Dowry Harassment Case : ‘दहेज़ प्रताड़ना के मामलों में गोलमोल आरोप की जांच करें’ सुप्रीम कोर्ट के निर्देश!  

महिला की एफआईआर में पति को छोड़कर सभी ससुराल वालों के नाम क्यों!  

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Dowry Harassment Case : ‘दहेज़ प्रताड़ना के मामलों में गोलमोल आरोप की जांच करें’ सुप्रीम कोर्ट के निर्देश!  

New Delhi : दहेज प्रताड़ना के एक मामले में शनिवार को महिला द्वारा अपने ससुराल वालों के खिलाफ दायर किए गए मुकदमे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने  कहा कि शिकायती द्वारा लगाए गए आरोप अस्पष्ट हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में उसने क्रिमिनल प्रोसीजर का गलत उपयोग किया और ससुराल वालों को प्रताड़ित करने के लिए गलत नियत से केस दर्ज कराया।

महिला ने अपनी सौतेली सास, सौतेले देवर और ससुर आदि के खिलाफ इस मामले में दहेज प्रताड़ना और धमकी आदि धाराओं के तहत केस दर्ज कराया। शीर्ष अदालत ने पहले के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट की यह ड्यूटी है कि वह आरोपों की सही तरह से जांच करें, तब ज्यादा सजग रहे जब आरोप अफसोसजनक और दुर्भावनापूर्ण हो। खास बात यह कि पति का नाम  शिकायत में कहीं नहीं है।

ससुराल वालों पर आरोप लगाया 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिला ने अपने ससुराल वालों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने इनके साथ क्रुएल्टी की है। साथ ही उसे धमकी दी गई कि उन्हें संपत्ति आदि से बेदखल कर दिया जाएगा। मामले में केस दर्ज किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में शिकायत सामान्य और अस्पष्ट है। मैटेरियल का भी अभाव है। जालना में 25 मार्च 2013 को आरोपियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना और अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया था।

इस मामले में आरोपियों ने पहले हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना सहित अन्य मामलों में दर्ज केस और कार्रवाई को खारिज करने से मना कर दिया था। आरोपियों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट के जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि इस मामले में शिकायती महिला ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ जो क्रिमिनल केस में शिकायत की थी वह गलत नियत से की गई थी। यह सब उन्हें प्रताड़ित करने के लिए किया गया।

अस्पष्ट और गोलमोल बयान आधार नहीं 

जस्टिस नरसिम्हा की बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि आरोप में सच्चाई नहीं है। अस्पष्ट और गोलमोल बयान के आधार पर क्रिमिनल केस दर्ज कराना और आपराधिक केस चलाया जाना न्याय संगत नहीं है। यह संबंधित पक्षकार (आरोपी ससुरालियों) के साथ अन्याय होगा। शीर्ष अदालत ने पहले के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हाई कोर्ट की यह ड्यूटी है कि वह आरोपों की सही तरह से जांच करें और तब ज्यादा सजग रहे जब आरोप अफसोसजनक और दुर्भावनापूर्ण हो।

कोर्ट ने कहा, यह यूनिक एफआईआर 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह एक यूनिक एफआईआर है। महिला की शिकायत पर महाराष्ट्र के जालना में 25 मार्च 2013 को आरोपियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना और अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया था। महिला ने अपने पति को आरोपी नहीं बनाया। मामला दहेज के लिए प्रताड़ना का है, जिसमें महिला ने शिकायत की थी, लेकिन पति का नाम नहीं लिया। ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में महिला द्वारा की गई घरेलू हिंसा की शिकायत को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में शिकायत की विस्तृत जांच की जरूरत थी और झूठी शिकायतों को खारिज किया जाना चाहिए।