
Dr. Ramdarash Mishra: नहीं रहे शताब्दी पुरुष पद्मश्री प्रो रामदरश मिश्र
अभी अभी प्रोफेसर स्मिता मिश्र की पोस्ट से ज्ञात हुआ है कि 102 वर्ष का जीवन जीने वाले हिंदी के जाने-माने साहित्यकार प्रो रामदरश मिश्र नहीं रहे। डॉ॰ रामदरश मिश्र (जन्म: १५ अगस्त, १९२४) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे ।रामदरश मिश्र हिन्दी साहित्य संसार के बहुआयामी रचनाकार हैं। उन्होंने गद्य एवं पद्य की लगभग सभी विधाओं में सृजनशीलता का परिचय दिया है और अनूठी रचनाएँ समाज को दी है। चार बड़े और ग्यारह लद्यु उपन्यासों में मिश्र जी ने गाँव और शहर की जिन्दगी के संश्लिष्ट और सघन यथार्थ की गहरी पहचान की है। मिश्र जी की साहित्यिक प्रतिभा बहुआयामी है।

पिछली होली के बाद से वे बीमार चल रहे थे और द्वारका नई दिल्ली स्थित बेटे शशांक के घर पर उपचार में थे। 1924 में 15 अगस्त को डुमरी, गोरखपुर में जन्मे रामदरश मिश्र ने बीएचयू में उच्च शिक्षा पाई । गुजरात में कई वर्ष रहे, दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाया। एक लंबा साहित्यिक जीवन जीने वाले रामदरश जी ने कविता कहानी उपन्यास यात्रावृत्त आत्मकथा संस्मरण और आलोचना सभी विधाओं में सौ से ज्यादा पुस्तकें लिखीं और पद्मश्री अलंकरण सहित हिंदी के लगभग सभी प्रतिष्ठित सम्मानों और पुरस्कारों से नवाज़े गए। उनके शिष्यों और पाठकों का संसार देश-विदेश में फैला है । उनके चाहने वाले बेशुमार संख्या में है । उनके साहित्य पर सैकड़ों लोगों ने शोध कार्य संपन्न किया है और उनकी कहानियों और कविताओं को एक व्यापक पाठक संसार मिला है। अपनी मकबूल गजल `बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे` लिखकर उन्होंने यह जताया कि धीरे-धीरे चलकर भी मंजिल प्राप्त की जा सकती है यदि मन में साहस और अटूट संकल्प हो।
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ऐसी कालजयी रचनाकार को उसकी अंतिम यात्रा में हार्दिक प्रणति और विनम्र श्रद्धांजलि।
ईश्वर परिवार को उनकी अनुपस्थिति को सहन करने की शक्ति दे।





