Flashback: सीआरपीएफ़ का शौर्य दिवस एवं चिंतलनार का बलिदान

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Flashback: सीआरपीएफ़ का शौर्य दिवस एवं चिंतलनार का बलिदान

अप्रैल 2010 में कश्मीर घाटी में अपेक्षाकृत शांति थी। यह तूफ़ान के पहले की शांति थी क्योंकि कुछ ही महीनों बाद कश्मीर घाटी में एक सर्वाधिक हिंसक दौर आने वाला था। स्पेशल DG CRPF, जम्मू एंड कश्मीर के पद पर मेरे क्षेत्राधिकार में पंजाब, दिल्ली और राजस्थान में तैनात CRPF की बटालियनें तथा अन्य CRPF केंद्र भी थे।घाटी की शांति का लाभ लेते हुए मैंने पंजाब और दिल्ली क्षेत्र के निरीक्षण का कार्यक्रम बनाया। 6 अप्रैल, 2010 को मैं जम्मू से सड़क मार्ग से रवाना हुआ। दक्षिण में साम्बा ज़िले को पार करते हुए कठुआ ज़िले में पहुँचा जहाँ धरती पंजाब के समान समतल है। कठुआ के दक्षिणी छोर पर पंजाब सीमा के निकट स्थित रावी नदी के बराज पर कुछ देर रूका और फिर अमृतसर के लिए रवाना हो गया। सामरिक महत्व की पठानकोट तहसील (अब पृथक जिला) पार कर गुरदासपुर होते हुए अमृतसर पहुँचा। गुरदासपुर जिला 1947 के विभाजन में मुस्लिम बहुल होते हुए भी रैडक्लिफ़ द्वारा भारत को दे दिया गया जिसके कारण भारत का कुछ समय बाद पठानकोट होते हुए जम्मू कश्मीर से जुड़ना संभव हो सका।

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दोपहर बाद मैं 13वीं बटालियन CRPF की छोटी सी मैस में पहुँचा और वहाँ से तुरंत वाघा बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट देखने के लिए रवाना हो गया। वाघा में बीएसएफ के अधिकारियों के साथ मैंने चर्चा की और उन्होंने मुझे पैदल ले जाकर कुछ दूर पर सीमा पर लगे खम्भे दिखाये। पाकिस्तानी सीमा के अंदर जाकर पाक रेंजर के एक सिपाही के साथ मैंने फ़ोटो खिंचवाई और उस से कुछ देर बातचीत की। बीएसएफ़ को पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमा पर अग्रिम रखवाली करने का दायित्व दिया गया है। वहाँ से लौट कर जब मैं अमृतसर आया तो वहाँ पर छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले के चिंतलनार के जंगलों में नक्सलियों द्वारा एम्बुश में CRPF के 76 जवानों को शहीद कर देने की सूचना प्राप्त हुई। यह हृदयविदारक घटना आज तक CRPF के इतिहास में सर्वाधिक क्षति वाली घटना थी। इस घटना से मुझे तथा अन्य CRPF के अधिकारियों एवं जवानों को बहुत धक्का पहुँचा।सभी केन्द्रीय पुलिस बलों में संभवतः CRPF की चुनौतियाँ सर्वाधिक कठिन है। उसी रात को मैंने बटालियन के अधिकारियों की बैठक ली और उनकी तथा क्षेत्र की समस्याओं की जानकारी प्राप्त की।

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अगले दिन सुबह मैं जालंधर के लिए रवाना हुआ।वहाँ लोधीपोरा के CRPF कैंप का अवलोकन किया और वहाँ जम्मू कश्मीर से बारी-बारी भेजे जाने वाले CRPF कर्मियों के रिफ्रेशर कोर्स की व्यवस्था की। उसी समय मुझे निर्देश प्राप्त हुआ कि अपना कार्यक्रम निरस्त कर मैं सीधे दिल्ली पहुँचूँ और 9 अप्रैल को परम्परागत रूप से मनाया जाने वाले शौर्य दिवस के मुख्य कार्यक्रम में CRPF का नेतृत्व करूं। CRPF मुख्यालय से DG श्री विक्रम श्रीवास्तव को चिंतलनार की घटना के लिए छत्तीसगढ़ भेज दिया गया था। मैं चंडीगढ़ के रास्ते से आधी रात को नई दिल्ली पहुँचा। अगले दिन सुबह शौर्य दिवस की तैयारियों के लिए मैं वसंत कुंज स्थित ‘शौर्य CRPF इंस्टिट्यूट’ पहुँचा। इसके उपरांत CRPF मुख्यालय में जाकर नक्सलियों द्वारा की गई गंभीर घटना का पूरा विवरण एकत्र करना प्रारंभ कर दिया।


