भारतीय जनता पार्टी में अब वो दौर चल रहा है, जब उसे अपनी व्यवस्थाओं में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसा ही एक बदलाव छह संभागीय संगठन मंत्रियों को उनके दायित्वों से मुक्त करना था। इनकी सम्मानजनक बिदाई के लिए सभी को प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बनाने का फैसला किया गया। लेकिन, संभागीय संगठन मंत्री के रूप में इनका जो रुआब था, वो ख़त्म हो गया। वास्तव में इनका ये रुआब ही इनकी बिदाई का कारण बना।
संभागीय
भाजपा संगठन ने पहली बार कोई ऐसा फैसला किया, जो चर्चा में बना। पार्टी ने संभागों में तैनात छह संगठन मंत्रियों को हटा दिया। ये सभी लोग प्रदेश कार्यसमिति में शामिल किए गए हैं। लेकिन, इन्हें हटाए जाने के बाद प्रचारित किया जा रहा है कि इनको निगम-मंडलों में जगह दी जाएगी। लगता नहीं कि ऐसा कुछ होगा क्योंकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया के कुछ लोगों के साथ कुछ वरिष्ठ नेताओं से इन पदों को भरा जाएगा। फिर सभी 6 संभागीय संगठन मंत्रियों को उनकी गलतियों की वजह से हटाया गया है! यदि इन्हें लाभ का पद दिया गया, तो ये फिर वही गलतियां दोहरा सकते हैं। संभव है कि कार्यमुक्त इन पदाधिकारियों को होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में लगाया जा सकता है।
हटाए गए संभागीय संगठन मंत्रियों में शैलेंद्र बरुआ के पास जबलपुर और नर्मदापुरम की जिम्मेदारी थी। जयपाल सिंह चावड़ा इंदौर और जितेंद्र लिटोरिया उज्जैन संभाग की कमान संभाल रहे थे। आशुतोष तिवारी के पास ग्वालियर और भोपाल संभाग, श्याम महाजन के पास रीवा-शहडोल और केशव सिंह भदौरिया के पास सागर और चंबल की जिम्मेदारी थी।
संभागीय संगठन मंत्रियों को अचानक क्यों हटाया गया, इस सवाल का जवाब मुश्किल नहीं है! पार्टी से जुड़े हर कार्यकर्ता इसके पीछे की सच्चाई जानता है कि इस पद पर बैठे लोग किस तरह उच्श्रृंखल हो गए थे। संघ ने उन्हें सरकार और संगठन के बीच समन्वय के लिए नियुक्त किया था, पर वे पार्टी के इंस्पेक्टर की तरह बर्ताव करने लगे थे। इन लोगों का कामकाज सर्वशक्तिमान सत्ता केंद्र के रूप में दिखाई देने लगा था। संभागीय संगठन मंत्रियों के प्रशासन के कामकाज में भी दखल देने की बातें सुनाई देती थीं। इससे प्रशासनिक कामकाज भी प्रभावित होने लगा था।
इन संगठन मंत्रियों के प्रभाव में सांसद और विधायक समेत पार्टी पदाधिकारी भी थे। लम्बे समय से जिलों में पार्टी के हर फैसले में संभागीय संगठन मंत्रियों का हस्तक्षेप दिखाई देता था। ख़ास बात ये कि किसी में भी इनका विरोध करने की हिम्मत नहीं थी। समझा जाता था कि इन्हें ये सब करने का अधिकार ऊपर से मिला है।
संभागीय संगठन मंत्रियों के खिलाफ पार्टी को लंबे समय से शिकायतें मिल रही थी! कहा जा रहा था कि उन्होंने अपने कार्य क्षेत्र में समानांतर सत्ता केंद्र बना लिए थे। इससे संगठन की व्यवस्थाएं और कामकाज प्रभावित होने लगा। था लेन-देन की शिकायतों के साथ संभागीय संगठन मंत्री संघ के मूल चरित्र से भी हटने की भी ख़बरें चर्चा में थीं। भले ही उज्जैन के एक संगठन मंत्री का अश्लील वीडियो सामने आया, पर ऐसी शिकायतें अन्य के खिलाफ भी सामने आई थी।
कामकाज से जुड़ी शिकायतों को लेकर पहले भी अम्बाराम कराड़ा, हुकुम गुप्ता, रतलाम के संगठन मंत्री चौरसिया, कैलाश गौतम, तपन भौमिक, राकेश डागोर, संजीव सरकार, चंद्रप्रकाश मिश्रा और कार्यालय मंत्री रहे सत्येंद्र भूषण सिंह की सेवाएं भी वापस ली गई। स्पष्ट है कि संघ में जिस शुचिता और सद्चरित्रता का कठोरता से पालन किया जाता है, उसकी यहाँ कई बार धज्जियां उड़ती दिखाई दी।
कुछ संभागीय संगठन मंत्रियों के बच्चे विदेशों में भी पढ़ रहे हैं। समझा जा सकता है कि उनकी लाखों रुपए की फीस कहाँ से आती होगी। ये लाभ का पद नहीं है, फिर भी इससे लाभ लेने की बातें छुपी नहीं रही! ऐसी भी शिकायतें थीं कि कार्यकर्ताओं को संगठन में नियुक्ति में भेदभाव भी इनके कहने पर किया जाने लगा था।
प्रदेश संगठन ने 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद जिले और विधानसभा स्तर पर तैनात चुनाव सहायक और विस्तारकों की सेवाएं भी समाप्त कर दी थी। संभागीय संगठन मंत्रियों को कार्यमुक्त करने का फैसला भी तभी कर लिया गया था। लेकिन, पार्टी इन्हें अपमानित करके निकालना नहीं चाहता था। यही कारण था कि इनकी नई जिम्मेदारी तय होने तक इन्हें हटाया नहीं गया। संगठन महामंत्री इनको पूरी तरह मुक्त करने के बजाए दायित्व में बदलाव के पक्षधर थे।
चित्रकूट में हुई चिंतन बैठक में संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत के सामने फिर से यह मुद्दा उठाया गया था और तभी तय कर लिया गया था कि इन्हें हटाना है। कहा जा सकता है कि ये फैसला लेने में पार्टी अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा अव्वल रहे और प्रदेश संगठन मंत्री सुहास भगत इसमें पिछड़ गए। जबकि, ये फैसला काफी पहले लिया जाना था।
भाजपा में अब संभागीय संगठन मंत्री की व्यवस्था को ही खत्म कर दिया गया। बदली व्यवस्था के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पैटर्न पर प्रदेश को तीन भागों बांटने की तैयारी है। जिसके तहत मालवा, मध्य और महाकौशल प्रांत के स्तर पर नई नियुक्ति की जाएंगी। जिसमें संघ के प्रचारकों को बड़ी भूमिका दी जा सकती है। बताया जा रहा है कि प्रदेश में तीन सह संगठन मंत्री होंगे।
नई व्यवस्था को लागू करने के लिए दो और सह संगठन मंत्रियों को संघ भेजेगा। फिलहाल एक सह संगठन मंत्री हितानंद शर्मा है, जो प्रदेश संगठन मंत्री सुहास भगत के सहयोगी के रूप में काम कर रहे हैं। जल्दी ही तीन सह संगठन मंत्रियों को एक-एक प्रांत की जिम्मेदारी देने की योजना है।
संभागीय संगठन मंत्रियों को हटाए जाने के बाद से प्रदेश में संगठन महामंत्री सुहास भगत और सह संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ही पूरी व्यवस्था देखेंगे। भाजपा संगठन में एक बदलाव ये भी हुआ है कि अब राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश भी भोपाल में ही रहेंगे। वे यहाँ से संगठन और सरकार की गतिविधियों पर नजर रखेंगे। भाजपा ने संगठन का नया ढांचा गढ़ने के लिए मध्यप्रदेश को प्रयोगशाला बनाने की तैयारी की है। बताते हैं कि पार्टी ने यह फैसला संघ की सहमति से लिया।इसके कयास लम्बे समय से लगाए जा रहे थे। पर, राजगढ़ में हुई प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक में इसे अंतिम रूप दिया गया था।
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पार्टी संगठन में अचानक हुए इस बदलाव के पीछे भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश प्रभारी पी मुरलीधर राव की कार्यप्रणाली का असर समझा जा रहा है। पार्टी जो फैसला तीन साल में नहीं ले सकी थी, उसे एक झटके में ले लिया गया। प्रदेश के सभी 6 संभागीय संगठन मंत्रियों को प्रदेश कार्यसमिति सदस्य बनाकर उनके गृह क्षेत्र भेज दिया गया। कुछ साल पहले भाजपा ने जिला संगठन मंत्री का पद भी समाप्त कर दिया था। माना जा रहा है कि संगठन में नए सिरे से प्रांतीय संगठन मंत्रियों की तैनाती की जाएगी, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संरचना के अनुसार तीनों प्रांतों में संगठन का काम देखेंगे।
जानकारी के मुताबिक अब मध्य भारत प्रांत, महाकौशल और मालवा के लिए तीन प्रांतीय संगठन मंत्री तैनात किए जा सकते हैं। पार्टी का यह भी विचार है कि प्रांतीय संगठन मंत्री के पद पर संघ के प्रचारकों को ही तैनात किया जाए। पार्टी आगे जो भी फैसला करे, पर संभागीय संगठन मंत्रियों का प्रयोग असफल होने के बाद अब उसे हर कदम फूंक फूंककर रखना पड़ेगा। यदि हर जिले और संभाग में सत्ता केंद्र बनने लगे, तो सारी व्यवस्था ही भंग हो जाएगी।
हेमंत पाल
चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।
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