जब से फ़िल्में बनाना शुरू हुई, कुछ सामाजिक विषय इतने लोकप्रिय रहे कि उन्हें हर दौर में दर्शकों ने पसंद किया। इनमें एक है शिक्षक और छात्र का रिश्ता। ये जीवन के मोड़ से जुड़ा ऐसा संबंध होता है, जो भविष्य तय करता है। व्यक्ति के जीवन में माता-पिता के बाद यदि सबसे ज्यादा प्रभाव किसी का होता है, तो वह निश्चित रूप से शिक्षक है, जो माता-पिता की ही तरह निस्वार्थ भाव से अपने छात्रों को जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की राह दिखाता है। ऐसी कई फ़िल्में हैं, जिनमें छात्र और शिक्षक के बीच या तो बहुत जुड़ाव बताया गया या तनाव! इस रिश्ते में कई उतार-चढाव भी आते हैं, तनाव उत्पन्न होता है और ऐसे में शिक्षक का किरदार निभाने वाले अभिनेता को अपनी अभिनय प्रतिभा दिखाना होती है। क्योंकि, इस किरदार में न तो एक्शन होता है और न प्रेम की संवेदना व्यक्त करने का मौका मिलता है। कलाकार को सारी प्रतिभा छात्रों के प्रति शिक्षक के समर्पण के जरिए दिखाना होती है। ये बात अलग है, कि कभी ये भूमिका नाटकीय रूप में दिखाई दी, कभी गंभीरता के साथ कथानक का हिस्सा बनी।
1954 में प्रदर्शित फिल्म ‘जागृति’ में संभवतः सबसे पहले इस किरदार को पूरी संजीदगी के साथ निभाया गया था। फिल्म में अभि भट्टाचार्य ने शिक्षक की भूमिका निभाई थी। संगीतकार हेमंत कुमार के निर्देशन में कवि प्रदीप का रचा और उनका ही गाया गीत ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की’ बेहद लोकप्रिय हुआ था। इसके साल भर बाद 1955 में राजकपूर की फिल्म ‘श्री 420’ आई। वैसे तो प्रेम कथा थी, पर इसमें अभिनेत्री नरगिस ने ऐसी आदर्श शिक्षिका की भूमिका निभाई थी, जो बच्चों को सच्चाई का पाठ पढ़ाती है। फिल्म में उन पर फिल्माया गीत ‘इचक दाना बिचक दाना’ भी पसंद किया था। 1968 में आई फिल्म ‘पड़ोसन’ में अभिनेता महमूद संगीत शिक्षक की भूमिका में दिखाई दिए, जो सायरा बानो को संगीत सिखाते हैं। 1972 में आई गुलजार की फिल्म ‘परिचय’ में भी शिक्षक और छात्रों के बीच के बनते-बिगड़ते रिश्तों का खूबसूरत नजारा था। इसमें जितेन्द्र ऐसे शिक्षक की भूमिका में थे, जो सख्त अनुशासन वाले प्राण के घर में शैतान बच्चों को पढ़ाने बुलाए जाते हैं। लेकिन, बच्चे उन्हें परेशान कर देते हैं। इसके बावजूद जितेन्द्र हिम्मत नहीं हारते और सभी शरारती बच्चों को राह पर ले आते हैं। 1974 में आई फिल्म ‘इम्तिहान’ में कॉलेज के शिक्षक और छात्रों के बीच की राजनीति को दिखाया था। इसमें विनोद खन्ना ने प्रोफेसर की भूमिका निभाई, जो छात्रों को सीधे रास्ते पर चलने के लिए प्रेरणा देते हैं।
हिंदी सिनेमा के सर्वकालीन पसंदीदा अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी कई फिल्मों में शिक्षक की भूमिका निभाई। इनमें संजय लीला भंसाली की ‘ब्लैक’ उल्लेखनीय है। इस फिल्म में अमिताभ मानसिक रूप से विक्षिप्त एक लड़की को पढ़ाने के लिए बुलाए जाते हैं। ‘ब्लैक’ के अलावा अमिताभ ने चुपके चुपके, कस्मे वादे, और ‘दो और दो पांच’ जैसी फिल्मों में भी शिक्षक के किरदार निभाए। 