‘भावी मुख्यमंत्री’ अभियान पर अपनों का ग्रहण….

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 ‘भावी मुख्यमंत्री’ अभियान पर अपनों का ग्रहण….

– इसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की कार्यशैली का नतीजा माने या वजह कुछ और हो, लेकिन कांग्रेस के ‘भावी मुख्यमंत्री’ अभियान को अपने ही ग्रहण लगा रहे हैं। प्रदेश नेतृत्व के आह्वान पर इसे पूरे प्रदेश में शुरू किया गया था। इसके तहत भोपाल के साथ लगभग हर जिले में ‘अगली सरकार, कमलनाथ सरकार’ के नारे के साथ कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री बताते हुए पोस्टर-बैनर लगाए गए थे।

कमलनाथ

अभियान को पहली बत्ती कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल ने यह कह कर दी कि पार्टी में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का नाम घोषित करने की परंपरा नहीं है। प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह बराबरी के वरिष्ठ नेता हैं। इनमें से किसी को छोटा-बड़ा नहीं कहा जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव बाद होगा। अग्रवाल के इस बयान से कांग्रेस के अन्य नेताओं का हौसला बढ़ा। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव एवं प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी अग्रवाल की बात को दोहरा कर भावी मुख्यमंत्री अभियान को पलीता लगा दिया। इससे यह साफ हो गया है कि कांग्रेस के अंदर कमलनाथ को चुनौती देने वाले मौजूद हैं। वैसे भी कमलनाथ के साथ अरुण यादव, अजय सिंह की पटरी नहीं बैठ रही। दिग्विजय सिंह के साथ भी उनकी पहले जैसी कैमिस्ट्री नहीं रही।

 

 *भाजपा की मुख्य धारा में वापसी कर पाएंगी उमा….!* 

– पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती के भाजपा के साथ रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे हैं। हालात ये हैं कि जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उमा के बयानों को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। इससे भी साफ है कि उमा और भाजपा के बीच सब ठीक नहीं है। उमा बीच-बीच में शिवराज की तारीफ कर यह जताने की कोशिश करती हैं कि रिश्ता अभी टूटा नहीं है। अब यह सच नहीं लगता। शराब को लेकर उमा कई बार सरकार को अल्टीमेटम दे चुकी हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि यदि 31 जनवरी तक नई शराब नीति में उनके सुझाव शामिल न किए गए तो जो होगा, इसके लिए सरकार जवाबदार होगी।

Uma Bharti Pachmarhi MP crop

इसके बाद 1 और 2 फरवरी की मियाद आई लेकिन शराब नीति अब तक घोषित नहीं हुई। इस बीच उमा लोधी-लोधा समाज के सम्मेलन में कह चुकी हैं कि वे भाजपा के लिए वोट मांगने आएं तो भी आप वोट मत देना। ओरछा में उन्होंने यहां तक कह दिया कि मैंने इस सरकार को बनाने के लिए वोट मांग कर पाप किया है। अब वे गाय को साथ लेकर शराब के खिलाफ संघर्ष की बात कर रही हैं। संकेत साफ है कि उमा का भाजपा के साथ रिश्ता एक बार फिर टूटने की ओर है। इससे भाजपा को नुकसान संभव है। सवाल है कि क्या उमा फिर भाजपा की मुख्य धारा में लौट पाएंगी?

 *कुछ की बांछे खिलीं, कुछ का ब्लैडप्रेशर हाई….* 

– मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के काम के अंदाज और उनकी बॉडी लैंग्वेज को देखकर लगता है कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन का संकट टल गया है। इतना ही नहीं चर्चा यह भी है कि शिवराज को नेतृत्व की ओर से मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए फ्री हैंड मिल गया है। इस खबर से शिवराज से जुड़े उन आधा दर्जन पूर्व मंत्रियों, विधायकों की बांछे खिल गई हैं जो मानते हैं कि फेरबदल में उनका मंत्री बनना तय है।

