियत, नील फिरोजी ठंडक, उसका रेशमी सर्फेस और किनारे पर आती फेनिल सफेदी की बॉर्डर को खुद पर लपेट सकूँ

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| काश कि मैं कुछ देर जलपरी या कि मैं मीनपरी कोई मत्स्य कन्या बन जाऊँ इस वीराने से नीले जल में दूर तक तैरते हुए अपने अन्दर समुद्र को समेट लाऊँ, जलीय जीवन का भी तो कोई आनंद होता ही होगा? आह भर कर समुद्र को खींच लेने की कोई अनचाही सी इच्छा मचलती है मन में| तभी साँसों को खींचकर उन ताज़ी हवाओं को फेफड़ों में भर लेना चाहती हूँ शायद फिर कभी इतनी ताजगी हवाओं में ना मिले क्योंकि शायद इसके पहले भी इतनी ताजगी मिली ही नहीं थी| मन कहता है यहीं नीचे रजत राशि सी बालू पर नील जल राशि के सामने जो बड़ी सी बेहद अनूठी कॉटेज बनी है क्यों ना एक रात हम यहीं रुक जाएँ, जब शाम ढले सूरज अपने घर जाएगा यहीं से तो कुछ देर हमारे पास रुकेगा जल में उतरने से पहले रुक कर पानी की तासीर तो पूछेगा कितना गर्म हुआ जल उसके जलने से या पानी कितना ठंडा है अंटार्टिका से आती बर्फीली हवाओं से? तब हम भी मिल बैठेंगे सुनेंगे बातें समुद्र से रश्मिरथी की याद आती हैं मुझे यहीं पर कुछ पंक्तियाँ…..

“रश्मिरथी के रथ सा मंथर दम्पति का जीवन चलता,दृढ़ता शुचिता संयम ना हो अमृत घट नहीं भरता”| मन ही मन अपने साथी से कहती हूँ| चलो ना नीचे तट पर अपने ही पैरों के आड़े तिरछे निशानों को बनाने का कोई खेल खेल ही लेते हैं, न हो तो ढूँढेंगे सूरज के जाते रथ के पहियों के कोई निशान| मेरा मन कहता है कि सूरज का सात घोड़ों वाला रथ ऐसे ही किसी रास्ते से तो जाता है| देखा है मैंने पुराने ज़माने के किसी केलैंडर पर यही दृश्य छपा हुआ, आपने भी तो देखा होगा? यहाँ ढलान पर हरी कोई वनस्पति है जिस पर पीले फूलों की बूटियाँ बनी है किसी सुन्दर ग्रामीण स्त्री की धानी चुनरिया की तरह|

हम पक्की सीमेंटेड सड़क के किनारे खड़े हैं, एक हनीमून कपल आकर रुकता है एक आग्रह के साथ कि मैं एक फोटो उन दोनों की उनके आइपैड पर खींच दूँ? मैं उनसे बात करती हूँ अपनी कच्ची टूटी फूटी अँग्रेजी में, वो बताते हैं कि वो ऑस्ट्रेलिया से आये हैं| देर तक उनकी ख़ुशी मेरे अन्दर विस्तृत होती रहती है| मुझे अपने बच्चे याद आते हैं जो इसी उम्र के हैं| इस जगह पर माइल स्टोन पर लिखा है ‘मिस्टी क्लिफ्स कंजर्वेशन वेली’, यहाँ समुद्र की रेत सफ़ेद चाँदी जैसी दिखाई देती है लगता है किसी ने चाँदी का पावडर डाल रखा है, धूसर थोड़ा सा राख जैसा रंग, नीला पानी, सफ़ेद बादल और चाँदी से चमकते रेत के तट एक आलौकिक चित्र बनाते हुए से लगते हैं| हम अपने कैमरे में कई चित्र भर लेते हैं और फिर कैमरा वापस बेग में डाल लेते हैं चलो चलते हैं कहते हुए|

