Politico Web: सूर्य नमस्कार से तिलमिलाहट क्यों ?

682

Politico Web: सूर्य नमस्कार से तिलमिलाहट क्यों ?

स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर स्कूलों में सूर्य नमस्कार का कार्यक्रम आयोजित किए जाने के निर्देश का ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विरोध किया है और सूर्य नमस्कार कार्यक्रम से मुस्लिम छात्र-छात्राओं को दूर रहने की हिदायत दी है।

हालिया दौर में मुस्लिम संगठनों से जुड़े जो दो मुद्दे सबसे ज्यादा चर्चा में रहे हैं, उनमें से एक है तीन तलाक और दूसरा है अयोध्या का मसला। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक से जुड़े कानूनों का हमेशा से विरोध किया है, वहीं ये संगठन हमेशा से इस बात का पैरोकार रहा है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद थी और वहां पर मस्जिद ही बननी चाहिए। यानी वजूद बचाने के मकसद से सिर्फ विरोध करना है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने बयान जारी कर कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहां पर बहुसंख्यक समुदाय के रीति-रिवाज और पूजा पद्धति को सभी धर्मों के ऊपर थोपा नहीं जा सकता है।

IMG 20220104 WA0103

अमृत महोत्सव के अवसर पर भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के जरिए सभी राज्यों को जारी किए गए आदेश को मौलाना ने संविधान के खिलाफ बताया। दरअसल, भारत सरकार की ओर से सभी राज्यों को 1 जनवरी से 7 जनवरी 2022 तक अपने स्कूलों में सूर्य नमस्कार कार्यक्रम का आयोजन करने का निर्देश दिया गया है। मौलाना ने कहा कि भारतीय संविधान में सभी धर्मों के लोगों को अपने अपने धर्म के अनुसार पूजा-प्रार्थना आदि करने की छूट दी गई है। इसलिए किसी भी धर्म विशेष की पूजा पद्धति को सभी धर्मों के लोगों पर थोपा नहीं जा सकता है। उनका तर्क है कि इस्लाम व अन्य धर्मों में सूर्य को देवता मानकर उसकी पूजा करने की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का सम्मान करते हुए इस तरह के आदेश को वापस ले। अगर सरकार वाकई देश से मोहब्बत का इजहार करने चाहती है तो उसे देश की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।

IMG 20220104 WA0101

मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि स्कूलों में सभी धर्मों के बच्चे पढ़ते हैं। इसलिए स्कूलों में किसी खास धर्म की पूजा पद्धति को कराने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि स्वतंत्रता दिवस पर अगर सरकार को स्कूलों में कोई कार्यक्रम आयोजित कराना है तो उसे देशप्रेम से जुड़े हुए गीत-संगीत आदि का कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए ताकि उसमें सभी धर्मों के लोग उसमें बढ़-चढ़कर के हिस्सा ले सकें। स्कूलों में इस तरह का कार्यक्रम बिल्कुल भी आयोजित नहीं किए जाने चाहिए, जिससे अन्य धर्मों के लोगों को उसे करने में परेशानी हो। उन्होंने कहा कि सरकार को हमेशा राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम और योजनाएं बनाना चाहिए। उन्होंने मुस्लिम छात्र-छात्राओं से आह्वान किया है कि वह स्कूलों में आयोजित होने वाले सूर्य नमस्कार के कार्यक्रम का बहिष्कार करें और उसमें बिल्कुल भी शामिल नहीं हों। उन्हें इस तरह के कार्यक्रम में शामिल होने से बचना चाहिए क्योंकि इस्लाम उन्हें इस तरह के कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति नहीं देता है।

आपने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का नाम तो सुना होगा। यह बोर्ड ऊपरी तौर पर किसी भी कानून या कानून से शरिया कानूनों की रक्षा करने के लिए ध्यान केंद्रित करता है जो वे इस पर उल्लंघन मानते हैं। इस भूमिका में शुरू में मुस्लिम महिलाओं के लिए तलाक कानून में किसी भी बदलाव पर आपत्ति जताई गई थी। इस बोर्ड ने समलैंगिक अधिकारों पर भी आपत्ति जताई थी और कहा था कि1861 के भारतीय कानून को बनाए रखने का समर्थन करता है जो समान लिंग के व्यक्तियों के बीच संबंधों पर प्रतिबंध लगाता है।

