Flashback (12  अप्रैल, 1998): English Channel पार करने का वो अनोखा रोमांच!

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Flashback : English Channel पार करने का वो अनोखा रोमांच!

सेंट्रल लंदन से हमारी कॉसमॉस की बस 12  अप्रैल, 1998 को पूरब की ओर मुँह करके यूरोप महाद्वीप की ओर चल पड़ी। पूरी बस में मैं अकेला भारतीय था। क़रीब डेढ़ घंटे चलकर हम लोग इंग्लिश चैनल (English Channel )  के किनारे इतिहास और साहित्य में प्रसिद्ध डोवर बीच पहुँचे। यहीं समुद्र के किनारे एक रात मैथ्यू आर्नल्ड ने संसार की आपाधापी से त्रस्त होकर कह दिया-
Ah, love, let us be true
To one another! – –  – –

डोवर बीच से एक सुंदर क्रूज़ में बैठकर मैंने 33 किमी की इंग्लिश चैनल( English Channel) को पार किया, जिस चैनल ने नेपोलियन और हिटलर को ब्रिटेन में पैर रखने नहीं दिये थे। उस पार अकेले पहुँचकर वॉल्टेयर और रूसो की फ़्रान्सीसी भूमि पर पैर रख कर एक सुखद स्पंदन हुआ।वहाँ से दूसरी बस से रवाना हो कर बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स पहुँचे। इस यात्रा में हमारी गाइड एक इटैलियन लॉरिडॉना थी, जिसे पूरे यूरोप की संस्कृति, स्थापत्य कला और भूगोल की अच्छी जानकारी थी।

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ब्रसेल्स में डच और फ्रेंच भाषा बोली जाती है।शहर  का हृदय स्थल ग्रैंड प्लेस है जोकि एक बहुत आलीशान चौक है। यहाँ पर बोरोक की अत्यधिक सजावट वाली शैली के गिल्ड , टाउनहाल और गोथिक शैली का ब्रेड हाउस जैसे भव्य भवन स्थित हैं। पूरा चौक और इसकी सड़कें कॉबल यानी पत्थरों के ईटों की बनी हैं।

यहाँ की बग्गियों में अति विशाल घोड़े मध्ययुगीन वैभव की याद दिला रहे थे। शहर का प्रतीक आटोमियम 102 मीटर ऊँचा एल्यूमीनियम और स्टील का ढांचा है जो 1958 में प्रदर्शनी के लिए बनाया गया था। यह लोहे के क्रिस्टल के आकार का है तथा बहुत मनोरम दिखाई देता है। ब्रसेल्स में एक छोटे नंगे बच्चे की मेनेकिन पिस नामक मूर्ति आकर्षण का केंद्र है, जिसके बारे में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं।ब्रसेल्स में यूरोपीय यूनियन का मुख्यालय भी देखा।

ब्रसेल्स के बाद हम लोग दक्षिणी पश्चिमी जर्मनी के प्राकृतिक सौन्दर्य के क्षेत्र में प्रविष्ट हुए। जर्मनी की जीवन रेखा राइन नदी के दर्शन हुए। यूरोप के इतिहास में अनेक सेनाओं को अपने ऊपर से पार करते हुए देखने वाली यह नदी स्विट्जरलैंड के दक्षिण-पूर्वी एप्प्स से निकलकर छह देशों से होते हुए 1230 किलोमीटर के बाद नॉर्थ-सी में मिल जाती है।राइन का क्रूज़ विशेष स्मरणीय रहा जहाँ से ऊँचे पहाड़ी तट पर बना हुआ मध्य युग का एक क़िला बहुत रहस्यमय दिख रहा था। यहाँ के अधिकांश भवन बोरोक शैली के बने हुए हैं।

छोटे से शहर राथेनबर्ग के बाज़ार का चौक बड़ा प्रभावी था जहाँ पर टाउनहाल का टावर तथा कुछ मूर्तियां बहुत सुंदर दिखाई दे रही थी। दूसरे शहर हीडेलबर्ग में बोरोक शैली का महल और होली स्पिरिट चर्च बहुत आकर्षक थे। यहाँ पर टहलने के लिए फिलॉस्फर फुटपाथ बना हुआ है।दक्षिण जर्मनी की रोमांटिक रोड पर चलते हुए हम लोग ऑस्ट्रिया की तरफ़ बढ़े। यह सड़क अपनी प्राकृतिक सुंदरता और दोनों ओर ऊँची-नीची भूमि पर अंगूर के खेतों के लिए विश्वविख्यात है।गाइड लॉरिडॉना इस लम्बे सफ़र में बहुत रोचक  जानकारियाँ दे रही थी।

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ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना पहुंचकर इसकी सुंदरता देखकर आंखें खुली रह गई।पेरिस से टक्कर लेने वाला यह शहर जर्मन भाषी है तथा अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों का केंद्र है। यहाँ का सिटी सेंटर वर्ल्ड हेरिटेज है तथा ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य का वैभव दिखाता है।यहाँ का हैप्सबर्ग वंश का पुराना हॉफबर्ग महल तथा बाद में बना भव्य शॉन ब्रेन महल विश्व में अद्वितीय हैं।

