कांग्रेस का अतीत ही अध्यक्ष के चुनाव में बड़ी परेशानी!

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कांग्रेस का अतीत ही अध्यक्ष के चुनाव में बड़ी परेशानी!

कांग्रेस का भविष्य क्या है! इस सवाल का जवाब आज किसी के पास नहीं है! यहां तक कि उनके पास भी पार्टी के भविष्य को लेकर कोई ठोस योजना नहीं है, जिनके हाथ में इसकी कमान है! जानकारों की इस बात में भी दम है कि कांग्रेस का सबसे बड़ा बोझ उसका अतीत है। पार्टी लंबे समय तक वैभवशाली और रसूखदार पार्टी रही है। यही कारण है कि अब उसके लिए वर्तमान की हकीकतों और भविष्य की संभावनाओं को स्वीकारना मुश्किल है। पार्टी का भविष्य, उसकी ताकत, उसकी कमजोरी के अलावा उसे मिलने वाले अवसर सीमित है। कांग्रेस के बीते एक दशक में कोई बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की, बल्कि खोया ज्यादा है। अब उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती तो पार्टी को एकजुट करने की ही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बहाने पार्टी को एक बड़ी अग्निपरीक्षा से गुजरना है! अब जिसके हाथ में पार्टी की कमान होगी, वो इस 136 साल पुरानी को कब तक जिंदा रख पाता है ये देखना है।

सवा सौ साल से ज्यादा पुरानी कांग्रेस इन दिनों संक्रमण काल से गुजर रही है। कई बड़े नेता नाराज होकर पार्टी छोड़ रहे हैं तो कुछ नेता इतने मुखर हो गए कि अब सामने आकर बयानबाजी करने से भी संकोच नहीं कर रहे! जबकि, अभी तक कांग्रेस में नेतृत्व का खुलकर विरोध कम ही हुआ। उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी में खदबदाहट कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रही। ऐसे में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की हलचल ने गुटबाजी का संक्रमण ज्यादा ज्यादा ही बढ़ा दिया। असंतुष्टों की एक जमात लम्बे समय से ग्रुप-23 बनाकर अपनी नाराजी जाहिर कर रही थी, अब ये दरककर बाहर जाने लगे। गुलाम नबी आजाद इसका ताजा उदाहरण है जो बाड़ा कूदकर निकल गए और आनंद शर्मा ने अपनी नाराजी जाहिर कर दी। उभरे असंतोष का लब्बोलुआब यह है कि पार्टी का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष न तो गांधी परिवार से हो और न उनका कोई ख़ास, जो उनके कहे से चले!

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कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अगर गांधी परिवार से अलग कोई कांग्रेस की कमान संभालता है, तो पार्टी में फूट पड़ने की आशंका ज्यादा है। पार्टी में अभी काफी गुट बन चुके हैं, ये गुट केवल गांधी परिवार के चलते ही एकजुट हो पाते हैं। अगर गांधी परिवार ने पार्टी की बागडोर छोड़ी, तो इनका विद्रोह तेज हो जाएगा। पार्टी के भविष्य के लिए यह एक तरह से खतरा है। जबकि, पार्टी के एक अन्य राष्ट्रीय स्तर के नेता का कहना है कि पार्टी पर परिवारवाद का आरोप लगता है। ऐसी स्थिति में किसी ऐसे चेहरे को यह जिम्मेदारी देना जरुरी है जो नेहरु-गांधी परिवार का विश्ववसनीय हो। लगता है मल्लिकार्जुन खड़गे पर आकर ते तलाश ख़त्म हो गई।

कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सही व्यक्ति की तलाश में कई चेहरे उजागर हुए! सबसे ज्यादा छीछालेदर हुई राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत की, जिन्हें गांधी परिवार के सबसे नजदीक समझा जाता था। उनसे मुख्यमंत्री पद नहीं छूटा, पर उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का मोह त्यागना पड़ा। फिर दिग्विजय सिंह सामने आए, पर कुछ ही घंटों में वे भी नेपथ्य में चले गए। इसके बाद मल्लिकार्जुन खड़गे अचानक सामने आए और पांसा पलट गया! क्योंकि, उनका नाम फ़ाइनल होने के साथ ही ये कयास सही साबित हुए कि गांधी परिवार से अलग जो भी पार्टी का अध्यक्ष होगा, वो गांधी परिवार का नजदीकी नेता ही होगा! यानी पार्टी में लोकतंत्र महज एक दिखावा ही है।

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राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के करीबी हैं। वे कर्नाटक से आते हैं और अगले साल कर्नाटक में भी चुनाव होने हैं। मल्लिकार्जुन यदि पार्टी अध्यक्ष बनते हैं, तो कांग्रेस दक्षिण के राज्यों पर फोकस कर सकती है। लेकिन, इससे उत्तर भारत के मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के कमजोर होने का खतरा है।