बोर्ड ने निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक, 2009 के लिए बच्चों के अधिकार पर भी आपत्ति जताई थी क्योंकि उनका मानना है कि यह मदरसा शिक्षा प्रणाली का उल्लंघन होगा। इसने बाल विवाह का भी समर्थन किया है और बाल विवाह निषेध अधिनियम का विरोध किया है। इसने बाबरी मस्जिद पर उच्च न्यायालय के फैसले पर भी आपत्ति जताई थी। इसके लिए, यह राजनीतिक कार्रवाई की धमकी देने के लिए भी तैयार थे । इनका वन प्वाइंट एजेंडा है कि योग, सूर्य नमस्कार और वैदिक संस्कृति के माध्यम से ‘ब्राह्मण धर्म’ को लागू करने के लिए सरकार की यह एक भयावह डिजाइन है जिसका हर हाल में विरोध करना है।

असल में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक गैर सरकारी संस्था यानी NGO है जिसका मुख्य कार्यालय जामिया नगर,दिल्ली में है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आज हमारी संसद और यहाँ तक की सुप्रीम कोर्ट को भी कई मौकों पर धमकी देता रहा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का नाम सामने आते ही हर किसी के जहन में आता होगा कि है कि अपने हितों के लिए इसे मुसलमानों ने ही बनाया होगा। यदि आप ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं।

आइए थोड़ा पीछे चलते हैं। 1971 के भारत पाक युद्ध के बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता घटने लगी थी, विपक्ष को कुचलने के लिए 1975 में इंदिरा गाँधी ने आपातकाल भी लगाया था। इंदिरा ने घटती लोकप्रियता, और विपक्ष की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान होकर इंदिरा गाँधी ने सेक्युलर भारत में मुसलमानो के तुष्टिकरण के लिए स्वयं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की 1971 में स्थापना की थी।

इतना ही नहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए इंदिरा गाँधी के विशेष नियम बनाकर इसे विशेष छूट दिलवाई । इसी कारण इस संस्था का आज तक कभी ऑडिट नहीं हुआ है, जबकि अन्य NGO का होता है। ये बोर्ड अरब देशों से कितना पैसा पाता है, उस पैसे का क्या करता है, किसी को कुछ नहीं पता।

देश की 91% मुस्लिम महिलाएं ट्रिपल तलाक के खिलाफ हैं फिर भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट को हिंसा तक की धमकी देता है। आपको यह भी जानकर आश्चर्य होगा की 95% मुसलमान महिलाओ को तो ये भी नहीं पता की मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड असल में है क्या। इसी कारण कुछ शिया और मुस्लिम नारीवादियों ने इस पर अविश्वास जताते हुए अपने अलग बोर्ड, क्रमशः ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड और ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन किया है।

इस NGO में केवल कट्टरपंथी मुस्लिम ही है, नरेंद्र मोदी के सर पर फतवा देने वाला इमाम बरकाती भी इसी NGO का सदस्य है। जिहादी मानसिकता के ही लोग इस संस्था में हैं।

ब्लागर संदीप देव के अनुसार जिस आधुनिक धर्मनिरपेक्षता की आज दुहाई दी जाती है, उसे कमाल अतातुर्क ने जब तुर्की में लागू किया तो महात्मा गांधी ने उसका विरोध किया और उन्होंंने मुसलमानों के लिए खिलाफत की मांग की। खिलाफत मतलब, दुनिया भर के मुसलमानों का एक खलीफा अर्थात एक नेता हो और वह उनके निर्देश पर ही चलें, न कि अपने देश के कानून या संविधान से। मुसलमानों में चार खलीफा हो चुके हैं। कमाल अतातुर्क ने इसी खिलाफत को समाप्ती कर मुसलमानों को आधुनिक लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता से जोड़ने की शुरुआत की, लेकिन गांधी ने उसका विरोध कर भारतीय में प्रतिक्रियावाद और कठमुल्लांपन को बढ़ावा दिया। गांधी ने दारुल हरब अर्थात गैर इस्ला्मकि देश को दारूल इस्ला म अर्थात इस्लााम शासित देश बनाने का बीज भारतीय मुसलमानों के दिमाग में बो दिया और गांधी के रहते-रहते अलग इस्लािम के नाम पर पाकिस्ता न का निर्माण भी हो गया। अहिंसा की नीति पर चलने वाले गांधी के सामने ही 5 लाख से अधिक हिंदू-मुसलमान एक दूसरे का कत्ते आम करते चले गए और गांधी की अहिंसा उनके सामने ही दम तोड़ती नजर आई।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस तरह की गतिविधियों को देखते हुए बहुसंख्यक समाज को भी अपनी चेतना जागृत करनी होगी। अभी तो भारत दुनिया का एक ऐसा अनोखा देश है जहां की बहुसंख्यक 90 करोड़ जनता समान नागरिक अधिकारों की भीख मांग रही है।