कनाडा विवाद में ट्रूडो की शरारत पर भारत भी चुप नहीं!

286

कनाडा विवाद में ट्रूडो की शरारत पर भारत भी चुप नहीं!

IMG 20241018 WA0014
वेद विलास उनियाल

कनाडा और भारत के संबंध भी तल्ख हो गए हैं। कनाडा में 2015 में आई लिबरल पार्टी की ट्रुडो सरकार के रुख से संबंध तनावपूर्ण बने रहे। कनाडा की सियासत में वर्चस्व बनाए रखने के लिए उन्होंने जो रास्ता अपनाया उसने भारत और कनाडा के बीच एक बड़ी दरार पैदा कर दी। ट्रडो सीधे सीधे खालिस्तान समर्थकों को प्रभावित करने के लिए ऐसे बेतुके बयान देते रहे हैं, जिसने दोनों देशों के रिश्तों को कटुता में बदल दिया। वह यहां तक बढ गए कि कनाडा के नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय राजनयिक और सुरक्षा ऐजेसियों पर आरोप लगाए गए। जबकि, भारत के जरिए इस मामले में सबूत मांगे जाने पर कनाडा सरकार ने कोई सबूत उपलब्ध नहीं कराया। लेकिन, तीसरी बार फिर कनाडा सरकार की तरफ से इस बयानवाजी को फिर दोहराया गया तो भारत सरकार ने सख्त एक्शन लिया।

भारत में कनाडा के डिप्टी हाईकमिश्नर को तलब किया गया और छह राजनयिकों को 19 अक्टूबर को रात 12 बजे से पहले देश छोड़ने के लिए कहा गया। हालांकि, इसकी प्रतिक्रिया में पीएम जस्टिन टुड्रो ने कहा है कि उनके देश ने भारत के साथ संबंधों में कड़वाहट पैदा करने का कोई विकल्प नहीं चुना है। लेकिन, कनाडा ने भी भारत के छह राजनयिकों को स्वदेश जाने के आदेश दिए हैं। इसके पीछे कनाडा की सियासत में लिबरल और कजरवेटिव पार्टी के संघर्ष को देखना होगा। खासकर ऐसी स्थिति में जब ट्रुडो की सरकार तेजी से अलोकप्रिय होती जा रही हो और खालिस्तान समर्थन के लिए जानी गई जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने भी उनसे दूरी बना ली हो।

कास्ट आफ लिविंग, स्वास्थ सेवा खराब होने और अपराध दर में वृद्धि होने से ट्रुडो सरकार की छवि गिरी है। ट्रुडो की लिबरल पार्टी को इससे पहले मांट्रियल और टोरंटो के स्थानीय चुनाव में पराजय मिली। जल्दी ही कनाडा में चुनाव होने हैं। जबकि, इसके विपरीत कंजरवेटिव पार्टी के नेता पियरे पोलीवरे अपनी छवि लोगों के बीच बना रहे हैं। पश्चिम के राजनयिक समीक्षकों का मानना है कि जिस तरह ब्रिटेन में चुनाव नतीजों का आभास पहले ही होने लगा था वैसे ही स्थिति कनाडा की भी बन रही है। ऐसे में ट्रडो इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें किसी तरह सिख समुदाय के वोट मिले। कनाडा में भारतीय बड़ी संख्या में रहते हैं। वहां 27 लाख से ज्यादा भारतीय हैं। इसमें भी 2 प्रतिशत से ज्यादा सिख है। सिखों का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि ट्रुडो जब 2015 में देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने टिप्पणी की थी कि उनकी सरकार में मोदी मंत्रिमंडल से ज्यादा सिख है।

इस समय भी उनकी केबिनेट के तीन सदस्य सिख है। कनाडा में 127 साल पहले सिख का जाना भी ऐतिहासिक घटना है। भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी कनाडा गई थी। जिसमें मेजर केसर वहीं बस गए। इसके बाद सिख लोगों का वहां जाना शुरु हुआ। आज कनाडा में लगभाग सात लाख सिख है। 2-3 प्रतिशत वाला सिख समाज वहां का चौथा सबसे बड़ा समुदाय है। ट्रुडो अपनी पार्टी की कमजोर स्थिति को भापंकर लंबे समय से सिखों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने अंतराष्ट्रीय संबंधों की सीमाओं को लांघकर ऐसे कदम उठाए हैं जो किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता। उन्होंने यह धारणा बना कर रखी कि खालिस्तान समर्थकों को प्रभावित करने पर सिख समुदाय उनके साथ जुड जाएगा। ऐसे में सिख आबादी उनके पक्ष में मतदान करेगी। ट्रुडो ने केवल बेतुके बयान ही नहीं दिए। वह खालिस्तान समर्थकों की खालसा परेड में भी शामिल हुए। उनकी सरकार ने भारतीय वाणिज्य दूतावास के आगे प्रदर्शन करने वालों पर प्रतिबंध लगाने से इंकार किया। वह पूरी कोशिश करते रहे कि खालिस्तानी समर्थकों का उनपर विश्वास बना रहे।