ऐसे माहौल में यह भी सोचा जा रहा था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव औपचारिक होगा। गांधी परिवार से मुक्त होने के बाद कांग्रेस उनके ही किसी व्यक्ति को कमान सौंप देगी। लेकिन, ये आशंका गलत निकली। पहले समझा जा रहा है कि जी-23 का कोई नेता चुनाव लड़ सकता है, पर वे साहस नहीं कर सके। लेकिन, ये तय है कि वे शशि थरूर के पीछे खड़े हैं। थरूर ने मलयालम दैनिक अखबार ‘मातृभूमि’ में एक लेख लिखकर ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ चुनाव कराने का आह्वान किया था।

यदि ये कहा जाए कि ये चुनाव शशि थरूर के आवाज उठाने की वजह से ही हो रहे हैं, तो गलत नहीं होगा। शशि थरूर ने ही 2020 में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर संगठनात्मक सुधारों की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रतिनिधि सदस्यों को यह फैसला लेने दें कि इन अहम पदों पर पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा! इससे आने वाले नेताओं के समूह को वैध बनाने और पार्टी का नेतृत्व करने के लिए उन्हें विश्वसनीय जनादेश देने में मदद मिलेगी। तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने तब यह भी लिखा था कि फिर भी एक नए अध्यक्ष का चुनाव करना पुनरुद्धार की और एक शुरुआत है, जिसकी कांग्रेस को सख्त जरूरत है। मैं उम्मीद करता हूं कि चुनाव के लिए कई उम्मीदवार सामने आएंगे। पार्टी और देश के लिए अपने विचारों को सामने रखना निश्चित तौर पर जनहित को जगाएगा।

अब शशि थरूर का कहना है कि अब की स्थिति में पार्टी को पूरी तरह से पुनर्जीवित करने की जरूरत है। लेकिन, नेतृत्व के जिस पद को तत्काल भरने की जरूरत है वह स्वाभाविक रूप से कांग्रेस अध्यक्ष का पद है। थरूर ने कहा कि चुनाव के दूसरे लाभ भी होते हैं। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए, हमने हाल ही में नेतृत्व की दौड़ के लिए ब्रिटिश कंजरवेटिव पार्टी में कई लोगों की रुचि देखी। इसी तरह के बदलाव की जरूरत कांग्रेस को भी है। इससे पार्टी को लेकर नेशनल इंट्रेस्ट बढ़ेगा और बड़ी संख्या में मतदाता भी पार्टी को आकर्षित होंगे। इसी वजह से मैं चाहता हूं कि पार्टी के भीतर कई नेता इसके लिए आगे आएं। पार्टी के लिए अपने विजन को सामने रखें। इससे पब्लिक इंटरेस्ट जरूर पैदा होगा।

कांग्रेस की स्थापना से अब तक
28 दिसंबर 1885 को थियोसोफिकल सोसायटी के प्रमुख सदस्य रहे एओ ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना की थी। स्थापना के वक्त ह्यूम के साथ 72 और सदस्य थे। पार्टी के गठन के बाद ह्यूम संस्थापक महासचिव बने और वोमेश चंद्र बनर्जी को पार्टी का पहला अध्यक्ष नियुक्त गया। इसके बाद से अब तक पार्टी को 56 अध्यक्ष मिल चुके हैं। सबसे ज्यादा 45 साल तक पार्टी की कमान नेहरु-गांधी परिवार के पास ही रही है।

नेहरु-गांधी परिवार का ज्यादा दखल
पति में 1885 से लेकर 1919 तक नेहरु-गांधी परिवार का ज्यादा दखल नहीं रहा। 1919 में कांग्रेस पार्टी के अमृतसर अधिवेशन में मोतीलाल नेहरु को नया अध्यक्ष चुना गया। 1928 में उन्हें कलकत्ता के अधिवेशन में फिर से पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया। इसके बाद 1929 में कांग्रेस की कमान मोती लाल नेहरु के बेटे पं जवाहर लाल नेहरू को मिल गई। लगातार दो साल उन्होंने कमान संभाली, फिर सरदार वल्लभ भाई पटेल को नया अध्यक्ष चुन लिया गया। 1936 और 1937 में जवाहर लाल नेहरु फिर से अध्यक्ष बनाए गए। देश की आजादी के बाद 1951 में फिर से कांग्रेस की कमान पं जवाहर लाल नेहरु को मिली। इस बार वो लगातार चार साल तक अध्यक्ष बने रहे।

इंदिरा गांधी की एंट्री
1959 में कांग्रेस में इंदिरा गांधी की एंट्री हुई और वह अध्यक्ष बनीं। 1960 में इंदिरा के हाथ से कांग्रेस की कमान नीलम संजीव रेड्डी के पास चली गई। 1978 से 1983 तक फिर से इंदिरा अध्यक्ष रहीं। 1985 में कांग्रेस की कमान राजीव गांधी को मिली और छह साल तक उन्होंने कुर्सी संभाली। 1998 में सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद 2017 तक वह 19 साल तक पार्टी की टॉप लीडर बनी रहीं। 2017 में सोनिया ने बेटे राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंप दी। हालांकि कई राज्यों और लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद राहुल ने 2019 में अध्यक्ष पद छोड़ दिया। तब से सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं।