जानलेवा न बन जाए, सेल्फी का बढ़ता पागलपन!

910

खुद को फोटो में देखना लोगों का पुराना शगल है। फोटो कैसा भी हो, पर जिसमें हम खुद दिखाई दे रहे हों, वह तो अच्छा लगेगा ही! जब से मोबाइल फोन में कैमरा आने लगा, ये शगल कुछ ज्यादा ही बढ़ गया।

लोग अपने हर मूवमेंट को कैमरे में कैद करना चाहते हैं! पर, मोबाइल के फोन से खुद का फोटो लेना धीरे-धीरे ऐसा शौक बनता जा रहा है, जो कई बार खतरे का कारण बन जाता है!

तेज बहती नदी के किनारे खड़े होकर, धड़धड़ाती हुई ट्रेन के सामने खड़े होकर या ऊंचाई पर खड़े होकर नीचे देखकर ‘सेल्फी’ लेना खतरनाक हो चुका है। ऐसी कई घटनाएं हुई, जब सेल्फी लेने की धुन में लोगों की जान चली गई।

सेल्फ़ी का जुनून आजकल युवाओं के सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसे में सेल्फ़ी की बढ़ती लत के चलते युवा अपनी ज़िंदगी तक दांव पर लगाने से बाज नहीं आते। जो फ़ोटो अपने यादगार पलों को सहेजने के लिए हुआ करती थी, वह अब लाइक, कमेंट का जरियाभर बनकर रह गई।

सेल्फ़ी का फितूर युवाओं की मौत की वजह बन रहा है। हाल ही में गुरुग्राम में चार युवक चलती ट्रेन के सामने सेल्फ़ी लेने के चक्कर में काल के गाल में समा गए।

20-25 वर्ष के युवा चलती ट्रेन के सामने ऐसी सेल्फ़ी लेना चाह रहें थे, जिसमें पीछे से आती ट्रेन दिखाई दे और इसी चलती ट्रेन के साथ सेल्फ़ी लेने की चाहत और कुछ लाइक, कमेंट की ख़ातिर इन चार युवकों ने अपनी जान गंवा दी।

वैसे जिस वक्त ये युवा चलती ट्रेन के सामने सेल्फ़ी लेने के लिए आगे बढ़ें। उस वक्त शायद ही उन्हें सामने मौत खड़ी दिखाई दी होगी!

शायद ही किसी ने सोचा भी होगा कि जरा सी लापरवाही इन युवाओं की मौत की वजह बन जाएगी। यह कोई पहला मौका नहीं है जब सेल्फ़ी के जुनून में युवाओं ने जान गंवाई।

शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता हो, जब सेल्फ़ी के चक्कर में युवा अपनी जान को दांव पर लगाने से बाज नहीं आते होंगे। आए दिन सेल्फ़ी के चक्कर में युवाओं की मौत मीडिया अखबारों की सुर्खियां बनती है।

इसके बाद भी युवाओं का जुनून सेल्फी को लेकर कम होने का नाम नहीं हो रहा।

जिंदगी में ख़ुशी के पल ढूढ़ने के लिए सेल्फ़ी के अलावा और भी तरीक़े है। फिर भी युवा सेल्फ़ी के दीवाने हुए जा रहे हैं। खुद के फोटो खींचने का बढ़ता क्रेज जानलेवा एडवेंचर साबित हो रहा है।

यह कैसा शौक़ है कि लोग अपनी जान तक की परवाह नहीं करते है। कहते है अति हर चीज़ की बुरी होती है और बढ़ती सेल्फ़ी की दीवानगी का ही दुष्परिणाम है कि लोग डिप्रेशन जैसी गंभीर बीमारियों का तक शिकार हो रहे हैं। अमेरिकन साइक्लोजिकल एसोसिएशन (एपीए) ने भी ऑफिशियल रूप से सेल्फ़ी लेने को मेंटल डिसऑर्डर कहा है।

2018 में ‘जर्नल ऑफ फैमली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर’ के सर्वे के मुताबिक 2011 से 2017 के बीच दुनिया में 279 मौत सेल्फ़ी की वजह से हुई। जिनमें सबसे ज्यादा मौतें भारत में।

ऐसे में सहज आकलन लगाया जा सकता है कि सेल्फी के प्रति दीवानगी अपने देश में किस हडी तक बढ़ती जा रही है। इस वजह से हर साल मौत के आंकड़ों में भी इज़ाफ़ा हो रहा है।

सेल्फ़ी को आसान भाषा में ‘स्वयं का फ़ोटो लेना’ कहते हैं और आज शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो सेल्फ़ी का मतलब न समझता हो। यूं कहें कि सेल्फ़ी का दीवाना न हो।

साल 1850 में दुनिया में पहली सेल्फ़ी ली गईं थी और इसे स्वीडिश आर्ट फ़ोटोग्राफ़र ऑस्कर गुस्तवे रेजलेंडर ने लिया था। तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ऐसा दौर भी आएगा, जब लोग सेल्फ़ी के दीवाने हो जाएंगे।

वर्तमान परिदृश्य में नज़र डालें तो आज ऐसा कोई पल नहीं होता, जिसे लोग कैमरे में कैद न करते हो। यहां तक की मौत के क्रिया कर्म तक को लोग कैमरों में कैद करके रख लेते है।

अब इसके पीछे कौनसी मानसिकता है यह तो वही लोग जाने। लेकिन, कहीं सेल्फ़ी का यह कीड़ा मानसिक अवसाद का कारण न बन जाएं। इस दिशा में गंभीरता से सोचने की जरुरत है क्योंकि, यत्र-तत्र सर्वत्र सेल्फी लेने की बीमारी बढ़ रही जो प्रवृत्ति घातक है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो व्यक्ति को अपने अच्छे पलों को एन्जॉय करने में समय व्यतीत करना चाहिए, न कि व्यर्थ में समय गंवाना चाहिए।

प्रसिद्ध समाजशास्त्री चार्ल्स कुले का कहना था कि हम दर्पण में स्वयं को अपनी आंखों से नहीं, बल्कि दूसरे की आंखों से देखते हैं। सेल्फ़ी लेते समय भी यही सोच काम करती है। तभी तो सेल्फ़ी की दीवानगी इस क़दर बढ़ गई है कि लोग अपनी जान तक की परवाह नहीं करते। अब तो फ़ोटो सोशल मीडिया पर महज़ लाइक, कमेंट का ज़रिया बनकर रह गई।

ऐसे में यदि फ़ोटो पर लाइक, कमेंट न मिलें, तो लोग डिप्रेशन तक का शिकार हो जाते है। अच्छी सेल्फ़ी लेने के चक्कर मे घंटों मोबाइल स्क्रीन के सामने पोज़ देते नज़र आते हैं। फिर इसे लोगों की नुमाइश के लिए विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपलोड़ कर देते है।

जिन लोगों को जानते-पहचानते तक नहीं, उनसे उम्मीद करते है कि वो उनकी तस्वीर लाइक करें। जब लाइक न मिले तो लोग मायूस हो जाते हैं। यह कैसा जुनून है! हम कैसे दिखते हैं, यह दूसरा तय करने वाला कौन होता है!

हमारे निजी पलों और सैर-सपाटों को अनजान लोगों के साथ साझा करके आखिर हमें क्या मिलता है! यह सोचने और समझने की जरूरत है। मोबाइल फोन के इस्तेमाल से बढ़ते सेल्फी के खतरे के इतर भी अनेक ख़तरे हैं। फिर भी अगर लोग दूसरे को दिखाने के लिए अपनी जान की कीमत लगा रहें।

ऐसे में यह चिंता का विषय है। एक आंकड़े की बात करें तो 2016 तक प्रतिदिन 94 मिलियन सेल्फी विश्व पटल पर खींची जाती हैं और साल 2013 में सेल्फी को ‘ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द ईयर’ चुना गया था।

ऐसे में आज 2022 में आप समझ सकते हैं कि सेल्फी का यह नशा कहाँ पहुँच गया होगा। लेकिन, अगर सच पूछिए तो यह सेल्फी का नशा एक समय मीठा जहर बनने वाला है। जिससे व्यक्तिगत नुकसान तो हो ही रहा।

इसके अलावा सामाजिक और देश को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। इसलिए जितनी जल्दी हो सकें इस बीमारी से युवा पीढ़ी को बाहर निकलना होगा। क्योंकि, सेल्फी कहीं सुसाइड न बन जाए।