Flashback: दमोह का वो हत्याकांड और राजनीतिक झमेले के बीच मेरी SP की पहली पोस्टिंग!

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Flashback: दमोह का वो हत्याकांड और राजनीतिक झमेले के बीच मेरी SP की पहली पोस्टिंग!

मध्य प्रदेश के दमोह में 11 मई, 1983 को शहर के बीच स्थित कुएँ से एक लाश निकाली गई जो दमोह ज़िले के सर्वाधिक प्रभावशाली टंडन परिवार के एक युवा विजय (मल्लन) की थी।उसके सगे चाचा प्रभु नारायण टंडन (बब्बा) दमोह से संसद सदस्य थे।मल्लन के पिता चन्द्र नारायण टंडन ( चंदू) तीन पदों दमोह के विधायक , जिला कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष एवं दमोह नगर पालिका के अध्यक्ष थे।

Flashback: दमोह का वो हत्याकांड और राजनीतिक झमेले के बीच मेरी SP की पहली पोस्टिंग!

तीन दिन पहले ही मल्लन के अपहरण की रिपोर्ट कोतवाली थाने में की गई थी और प्रभुनारायण टंडन कोतवाली के सामने धरने पर भी बैठ चुके थे। लाश निकलते ही इसकी ख़बर बिजली की तरह फैल गई और तत्काल भारी भीड़ एकत्र हो गई और पुलिस और प्रशासन के विरुद्ध नारेबाज़ी करने लगी। उत्तेजित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए फ़ोर्स सहित कलेक्टर और SP घटनास्थल पर पहुँचे। भीड़ ने उनके साथ बहुत ही अभद्र व्यवहार किया।

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टंडन परिवार ने इस घटना को राजनीतिक हत्या बताया तथा दमोह ज़िले के नोहटा के कांग्रेस के ही युवा विधायक एवं संसदीय सचिव रत्नेश सालोमन को हत्यारा बताया। स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने शासकीय वायुयान से CID प्रमुख DIG राजा श्रीधरन और फॉरेंसिक एक्सपर्ट हीरेश चन्द्रा को दमोह भेजा। नगर निरीक्षक कोतवाली को निलंबित कर दिया और अगले दिन पुलिस अधीक्षक PC मंडल को अनिवार्य छुट्टी पर भेज दिया।

इस विषम परिस्थिति में नए SP की खोज हुई। कोई भी पुलिस अधीक्षक स्तर का अधिकारी वहाँ जाने के लिए उत्सुक नहीं था।ऐसी स्थिति में मेरे अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था नहीं क्योंकि मेरी लगभग नौ वर्ष की सेवा हो चुकी थी और कोई ज़िला मुझे नहीं दिया गया था। इंदौर में पुलिस आंदोलन से निपटने के बाद मुझे 24वीं बटालियन को संभालने के लिए कमांडेंट बनाकर जावरा भेज दिया गया था जिसकी कंपनियां आंदोलन में सम्मिलित थी।

इस बटालियन को जब आसाम से वापस भी ले कर आया तो कुछ ही दिनों बाद EOW के प्रमुख DIG डी एन आहुजा ने अच्छे अभिलेख के आधार पर मुझे AIG EOW जबलपुर के लिए चुन लिया जहाँ पर मैं दो वर्ष तक रहा।मेरे दमोह पुलिस अधीक्षक के आदेश प्राप्त होते ही मैं दो दिन बाद जबलपुर से अपना सामान लेकर पास में ही स्थित दमोह पहुँच गया और दिनांक 16 मई, 1983 को पुलिस अधीक्षक बन गया। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में जब IPS की परीक्षा में मैं बैठा था तब पुलिस कप्तान ( SP) ही हमारा आदर्श था।

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टंडन बंधु प्रादेशिक राजनीति में अर्जुन सिंह के विरोधी थे तथा श्यामाचरण शुक्ला के समर्थक थे।उन्हें सोलोमन के विरुद्ध कार्रवाई पर श़क था इसलिए घटना के तुरंत बाद ही प्रभु नारायण टंडन ने प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी से कह कर इस अपराध की विवेचना CBI को दिलवा दी।यह मेरा सौभाग्य था कि मेरे दमोह पहुँचने से पहले ही इस तथाकथित मल्लन हत्याकांड की जाँच CBI को दे दी गई।

