साल 2023 की पहली पूर्णिमा शुक्रवार 6 जनवरी को – – –
जाने क्या है विधान और महत्व
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प्रस्तुति – डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर
यूं तो हर दिन हर तिथि का अपना महत्व होता है । परंतु पूर्णिमा , अमावस्या , एकादशी , प्रदोष और चौथ अत्यंत विशेष होते हैं । इन तिथियों का सर्वकालिक महत्व माना गया है ।
हिंदी पंचांग के मुताबिक हर माह की आखिरी तिथि पूर्णिमा होती है। नए साल 2023 की पहली पूर्णिमा 6 जनवरी दिन शुक्रवार को है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान-ध्यान, पूजा, जप-तप और दान का विधान है। ज्योतिष विद्वान राजेन्द्र गुप्ता ने कैलेंडर नववर्ष की प्रथम पूर्णिमा का महत्व प्रतिपादित किया है । उनके अनुसार पौष पूर्णिमा विशेष दिन है । राजस्थान , मध्यप्रदेश , गुजरात समेत अन्य प्रांतों में पौष माह को उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है । इसमें देवालयों में नैवेद्य लगाने और मिश्रित दाल के बड़े बनाने की परंपरा भी है । इसे पौष बड़े उत्सव भी कहा गया है ।
यहां चर्चा है पौष पूर्णिमा की ।
धार्मिक और पौराणिक मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों और सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाने से भक्तों के सारे काम पूरे होते हैं और उन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौष पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति का आगमन होता है। भगवान सत्यनारायण कथा का भी विधान है । बंधु बांधवों के साथ कथा पारायण के विशेष लाभ है
♦️पौष पूर्णिमा का मुहूर्त
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पौष पूर्णिमा 6 जनवरी, 2023 दिन शुक्रवार को है. पंचांग के अनुसार, पौष पूर्णिमा तिथि 6 जनवरी दिन शुक्रवार को देर रात 2 बजकर 14 मिनट (6 जनवरी 2023 को 02:14 AM बजे) से शुरू होकर 7 जनवरी 2023 को 04:37 AM पर समाप्त होगी.
पौष पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ : 6 जनवरी 2023 को 02:14 AM बजे
पौष पूर्णिमा तिथि समाप्त : 7 जनवरी 2023 को 04:37 AM बजे
♦️पौष पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि
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पौष पूर्णिमा के दिन प्रातः काल उठ कर घर की साफ़-सफाई करें। उसके बाद स्नानादि करके व्रत का संकल्प लें। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना उत्तम माना जाता है। यदि नदी में स्नान करना संभव न हो तो घर पर ही नहाने वाले पानी में गंगाजल डाल कर स्नान करें। उसके बाद सर्वप्रथम भगवान भास्कर को ॐ नमो नारायणाय मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान सूर्य देव की ओर मुख करके जल में तिल डाल कर तिलांजलि दें। अब पूजा स्थल पर बैठकर नारायण की पूजा करें। पूजा के दौरान चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि अर्पित करें। पूजा के अंत में आरती और क्षमा प्रार्थना कर पूजा संपन्न करें।
♦️पूर्णिमा व्रत का महत्व
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ज्योतिष शास्त्र में पूर्णिमा व्रत का बड़ा महत्व है। पूर्णिमा के दिन कई तरह के उत्सव भी मनाये जाते है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक कहा गया है। इसी के साथ पूर्णिमा के दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान की पूजा करते हैं। इसी के साथ जो भी जातक विधि-विधान से भगवान की पूजा करता है उसका यह व्रत सफल होता है और उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। पूर्णिमा के दिन महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ मानते हैं, क्योंकि यह खराब स्वास्थ्य, नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा दिलाने में मदद करता है।