नया साल और बड़े सवाल ?

नव वर्ष 2022 आया है , नया उत्साह लाया वहीं चुनोतियाँ भी साथ लाया है,
आज़ादी का अमृत महोत्सव अवश्य मना रहे हैं पर कोरोना संक्रमण के साये में उत्साह है पर दहशत भी कम नहीं ।
वैश्विक परिदृश्य भी आर्थिक मोर्चे पर असमंजस स्थितियों में दिख रहा है हमारे देश के सामने दो बड़े सवाल खड़े हैं , पहला –“ओमिक्रोन” इसे लेकर चिंता व्याप्त है कि संक्रमण की तीसरी लहर कितनी बड़ी होगी और कितनी घातक होगी ? दूसरा इसका प्रभाव देश की आर्थिक स्थिति पर क्या पड़ेगा ?

वैज्ञानिकों के मुताबिक यह वैरिएंट विस्फोटक रूप से अधिक संक्रामक है, पर कम घातक है, इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें लापरवाह हो जाना चाहिए| देश – दुनिया ही नहीं हमारे आसपास भी बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित मरीज़ मिल रहे हैं । डेल्टा वेरिएंट के साथ ओमिक्रोन बहुत अधिक हैं । सरकारी तंत्र बचाव के साथ उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने में जुटा है । परंतु चिकित्सा सुविधाओं की तुलना में रोगियों की संख्या बढ़ती हुई है ।आशंका कई गुना अधिक संक्रमित आने वाले समय में सामने आने वाले हैं । आसन्न संकट को लेकर अभी से सभी क्षेत्रों में परेशानी उभर रही है ।
घबराहट में प्रशासन और सरकारों को विश्वास बनाने की जरूरत है । कोरोना की दूसरी लहर में जान माल की बड़ी क्षति नागरिकों ने उठाई है । नये वेरियंट संक्रमण से देश – दुनिया ही नहीं भोपाल , इंदौर , रतलाम , ग्वालियर , जबलपुर , उज्जैन ही नहीं मंदसौर , नीमच , खंडवा , खरगोन आदि भी ग्रसित हैं ।

चिंता की बात अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर दबाव है, देश ही नहीं विदेश में भी । खासकर छोटे -पटरी, छोटे कारोबारियों , किराना, शॉपिंग मॉल के कामगारों की स्थिति ठीक नहीं है. मनरेगा के तहत काम की बढ़ती मांग को देखते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी दबाव में है| कई स्थानों पर भुगतान अरसे से लंबित है बहुत अच्छी फसल की उम्मीद के बावजूद अनाजों के भाव नीचे हैं, जिस कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग हो रही है| किसानों की यह लड़ाई भी जारी है । इधर दिसम्बर की शीतलहर , पाला पड़ने के बाद जनवरी पहले सप्ताह में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से खड़ी फसलों में नुकसानी दर्ज़ हुई है ।

मध्यप्रदेश , राजस्थान , गुजरात व अन्य राज्यों में प्रभाव पड़ा है । सरकारें नुकसानी सर्वे करा रही है ।
अभी तो खाद्य तेलों (आयातित) तथा दूध और पॉल्ट्री जैसी प्रोटीन स्रोतों के महंगे होने से खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ती जा रही है| ग्रामीण बेरोजगारी दर बढ़ रही है तथा ग्रामीण मजदूरी में ठहराव आ गया है| टू टियर एवं थ्री टियर शहरों से कोरोना दहशत से असंगठित श्रमिकों का पलायन शुरू होगया है ।

विभिन्न आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में श्रम भागीदारी दर महज 40 प्रतिशत रह गयी है, जो एशिया में सबसे कम है|ये आंकड़े 18 से 60 साल आयु के उन लोगों का अनुपात है, जो रोजगार में हैं या रोजगार की तलाश में हैं|बांग्लादेश में यह दर 54 , पाकिस्तान में 48 और नेपाल में 75 प्रतिशत के लगभग है|

सवाल यह है कि क्या भारत में यह कम दर हतोत्साहित कामगारों की ओर से आया संकेत है, जो काम मिलने की उम्मीद भी छोड़ चुके हैं| अर्थात बेरोजगारी दर में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज़ हुई है । देश में महिला श्रम भागीदारी की दर 20 प्रतिशत के आसपास है, जो समकक्ष देशों में पहले से ही सबसे कम है|बढ़ती मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के साथ विषमता में वृद्धि भी हो रही है| ताज़ा विश्व विषमता रिपोर्ट के अनुसार, कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत हिस्सा शीर्ष के 10 प्रतिशत लोगों के हाथों में केंद्रित है| इनमें भी शीर्षस्थ एक प्रतिशत के पास अकेले 22 प्रतिशत राष्ट्रीय आय है, जबकि सबसे निचले आधे लोगों के पास राष्ट्रीय आय का मात्र 13 प्रतिशत हिस्सा ही है|