वियना विश्व की संगीत राजधानी भी है जहाँ बिथोवन और मोज़ार्ट जैसे संगीतकार हुए हैं।हमारे ग्रुप के कुछ लोग ऑपेरा जाने के लिए बहुत उत्सुक थे। उनके आग्रह पर एक ऑपेरा मे मुझे संगीत सुनने का जीवन में दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ।सपनों का विश्लेषण करने वाले मनोविश्लेषक वैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड इसी शहर के थे, इसलिए इसे सपनों का शहर भी कहा जाता है। वियना की चकाचौंध आज भी तरोताजा है।यह हमारे यूरोप की यात्रा का आखिरी पूर्वी छोर था।

ऑस्ट्रिया का भ्रमण समाप्त कर के हम लोग वियना से सीधे दक्षिण पश्चिम की ओर इटली के प्रसिद्ध शहर वेनिस की ओर रवाना हो गए। लगभग छह सौ किलोमीटर से अधिक की यह यात्रा बहुत सुंदर दृश्य वाली थी जिसमें आल्प्स पर्वत के किनारे हम लोग चल रहे थे।वेनिस विश्व का एकमात्र शहर है जहाँ पर सड़कों के स्थान पर नहरें हैं और कारों की जगह नाव चलती हैं। 118 टापू और 400 पुल इस शहर में है।

शहर का मुख्य आकर्षण सेंट मार्क स्क्वायर (चौक) है जिसके एक तरफ़ समुद्र है। यहाँ सैलानी क्लॉक टावर से सेंट मार्क बेसिल्का (चर्च) तक के खुले क्षेत्र में टहलते हैं। मुझे इस बेसिल्का में मोमबत्ती जलाने का अवसर प्राप्त हुआ। पुलों को पार करके शहर के कुछ अंदरूनी क्षेत्रों को भी देखा।

यह शहर कांच के काम के लिए भी प्रसिद्ध है और इसकी एक फैक्ट्री से मैं कॉंच का स्मृति चिन्ह लेकर आया जो आज भी मेरे पास है। सबसे अधिक अविस्मरणीय यहाँ पर स्थानीय नाव गोंडोला में बैठ कर समुद्र के बैकवॉटर में नौकायन था।

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वेनिस से हम लोग इटली की राजधानी रोम पहुँचे जो यूरोप के प्राचीन रोमन साम्राज्य की धरोहर है।अनेक प्रकार के प्राचीन भवन यहाँ पर बिखरे हुए है। इनमें सबसे प्रसिद्ध कोलोसियम है जो रोमन साम्राज्य में एम्फीथियेटर ( स्टेडियम) के लिए प्रयोग होता था।

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इसमें सामंत और जनता के लोग बैठ कर ग्लैडिएटर ( योद्धा )की लड़ाई देखते थे।ग्लैडिएटर हथियार लेकर दूसरे ग्लैडिएटर से अथवा जंगली जानवरों से लड़ते थे जिसमें अधिकांश किसी की मृत्यु भी हो जाती थी।

ट्रेवी फाउंटेन रोम का पुराना जल स्रोत है और इसमें लोग मान्यता अनुसार सिक्के उछाल कर फेंकते हैं।इसमें सिक्का फेंकने के बाद वर्षों बाद मुझे यहाँ फिर आना पड़ा। रोमन फोरम  एक दूसरा आकर्षण का केंद्र है।शहर की एक गली में मुझे सामने बनवा कर असली इटालियन पिज़्ज़ा खाने का सौभाग्य मिला।इसी प्रकार एक दिन शहर से दूर फ्रेस्कॉटी गाँव के एक ढाबे में परम्परागत इटालियन डिनर का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।

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रोम शहर का ही एक भाग वेटिकन है जो एक स्वतंत्र राज्य है और यहाँ पर पोप की सत्ता है। यह कैथोलिक क्रिश्चियन का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है।यहाँ पर स्थित सेंट पीटर्स बेसिल्का  विश्व की सुंदरतम चर्च है जिसमें स्थापत्य कला, मूर्ति और चित्रकला का अद्भुत मिश्रण है।यह मूल रूप से चौथी शताब्दी में बनाई गई थी लेकिन अपने वर्तमान स्वरूप में 1626 में विश्व की विशालतम चर्च के तौर पर रेनेसान्स शैली में बनाई गई।

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इसके निर्माण में विश्व के महानतम वास्तुकारों में माइकल एंजिलो जैसे महान कलाकार भी थे। यहाँ पर हम लोगों को दूर ऊँची खिड़की से पोप ने अपने दर्शन भी दिए। रोम से उत्तर दिशा की ओर स्थित इटली के सबसे स्वच्छ शहर फ़्लोरेंस में हम लोग पहुँचे।यहाँ का मुख्य आकर्षण रेनेसान्स शैली में बना हुआ ड्योमा कैथेड्रल है।

इसमें टेराकोटा की टाइल्स की सुन्दर गुंबद बनी हुई है।फ़्लोरेंस की गैलरी ऑफ द एकेडमी एक कला का संग्रहालय है जहां मुझे अन्य कलाकारों के साथ माइकल एंजेलो की अभूतपूर्व कलाकृतियों को देखने का अवसर प्राप्त हुआ।

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इस प्रकार पश्चिमी और मध्य यूरोप के चित्रवत् शहरों और विश्व प्रसिद्ध भव्य भवनों को देखने के उपरांत हम लोग उत्तर दिशा में पहाड़ों और झीलों की प्राकृतिक सुंदरता के देश की ओर चल पड़े।

Author profile
n k tripathi
एन. के. त्रिपाठी

एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।

वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।