मोबाइल में सुरेश जी पूरे रास्ते समन्दर को विडियो में भरते रहे, मैं हँसती हूँ कितना समुद्र आपके मोबाइल में आ गया कुछ मेरे मोबाइल में भी जगह है लो आप इसमें भी भर लो पूरा न सही थोड़ा तो हमारे साथ जाएगा ही, क्यों? पर जब लिखने बैठी तो मन के केनवास पर समुद्र उतरने लगा तो वो इतना विशाल, इतना सर्वव्यापी होता गया कि लगा आँखों से ज्यादा अच्छा कैमरा कौन सा हो सकता है सब कुछ तो मेमोरी में भर लाई थी| उस दिन हम छूटते मन से फिर गाड़ी में बैठ गए थे| यह 09 किलोमीटर की ड्राइव थी जिसमें लगभग सौ सवा सौ मोड़ आते हैं घुमावदार रास्ता पहाड़ों का सौंदर्य और समुद्र की अथाह गहराई| समुद्र और पहाड़ों, दोनों के बीच ये सड़क कहीं कोई बँटवारे की रेखा तो नहीं? क्या समुद्र का मन कभी इन पहाड़ियों को गले लगाने का होता होगा? क्या इन पहाड़ियों की इच्छा सड़क को क्रॉस कर समंदर में गोते लगाने की होती होगी? क्या आलिंगन के सुख में हमारे आने जाने के लिए बनी सड़क रोड़ा तो नहीं है? क्यों हम नेचर को उसके मूल रूप में बर्दाश्त नहीं करते, हर कहीं मनुष्य ने अपनी इच्छा प्रकृति पर थोपी? इस ख्याल ने कहा देखो सुनो समुद्र का विरह गीत, कितना पछाड़े मार रहा है ये समुद्र? और दरक रही है पहाड़ियाँ?

हम आगे निकल जाते हैं, सारा रास्ता प्रकृति का कोई खुद ही बनाया चित्र लगता है| पहली बार विदेशी वॉलपेपर के दृश्य याद आए ओह! तो वो जरूर यहीं की फोटोग्राफी होगी? दक्षिण अफ्रीका के पहाड़ मुझे पुराने ज्वालामुखी से निकले हुए लावा से निर्मित लगते हैं| अफ्रीका महाद्वीप ऊँचे पठारों का महाद्वीप है, इसका निर्माण अत्यन्त प्राचीन एवँ कठोर चट्टानों से हुआ है| बड़े पठारों के बीच अनेक छोटे-छोटे पठार विभिन्न ढाल वाले हैं| दक्षिणी अफ्रीका में पठार एवँ तट में बहुत ही कम अन्तर है, दोनों का साथ हर जगह बना हुआ है| यहाँ समुद्र जैसे तिलस्म रचता है| केप ऑफ गुड होप आने से पहले हमें कुछ जंगली जानवर मिलते हैं पर वे फुर्ती से भाग जाते हैं| सड़क के किनारे ऑस्ट्रिच भी जोड़े में घूमते हुए दिख जाते हैं जिन्हें हमने कांगो वैली में देख ही लिया था, पश्चिमी तट के अंतिम बिंदु या कह सकते हैं दुनिया के आखिरी छोर पर बस हम पहुँचने ही वाले हैं और सड़क पर समुद्र तट के पास कुछ झाड़ियों के बीच से एक बारहसिंगे जैसा कोई जानवर जोड़े से घूमता हुआ दिखाई देता है, ड्राइवर गाड़ी रोक कर दिखाता है| मैं लगभग चीखते हुए कहती हूँ वो देखो उसका प्यारा सा छोना?