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इसके विपरीत आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री ऐसे भी हैं जिनका ब्लैडप्रेशर हाई है। इन्हें अपनी कुर्सी जाने का खतरा है। इसकी दो वजह हैं। एक, मुख्यमंत्री चौहान का इन्हें मजबूरी में अपने लोगों की कीमत पर मंत्रिमंडल में रखना और दूसरा, परफारमेंस ठीक न होना और लगातार मिल रहीं शिकायतें। यह चर्चा भी लगातार है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक कुछ मंत्रियों को भी हटाया जा सकता है क्योंकि इनकी वजह से मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय संतुलन गड़बड़ाया हुआ है। मंत्रिमंडल में फेरबदल कब होगा, यह मुख्यमंत्री के सिवाय कोई नहीं बता सकता लेकिन इस दिशा में कसरत तेज है। मुख्यमंत्री चौहान संगठन के प्रमुख नेताओं से इस संदर्भ में कई दौर की बात कर चुके हैं। विधानसभा चुनाव चूंकि इस साल के अंत में हैं, इस लिहाज से समय ज्यादा नहीं है। लिहाजा, मंत्रिमंडल विस्तार कभी भी हो सकता है।

 *यह चिटनीस को लांच करने की तैयारी तो नहीं….!* 

– प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की पिछले दिनों हुई बैठक में इस बार वह हुआ जो आमतौर पर देखने को नहीं मिलता। इससे अटकलें लगाई जाने लगी है कि पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस को नए सिरे से लांच तो नहीं किया जा रहा? और क्या आने वाले समय में उन्हें बड़ी जवाबदारी मिलने वाली है? कार्यसमिति की बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव सबसे महत्वपूर्ण होता है। आमतौर पर इसे पार्टी का कोई वरिष्ठ पदाधिकारी महामंत्री या उपाध्यक्ष ही तैयार कर रखता है। विशेष परिस्थिति में मंत्री को यह दायित्व सौंपा जा सकता है।

 

अर्चना चिटनीस पार्टी की पदाधिकारी ही नहीं हैं। वे प्रदेश प्रवक्ता हैं और प्रवक्ता को पदाधिकारी नहीं माना जाता। इसीलिए पार्टी पदाधिकारियों की बैठक में प्रवक्ताओं को नहीं बुलाया जाता। फिर भी कार्यसमिति की बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव चिटनीस ने रखा। इससे अटकलें लगने लगीं कि चिटनीस को भविष्य में कोई बड़ा दायित्व मिल सकता है। वीडी शर्मा जब प्रदेश अध्यक्ष बने थे तब अर्चना का नाम भी दावेदारों में शुमार था। इसके बाद खंडवा लोकसभा के उप चुनाव के लिए भी वे प्रमुख दावेदार थीं। क्षेत्र में वे सबसे ज्यादा सक्रिय भी थीं लेकिन टिकट किसी और को मिल गया था। दो बार पिछड़ने के बाद भी न अर्चना चिटनीस शांत हैं, न उन्हें प्रमोट करेन वाले उनके समर्थक नेता। यह वाकया इसका प्रमाण है।

 *दिल्ली जाकर मंत्रियों में सबसे अलग दिखे भार्गव….* 

– मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां भी जाते हैं, अपने एक-एक मिनट का उपयोग करते हैं। दिल्ली यात्रा के दौरान सरकार के वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव भी मंत्रियों में अपनी अलग लकीर खींचते नजर आए। 2 फरवरी को मप्र भवन के लोकार्पण कार्यक्रम में अन्य मंत्रियों के साथ वे भी दिल्ली में थे। लेकिन उन्होंने अपना दौरा इस कार्यक्रम तक ही सीमित नहीं रखा। वे केंद्रीय मंत्रियों नितिन गडकरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया और भूपेंद्र यादव आदि से भी मिले और प्रदेश की लंबित योजनाओं को लेकर चर्चा की। सांसद शत्रुघन सिंहा से भी उनकी गर्मजोशी के साथ मुलाकात हुई।

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साफ है कि गोपाल भार्गव ने मुख्यमंत्री चौहान की तर्ज पर दिल्ली दौरे का उपयोग करने की कोशिश की। इससे उन्हें, उनके क्षेत्र और प्रदेश को फायदा हुआ। भार्गव का यह काम इसलिए लीक से हटकर लगा क्योंकि उनके बारे में आम राय है कि वे नेतृत्व की जी- हुजूरी में भरोसा नहीं करते। प्रदेश और दिल्ली के चक्कर लगाते नहीं दिखते। क्षेत्र के प्रति लगाव के कारण उनकी यात्रा, सक्रियता भोपाल, सागर और गढ़ाकोटा तक ही सीमित रहती है। संभवत: इसके कारण वे अजेय भी हैं। अब तक वे कोई चुनाव नहीं हारे। भार्गव नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं और सरकार के वरिष्ठ मंत्री हैं। क्या उन्हें प्रदेश और देश में अपनी सक्रियता और नहीं बढ़ाना चाहिए?