2011 की फिल्म ‘आरक्षण’ में भी अमिताभ बच्चन शिक्षक ही बने थे। 1975 में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘चुपके चुपके’ में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र ने कॉलेज के शिक्षक की भूमिका निभाई। ये एक कॉमेडी फिल्म थी, जिसमें इन कलाकारों ने अपनी एक्शन छवि से निकलकर शिक्षक का किरदार निभाया था। फिल्म का कथानक बेहद रोचक था, जिसे इस कलाकारों ने पूरी शिद्दत से निभाकर दर्शकों को चमत्कृत कर दिया। आज भी स्वस्थ कॉमेडी फिल्मों की चर्चा में ‘चुपके चुपके’ का नाम लिया जाता है। 1978 में आई ‘कस्मे वादे’ में अमिताभ बच्चन ने डबल रोल किया था। एक रोल में वे कॉलेज शिक्षक की भूमिका में थे। 1980 की फिल्म ‘दो और दो पांच’ में अमिताभ ने शशि कपूर के साथ शिक्षक की भूमिका निभाई थी। राजकुमार ने भी 1980 की फिल्म ‘बुलंदी’ में शिक्षक का चुनौती भरा किरदार साकार किया था। इस फिल्म में राजकुमार अपराध की दुनिया के सरगना के पुत्र को सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं और तमाम अड़चनों के बावजूद उसे सही रास्ते पर ले ही आते हैं। फिल्म ‘छलांग’ में आज के ज़माने के अभिनेता राजकुमार राव ने भी स्कूल शिक्षक की भूमिका निभाई थी। अभिनेता बनने से पहले राजकुमार स्कूल शिक्षक हुआ करते थे।
रोमांस का बादशाह कहे जाने वाले शाहरुख़ खान ने भी कुछ फिल्मों में शिक्षक की भूमिका निभाई। 1992 में आई फिल्म ‘चमत्कार’ में शाहरुख कॉलेज के क्रिकेट कोच बने थे। इसके बाद 2000 में आई फिल्म ‘मोहब्बतें’ में वे संगीत शिक्षक थे, तो 2006 की फिल्म ‘चक दे इंडिया’ में शाहरुख ने हॉकी कोच बने, जो महिला टीम को अंततः जीत दिलाने में कामयाब होते हैं। यह किरदार बेहद चुनौती भरा था। लेकिन, शाहरुख़ ने इसे गंभीर अंदाज से निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया।
अभिनेताओं की तरह ही कई अभिनेत्रियां भी शिक्षक के किरदार में नजर आईं। इनमें हेमा मालिनी ‘दिल्लगी’ और ‘दो और दो पांच में’ शिक्षिका बनी, तो ‘असली नकली’ और ‘मेरा नाम जोकर’ में सिमी ग्रेवाल, राखी ‘तपस्या’ में, ‘सफर’ में शर्मिला टैगोर, ‘प्रतिघात’ में सुजाता मेहता के अलावा गायत्री जोशी ने ‘स्वदेश’ में आदर्श शिक्षिका के किरदार निभाए। लेकिन, शिक्षिका और छात्र के बीच कुछ ऐसे रिश्ते भी दिखाए गए, जो परंपरा से अलग हैं। ‘मेरा नाम जोकर’ में किशोर उम्र वाले ऋषि कपूर का अपनी शिक्षक सिमी ग्रेवाल के प्रति दिलचस्पी को राजकपूर ने प्रभावी तरीके से दिखाया था। इस फिल्म में एक दृश्य था, जब सिमी ग्रेवाल एक खेत में कपड़े बदल रही होती हैं और ऋषि कपूर उसे चुपके से देखते हैं। 1994 में आई फिल्म ‘अंदाज’ में शिक्षक और उसकी छात्रा के बीच एक प्रेम संबंध दिखाया गया। स्कूल गर्ल करिश्मा कपूर अपने शिक्षक अनिल कपूर के प्रति प्रेम भाव रखने लगती हैं। ‘मैं हूँ ना’ में शाहरुख खान और सुष्मिता सेन के बीच आकर्षण होता है। फिल्म में शाहरुख छात्र होते हैं और सुष्मिता कॉलेज में उनकी शिक्षक। फिल्म ‘नशा’ में पूनम पांडेय शिक्षक की भूमिका में नजर आईं थीं। स्कूल का एक छात्र उनकी तरफ आकर्षित होता है।
