Flashback: चीन की रोमांचक यात्रा
बचपन से ही मैं संसार के प्रमुख आश्चर्य चीन की दीवार पर खड़े होने का सपना देखता था। 1962 में भारत को परास्त करने के बाद से अब चीन आर्थिक, सामरिक और तकनीकी महाशक्ति बन चुका है। चीन की विस्मयकारी उपलब्धियों से मेरी उत्सुकता और बढ़ गई। मेरी लंबी प्रतीक्षा 6 जुलाई, 2015 को समाप्त हुई जब मैं 11 दिवसीय चीन की यात्रा पर अपने तीन अन्य मित्रों के साथ रवाना हुआ। दिल्ली से हम तड़के सुबह हांगकांग पहुँचे और सुनसान सड़कों से जेट्टी पर पहुँचे। जेट्टी से लगभग 65 किलोमीटर की तेज़ नाव यात्रा के बाद मकाऊ पहुँचे। वहाँ पर हम गैलेक्सी होटल में रुके जिसमें कैसिनो भी था। इस छोटे से द्वीप में अनेक बड़े होटल हैं जिनमें कसीनो चलते हैं। यद्यपि यह लॉस वेगास से छोटा है परन्तु आधुनिकता और भव्यता में उससे अधिक है। यहाँ की रात की रंगीन साज सज्जा से मैं आश्चर्य चकित रह गया।
मकाऊ से चीन मेनलैंड पर जाने के लिए पुनः वीज़ा दिखाना पड़ता है। मकाऊ से बस के द्वारा हम 135 किमी दूर ग्वांग्झाउ के लिए रवाना हुए जो चीन का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। यह एक प्रांतीय राजधानी है तथा पर्ल नदी द्वारा समुद्र से जुड़ा हुआ बंदरगाह और बड़ा व्यापारिक केंद्र है। वहाँ कन्वेंशन एंड एक्ज़बिशन सेंटर (कैंटन फेयर कॉम्पलेक्स) में भवन सामग्री की प्रदर्शनी लगी हुई थी। यह एशिया का सबसे बड़ा कन्वेन्शन सेंटर है। मेरे मित्र यहाँ भवन सामग्री देखने के लिए आए थे। दो दिन तक इसका भ्रमण करने पर भी हम लोग इसे पूरा नहीं देख सके। शहर से दूर भी हार्डवेयर की दुकानों की विशालता देखकर आश्चर्य हुआ। वहाँ सस्ती से लेकर अत्यधिक महँगी सामग्री उपलब्ध हैं।शहर का केंद्रीय भाग बहुत आकर्षक बाज़ारों से भरा हुआ है। मेरे मित्र भवन सामग्री देख कर भारत वापस लौट गए। एक समुद्री तूफ़ान आने से सैकड़ों फ़्लाइट रद्द होने से मैं घबरा गया था, लेकिन सौभाग्यवश मेरी फ़्लाइट रद्द नहीं हुई। मैं अकेले बीजिंग रवाना हो गया।
एयरपोर्ट पर केवल मुझे लेने अंग्रेज़ी जानने वाली चीनी गाइड मिन आयी थी। वह मुझे कार से होटल ले गई और मेरे भ्रमण की पूरी रूपरेखा बतायी। बीजिंग चीन की ऐतिहासिक और वर्तमान राजधानी है। यह शहर अनेक ऐतिहासिक भवनों तथा आधुनिक तकनीक का अद्भूत मिश्रण है। सबसे पहले अगली सुबह हम लोग चीन की दीवार देखने के लिए गए। तीन घंटे की यात्रा के बाद हम लोग इस दीवार के सबसे सुंदर भाग में पहुँचे। चीन की विशाल दीवार मिट्टी और पत्थर से बनी एक किलेनुमा दीवार है जिसे चीन के विभिन्न शासको के द्वारा उत्तरी आक्रांताओं से रक्षा के लिए पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सोलहवी शताब्दी तक बनवाया गया। इस दीवार पर खड़े होकर मुझे लगभग अलौकिक आनंद प्राप्त हुआ। मिन ने इस दीवार पर मेरी फ़ोटो खींची। वहाँ से लौटते समय जेड पत्थर के गहनों की फ़ैक्ट्री देखते हुए वापस आये।
मिन मुझे फोरबिडन सिटी ले गई। यह 500 वर्षों तक चीनी शासकों का शीतकालीन निवास था। इस क़िले की दीवारों के बीच महल और अनेक संबंधित भवन है। विशाल क्षेत्र में फैला हुआ यह प्राचीन महलों में संसार में सबसे बड़ा है। पंद्रहवीं शताब्दी में निर्मित यह अभी भी पूरी तरह सुरक्षित है। इसमें 10 लाख कलात्मक वस्तुएँ रखीं हैं। इसके बाद हम किंग राजवंश का ग्रीष्मकालीन महल देखने गए। यह अनेक महलों का समूह है तथा इसके तीन चौथाई भाग में झील और पहाड़ी और बग़ीचे हैं। इन दोनों स्थानों की सुंदरता देखते ही बनती है।
