
.Former Tennis Player Radhika Yadav Murdered : आप क्या सोचते हैं समाज में ह्त्या इतनी सहज और सरल बात होती जा रही है कि बाप बेटी को मार देता है ?
विभा शर्मा
आइये अब बात करते है समाज की ——कोई एक दिन में खिलाड़ी नहीं बनता,एक दिन में स्पोर्ट्स एकेडमी नहीं खुलती .यह सिर्फ सामाजिक दकियानूसी पिता की बात होती तो बेटी को बचपन से रोका गया होता।एक पिता ने कम नम्बर आने पर मूसल से मार डाला दूसरे ने गोली मार दी ।क्या जिंदगी में तनाव इतने बढ़ गए है कि पिताओं का धैर्य जवाब दे रहा है ।छोटी सी बात पर जान से मार देना कैसे संभव है बेटियां तो पिता की लाडली होती है. ये कहानी सिरे से हजम नहीं हो रही। दकियानूसी और टिपिकल एमसीपी मानसिकता वाले पिताओं की बेटियाँ खिलाड़ी नहीं बनतीं। मामला वो नहीं है जो दिखाया जा रहा है। असली एंगल सामने आना बाकी है. आप क्या सोचते हैं समाज में ह्त्या इतनी सहज और सरल बात होती जा रही है कि प्रेमी से विवाह के लिए शादी के एक सप्ताह में लड़की मर्डर कर देती है और प्लानिग के साथ पिता बेटी को मार देता है नम्बर कम आने पर या रिल्स बनाने पर। आप क्या सोचते है समाज की इस स्थिति पर इस विषय पर कुछ विचार सोशल मीडिया पर प्रसारित हैं ।
पूर्व टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की हत्या ने देश को हिलाकर रख दिया है. राधिका के पिता ने ही उसे मौत के घाट उतार दिया. गुरुग्राम पुलिस के सामने आरोपी पिता दीपक यादव ने गुनाह कबूल कर लिया है. दीपक अपनी बेटी राधिका के टेनिस अकादमी खोलने से नाराज था. दीपक के मुताबिक, उसने कई बार अपनी बेटी राधिका को समझाया था कि वो अकादमी बंद कर दे, लेकिन राधिका नहीं मानी. इस केस में पल-पल नए खुलासे हो रहे हैं.
क्या सोचते हैं अलग अलग कार्यक्षेत्र के लोग ,आइये देखते हैं —
1 .ये कहानी सिरे से हजम नहीं हो रही,पिता का बयान शक के घेरे में लिया जाना चाहिये- अंजू शर्मा साहित्यकार ,नयी दिल्ली

लड़की टेनिस खेलती है। लड़की एकेडमी चलाती है। लड़की रील्स बनाती है। पैसा कमाती है। और पिता इतना दकियानूसी है कि इसलिये लड़की को गोली मार देता है कि उसे लड़की की कमाई खाने के ताने मिल रहे हैं?
ये कहानी सिरे से हजम नहीं हो रही। दकियानूसी और टिपिकल एमसीपी मानसिकता वाले पिताओं की बेटियाँ खिलाड़ी नहीं बनतीं। मामला वो नहीं है जो दिखाया जा रहा है। असली एंगल सामने आना बाकी है। ये कुछ ऐसी ही खबर है कि 5 रुपये के लिये दुकानदार को गोली मार दी। भाई, 5 रुपये के लिये कोई किसी को गोली नहीं मारता। न्यूज में उस झगड़े और गाली गलौच का विस्तार नहीं दिया जाता कि कैसे बात गोली तक पहुँच गई। असल में 5 रुपये वाली हेडिंग कैची होती है।
खैर वो न्यूज का मसला है लेकिन यहाँ पिता का बयान शक के घेरे में लिया जाना चाहिये। माँ का बयान क्या है। पड़ोसियों, दोस्तों, परिचितों का बयान सामने आए, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट सामने आए तब कुछ पता चलेगा कि राधिका यादव के मर्डर की असली वजह क्या थी।
2 .समाज में उत्तेजित व्यवहार का प्रतिशत बढता जा रहा है- सुषमा व्यास ,राजनिधि–
इंदौर, मध्यप्रदेश

