Convenience of 2000 Rs Note : छोटे लोग भी रखते हैं बड़े नोट, वे तो चोर नहीं!

दो हजार के नोट बंद होने के बाद कमजोर वर्ग का नया संकट 

Convenience of 2000 Rs Note : छोटे लोग भी रखते हैं बड़े नोट, वे तो चोर नहीं!

वरिष्ठ पत्रकार ऋतुराज बुड़ावनवाला का विश्लेषण 

जब से सरकार ने 2 हजार के गुलाबी नोटों की रंगत को बेरंग किया हैं, तभी से नोटों को लेकर सरकार पर कई प्रकार की टीका-टिप्पणी, तर्क- कुतर्क लेखन के घोड़े पर सवार होकर कुंचाले भरकर व्यंग्य-बाण हवाओं में तैर रहे हैं! अरबपति हो या करोड़पति, महाराजा सा महल हो या झोपड़पट्टी सभी ने अपनी क्षमता, ताकत के हिसाब से 2 हजार के नोटों को छुपाकर रखा था। किसी ने तिजोरी में, किसी ने तलघर में, किसी ने दाल, चावल और आटे के डिब्बों में तो किसी ने अपनी अंटी या छप्पर में ठूंस रखा था! इसलिए कि अब बैंकों में भी पैसा सुरक्षित नहीं है। कहीं बैंक डूब रही है, तो लोग बैंक कर्मियों के व्यवहार से भी परेशान हैं। आशय यह कि 2 हजार का नोट रखने वाला हर व्यक्ति ब्लैक मनी रखने वाला नहीं है! बड़े नोट रखना सुविधाजनक है, इसलिए रखे जाते हैं।

रतलाम जिले के कनवास गांव की 65 साल की महिला सजनबाई के कोई औलाद नहीं है ! बच्चा तीन माह की उम्र में और बेवड़ा पति बीमारियों के घिरकर चल बसा! 30 साल की उम्र में विधवा होकर वे अपने माता पिता के पास रहने चली आई। माता-पिता के स्वर्ग सिधार जाने के बाद अपने भाई के सानिध्य में अलग मकान लेकर रहती है। 2 हजार के बीस नोट लेकर वे दुकान पर आई। उसने बड़े नोट रखने की वजह बताई कि वह घर में अकेली रहती हैं। ‘खेता में दो सौ, ढाई सौ रुपियां जो भी मली जाय वाणी में दाढकी करु। मने नोट गनना नी पड़े और कठे भी छिपाढी दूं। बीमारी में काम आवे अणी से ई 2000 का नोट घरें मेली राखियां था। पेला भी मारे कणे 500 और 1000 का नोट था घणी मुसीबत से आप सरिका सवकार (साहूकार) ये बदल दीदा था।’ इस बार वे बाजार में नोट बदलकर नहीं, बल्कि सोने के टॉप्स लेकर गई। उसके मन में भय था ‘सरकार अणा 500 का नोट ने भी बंद करी देगा।’ सवाल यह है कि उसने बड़ा नोट क्यों रखा! बड़ा नोट जिसने भी रखा अपनी सुविधा के लिए रखा, ताकि उसे गिनने की, रखने की जगह की और कहीं भी आने-जाने में साथ ले जाने में सुविधा और सहूलियत हो साथ ही किसी की निगाह में भी न आए।
यह जरूरी नहीं कि घर में दो हजार का बड़ा नोट रखने वाले सभी लोग भ्रष्ट हैं। उनके पास रखा धन काला ही है! ऐसे लोग हैं जरूर, पर सभी को एक ही निगाह से आंकना और हाँकना भ्रष्टाचारी के खिताब से नवाजना सही नहीं! उनकी सादगी,सरलता और ईमानदारी पर इस तरह कलंक लगा देने का हक किसी को भी नहीं है। अनेक लोग जिनके पास 2 हजार के बड़े नोट है उनमें अनेक तो निरक्षर और आज की दुनियादारी, मोबाइल संस्कृति से कोसों दूर है। न तो वे डिजिटल लेन-देन कर सकते हैं और न बैंकों में अपना पैसा रखकर झंझट मोल लेकर जीने के इच्छुक हैं। बैंकों में इतनी भीड़ रहती है कि घंटों लाइन में लगते हैं, तब जाकर काउंटर पर पहुंच सकते हैं। यही नहीं किसी समय पासबुक हाथों-हाथ अपडेट कर दी जाती थी, ताकि बैंक के ग्राहक को पता रहता था कि उसकी जमा पूंजी कितनी बैंक में रखी है।
आजकल सारा काम डिजिटल हो गया। बैंकों में वक्त पर एंट्री नहीं होती। जब लिंक फेल हो तो खुद कुछ कर नहीं सकते। कर्मचारी मदद नहीं करते और किसी अनजान से मदद लें, तो उसके रुपए खाते से गायब होने का डर बना रहता है। बैंक में पैसा डालो तो चार्ज कटता है, निकालो तो चार्ज कटता है। ऐसे में भला कोई अपनी रकम को बैंक में क्यों डालेगा! फिर शनिवार-रविवार तीज-त्योहार की छुट्टियां और भीड़-भडक्के के अंदर तथा बैंक आने-जाने की झंझट भी उसे अपने रुपए बड़े नोटों के रूप में घर के अंदर ही रखने को मजबूर करते है। जीरो बैलेंस से लगाकर जनधन खाते, सरकारी खरीद का भुगतान और सरकार के द्वारा फ्री बांटी जाने वाली स्कीमों और कितने ही प्रकार के छोटे-मोटे उपकारों को पाने के लिए कितने ही लोग, कितनी ही बैंकों में, कितने ही दिनों तक आना-जाना करते हैं।

