देश का अनूठा आचार्य चाणक्य सद्भाव क्रिकेट टूर्नामेंट, जो हर वर्ष चाणक्य स्मृति में सामाजिक समरसता का बनता है संवाहक

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*देश का अनूठा आचार्य चाणक्य सद्भाव क्रिकेट टूर्नामेंट, जो हर वर्ष चाणक्य स्मृति में सामाजिक समरसता का बनता है संवाहक*

करेंट अफेयर्स में,इटारसी से वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल का, 17 दिसंबर से प्रारंभ हो रहे , इस अनूठे खेल कुंभ पर एक समीक्षात्मक आलेख

भारतीय धरा पर राष्ट्रीय अस्मिता, राष्ट्र भक्ति, राष्ट्र प्रेम व राष्ट्र गौरव के प्रतीक रूप में इतिहास में सर्व स्वीकार एवं ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के उपरांत भी सभी जातियों,सभी वर्गाे,सभी धर्मों के सर्वहित में जीवनपर्यन्त समर्पित रहे आचार्य चाणक्य को इतिहास के पन्नों से तलाश कर अमलीजामा पहनाने का दावा करते हुए आयोजक सर्वब्राह्मण समाज जिला इकाई व सर्वधर्म सद्भाव समिति ने चाणक्य के ही चिरपरिचित अंदाज में खेल भावना के प्रस्फुरण की शक्ल में इस टूर्नामेन्ट को विगत 4 वर्षों से एक सुखद व अदभुद हवा के झोंके की तरह, एक सार्वजनिक बहस का प्लेटफार्म बना दिया है,अपने अब तक के आयोजकीय प्रयासों से। वास्तव में चाणक्य नीति के मूल में स्वार्थ कहीं रत्ती भर भी नहीं था, सर्वत्र परमार्थ ही था। धर्म को सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय के प्राकृतिक न्याय से जोड़ते हुए उन्होनें कभी भी किसी जाति विशेष का पक्ष नहीं लिया वरन संपूर्ण राष्ट्रहित की कसौटी पर ही अपनी नीति का परीक्षण किया। दुर्भाग्य से वर्तमान में क्या, वरन आजादी के 10 वर्ष बाद से ही आज तक, लगातार चाणक्य के समग्र राष्ट्र हित के सिद्धांत को ही हाशिए पर कर सताधीशों व विपक्ष ने अपने क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थों के लिए जातिवादी तुष्टिकरण की भावनाएं भड़काकर सामाजिक समरसता व राष्ट्रीय एकता को गंभीर चोट पहुंचाई है।