वह छोना अभी नवजात सा बच्चा है, कोमल मुलायम बस एक बार छूने का मन होता है, पर जानती हूँ कि नवजात को कोई नहीं छू सकता उसकी माँ क्रोध में पगला जाती है| हमें देखकर वे तीनों झाड़ियों के पीछे चले जाते हैं| गाइड कहता है बस अब आप दुनिया के आखिरी कोने पर पहुँचने ही वाले हैं, यहीं से पुर्तगालियों ने भारत को खोजा था| १४८६ पुर्तगाली नाविक बर्थोलोमेव डियाज ने सबसे पहले केप टाउन का वर्णन किया और फिर वास्को डि गामा की भारत एक खोज में यह जगह अपना सबसे महत्वपूर्ण योगदान दर्ज करवा चुकी है| हम यहाँ बफेलो-फानस्टिन विजिटर्स सेंटर के कैफे में रुकते हैं| बेहतरीन कॉफी और वेजीटेरियन सेंडविच लेते हैं| कुछ चॉकलेट बार भी खरीदे| वहाँ अफ्रीका का एक खास फूल प्रिटोरिया की कुछ जंगली किस्में भी झाड़ियों में उगी हुई देखी| केप पॉइंट से कुछ दूरी पर हमने दो व्हेल को देखा, वहाँ पर पानी फेनिल हो रहा था| यहाँ भूरे पीले विशाल आकृति के पत्थरों पर समुद्र कुछ इस तरह पछाड़े खा रहा था जैसे पछता रहा हो पुर्तगालियों को भारत का रास्त्ता बता कर और तब से अब तक पश्चाताप कर रहा हो| कई साल पहले पुर्तगाली अन्वेषक वास्को डि गामा ने भारत की खोज की थी। वे केप ऑफ गुड होप (अफ्रीका) से होते हुए हिन्द महासागर के रास्ते से भारत में केरल राज्य के कालीकट बंदरगाह पहुँचे थे। इसके बाद कालीकट पर पुर्तगालियों के बढ़ते हमलों के कारण मसालों का कारोबार बनाए रखने की संधि हुई थी। यह स्थान केप ऑफ गुड होप टाउन कैसल में मुख्य रेलवे स्टेशन के पास है। जनवरी १६६६ में डच द्वारा बनाया गया यहाँ एक किला है जो पूरी तरह से संरक्षित है| इस किले का उपयोग ईस्ट इंडीज कंपनी द्वारा मसाले के व्यापार की रक्षा के लिए किया जाता रहा है|

केप ऑफ गुड होप के पत्थरों पर ऊँचाई तक चढ़ कर पानी के पश्चाताप को देखना एक अलग अनुभूति थी| हो सकता है हिन्द महासागर और अंध महासागर मिलन की खुशियाँ मनाते हुए यहाँ झूम रहे हों, फिर मुझे लगा कि नहीं-नहीं, समंदर अपने जल से धरती माँ के पाँव पखार रहा है, यही विचार मुझे सत्य के ज्यादा निकट लगा| यहाँ से हम नेशनल पार्क गए नेशनल पार्क के शिखर तक जाने के लिए पैदल भी चढ़ सकते हैं और एक छोटी सी ट्रेन भी जाती है, हम उस खिलौना ट्रेन से जाते हैं| यही है वह केप पाइंट जहाँ का अनोखा व्यू यहाँ से दिखाई देता है एक तरफ हिंदुस्तान के नाम पर हिन्द महासागर और केप पॉइंट के दूसरी तरफ अटलान्टिक महासागर| हम यहाँ ऊपर एक और जगह तक जाते हैं, यहाँ समुद्र मार्ग के लिए प्रकाश स्तम्भ (लाइट हाउस) बना हुआ है और एक पिलर पर तमाम देशों से इस स्थान की दूरी और दिशा बताती फ्लैग पट्टी लगी है| नयी दिल्ली ९,२९६ किलोमीटर लिखा हुआ है|