भारत दुनिया की सबसे बड़ी विषम अर्थव्यवस्थाओं में है| इसकी पुष्टि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों पर आधारित नीति आयोग की रिपोर्ट से परिलक्षित होती है, जिसमें बताया गया है कि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बहुत अधिक बहुआयामी गरीबी दर है| यद्यपि नीति आयोग आय का आकलन नहीं करता है और इसमें शिशु मृत्यु दर, परिसंपत्ति और शिक्षा का सर्वेक्षण होता है| ओमिक्रॉन, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, गरीबी और विषमता से भी परे बैंकों से कम कर्ज लेने, निजी क्षेत्र से बड़ी परियोजनाओं में अपेक्षित निवेश न होने तथा स्कूलों में छात्रों की अनुपस्थिति जैसे कारक भी चिंता के कारण हैं| इन दो सालों में स्कूली शिक्षा की स्थिति का लंबा नकारात्मक असर भारत के मानव पूंजी विकास पर पड़ सकता है| शिक्षण सत्र के दो सालों में नकारात्मक और लंगड़ी व्यवस्था चल पाई , वर्तमान में तेजी से प्रसारित होता ओमिक्रोन वेरिएंट चालू सत्र को प्रभावित करता लग रहा है ।

आने वाले साल की प्राथमिकताएं साफ दिख रही हैं| सबसे पहले हमें बिना कड़ी पाबंदियों के ओमिक्रोन के लिए तैयार होना है| टीकाकरण की प्रगति को बढ़ाना होगा| हर जगह यह सुनिश्चित करना होगा कि कम से कम 50 प्रतिशत छात्रों के साथ स्कूल खुलें| फ़िलहाल तो जनवरी अंत तक विद्यालय बंद किये हैं । तात्कालिक तौर पर केंद्र और राज्य सरकार को कौशल विकास और प्रशिक्षण के कार्यक्रम चलाने चाहिए|

जनमानस में विश्वास बढ़ाने के उद्देश्य से अगर लोगों को स्थायी रोजगार देने की बाध्यता न हो, तो कंपनियां प्रशिक्षुओं को तुरंत काम दे सकती हैं |राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन परियोजनाओं को गतिशील करने के काम शुरू कर देना चाहिए| लगभग 20 लाख करोड़ रुपये सालाना खर्च करने के वादों पर अमल से नौकरियों और सहायक कारोबारों में बढ़त होगी इसके साथ निरंतर निर्यात वृद्धि के लिए समर्थन मिलता रहना चाहिए| कृषि निर्यात को बाधित नहीं करना चाहिए|उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना को सफल बनाए के लिए जुटना होगा| भारत को निर्यात के क्षेत्र में बांग्लादेश से सबक लेना होगा , जिसने एक दशक से अधिक समय तक कपड़ा निर्यात पर ध्यान दिया है और आज वहां भारत से प्रति व्यक्ति अधिक आय है| करों के बोझ से भी राहत मिलना जरूरी है |

इस सब के बावजूद वर्ष 2022 में अर्थव्यवस्था बढ़ने की उम्मीद है| आशान्वित हैं कि तेज़ और मुकम्मल अर्थव्यवस्था नये वर्ष में भारत की रहना चाहिए । कारोबारी और उपभोक्ता का भरोसा बढ़ने के साथ निजी निवेश बढने की भी उम्मीद है | भारतीय रिज़र्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ दो अंकों ( 9.20 ) तक रहने की आशा जताई है ।

चुनावी और राजनीतिक उठापटक भी चलते रहने के बावजूद नीतिगत निर्णय स्थिरता और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सहायक होंगे । कतिपय मोर्चे पर समस्याओं के बरक्स बदलाव हुए हैं , नये साल में माना जाता है इन सवालों के जवाब मिलेंगे ?
आने वाले सप्ताह में नया केंद्रीय बजट भी सामने आएगा क्या कुछ इसमें नया होगा ? इस पर सबका ध्यान है ।

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Ghanshyam Batwal
डॉ . घनश्याम बटवाल