बीजिंग का तियानमेन स्क्वायर इसके राजधानी होने का अनुभव कराता है। यह आधुनिक चीन के इतिहास का साक्षी है।यहाँ 1949 में रिपब्लिक की स्थापना हुई और यहीं 1989 में अभूतपूर्व विद्रोह हुआ। इस बड़े मैदान के चारों ओर अनेक महत्वपूर्ण शासकीय भवन, संग्रहालय और माओ त्से तुंग का स्मारक है। मैंने माओ के स्मारक में कांच के अंदर माओ का खड़ा हुआ जीवन्त दिखने वाला पार्थिव शरीर देखा। चीन में 2008 का ओलंपिक खेल इतिहास में सबसे बड़ा भव्य ओलंपिक था। मैंने मिन से खेल स्थल देखने की इच्छा व्यक्त की। उसने मुझे प्रसिद्ध बर्ड नेस्ट स्टेडियम और वॉटर क्यूब नामक स्विमिंग पूल दिखाया। एक शाम को मैं मिन के साथ प्रसिद्ध रेड थियेटर में विश्व- विख्यात कुंग फू शो देखने गया जिसमें उच्च कोटि के मार्शल खिलाड़ियों को तकनीकी नाटकीयता के साथ प्रस्तुत किया जाता है।मिन ने मॉल भी दिखाये जहां लड़के लड़कियाँ पश्चिमी सभ्यता में रंगे हुए थे। मिन मुझे रात में भारतीय डिनर करवा कर होटल पहुँचा कर फिर शहर के दूसरे छोर पर दो मेट्रो ट्रेन बदल कर अपने घर जाती थी और सुबह फिर आ जाती थी। उसने मुझे चीन की बहुत जानकारी दी। बीजिंग के भ्रमण के बाद मैं 3 सौ किलोमीटर प्रतिघंटे की बुलेट ट्रेन से चीन के सबसे बड़े शहर और आर्थिक राजधानी शंघाई के लिए रवाना हुआ। बीजिंग साउथ का रेलवे स्टेशन किसी बड़े एयरपोर्ट से अधिक बड़ा और सुंदर था। मिन मुझे भीड़ भरे लाउंज और सिक्योरिटी के बाद प्लेटफ़ॉर्म पर उतरने वाले इस्कलेटर तक लेकर गई और भावभीनी विदाई दी। मैं सीनियर सिटिज़न सबसे पहले नीचे उतरा। प्लैटफार्म पूरी तरह ख़ाली था और मैं आराम से ट्रेन में बैठ गया। पूरे रास्ते डिब्बे का स्पीडोमीटर ठीक तीन सौ किलोमीटर की गति दिखाता रहा।ट्रेन पाँच घंटे बाद निर्धारित समय पर शंघाई पहुँच गई।
शंघाई स्टेशन पर मेरा गाइड चाँग मुझे मिला। अगली सुबह वह मुझे चीन की सबसे महत्वपूर्ण शंघाई म्यूज़ियम ले गया जो एक कलात्मक आधुनिक भवन में है। इसमें चीन की क्लासिक कला वस्तुएँ रखी गई है जिनमें प्रागैतिहासिक काल से 19वीं शताब्दी तक की पीतल और चीनी मिट्टी की तथा अन्य अनेक वस्तुएँ रखी हैं। इस संग्रहालय को देखने में लगभग चार घंटे लग गए। इसी संग्रहालय के पास पीपुल्स स्क्वायर है जो शंघाई का केंद्र माना जाता है। यहाँ आधुनिक स्थापत्य कला के भवन वर्तमान चीन का वैभव प्रस्तुत करते हैं। चांग मुझे नानजिंग रोड ले गया जो पैदल शॉपिंग करने के लिए विख्यात है। इस पुराने शहर क्षेत्र में फुटपाथ पर सस्ते सामानों से लेकर अत्यधिक मंहगें बुटीक और कला वस्तुएँ मिलती हैं। पुराने शंघाई के निकट ही स्थित 16वीं शताब्दी का यू युआन ( आनंद बाग ) गार्डन बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें अनेक पुरानी चीनी शैली के भवन, सुंदर हरे बाग और छोटी झील हैं। इसी में शंघाई का प्रसिद्ध ताओवादी मंदिर है।यह मंदिर छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व हुए लाओ त्सू का है।मिंग काल में बने इस मंदिर को कम्युनिस्ट शासन द्वारा पूजा हेतु बंद कर दिया गया था, परन्तु अब यहाँ पूजा होती है।मैंने स्थानीय लोगों को अगरबत्ती जलाकर पूजा करते देखा।
मैं आधुनिक शंघाई की प्रतीक ओरियंटल पर्ल टावर के ऊपर गया। इसकी सबसे ऊँची फ़्लोर 351 मीटर तथा टीवी एंटीना के साथ 427 मीटर है। इसकी ऊपरी फ़्लोर पर बाहर चलने के लिए कांच की सतह बनी हुई है जिस पर चलते हुए नीचे देखने में भय की अनुभूति होती है। शंघाई में उस समय 632 मीटर ऊँची शंघाई टावर बनकर तैयार हो चुकी थी परंतु जनता के लिए नहीं खोली गई थीं। टावर देखने के बाद मैं चांग के साथ हुआंगपू नदी में क्रूज़ पर गया। क्रूज़ से आश्चर्यजनक रिवर फ़्रंट दिखता है। इस क्षेत्र को अंग्रेज़ी-हिंदी शब्द बंड ( बांध ) के नाम से जाना जाता है। इसके किनारे अंग्रेज़ों और फ्रेंच के बनाए हुए भवन बहुत आलीशान दिखते हैं। इसका अब मुख्य आकर्षण दूसरे सिरे पर आधुनिक चीन के वैभव की पराकाष्ठा के रूप में वित्तीय क्षेत्र है जहाँ वित्तीय संस्थानों के गगनचुम्बी भवन बने हुए हैं।देर शाम के अंधेरे में जगमगाता हुआ यह विचित्र संसार है। ऐसा भव्य दृश्य मैंने न्यूयार्क और लंदन में भी नहीं देखा था।अन्तिम रात चांग ने मुझे एअरपोर्ट पर छोड़ा और मैं चीन की विविध अविस्मरणीय स्मृतियाँ लेकर वापस स्वदेश लौट आया।
एन. के. त्रिपाठी
एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।
वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।