रास्ते में हमने कांगो वैली देखी थी, इस कांगो वैली में दुनिया की सबसे बड़ी ऑस्ट्रिच फार्म है जहां पर ऑस्ट्रिच पाले जाते हैं| टूरिस्ट द्वारा यहाँ पर ऑस्ट्रिच को खाना भी खिलाया जा सकता है और इनके साथ फोटो भी क्लिक की जा सकती है। इसके साथ ही यहाँ पर आस्ट्रिच राइड (सवारी) ली जा सकती है, पर यात्रा में समय सबसे प्रमुख होता है और एक लक्ष्य का निर्धारण हमें यात्रा को पूर्णता देने में मदद करता है|

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रास्ते के कई स्थान हम बस देख पाते हैं वहाँ रुक कर उन्हें जी नहीं पाते| लुरे केव्स अमेरिका के वर्जीनिया में है जो पहले ही देख रखी थी लगभग वैसी ही यहाँ कांगों केव्स हैं जहाँ लाखों साल पुरानी केव्स में से एक केव्स है जिन्हें १७८० में डिस्कवर किया गया था, आज यह फेमस टूरिस्ट स्पॉट है। यहाँ थोड़ी ज्यादा ह्यूमिडिटी के कारण रॉक फॉर्मेशन होता है जिसे देखने लोग आते हैं। रॉक की कलाकृतियों सा प्राकृतिक निर्माण देख आश्चर्यचकित रह जाते हैं|