हालांकि ऐसा कोई आकलन या पैमाना नहीं है कि खालिस्तानी समर्थकों के कहने पर वहां सिख बिरादरी अपना मतदान करती हो। ऐसा नहीं कनाडा के सभी सिखों की कोई सहानुभूति खालिस्तान समर्थकों के साथ दिखती हो। बल्कि, कई बार कनाडा में इनके खिलाफ भी खुलकर प्रदर्शन भी हुए। लेकिन, ट्रुडो सरकार ने खालिस्तान की मांग करने वालों को अपने साथ जोडने की कोशिश की है। उसकी दिक्कत इस बात से भी बढ़ी है कि जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का अब साथ नहीं है। जगजीत सिंह खालिस्तान समर्थक हैं। ऐसे में ट्रडो सिख समुदाय को लुभाने के लिए किसी हद तक जाने को तैयार हैं। वह कुछ समय पहले खालिस्तानियों के खालसा प्रेड में भी शामिल हुए थे। आपरेशन ब्लू स्टार के 40 वर्ष पूरे होने पर टोरंटो ओटारियो में आपत्तिजनक झांकिया भी निकली।

कनाडा में जब खालिस्तान पर जनमत संग्रह हुआ तो यह एक तरह से दूसरे देश पर हस्तक्षेप का सवाल मानकर रोका जाना चाहिए था। लेकिन, ट्रुडो सरकार ने कनाडा की धरती पर यह सब होने दिया। उनकी सरकार ने गुरुद्वारों में भारतीय अधिकारियों के जाने पर रोक लगाई। भारत में 2021 में किसान आंदोलन के समय कनाडा से सरकारी स्तर और सरकार प्रभावित मीडिया एजेसियों के जरिए काफी दुष्प्रचार होता रहा। ट्रुडो के एजेंडे में सिख समुदाय को साधने की कोशिश दिखती है। इसके लिए उन्होंने ऐसी लाइन पकड़ी, जिसमें भारत कनाडा के संबंधों की भी परवाह नहीं की गई। गौरतलब है भारत के चार लाख युवा कनाडा में पढ रहे हैं। दो लाख युवा हर वर्ष कनाडा पढ़ने जाते हैं। पश्चिम की एक समाचार एजेंसी ने कहा था कि भारत में कनाडा की 600 से ज्यादा कंपनियां काम कर रही है।

भारत कनाडा का 10वां बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत कनाडा व्यापार लगभग 10.50 बिलियन अमेरिकी डालर का है। लेकिन, ट्रुडो को अपनी सियासत के आगे कोई दूसरी चीज नजर नहीं आ रही। दशकों पहले भारतीय ने रोजगार के लिए जिस देश को प्रथामिकता दी थी उसमें कनाडा शामिल रहा। कनाडा की नीतियां और रोजगार के अवसरों ने खासकर पंजाब के लोगों को वहां आने के लिए प्रभावित किया। पंजाब से बड़ी संख्या में लोग कारोबार और रोजगार करने कनाडा गए। धीरे धीरे उन्होंने वहां की नागरिकता ली। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारतीय कनाडा में हैं। ट्रुडो सिख समुदाय को लुभाने की हर तरीके से कोशिश कर रहे हैं। वह अपनी सरकार को खालिस्तान समर्थकों के पक्षधर दिखाकर एक अलग तरह का संदेश देना चाहते हैं। जाहिर है वह इस जहर भरी सियासत में किसी बात की परवाह नहीं कर रहे हैं।

कनाडा में अपने राजनीतिक हितों के लिए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टुड्रो ने अपने तौर तरीकों से दोनों देशों के रिश्तों को इस मोड़ तक पहुंचा दिया। तीसरी बार उन्होंने तल्ख टिप्पणी करके माहौल खराब किया है। भारत सरकार के लिए अब इसके सिवा कोई विकल्प नहीं था कि वह कनाडा सरकार को सही समय पर सही जवाब दे। लिहाजा स्टीवर्ट रास व्हीलर पैट्रिक हेवर्ट, मैरी कैथलीन, इयान रॉस, एडम जेम्स और पाउला जैसे राजनयिकों को देश छोड़ने के लिए कह दिया है। अजब यह है कि ट्रूडो सरकार ने अदालत के फैसले पर नहीं अपने स्तर पर ही इस तरह के बयान दिए हैं। और दो देशों के बीच संबंधों को बिगाड़ दिया है। भारत को यह कहना पड़ा है कि ट्रूडो सरकार के रवैये से और अपने राजनयिकों की सुरक्षा खतरे में देखते हुए उन्हें भारत आने का निर्देश दिया गया है।