सीज़फायर, पाकिस्तान और भारत का संकल्प: विवेक से वीरता की ओर, क्या पाकिस्तान इस बार युद्धविराम का सम्मान करेगा? इतिहास उठाकर देखिए—उत्तर स्पष्ट है: नहीं।

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सीज़फायर, पाकिस्तान और भारत का संकल्प: विवेक से वीरता की ओर, क्या पाकिस्तान इस बार युद्धविराम का सम्मान करेगा? इतिहास उठाकर देखिए—उत्तर स्पष्ट है: नहीं।

आशीष जोशी की खास रिपोर्ट

सीज़फायर, पाकिस्तान और भारत का संकल्प: विवेक से वीरता की ओर, क्या पाकिस्तान इस बार युद्धविराम का सम्मान करेगा? इतिहास उठाकर देखिए—उत्तर स्पष्ट है: नहीं।

 

पाकिस्तान की फ़ितरत ही यही रही है—बात एक, हरकत दूसरी।

भारत-पाक युद्धविराम की घोषणा होते ही जम्मू कश्मीर से राजस्थान तक पाकिस्तानी ड्रोन और गोलियों की बौछार यह साबित कर चुकी है कि पाकिस्तान की सरकार कुछ और कहती है और सेना कुछ और करती है।

दरअसल, पाकिस्तान में ‘लोकतंत्र’ सिर्फ एक दिखावा है।

ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो से लेकर इमरान ख़ान तक, और अब शहबाज़ शरीफ़—हर चुनी हुई सरकार को सेना ने या तो कमजोर किया या किनारे लगाया।

आज का युद्धविराम एक और सैन्य तख़्तापलट की भूमिका जैसा प्रतीत होता है।

तो क्या भारत को युद्धविराम स्वीकार करना चाहिए था?

आपका असहज होना स्वाभाविक है।

7 मई को जब हमारी सेनाओं ने आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया, हम सभी गर्व से भर उठे थे।

लेकिन जैसे ही पाकिस्तान ने नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाया और हमने पलटवार किया—राष्ट्रमन में एक स्वर उठा: अब तो निर्णायक युद्ध होना चाहिए।

 

किन्तु यहीं भावनाओं से आगे बढ़कर रणनीति और राष्ट्रनीति का संतुलन आवश्यक हो जाता है।

 

क्या पाकिस्तान से युद्ध इतना सरल होता?

नहीं—क्योंकि वह न केवल परमाणु शक्ति संपन्न है,

बल्कि एक अस्थिर और कट्टरपंथी राज्य भी है,

जिसकी हर गलती की कीमत हम केवल सीमाओं पर नहीं,

बल्कि अपने गांवों, शहरों, और घरों में चुका सकते हैं।

 

युद्ध में केवल शत्रु ही नहीं जलता—अपने भी झुलसते हैं।

शहीदों की विधवाएं, रोते हुए बच्चे, डगमगाती अर्थव्यवस्था—युद्ध की यही अनकही सच्चाइयाँ हैं।

 

भारत जैसे राष्ट्र के लिए, जो आत्मनिर्भरता, वैश्विक नेतृत्व और तकनीकी उत्कर्ष की राह पर है, युद्ध प्रगति को रोकने वाली राख बन सकता है।

तो क्या युद्धविराम पराजय है?

नहीं—यह परिपक्वता है, और दूरदृष्टि भी।

हो सकता है अमेरिका जैसे देश इसका श्रेय लें,

लेकिन सच्चाई यह है कि भारत ने एक बार फिर साबित किया है:

हम शांति के पक्षधर हैं, पर कमज़ोर नहीं।

हमने दिखा दिया—हम जवाब देना जानते हैं, पर जवाबदेही से भी नहीं भागते।

 

भारत का संदेश स्पष्ट है:

हम शांति चाहते हैं—but never at the cost of our sovereignty.

हम क्षमा कर सकते हैं—but we never forget.

और जब कोई भारत माता की ओर आंख उठाता है,

तो यह राष्ट्र केवल प्रतिकार नहीं करता—प्रचंड प्रतिशोध बनकर खड़ा होता है।

यह नया भारत है:

• भावनाओं में बहता नहीं, पर अपमान सहता भी नहीं।

• सहनशील है, लेकिन सजग भी।

• विवेक से चलता है, और जब चलता है—तो इतिहास बदल देता है।

जय हिंद!

भारत माता की जय!