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चाणक्य अपने समय इस देश के राजा चंद्रगुप्त के लिए एक ऐसे प्रधानमंत्री की तरह हैसियत रखते थे जिनकी बनाई नीतियों पर तब देश चलता था। तब राजधर्म का पालन करते हुए उन्होंने राजनीति को भी सर्व वर्ग सद्भाव का संवाहक बनाया था। वही भूमिका विगत 4 सालों से समाजसेवी जितेंद्र ओझा एक खेल कुंभ की शक्ल में निभा रहे हैं । हालांकि दोनों के कद व योग्यता में बहुत से फर्क भी हैं, जैसे कि चाणक्य की तरह जितेंद्र ओझा सक्रिय राजनीति में कभी नहीं रहे, गृहस्थ हैं, एक समाजसेवी व खेलों के गॉडफादर की सी छवि है उनकी,स्वयं को पीछे रखकर अपनी टीम को आगे रखकर चलते हैं आदि , आदि। अतः गांधीवादी की तर्ज़ पर उनको चाणक्य वादी तो माना ही जाना चाहिए। इस टूर्नामेंट ने विगत 4 वषों में कई मिथक तोड़ दिए। मैं स्वयं साक्षी रहा हूं कि किस तरह टूर्नामेंट के दौरान कुछ समाजों की टीमों के खिलाड़ी तो इतनी आत्मीयता व सम्मान पाकर भावुक हो गए कई बार। जितेंद्र ओझा स्वयं भी अपने प्रिय बड़े भाई दीपक ओझा के अचानक चले जाने से अभी तक भी भीतर से काफी टूटे हुए हैं। फिर भी उन्होंने अपनी टीम के साथ जो जज़्बा दिखाया , इस बार के पांचवें वर्ष के आयोजन की पूर्व बेला में , उसकी पूरे शहर को आरती उतारनी चाहिए। सामाजिक समरसता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा। वैसे भी 3 अन्य वर्णों के लिए ब्राम्हण वर्ण सदा से ही पूज्यनीय रहा है। मैं चाहता हूं कि सामाजिक समरसता की यह गंगा अब खेल के मैदान की सीमाओं से भी आगे बढ़कर हर उस जगह पहुंचे जहां सामाजिक समरसता की जरूरत हो। दरअसल तो सामाजिक समरसता को इस देश की राजनीति ने ही गंभीर चोट दी है। भीमरावजी अम्बेडकर ने संविधान में सीमित समय के लिए दलित व पिछड़े वर्ग की योग्यता सामाजिक व आर्थिक उन्नयन के लिए जिस भावना व उद्देश्य से आरक्षण का प्रावधान किया था उसे साकार करने सरकारों ने कारगर व सार्थक प्रयास ही नहीं किये। बल्कि अपनी असफलताओं को छुपाते हुए राजनीतिक लाभ प्राप्त करने हेतु जातिवादी व तुष्टिकरण की राजनीति प्रारम्भ कर दी और मोहरा बनाया आरक्षण को । काले दिल वाले गोरे अंग्रेजों की देश को धर्म व जाति के नाम पर विभाजित कर राज करने की कुटिल कूटनीति,के चलते वे पाकिस्तान बनवाने में भी सफल रहे। 1935 में पूना समझौता के तहत दलित वर्ग हेतु अलग निर्वाचन क्षेत्र आवंटन प्रारंभ हुआ जो आज की सुविधाभोगी व आवश्यकतानुसार की जाने वाली जातिवादी राजनीति का एक प्रमुख आयाम हैं। क्योंकि जिन जातियों व वर्गों के हितों व अधिकारों की रक्षार्थ इसे लागू किया गया था, उनका कितना विकास हुआ, सब जानते हैं। चाणक्य की स्मृति में ही सर्व ब्राम्हण समाज ने पूर्व में,चाणक्य नीति पर आधारित हो आरक्षण,इस विषय पर एक खुली स्वस्थ बहस भी कराई थी।मुझे उसके कुछ संदेश याद आ रहे हैं क्योंकि उस बहस का निष्कर्ष भी यही निकला था कि सर्वसम्मति से सामाजिक समरसता व सर्वजाति सद्भाव की हर तरह से रक्षा करते हुए कोई स्पष्ट नीति बने, जो सभी को स्वीकार्य हो।आरक्षण ने भी सामाजिक समरसता को गंभीर चोट दी है। यही तब उस कार्यक्रम या अभियान की सार्थकता भी रही थी। जिनका जिक्र करना मैंने आज इसलिए जरूरी समझा क्योंकि अब जब इस टूर्नामेंट से पुनः पांचवें वर्ष में सामाजिक समरसता की गंगा संवाहित होने जा रही है तो उस स्वस्थ चिंतन को भी खेल भावना से ही आगे बढ़ाना चाहिए सभी को । क्योंकि मैं भी आयोजकों की तरह ही चाहता हूँ कि सामाजिक समरसता व जाति धर्म सद्भाव का यह संदेश राजनीतिज्ञों व ब्यूरोकेट्स तक तो पहुंचे ही, साथ ही आम जनता के मध्य भी इन पर सोैहार्दपूर्ण वातावरण में एक सार्वजनिक खुली बहस प्रारंभ हो ।निश्चय ही इस टूर्नामेंट से सामाजिक समरसता भी बढ़ेगी तथा समाजवाद की ओर हम कुछ कदम तो जरूर बढ़ेंगे। आचार्य चाणक्य कप टेनिस बाल क्रिकेट टूर्नामेंट में इस वर्ष पुनः पांचवें वर्ष में , 17 दिसंबर से,25 समाजों की टीमें उतरेंगी मैदान पर व विभिन्न समाजों के अध्यक्ष खेल के माध्यम से एकता,सद्भाव,आत्मीयता का संदेश देंगे। देश भर में मेरी जानकारी में तो और कहीं भी ऐसा कोई खेल आयोजन ,कहीं नहीं होता।

