
ऋतंभरा, अनिरुद्धाचार्य, प्रेमानंद महाराज की टिप्पणियां- महिलाओं पर विवादित बयान या समाज का आईना..?
डॉ. बिट्टो जोशी की विशेष रिपोर्ट
समाज की गति और विचारधारा में बदलाव के दौर में धार्मिक और सांस्कृतिक मंचों से उठती आवाजें कभी-कभी विवाद, बहस और आत्ममंथन का कारण बन जाती हैं। हाल ही में साध्वी ऋतंभरा, अनिरुद्धाचार्य और प्रेमानंद जी महाराज के महिलाओं से जुड़े बयानों ने देशभर में संवाद की लहर पैदा कर दी है। जहां इन पर आलोचना और विरोध हुआ, वहीं समाज के एक हिस्से ने इन्हें चेतावनी और सांस्कृतिक सतर्कता के रूप में भी देखा। आज की महिला जहां आधुनिकता, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है, वहीं ऐसी आवाज़ें परंपरा, संस्कृति और मर्यादा का महत्व भी याद दिला रही हैं।
साध्वी ऋतंभरा ने हाल ही में एक कार्यक्रम में महिलाओं द्वारा सोशल मीडिया पर रील्स बनाने को लेकर कहा- “लड़कियां पैसा कमाने के लिए कैसे-कैसे गंदे काम कर रही हैं। पिता और पति यह सब कैसे बर्दाश्त करते हैं?” इस बयान से खासकर उन परिवारों, युवतियों और सोशल मीडिया यूजर्स के बीच हड़कंप मच गया, जहां डिजिटल प्लेटफार्म कमाई और पहचान के ज़रिए के रूप में तेजी से उभरा है।
इससे पहले अनिरुद्धाचार्य ने संस्कृति और मर्यादा को केंद्र में रखते हुए कहा था- “पश्चिम की नकल और बेशर्म आज़ादी के नाम पर लड़कियां सीमा लांघ रही हैं।” जबकि श्री प्रेमानंद जी महाराज ने कहा, “रील और फिल्मों की वजह से महिलाओं की शालीनता, संस्कृति और घर की गरिमा प्रभावित हो रही है।”
इन तीनों बयानों में पहली नजर में भले ही महिला स्वतंत्रता की आलोचना दिखती हो, लेकिन गहराई से देखें तो इनके पीछे समाज की भावी पीढ़ी को दिशावान, जिम्मेदार और मूल्यनिष्ठ बनाने की चिंता छिपी है। सोशल मीडिया पर बढ़ती अभिव्यक्ति, खुलेपन और कमाई के लिए किसी भी हद तक जाने की संस्कृति शायद कभी किसी कमजोर मन/परिवार के लिए समस्याओं की जड़ भी बन सकती है।
इन बयानों को एकतरफा महिला विरोधी या पिछड़ा नहीं कहा जा सकता, बल्कि ये समाज को सोच-समझकर चलने की सीख भी हैं- कि डिजिटल आज़ादी के साथ जिम्मेदारी और मर्यादा का संतुलन बेहद आवश्यक है।
आधुनिक सोच और बदलाव की ज़रूरत:
आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं- वैज्ञानिक, डॉक्टर, बिज़नेस लीडर, आर्मी ऑफिसर, स्टार्टअप फाउंडर। सोशल मीडिया से भी करोड़ों युवतियां शिक्षा, करियर, स्वावलंबन और नवाचार से, संस्कृति के संरक्षण के अभियान भी चला रही हैं। यह सकारात्मकता चाहिए, लेकिन लाइमलाइट, वायरलिटी या पैसा कमाने के नाम पर अगर मूल्यों से समझौता होता है, तो यह सिर्फ महिला नहीं, पूरे समाज की चुनौति बन जाता है।

“प्रमुख बातें”-
1- ऋतंभरा, अनिरुद्धाचार्य और प्रेमानंद महाराज के बयानों से डिजिटल स्वतंत्रता और संस्कारों पर बहस तेज।
2- सोशल मीडिया की आज़ादी के साथ बढ़ती फर्जी, भद्दी या भटकाती सामग्री पर चिन्ता।
3- महिला स्वतंत्रता या समाज-संस्कार दोनों का संतुलन हर परिवार के लिए ज़रूरी।
4- ऐसे बयान महिला विरोधी नहीं, बल्कि संस्कृति, जिम्मेदारी और जागरूकता के संकेतक भी माने जा सकते हैं।
5- बदलते समय में महिलाओं को स्वावलंबी और मॉडर्न बनना है लेकिन अपनी अस्मिता, आत्मसम्मान और परिवार के संस्कारों को भी सहेजना है।
6- समाज और परिवार को भी नई पीढ़ी को सकारात्मक दिशा, प्रेरणा और सपोर्ट देना चाहिए।

“समाज को संदेश”-
इस बदलते वक्त में समाज के लिए सबसे बड़ी ज़रूरत यही है कि विवादित बयानों को सिर्फ बहस या रोक-टोक तक सीमित रखने के बजाय उन्हें विचार, संवाद और संतुलन की दिशा में इस्तेमाल किया जाए। हर बेटी की आज़ादी, उसकी उड़ान और उपलब्धि उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी उसके संस्कार, मान-सम्मान और परिवार की मर्यादा, क्योंकि असली तरक्की वहीं है जहां लड़की सपनों की ऊंची उड़ान भर सके, पर अपनी जड़ों को न छोड़े। समाज की प्रगति तब ही सुनिश्चित है जब परिवार आलोचना, डर या अनावश्यक पाबंदियों से ऊपर उठकर बेटियों को समझाए, उनका मनोबल बढ़ाए, उन्हें सशक्त बनाए, और साथ ही उन्हें सही-गलत की पहचान और आगे बढ़ने की स्पष्ट दिशा दे। ऐसे संवाद और खुले विचार ही समाज को जागरूक बनाते हैं और नई पीढ़ियों के लिए जिम्मेदारी, आत्मबल तथा मूल्यों की मजबूत नींव तैयार करते हैं—ताकि हर युवती उड़ते हुए अपने परिवार, समाज और पूरे देश का गौरव भी बढ़ा सके और अपनी पहचान को भी सलामत रखे।
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