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9 अप्रैल को CRPF अपने शौर्य दिवस के रूप में बहुत गर्व से मनाती है। इस दिन 1965 में CRPF की एक छोटी सी टुकड़ी ने गुजरात के कच्छ के रन में सरदार पोस्ट पर पाकिस्तान की पूरी एक ब्रिगेड के हमले को विफल कर दिया था। इस हमले में 34 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया और 4 को जिंदा गिरफ्तार किया गया। सैन्य लड़ाई के इतिहास में कभी भी एक छोटी सी अर्धसैनिक टुकड़ी ने नियमित सेना के पूरे ब्रिगेड को परास्त नहीं किया है। इस संघर्ष में CRPF के 6 वीरों ने अपनी शहादत दीं। बल के बहादुर जवानों की गाथा की चिरस्थायी स्मृति हेतु प्रत्येक वर्ष  9 अप्रैल को शौर्य दिवस मनाया जाता है। कार्यक्रम सुबह नौ बजे प्रारंभ हुआ जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में तत्कालीन गृह मंत्री श्री पी चिदंबरम उपस्थित हुए।केंद्रीय गृह मंत्रालय तथा सभी केंद्रीय पुलिस बलों के वरिष्ठ अधिकारियों सहित अनेक गणमान्य लोग एकत्रित थे।

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इस अवसर पर मैंने अपने उद्बोधन में शौर्य दिवस पर प्रकाश डालते हुए CRPF की भविष्य की चुनौतियों के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रस्तुत की।श्री पी चिदंबरम ने जम्मू कश्मीर, नक्सली क्षेत्र तथा पूर्वोत्तर राज्यों एवं अन्य गंभीर क़ानून व्यवस्था की स्थिति में CRPF की कर्तव्यपरायणता और किये गये बलिदान की सराहना की तथा सरकार की ओर से सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया।कार्यक्रम की समाप्ति उन्होंने मुझे चिंतलनार की घटना पर शाम तक उन्हें रिपोर्ट भेजने के लिए कहा। CRPF मुख्यालय पहुंच कर मैंने एक विस्तृत रिपोर्ट बनाकर भेज दी।

5 अप्रैल को चिंतलनार सीआरपीएफ कैंप से करीब 150 जवान जंगल में सर्चिंग के लिए निकले। सभी जवान घने जंगल में कई किलोमीटर चलने के बाद जब वापस लौट रहे थे तभी 6 अप्रैल की सुबह करीब 6 बजे यह भीषण मुठभेड़ हुई। नक्सलियों ने बड़ी चालाकी से ताड़मेटला और चिंतलनार के बीच सड़क पर लैंडमाइन बिछा रखी थी और बीच में पड़ने वाली छोटी पुलिया को भी बम से उड़ा दिया था।इस मुठभेड़ में जवानों ने प्रारम्भ में नक्सलियों का अच्छा सामना किया और 8 बड़े नक्सलियों को मार गिराया। लेकिन सैकड़ों की संख्या में नक्सलियों ने जवानों को अपने एम्बुश में ले लिया था। पास की पहाड़ी से शुरू हुई धुआँधार गोलीबारी में जवान बुरी तरह घिर गए और 76 जवान शहीद हुए और अनेक गंभीर रूप से घायल हो गये। चिंतलनार की भयावह घटना का विवरण जानने के लिए राष्ट्रीय मीडिया बहुत व्याकुल था। मैंने प्रिंट और TV मीडिया के समक्ष बिना कोई तथ्य छिपाये विस्तृत विवरण रखा और उसके बाद मीडिया की तरफ़ से प्रश्नों की झड़ी लग गई।

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मैंने यथासंभव उनके प्रश्नों का समाधानकारक उत्तर देने का प्रयास किया। अगले दिन दिनांक 10 को गृह मंत्री श्री चिदंबरम को एक प्रजेंटेशन प्रस्तुत करना पड़ा। उन्होंने मुझे अगले कुछ दिनों तक मुख्यालय में रूक कर नक्सल क्षेत्र की सभी प्रशासनिक व्यवस्थाओं को देखने का निर्देश दिया। अगले तीन दिनों तक मैं नक्सल संबंधित कार्य देखता रहा। मीडिया भी बराबर जानकारी चाहता था और मैं उसकी ब्रीफ़िंग करता रहा। गृह मंत्रालय में स्पेशल सचिव सुरक्षा और मेरे बैचमेट स्वर्गीय यूके बंसल को मंत्रालय में जाकर मैंने जम्मू कश्मीर के संबंध में पूरी जानकारी दी।डीजी श्री विक्रम श्रीवास्तव के लौटने पर मैं हवाई जहाज़ द्वारा जम्मू रवाना हो गया और वहाँ अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था के लिए व्यस्त हो गया। उस समय मुझे नहीं मालूम था कि जून से चार महीनों तक मुझे कश्मीर घाटी के सर्वाधिक हिंसक काल का सामना करना पड़ेगा।

2010 का शौर्य दिवस जहाँ परंपरागत रूप से गर्व के साथ मनाया गया वहीं चिंतलनार की दुखद एवं हृदय विदारक घटना में हुए बलिदान के कारण सबकी आँखें नम थी।