Indore : एक 70 साल की महिला मरीज के घुटने के प्रत्यारोपण के बाद वह ऑपरेशन टेबल से अपने मेडिकल बेड तक पैदल चल कर गई। ऑपरेशन के कुछ घंटों बाद ही उसकी अस्पताल से छुट्टी कर दी गई। ये सर्जरी अपने आप में सेंट्रल इंडिया में पहला मामला है। घुटना प्रत्यारोपण (Knee Implant) की इस नई तकनीक की खोज इंदौर में ही पढ़े एमवॉय अस्पताल में सर्जन रह चुके डॉ अनुपम खंडेलवाल (Dr. Anupam Khandelwal) ने की है।
डॉ अनुपम खंडेलवाल ने बताया कि खरगोन की 70 साल की महिला पुनी बाई को घुटने में असहनीय दर्द था। इसके चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती किया किया गया था। महिला मरीज के परिजनों ने बताया कि कई महीनों से घुटने के दर्द के कारण वह चलने-फिरने व दैनिक कर्म करने से भी मोहताज हो चुकी है। उनकी स्थिति विकलांगों जैसी हो गई।
इस जानकारी के बाद महिला के घुटने की जांच की गई, तो पता चला कि घुटना बदले बिना इलाज संभव नहीं (Treatment is not Possible Without Knee Replacement) है।
आखिरकार उनके परिजनों को बताया गया कि इनके घुटने का प्रत्यारोपण करना पड़ेगा, तभी इन्हें दर्द से मुक्ति मिलेगी। यह पहले से आराम दायक और सुविधाजनक ऑपरेशन है।
परिजनों की सहमति के बाद मरीज की ‘डे केयर स्कीम के तहत उनके घुटने का प्रत्यारोपण किया गया। उनकी नई तकनीक से सर्जरी की गई।
नई डीएसवी तकनीक (DSV Technic) से सर्जरी
डॉ खंडेलवाल के अनुसार नई तकनीक से सर्जरी के दौरान छोटा चीरा लगाया जाता है। मांसपेशियों को काटने की बजाए उसे अलग शिफ्ट कर दिया जाता है। इस दौरान ऑपरेशन के पहले मरीज पर एनेस्थीसिया का बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है। दर्द निवारक दवाइयों का प्रयोग भी संतुलित तरीके से किया जाता है।
प्रत्यारोपण सर्जन डॉ अनुपम खंडेलवाल ने इंदौर के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज से ही हड्डी रोग विषय में पढ़ाई की है। उसके पश्चात उन्होंने मुंबई एवं जर्मनी में जाकर घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी सम्बन्धित स्टडी की। इसके बाद उन्होंने डीएसवी टेक्निक (DSV Technic) इजाद की।
इस तकनीक में मांसपेशियों को न्यूनतम क्षति पहुंचाकर ऑपरेशन किया जाता है, जिससे मरीज को ऑपरेशन के बाद तुरंत चलने में कोई दिक्कत नहीं होती। कुछ मरीज ऑपरेशन की 24 घंटे के भीतर अस्पताल से छुट्टी लेकर घर जा सकते हैं।
डे केयर स्कीम
इस स्कीम के अंतर्गत मरीज को 24 घंटे में अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। इस वजह से मरीज को अस्पताल के बिल में भारी राहत मिलती है। क्योंकि, मरीज जितने दिन अस्पताल में रहता है उसका बिल उतना ही बढ़ता जाता है।