केप ऑफ गुड होप के पीले पत्थरों पर हम कुछ देर बैठते हैं तो समुद्र के कुछ छींटे हम पर भी पड़ते हैं जब लहरें पत्थरों से टक्कर लेती है और पत्थरों को भी अपने निशान दे जाती हैं| हम उन पहाड़ी पत्थरों पर एक निश्चित ऊँचाई तक कई बार चढ़ते उतरते हैं, मन बच्चों की तरह आनंदित होता है| शायद यह पत्थर पानी में बरसों बरस से नहीं बल्कि सदियों से इसी तरह जमे हैं| सोचती हूँ ये कौनसी प्राकृतिक सीमेंट है जो इन्हें दीवार की तरह जोड़े हुए है, हम बैठते हैं थोड़ी देर इस बिंदु पर जो दुनिया का अंतिम छोर है जहाँ दूर कोई पंछी उड़ता है पंख फैलाए, सोचता है मन क्या प्राण पखेरू भी जीवन के अंतिम छोर  से ऐसे ही पंख फैलाए निकल जाता होगा किसी दूसरी दुनिया के लिए, विचार उदासी लाता है मैं दो पत्थरों के बीच से पानी को चुल्लू [अंजुरी] में भरती हूँ और अपने चेहरे पर पानी डाल लेती हूँ| ठंडा जल विचार को धो देता है मैं एकदम तरोताजा हो जाती हूँ सोचती हूँ अंजुरी भर जल का महत्त्व कितना है, कितनी स्फूर्ति है जल में| ऊर्जा का अखंड स्त्रोत तो जल भी है न सूर्य देवता! यहीं पत्थर पर से फिर एक अंजुरी जल उठा सूर्य को अर्पित करते हुए संसार के कल्याण की प्रार्थना करती हूँ फिर एक अंजुरी जल छोड़ देती हूँ उस महासागर में अपने पितरों के नाम उन्हें अर्पण करती हूँ और अंत में मन कहता है एक तर्पण वास्को डि गामा का भी कर लेती हूँ, फिर जल उठाती हूँ| हे परम पिता परमेश्वर! दुनिया को भारत से मिलवाने वाले उस जाँबाज़ घुमक्कड़, दुनिया के सबसे महान पर्यटक-अन्वेषक-पुर्तगाली खोजकर्ता के लिए मेरा यह तर्पण स्वीकार हो, उनकी यह खोज युग की सबसे बड़ी खोज थी| उन्होंने क्या किया इससे भी महत्वपूर्ण है निर्भीक होकर कोई यात्रा पूर्ण करना, ख्यालों में चल रही थी दार्शनिकता जो कहती है कि उपयुक्त यात्री होना अपनी अपेक्षित योग्यताओं पर निर्भर हैं और यात्राएँ तो अपरिमित हैं| यात्री को वास्को डि गामा की तरह उदार तो होना चाहिए साथ ही उसे दुनियादारी के साथ साथ चतुर भी होना चाहिए| यात्री को वास्को की तरह जिज्ञासु-ज्ञानपिपासु अवलोकन क्षमता से भरा होना चाहिए जिसकी आँखें कैमरे की तरह और मस्तिष्क कंप्यूटर की मेमोरी जैसा होना चाहिए| कहते हैं कि यात्री को किसी जुनूनी-सनकी प्रेमी जैसा होना चाहिए, और धैर्यवान भी होना चाहिए जो रास्ते की कथाओं को सुने समझे और याद रखे और जब लौटकर आये तो पूरी क्षमता से कथा सुनाये, इसलिए ही वास्को डि गामा, तुम सबसे अलग लगते हो———————अपनी ही आस्था पर, अपने ही तर्क पर मुस्कुराते हुए दोनों समुद्र को हाथ जोड़ प्रमाण करती हूँ| हमारे देश में तो समुद्र को देवता कहा जाता है———-हम निकलते हैं इस पत्थरों के आसपास से, जाना है हमें आनेवाले रास्ते के ठीक विपरीत पहाड़ों के दूसरी तरफ से, समझ लीजिये हम परिक्रमा ही करते हैं  इस पर्वत श्रृंखला की| हमें पेंगविन बस्ती देखनी है, मैं जिज्ञासा से पूछती हूँ वो तो अंटार्टिका में रहते हैं ना? गाइड कहता है कि हम चल रहे हैं सायमन टाउन| हम छोड़ देते हैं केप पॉइंट, पर ले आते है वास्को डि गामा की यात्रा का इतिहास, उसकी सनक| रास्ते भर सोचती हूँ विश्व हिंदी सम्मलेन का धन्यवाद, कि मैं उस बिंदु को छू आई जहाँ उस सफल यात्री की स्थिरता, क्षमता, साहस, रोमांच, दुनिया घूमने की ख्वाइश की बूँदें झरी थी| ऊर्जा का कोई स्त्रोत उसके पसीने की बूँदें बन कर यहीं कहीं गिरा था| सायमन टाउन का रास्ता पहाड़ पर चढ़ाईदार, घुमावदार रास्ता है जिसके दूसरी तरफ है समुद्र का दूसरा हिस्सा| ठंडी हवाओं ने थोड़ा सा ठिठुरा दिया, हमें सायमन टाउन के रास्ते में अफ्रीका का प्राकृतिक सौंदर्य मन को मोहता है| मन के किसी कोने में अभी केप वर्डे द्वीप मन में विस्तृत हो रहा है, दुनिया का अनछुआ सा कोई कोना अब भी तो शेष हो सकता है जहाँ अभी किसी वास्को, किसी कोलंबस, किसी इब्नबतूता को अपना जूता पहन पहुँचना बाकी है, जिसे अभी कई समुद्र, उनकी गहराई के साथ ढेरों रोमांचों को नापना है| जिन्हें सिर्फ यात्रा नहीं करनी उन तमाम लोगों की तरह जो जाकर लौट आते हैं, उन्हें तो अभी कई आकस्मिक रहस्यों को देखना है| जमीन से लेकर आकाश, पाताल, समंदर, पहाड़ों-दर्रों, दरियाओं, नदियों-हवाओं में जाने कहाँ कहाँ ख़ाक छाननी है, वे ही तो कहलाएँगे अरे यायावर! ओ रे घुमक्कड़! जाग मुसाफिर! चल एक बार फिर रहगुजर! थके पथिक उठ चल! इन्हीं में तो मैं देख सकूँगी स्थिरता और आश्चर्यों का अवलोकित मिश्रण|