इस से जिला पुलिस पर कोई भी आरोप लगने की संभावना ख़त्म हो गई। CBI ने स्वाभाविक रूप से रत्नेश सालोमन की जीप ज़ब्त की जिसमें खून के धब्बे थे।यह तुरंत प्रचार हो गया कि हत्याकांड का पर्दाफ़ाश हो गया है। लेकिन कुछ ही दिनों बाद यह खून जानवर का पाया गया। सभी जानते थे कि सालोमन शिकार के शौक़ीन थे हालाँकि यह भी अवैधानिक था।इसके बावजूद CBI ने प्रभुनारायण टंडन द्वारा दिल्ली से दबाव डालने के कारण CBI के SP श्री M L शर्मा को लगातार दमोह में बैठ कर इस अपराध का पता लगाने के लिए भेजा गया।

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कहा जाता है कि अर्जुन सिंह के समर्थक सोलोमन को पूछताछ में यातनाएं भी दी गई। लंबी जाँच पड़ताल के बाद भी हत्यारे का कोई पता नहीं चला। जनता के बीच में कुछ अफ़वाहें थी लेकिन उन पर विशेष जाँच पड़ताल नहीं हुई।साक्ष्य के अभाव में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूँ।

दमोह ज़िले का चार्ज लेते ही मैंने देखा कि शहर की क़ानून व्यवस्था की स्थिति बहुत बिगड़ी हुई है। संभवतः अर्जुन सिंह अपने विरोधी टंडन बंधुओं को प्रसन्न रखने के लिए पुलिस और सरकारी कर्मचारियों की पदस्थापना उनकी इच्छानुसार करते थे।ऐसे अधिकारी और कर्मचारी केवल टंडन बंधुओं को ख़ुश रखने में लगे रहते थे और मेरे सामने राजनैतिक दबाव से हटकर उचित कार्रवाई करने की चुनौती थी।

शहर में चाकूबाजी, कट्टा चलाने और एसिड फेंकने की बहुत घटनाएँ हो रहीं थीं। जुआँ और सट्टा चल रहा था। पुलिस का अनुशासन ढीला हो गया था। दमोह शहर में केवल एक DSP मुख्यालय हुआ करता था जिसके पास मुख्य रूप से कार्यालय का काम होता था।इसके बाद केवल कोतवाली और थाना दमोह देहात के निरीक्षक थे। इसलिए मैंने कार्य अपनी सीधी निगरानी में ले लिया।

हत्याकांड के बाद पदस्थ नए नगर निरीक्षक एम बी जग्गी बहुत सक्षम अधिकारी थे और मेरे प्रोत्साहन से उन्होंने अपराधों को नियंत्रण करने में शीघ्र ही सफलता प्राप्त कर ली। इसी बीच मैंने अपनी साली के विवाह के लिए लखनऊ जाने के लिए तीन दिन की छुट्टी माँगी जो सागर रेंज के DIG ( जिनका नाम मैं नहीं बताना चाहता) द्वारा अस्वीकृत कर दी गयी।यह शादी मैंने ही अपने विश्वविद्यालय के एक मित्र से तय करवाई थी और इसलिए मेरा जाना वहाँ बड़ा आवश्यक था।

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यह छुट्टी इसलिए निरस्त कर दी गई क्योंकि पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई थी। मैंने उनसे बहुत विनती की और उन्हें बताया कि चुनाव की वोटिंग के समय मैं उपस्थित रहूंगा। तब उन्होंने यह कहा कि आप अपने कलेक्टर से लिखवा कर दें तभी छुट्टी दूँगा।मेरे कलेक्टर सुखदेव प्रसाद दुबे जी ने हँसते हुए तत्काल हस्ताक्षर कर दिए और मैं छुट्टी पर जा सका।

मेरे दमोह आने के दो महीने बाद ही पदमवीर सिंह को कलेक्टर पदस्थ किया गया। वे सीधी भर्ती के IAS अधिकारी थे और अपने पहले ही ज़िले का चार्ज ले रहे थे। वे एक सुलझे हुए, निडर, नियमों के अनुसार काम करने वाले और क़ानून व्यवस्था को महत्व देने वाले अधिकारी थे। अब पुलिस और प्रशासन के सभी निर्णय केवल प्रशासनिक आधार पर लिए जा रहे थे और ज़िले की स्थिति पूरी तरह से नियंत्रित हो गयी।

अब मेरे सामने केवल हटा तहसील के जंगल से लगे हुए ग्रामीण क्षेत्रों में डाकुओं द्वारा अपहरण की चुनौती थी।