आपसी सद्भावना और सौहार्द को बढ़ाने, इटारसी शहर के मिनी गांधी स्टेडियम में 17 दिसंबर से 28 दिसंबर तक टेनिस बाल क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन पांचवे वर्ष में होने जा रहा है। जिला सर्व ब्राह्मण समाज एवं आचार्य चाणक्य सद्भाव समिति यह टूर्नामेंट कराएगा। पत्रकार भवन में आयोजित एक बैठक में प्रतिस्पर्धा के सूत्रधार सर्वब्राह्मण समाज के प्रदेश उपाध्यक्ष जितेन्द्र ओझा, सर्वधर्म सद्भाव के जिला अध्यक्ष सुनील पाठक एवं कुलभूषण मिश्रा (अध्यक्ष, आयोजन समिति) ने मीडिया को बताया कि जिला सर्व ब्राह्मण समाज का सदैव नेकी का उद्देश्य रहा है। इस उद्देश्य की प्राप्ति में सभी समाजों का सहयोग अपेक्षित है।अपनी तरह के इस अनूठे आयोजन में शहर के 25 समाजों की टीमें आपसी भाई चारे और आपसी सामंजस्य के साथ खेल भावना का प्रदर्शन करेंगी। आयोजित क्रिकेट की यह प्रतिस्पर्धा 28 दिसंबर तक चलेगी। प्रतिस्पर्धा के सूत्रधार जितेन्द्र ओझा ने बताया कि देश भर में किसी भी खेल प्रसंग में ऐसी एकता की मिसाल दूसरी नहीं है जो 17 दिसंबर को शहर जिले व प्रदेश में भाइचारे की शक्ल में देखने को मिलेगी। देश के किसी भी हिस्से में किसी भी प्रकार की हलचल या अराजकता हो पर हमारे शहर में हमेशा हम एक हैं, सदैव भाईचारे के संदेश को ही प्रसारित करते हैं। इस प्रगाढ़ता को बढ़ाने इसी उद्देश्य को लेकर इस टूर्नामेंट के आयोजन की नींव रखी गई है। टूर्नामेंट प्रबंधन समिति के कूलभूषण मिश्रा ,राकेश दुबे के अनुसार इस बार का आयोजन अधिक भव्यता के साथ किया जाएगा। टूर्नामेंट की भावना से प्रभावित हो,हर बार की तरह इस बार भी कुछ बड़े राजनेता व वी वी आई पी भी इस 12 दिवसीय खेल कुंभ में शरीक होंगे, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तो अभी से अपनी स्वीकृति भी दे दी है। निर्धारित तिथि 20 नवंबर तक एंट्री फीस ली जाएगी। टीमों की संख्या को सीमित रखा गया है। टूर्नामेंट की विजेता टीम को ट्राफी के साथ 31 हजार रुपये की नगद राशि, उपविजेता टीम को ट्राफी और 15 हजार रुपये नगद राशि का उपहार दिया जाएगा। आयोजन समिति ने बताया कि इस आयोजन का एकमात्र उद्देश्य खेल के माध्यम से शहर के विभिन्न समाजों में एकता की अलख जगाना है, ताकि समाज की प्रतिभाएं,एक साथ,एक मंच पर आगे आ सकें। बैठक में शंकर गेलानी, दिनेश उपाध्याय, प्रकाश दुबे, जयराज सिंग भानू, धर्मेन्द्र रणसूरमा, जितेन्द्र राजपूत समेत सभी टीमों के कप्तान एवं आयोजन समिति के सदस्य मौजूद रहे।