साइमन टाउन की सड़क पक्की है, कार सरपट दौड़ रही है सड़क के दोनों ओर देखती हूँ तिवारीजी आँखें बंद किए अपनी दुनिया में हैं पर मैं यात्रा में सोती नहीं क्योंकि कुछ सबक लेने होते हैं पहाड़ों से, वृक्षों से, नदी से, जंगल से, सड़क से, बस्तियों से| अभी अभी मैं कॉटेज देख कर आई थी अब पक्के घर हैं सोचती हूँ यही तो बदलाव हुआ ना घर-दुकानें-कपड़े सड़क सभी चीजें कितनी अस्थायी और क्षेत्रीय होती हैं और हम इन्हें वैश्विक मानने लगते हैं, ये समय के साथ बदलती हैं| यात्रा मुझे समझाती है वैश्विक युग की घटती सीमाओं के बावजूद चीजें बदलती हैं सब कुछ एक सा एक जगह संभव नहीं———-गाइड हमें अलर्ट करता है कि सावधानी से चलना है, यहाँ कोई जानवर गाड़ी के सामने आ सकता है, जुर्माना बड़ा है यहाँ वाइल्ड लाइफ के किसी नुकसान पर, केप एरिया पूरा का पूरा संरक्षित नेशनल पार्क है, हमें लोमड़ी जैसा कोई जानवर थोड़ी दूरी पर दिखता है|

हम समन्दर की बगल से यात्रा कर रहे हैं, मेरे अन्दर अभी अभी पूर्वाभास के पंख निकल आते हैं| मैं कल्पना करती हूँ, पेंग्विन मेरे कंधे पर आ बैठा है मेरी जिद है इसे अपने साथ ले जाने की—पर कैसे? मैं बन जाती हूँ पंखों वाली यात्री मन पहुँच चुका है पेंग्विन के पास, एक फिल्म देखी थी कभी अमिताभ बच्चन जी की आवाज में, पेंग्विन का जीवन उसी में देखा था, पेंग्विन अमेरिका के एक्वेरियम ऑफ बोस्टन में भी देखे हैं पहले, पर प्रकृति में देखना ही देखना होता है, दूर तक टूरिस्ट गाड़ियाँ पार्क हैं बड़ी तादाद में लोग यहाँ मौजूद हैं, रुकी कार के टायर के नीचे एक पेंग्विन जोड़ा छुपा हुआ दिखता है|

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सायमन शहर आर्मी या नेवी का इलाका है शायद कोस्टल नेवी का उन्हीं की यह कॉलोनी है, यहीं से समुद्र तट पर जाते हैं पैदल, ठण्ड खूब है, धूप खिली हुई है फिर भी शॉल ओढ़नी जरुरी लग रही है| हवाओं का शोर बहुत है सामने रेत में मिट्टी की छोटी कोठियों से कुछ घोंसले हैं जहाँ बैठे हैं कुछ पेंग्विन| रेत में पगडण्डी सी बन रही है एक पाँच सात पेंग्विन पानी की तरफ जा रहे हैं अपने निशान छोड़ते हुए|