अभिनेताओं की तरह ही कई अभिनेत्रियां भी शिक्षक के किरदार में नजर आईं। इनमें हेमा मालिनी ‘दिल्लगी’ और ‘दो और दो पांच में’ शिक्षिका बनी, तो ‘असली नकली’ और ‘मेरा नाम जोकर’ में सिमी ग्रेवाल, राखी ‘तपस्या’ में, ‘सफर’ में शर्मिला टैगोर, ‘प्रतिघात’ में सुजाता मेहता के अलावा गायत्री जोशी ने ‘स्वदेश’ में आदर्श शिक्षिका के किरदार निभाए। लेकिन, शिक्षिका और छात्र के बीच कुछ ऐसे रिश्ते भी दिखाए गए, जो परंपरा से अलग हैं। ‘मेरा नाम जोकर’ में किशोर उम्र वाले ऋषि कपूर का अपनी शिक्षक सिमी ग्रेवाल के प्रति दिलचस्पी को राजकपूर ने प्रभावी तरीके से दिखाया था। इस फिल्म में एक दृश्य था, जब सिमी ग्रेवाल एक खेत में कपड़े बदल रही होती हैं और ऋषि कपूर उसे चुपके से देखते हैं। 1994 में आई फिल्म ‘अंदाज’ में शिक्षक और उसकी छात्रा के बीच एक प्रेम संबंध दिखाया गया। स्कूल गर्ल करिश्मा कपूर अपने शिक्षक अनिल कपूर के प्रति प्रेम भाव रखने लगती हैं। ‘मैं हूँ ना’ में शाहरुख खान और सुष्मिता सेन के बीच आकर्षण होता है। फिल्म में शाहरुख छात्र होते हैं और सुष्मिता कॉलेज में उनकी शिक्षक। फिल्म ‘नशा’ में पूनम पांडेय शिक्षक की भूमिका में नजर आईं थीं। स्कूल का एक छात्र उनकी तरफ आकर्षित होता है।
छात्रों के साथ टीचर के रिश्ते को बेहद खूबसूरती से फिल्म ‘हिचकी’ में भी फिल्माया गया। टारेट सिंड्रोम से पीड़ित शिक्षक रानी मुखर्जी अपनी खामियों को नजर अंदाज करके गरीब बच्चों को समाज की मुख्यधारा में लाने का प्रयास करती है। उनकी यह फिलासफी जिंदगी का नजरिया सकारात्मक बना देती है। ऐसी कुछ फिल्में खास होती हैं। परिचय, इम्तिहान और ‘तारे जमीं पर’ को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। 2007 की फिल्म ‘तारे जमीन पर’ में आमिर खान शिक्षक बने थे। फिल्म की कहानी डिस्लकसिस बीमारी से पीड़ित एक बच्चे पर आधारित थी।
बिहार के आनंद कुमार पर आधारित फिल्म ‘सुपर 30’ में रितिक रोशन ने आनंद कुमार का किरदार निभाया था। शिक्षा में व्यवसाय कैसे अपने पैर पसार रहा है, इस मुद्दे को फिल्म ‘चाक एन डस्टर’ में दिखाने की कोशिश की गई थी। इरफान खान अभिनीत फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ की कहानी स्कूल में गरीब बच्चों के लिए कुछ स्थान सुरक्षित रखे जाने पर आधारित थी। अपने बेटे को स्थान दिलाने के लिए नायक गरीबों की बस्ती में रहने तक चला जाता है। अभी भी इस रिश्ते के कई नए आयाम सामने आना बाकी है। क्योंकि, ज़माने के साथ ये रिश्ता भी करवट ले रहा है। फिल्म ‘इकबाल’ में एक जुनूनी मूक बधिर लड़का क्रिकेटर बनना चाहता है। उसके सपनों को उड़ान तब मिलती है, जब पूर्व क्रिकेटर नसीरुद्दीन शाह बतौर कोच उसके हुनर को मांजते हैं। ‘3 इडियट्स’ में इंजीनियरिंग कॉलेज के डीन वीरू सहस्त्रबुद्धे और आमिर खान और उसके दोस्तों के बीच सार्थक नोक-झोंक दिखाई गई थी।
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हेमंत पाल
चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।
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