शांत और धैर्य से जीवन जीने की राह अब कम व्यक्तियों में देखने मिल रही है।तनावग्रस्त जीवन, धार्मिक उंमांधता तथा दकियानूसी विचारों ने मानव को क्रोधित बना दिया है साथ ही हिंसक भी।अत्यधिक क्रोध और तनाव में व्यक्तिबिना सोचे समझे अपराध कर बैठता है। बहुत बार पछताता भी है।हो सकता है हत्या करने वाला किसी और कारण से गुस्से में आकर यह अपराधिक कार्य करता हो परन्तु किसी की जान ले लेना बहुत बड़ा अपराध तो है ही।
अपने ही किसी सगे या चहेते को मारना इतना सरल नहीं है, जरूर इसमें कितने ही राज छुपे होंगे, जो शायद कभी बाहर आ जायें या नहीं भी आ पायें लेकिन कहीं न कहीं आज की पीढ़ी अपना आपा खोती जा रही है।अपने ही मरजी से जीवन को जीने की जिद, पसंद की कोई वस्तु ना मिलने पर किया जाने वाला गुस्सा और महत्वाकांक्षा के साथ साथ पारिवारिक असामंजस्य झगड़े का कारण बनता है।
जहाँ 21 वीं सदी में मानव ने वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत ऊंचाइयों को छुआ है, वही ं अपने मूल्यों और आदर्श को खोता जा रहा है।
अंदर से खोखला आदमी बाहर से नकली चमक दमक ओढकर जी रहा है।अविश्वसनीय व्यवहार, रिश्तों की टूटती मर्यादा और कहीं कहीं स्वयं से जुझता इंसान अपराधिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर है।यह सामाजिक गिरते मूल्य कहाँ ले जायेंगे समाज को यह पता नहीं?क्या समाज कभी सतयुग या रामराज्य को सपने में ही जियेगा? या अपनी और अपनों के सर्वनाश की जमीन तैयार करता रहेगा?
अपने ही किसी सगे या चहेते को मारना इतना सरल नहीं है, जरूर इसमें कितने ही राज छुपे होंगे, जो शायद कभी बाहर आ जायें या नहीं भी आ पायें लेकिन कहीं न कहीं आज की पीढ़ी अपना आपा खोती जा रही है।अपने ही मरजी से जीवन को जीने की जिद, पसंद की कोई वस्तु ना मिलने पर किया जाने वाला गुस्सा और महत्वाकांक्षा के साथ साथ पारिवारिक असामंजस्य झगड़े का कारण बनता है।
जहाँ 21 वीं सदी में मानव ने वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत ऊंचाइयों को छुआ है, वही ं अपने मूल्यों और आदर्श को खोता जा रहा है।
अंदर से खोखला आदमी बाहर से नकली चमक दमक ओढकर जी रहा है।अविश्वसनीय व्यवहार, रिश्तों की टूटती मर्यादा और कहीं कहीं स्वयं से जुझता इंसान अपराधिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर है।यह सामाजिक गिरते मूल्य कहाँ ले जायेंगे समाज को यह पता नहीं?क्या समाज कभी सतयुग या रामराज्य को सपने में ही जियेगा? या अपनी और अपनों के सर्वनाश की जमीन तैयार करता रहेगा?
3 . आज समय बहुत बदल गया समाज गलत दिशा में जा रहा है —ज्योत्सना दुबे
हम इन दिनों रील ,मोबाइल और फेसबुक ,वाट्स अप की दुनिया में जी रहे हैं ,संबंधों के प्रति लापरवाह और असंवेदनशील हो रहे लोग समाज को विकृति दे रहे हैं सोनम रघुवंधी हो या दीपक यादव अन्दर से मानसिक विकारों से भरे हुए लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। माता पिता का ध्यान अपने बच्चों पर जाना है तब तक बहुत देर हो जाती है। इसीलिए पुराने लोग कहते थे कि पालन पोषण में हुई चूक घातक रोग बन जाती है ,संस्कारों की कमी और अंसतोष भरा परिवार इस तरह की घटनाओं के पीछे होता है ,सारे काम एक तरफ रखते हुए पेरेंट्स को अपनी पेरेंटिंग ठीक करनी होगी।
4 . किसी इंसान को अपने या गैर किसी की जान लेने का हक ईश्वर ने भी नहीं दिया -भावना शेखर

लड़की रील बनाती थी/ बाप बेटी की कमाई खा रहा था जैसे ताने बात कुछ भी हो फिर भी किसी इंसान को अपने या गैर किसी की जान लेने का हक ईश्वर ने भी नहीं दिया। अत्यंत दुखद है यह घटना और बेटी की कमाई क्या होती है, आज बेटी बेटे में कोई फर्क नहीं। और लोग क्या कहेंगे की सोच से बाहर निकलना चाहिए। यह हमारी अपनी कुंठा होती है कि लोग क्या कहेंगे।
5 .ये एक मानसिक बीमारी भी कही जा सकती है -कुसुम पालीवाल
बात कुछ भी हो लेकिन कोई गोली नहीं मार देता अपने बच्चों को ….हमें तो लगता है नकारात्मकता इस कदर हावी हो जाती है कि इंसान को कुछ भी दिखाई नहीं देता , कुछ लोग अपनी प्रतिष्ठा के प्रति इतने सजग होते हैं कि उनसे अगर कुछ कहा जाये तो वो बात या चर्चा सिर्फ उन्हीं के फ़ेवर की होनी चाहिए .. ऐसे लोग अपने को कहीं भी नीचा दिखाने या दिखने को तैयार नहीं होते हैं । ये एक मानसिक बीमारी भी कही जा सकती है .. जिसको अपने सिवा कुछ नहीं दीखता … ऐसे लोग किसी को खुश और सफल होते नहीं देख सकते हैं …
6. पिता अपनी कोई बात मनवा रहा होगा-विष्णु तिवारी

असली कारण सामने आ जाएगा . कहीं ना कहीं पिता अपनी कोई बात मनवा रहा होगा उसकी शादी को लेकर ओर वो तैयार नहीं होंगी। हो सकता वो ओर कहीं करना चाहती थीं।संभव है शादी को लेकर पिता पुत्री में विवाद हुआ होगा।
7 .सामाजिक उष्मा का लाह्स हो रहा था-रूचि आनंद

इन दिनों समाज में सामाजिक उष्मा का लाह्स हो रहा था। परिवारों में पारिवारिक उष्मा समाप्त हो गई है। आचार विचार ,संवाद के कमी है रिश्ते छिजने लगे है। बेटियाँ काबिल होकर भी कहीं ना कहीं परिवारों की मानसिकता से आगे निकल रही है जिसके चलते माता पिता भी उन्हें सही रस्ते नहीं दिखा पा रहे हैं। सोनम जैसी बेटियों ने एक बार फिर बेटियों के प्रति शक की निगाह से देखने को मजबूर कर दिया है। आज समाज अपनी मर्यादा भूल रहा है। घर में रखा टीवी इंटनेट। नेत्फ्लेक्स जाने क्या क्या परोस रहा है। इन सब पर नियंत्रण करना होगा