हम भी उतरते हैं लकड़ी की पट्टियों से बने रास्ते पर, छोटे ही सही पर प्यारे पेंग्विन पक्षियों से मिलने| यही है ‘पेंग्विन आयलैंड’। ओहो कैसा झुंड है इनका? यहाँ सब के सब रिश्तेदार लगते हैं, अकेला कोई नहीं रहता जोड़ीदार के साथ ही निकलते हैं| पानी और रेत के बीच झाड़ियों में कुछ खानदान एक साथ बैठे हैं, कुछ किसी आड़ में प्यार में मशगुल हैं वे हमें आश्चर्य से देखते हैं जैसे कह रहे हों क्या देखते हो भाई? हमारा अपना निजी संसार है, तमाशा थोड़ी हैं हम? पर पर्यटक आते जा रहे हैं छोटे बच्चों के साथ भी उन्हें दिखाने| नन्हे-नन्हे बच्चों से पेंग्विन कहते हैं कि शुरू में एक पेंग्विन की जोड़ी तैरती हुई यहाँ आ पहुँची। यहाँ रहने लगे तो अपने बर्फ वाले देश में लौटना शायद भूल गए। यहीं के मौसम को अपना लिया, यहीं की आदत डाल ली| देखते-देखते अब बड़ी संख्या में ये पक्षी यहाँ मौजूद हैं। मूल पेंग्विन से यहाँ के पक्षी ज़रा छोटे दिखते हैं लेकिन पेंग्विन तो पेंग्विन हैं यहाँ इन्हें ब्लेक फुटेड पेंग्विन यानी काले पैरों वाले पेंग्विन कहा जाता है| ये भी वैसे ही हैं है काले सफ़ेद चमकदार, धूमिल काले रेशमी पंखों वाले मनुष्य की तरह चलने वाले रौबदार चाल है उनकी, ठुमक ठुमक मस्ती से कभी पानी में तो कभी रेत में आवाजाही करते हुए रहते हैं| हम वापस आते हैं एक लाल कबूतर मेरी कार के नीचे बैठा है सामने वाली कार का दरवाजा खुला था एक पेंग्विन जोड़ा उसमें झाँक रहा था| शर्मीले पक्षी जिनसे नज़र हटाने को दिल नहीं करता। साइमन शहर एक बड़े बंदरगाह जैसा है कई नेवी के जहाज इसकी सुन्दरता को बढ़ा देते हैं| यह शहर एक पहाड़ के नीचे उसकी तलहटी में है| यहाँ लिकर बहुत अच्छी मिलती है हम थोड़ी से कॉफ़ी के साथ मफेन और सेंडविच लेते हैं चाय नहीं मिली यहाँ| सड़क से नीचे समुद्र किनारे लोग धूप में स्नान करते हुए बैठे हैं, पानी किनारे पर उथला दिख रहा है, चढ़ाईदार रास्ता है पर बस्ती सुन्दर है लौटते समय वनस्पति उद्यान में गए। इन बगीचों के आकर्षण से हम अपने आप को बचा नहीं पाए। पहाड़ों के समीप बनाया हुआ यह बगीचा मनमोहक और प्राकृतिक दृश्य में बेमिसाल है। सूरज ढलने लगा था, पहाड़ी पर अँधेरा सा होने लगा, सूरज की किरणें पहाड़ों से टकराकर गहरी झाड़ियों से छन-छन कर वहाँ की हरियाली पर चमक रही थीं। ऐसा लुभावना दृश्य जिसे शब्दों में बयान करना बड़ा मुश्किल है। कहीं धूप कहीं छाँव, स्वर्णिम, मनमोहक, कितना रमणीय| फिश हॉक भी एक डच बस्ती है समुद्र के किनारे मछुआरों का एक गाँव| पुलाव राजमा फ्रिज बॉक्स में थोड़ा सा है मैं निकालती हूँ गाइड से फॉर्मेलिटी करते हुए पूछती हूँ—वो पेट पर हाथ घुमाता है कहता है इण्डियन मसाले,नहीं पेट में जलन होती है| मैं हिंदी में बोलती हूँ पुर्तगाली हमारे मसालों पर ही तो फ़िदा हुए थे| दिनभर के थके हारे लौट आते हैं केप टाउन एक बार फिर रात को वॉटरफ्रंट पर बैठ गुजराती भोजन और रेड वाइन का मज़ा लेने के बाद अगले दिन सुबह बफेलो वाइल्ड लाइफ सफारी के लिए पाँच बजे सवेरे जागना है, होटल में इन्टरनेट चालू है बच्चों को आज के फोटो भेजती हूँ, कुछ दोस्तों को भी फोन आने शुरू हो जाते हैं———–रात का दूसरा पहर शुरू होने वाला है और नेट बंद सो जाना जरुरी है|