आजकल भीड़ में जाकर बैंकों में अपना काम करवा लेना टेढ़ी खीर है। उस पर बैंकों में कर्मचारियों की कमी के चलते असहयोग,अव्यावहारिक बर्ताव, काम को टालने की आदत और लोन बांटने के प्रति ही पूरा झुकाव रहता है। इसके चलते बैंकों में खातेदारों के साथ जो दुर्व्यवहार होता है, वह किसी से भी छुपा नहीं हैं। गैरतमंद व्यक्ति के लिए यह सब झेलना संभव नहीं होता। व्यापारी को चोर साबित करने पर तुली सरकार की बे-सिर पैर की नीतियों के कारण ही मजबूरी में व्यापारी को बैंक जाना पड़ता हैं। बैंक के कर्मचारी के सामने काउंटर पर खड़ा व्यक्ति कौन है, कैसा है, इससे उसको कोई मतलब नहीं! उसकी नजर में बैंक के खातेदार की कोई इज्जत नहीं होती। उसे इस तरह टरकाते हुए बात करते हैं, जैसे बैंकों में रखा हुआ सारा रुपया कर्मचारी की मिल्कियत का हो और सामने वाले खातेदार को दान दक्षिणा में दे रहा हो।

छोटी-छोटी जगह की बैंकों में तो यह हालत है कि जब आदमी अपनी 5-10 लाख की एफडी भी तुड़वाने जाता है, तो उसे चक्कर खाने पड़ते हैं। जब चाहे तब पैसा नहीं मिल पाता। बैंकों से समय पर पैसा नहीं मिलता और उसे अपने ही पैसे लेने के लिए याचक की तरह व्यवहार करना और सहना पड़ता है। आयकर विभाग के द्वारा बनाए गए नगद व्यवहार की लिमिटेशन तथा कानून कायदों के चलते मजबूरी में व्यापारियों को बैंकों में जाना पड़ता है और थोपे गए नियमों का पालन करना पड़ता है। ईमानदार और तरीके से चलने वाले व्यापारियों की तो मौत ही है। उन्हें ही नियम कानून का पालन करना पड़ता है, वर्ना दो नंबरी तो किसी कानून की, आयकर विभाग की परवाह ही नहीं करता। उसके लिए ना तो नकद लेने की कोई सीमा होती है और न बैंक के जरिए काम करने की बंदिश! जो कुछ भी होता है वह नियम कायदे से चलने वाले ईमानदार व्यापारी के साथ ही होता है जो मजबूरी में अपने स्वाभिमान को गिरवी रखकर सरकार को कोसते हुए बैंक के अंदर दाखिल होता है। वह मजबूरी में बैंक में जाकर इतने ही नोट जमा करता है,जो सरकारी नियमों का पालन करने के लिए जरूरी है। वह बैंक में अपना पैसा नहीं रखता। क्योंकि, सरकार की नीति और साख पर उसे विश्वास नहीं है।

नोटबंदी और कोरोना काल के बाद ग्रामीण क्षेत्रों की बैंकों ने लोगों की पासबुक पर यह मुहर लगाई थी कि बैंकों में आपका कितना ही पैसा जमा हो, बैंकों पर मुसीबत आने पर बैंकों में रखें आपके रुपयों में से आपको मात्र 1 लाख ही मिलेगा। जिसको बढ़ाकर वर्तमान में 5 लाख की सील में तब्दील कर दिया गया। सबसे बड़ी यही वजह है कि लोग डरकर अपनी पूंजी को अपने घर में रखना ही सुरक्षित समझते हैं। इसलिए 2 हजार के नोट बाजार में नजर नहीं आ रहे थे। अब आप ही बताइए ऐसा कौन मूर्ख होगा जो अपना पैसा बैंक में डुबोने के लिए डालेगा! कोई भी व्यक्ति पैसा बैंक में डालने के बजाए अपने घर में बड़े नोटों के रूप में सुरक्षित रखने ज्यादा रुचि लेगा। ब्याज के लालच में वह अपनी मूल पूंजी डुबोने के लिए बैंक में नहीं डालेगा।

क्या यह जरूरी है कि जितने भी 2 हजार के नोट लोगों के घर में रखे हैं, वह सब ब्लैक मनी है! नोटबंदी इसी जुमले के साथ लागू की गई थी, कि इससे ब्लैक मनी खत्म हो जाएगी! रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने जितने भी 500 एवं 1000 के नोट छापे, वह उस आंकड़े के बहुत ही नजदीक जाकर बैंकों में उस समय भी जमा हुए थे। ब्लैक मनी की बात हवा-हवाई सी प्रतीक हुई ! सरकार जब भी ऐसी कोई योजना लाती है, तो ब्लैक मनी वाले तो मिल-मिलाकर, जुगाड़ लगाकर,अन्य कोई रास्ता निकालकर अपनी पूंजी को सुरक्षित कर लेते हैं! किंतु सीधे-साधे ईमानदार लोग इसमें फंस जाते हैं और पीस जाते हैं।

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ऋतुराज बुड़ावनवाला