

कर्ज …राहत भरा या आफत भरा…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कर्ज के बिना राज्यों का मर्ज दुरुस्त रहने की स्थिति में नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में यह साबित हो गया है कि सभी बड़े राज्य कर्ज की चपेट में हैं। कर्ज लेने पर सबकी मंजूरी है और कर्ज लेना मजबूरी भी है…सरकारें चाहे कांग्रेस की हों, भाजपा की हों या फिर अन्य राजनैतिक दलों की हों। कर्ज राहत भरा है तो आफत भरा भी है। राहत यह कि विकास के रास्ते खुल गए, यह माना जाता है। पर आफत भरा इसलिए क्योंकि आय के स्रोत कम होने से कर्ज लेना मजबूरी है। मध्यप्रदेश के लिए राहत भरी खबर यह है कि कर्ज लेने में प्रदेश दसवें पायदान पर है। तो आफत भरी खबर यह है कि पिछले पांच साल में मध्य प्रदेश में कर्ज की सबसे ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई। कर्ज की राशि के मामले में खुश होने को बहुत कुछ है तो कर्ज बढोतरी की दर ह्रदय प्रदेश की धड़कन बढ़ा रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि राज्यों का कर्ज तेजी से बढ़ा है। 2019 से 2024 के बीच यह 47.9 लाख करोड़ से बढ़कर 83.3 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह 74% की बढ़ोतरी है। कर्ज की वजह आर्थिक चुनौतियां हैं। तो उधार लेना अब राज्यों के लिए सामान्य बात भी है। सरकारों का तर्क यही रहता है कि कर्ज जीडीपी के अनुपात में लिमिट में है। और विपक्ष कर्ज के नाम पर सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं चूकता। 2024 में सबसे ज्यादा कर्ज तमिलनाडु पर है। यह 8.3 लाख करोड़ रुपये है। उसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर आता है। सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाले राज्य पर 7.7 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। महाराष्ट्र 7.2 लाख करोड़ रुपये के साथ तीसरे स्थान पर है। फिर पश्चिम बंगाल (6.6 लाख करोड़), कर्नाटक (6.0 लाख करोड़), राजस्थान (5.6 लाख करोड़), आंध्र प्रदेश (4.9 लाख करोड़), गुजरात (4.7 लाख करोड़), केरल (4.3 लाख करोड़) और मध्य प्रदेश (4.2 लाख करोड़ रुपये) आते हैं। ये शीर्ष दस राज्य हैं जिन पर सबसे ज्यादा कर्ज है। मध्यप्रदेश के लिए राहत यह है कि केरल, गुजरात, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर भी उससे ज्यादा कर्ज है। फिर उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के तो कहने ही क्या हैं।
पर मध्यप्रदेश कर्ज लेने की दौड़ में सबसे आगे है। पिछले पांच सालों में अलग-अलग राज्यों में कर्ज की बढ़ोतरी अलग-अलग रही है। मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 114% की बढ़ोतरी देखी गई। 2019 में मध्य प्रदेश का कर्ज 2 लाख करोड़ था, जो 2024 में बढ़कर 4.2 लाख करोड़ हो गया। कर्नाटक और तमिलनाडु में क्रमशः 109% और 108% की बढ़ोतरी हुई। आंध्र प्रदेश का कर्ज 84% बढ़ा, जबकि राजस्थान और केरल में क्रमशः 80% और 76% की बढ़ोतरी हुई। महाराष्ट्र में कर्ज की रफ्तार अपेक्षाकृत कम 65% रही, जबकि उत्तर प्रदेश में सबसे कम 35% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
राज्यों के कर्ज के बोझ को अक्सर उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद के अनुपात में मापा जाता है। बड़े राज्यों में महाराष्ट्र का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात सबसे कम 18% है। उसके बाद कर्नाटक का 24% है। दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात सबसे ज्यादा 39% है, उसके बाद केरल और राजस्थान का 37% है। तमिलनाडु और मध्य प्रदेश का अनुपात 31% है, जबकि आंध्र प्रदेश का 34% है। उत्तर प्रदेश का कर्ज का बोझ उसके जीएसडीपी का 30% है, जो अपेक्षाकृत कम है।
महाराष्ट्र 40.44 लाख करोड़ रुपये के जीडीपी के साथ भारत का सबसे बड़ा आर्थिक केंद्र बना हुआ है। तमिलनाडु 27.22 लाख करोड़ रुपये के साथ दूसरे नंबर पर है, जबकि उत्तर प्रदेश 25.48 लाख करोड़ रुपये के साथ तीसरे स्थान पर है। कर्नाटक और पश्चिम बंगाल का जीएसडीपी 25.01 लाख करोड़ रुपये और 17.01 लाख करोड़ रुपये है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए, मध्य प्रदेश का मौजूदा कीमतों पर राज्य सकल घरेलू उत्पाद 13,63,327 करोड़ रुपये है।
अब मन को समझाने के लिए बहुत सारे तर्क हो सकते हैं। मध्यप्रदेश के लिए कहें तो एक पक्ष यह है कि वर्ष 2011-12 से 2023-24 तक मध्यप्रदेश की प्रति व्यक्ति आय राज्य के आर्थिक विकास और समृद्धि बता रही है। इस दौरान, प्रति व्यक्ति एनएसडीपी में वृद्धि हुई है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था में हुई उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाती है। मौजूदा कीमतों पर, प्रति व्यक्ति शुद्ध आय वर्ष 2011-12 में 38,497 रुपये से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 1,42,565 रुपये हो गयी है। इसमें लगभग चार गुना की वृद्धि हुई है। मुद्रा स्फीति के समायोजन के बाद स्थिर (2011-12) कीमतों पर भी प्रति व्यक्ति शुद्ध आय ने उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई, जो वर्ष 2011-12 में 38,497 रुपये से बढ़कर 2023-24 में 66,441 रुपये हो गयी। यह वृद्धि मुद्रा स्फीति के प्रभावों से परे वास्तविक आर्थिक प्रगति दिखाती है। तो मध्यप्रदेश के हर नागरिक पर 50 हजार से ज्यादा का कर्ज है।
अब कर्ज राहत भरा भी है और आफत भरा भी है। मध्यप्रदेश इससे उबरने का लगातार प्रयास कर रहा है। हाल ही में हुई ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में हुए
30 लाख 77 हजार करोड़ रूपए के एमओयू आशा का संचार करते हैं। यह करार जमीन पर उतरे तो मध्यप्रदेश सरकार कर्ज की ज्यादा मोहताज नहीं रहेगी…।