सनातन धर्म का नूतन केंद्र बनेगा मांधाता पर्वत पर एकात्मधाम…

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सनातन धर्म का नूतन केंद्र बनेगा मांधाता पर्वत पर एकात्मधाम…

इन दिनों सनातन धर्म पर विशेष चर्चा चल रही है। और शंकराचार्य एक महान समन्वयवादी थे। उन्हें सनातन धर्म को पुनः स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाता है। एक तरफ उन्होने अद्वैत चिन्तन को पुनर्जीवित करके सनातन हिन्दू धर्म के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ किया, तो दूसरी तरफ उन्होंने जनसामान्य में प्रचलित मूर्तिपूजा का औचित्य सिद्ध करने का भी प्रयास किया। आदि शकराचार्य जी महाराज की 108 फीट की मूर्ति मध्यप्रदेश में ओम्कारेश्वर में मांधाता पर्वत पर स्थापित की जा रही है। 18 सितंबर 2023 को आदि शंकराचार्य की ज्ञान स्थली ओंकारेश्वर की धरा पर होने वाले शंकरावतरणं नामक भव्य कार्यक्रम में प्रतिमा अनावरण के साथ ही अद्वैत लोक शिलान्यास का पूजन भी होगा। इसके साथ ही प्राचीन धर्मस्थल ओंकारेश्वर सनातन धर्म का नूतन केंद्र बनकर पूरी दुनिया में स्थापित होने जा रहा है। यह मध्यप्रदेश के लिए महान गौरव की बात है, तो भारत के लिए भी विश्वगुरू बनने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
आदि शंकराचार्य ने कहा कि ज्ञान के दो प्रकार के होते हैं। एक पराविद्या कहा जाता है और दूसरा अपराविद्या कहा जाता है। पहला सगुण ब्रह्म (ईश्वर) होता है लेकिन दूसरा निर्गुण ब्रह्म होता है। शंकर के अद्वैत का दर्शन का सार है कि ब्रह्म और जीव मूलतः और तत्वतः एक हैं। हमें जो भी अंतर समझ में आता है, उसका कारण हमारी अज्ञानता है। अद्वैत दर्शन बताता है कि जीव की मुक्ति के लिये ज्ञान आवश्यक है और जीव की मुक्ति ब्रह्म में लीन हो जाने में ही है। यह ज्ञान का प्रसार आद्य शंकराचार्य ने ही किया था, जब सनातन धर्म अपने स्वरूप को धूमिल होते देखने को मजबूर हो रहा था। तब इस युगपुरुष ने सनातन धर्म को पुनर्जीवित किया था। खंडवा जिले की तीर्थनगरी ओंकारेश्वर में जगतगुरु आदि शंकराचार्य की 108  फीट ऊंची प्रतिमा ‘स्टेच्यू ऑफ वननेस’ में ही अब पूरी दुनिया को सनातन धर्म की महत्ता का ज्ञान होगा। नर्मदा किनारे देश का चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर शंकराचार्य की दीक्षा स्थली है, जहां वे अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से मिले थे। यहीं 4 वर्ष रहकर उन्होंने विद्या अध्ययन किया और 12 वर्ष की आयु में ओंकारेश्वर से ही अखंड भारत में वेदांत के लोकव्यापीकरण के लिए गमन किया था। इसलिए ओंकारेश्वर के मान्धाता पर्वत पर 12 वर्ष के आचार्य शंकर की प्रतिमा की स्थापना की जा रही है। यह पूरी दुनिया में शंकराचार्य की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी जिसका लोकार्पण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 18 सितंबर को करेंगे। इस योजना के प्रथम चरण में आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा “स्टेच्यू ऑफ़ वननेस” बनकर तैयार हो चुकी है जबकि शेष कार्यों का भूमिपूजन होना है।
तो सनातन धर्म के पुनरुद्धारक, सांस्कृतिक एकता के देवदूत व अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रखर प्रवक्ता ‘आचार्य शंकर’ के जीवन और दर्शन के लोकव्यापीकरण के उद्देश्य के साथ मध्य प्रदेश शासन द्वारा ओंकारेश्वर को अद्वैत वेदांत के वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। जो पूरी दुनिया में मध्यप्रदेश को अलग पहचान देने जा रहा है। इसमें अद्वैत वेदान्त आचार्य शंकर अन्तराष्ट्रीय संस्थान के चार शोध केंद्र व उनके निर्माण की समृद्ध स्थापत्य शैली पूरी दुनिया में सनातन धर्म की अमूल्य निधि बनेंगे। यह शोध केंद्र आदि गुरु शंकराचार्य जी के चार शिष्यों के नाम पर आधारित होंगे l अद्वैत वेदान्त आचार्य शंकर अन्तराष्ट्रीय संस्थान के प्रांगण के अंतर्गत यह चार शोध केंद्र स्थित रहेंगे। जिनके नाम हैं – अद्वैत वेदान्त आचार्य पद्मपाद केंद्र, आचार्य हस्तमलक अद्वैत विज्ञान केंद्र, आचार्य सुरेश्वर सामाजिक विज्ञान अद्वैत केंद्र, आचार्य तोटक साहित्य अद्वैत केंद्र। इसके अतिरिक्त आचार्य गोविंद भगवतपाद गुरुकुल का व आचार्य गौड़पाद अद्वैत विस्तार केंद्र का भी निर्माण  होगा। हिमालयीन क्षेत्र की स्थापत्य शैली में आचार्य गौड़पाद अद्वैत विस्तार केंद्र को प्राचीन शहर कांचीपुरम से प्रेरणा लेकर संरचना की जाएगी, जो कभी पल्लव साम्राज्य का केंद्र था।
जगतगुरु शंकराचार्य जी द्वारा चार दिशाओं में चार मठों उत्तर दिशा में बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ, पश्‍चिम दिशा में द्वारिका में शारदा मठ, दक्षिण दिशा में श्रंगेरी मठ और पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ की स्थापना कर न केवल चार मठों में वेदान्त शालाएँ प्रारंभ की अपितु उन चार दिशाओं की संस्कृति व कला में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर सांस्कृतिक व कलात्मक एकीकरण की धरोहर आज के ज्ञान पिपासुओं हेतु देकर गए।
तो सनातन धर्म की श्रेष्ठता स्थापित करने वाले आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा मांधाता पर्वत से पूरी दुनिया को ज्ञान से सरावोर करने वाली है। सनातन धर्मावलंबियों के लिए यह दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ बनकर अज्ञानता दूर कर ज्ञान की रोशनी फैलाएगा। यहां आकर धर्मप्रेमी सनातन धर्म का महत्व समझ सकेंगे। सनातन धर्म की उपेक्षा करने वालों के ज्ञान चक्षु यहां आकर स्वत: ही खुल जाएंगे। मांधाता पर्वत पर एकात्मधाम के स्वरूप में स्थापित हो रहा सनातन धर्म का नूतन केंद्र हम सभी को गौरवान्वित होने का अवसर दे रहा है…।