अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत का पैगाम थी गांधी टोपी

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महात्मा गांधी का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि वे जो कुछ भी पहनते, वह अपने आप में स्टाइल स्टेटमेंट हो जाता था। गांधी टोपी को महात्मा गांधी का स्टाइल स्टेटमेंट माना जाता है। मजाक में लोग यह भी कहते हैं कि महात्मा गांधी ने खुद तो गाँधी टोपी नहीं पहनी, लेकिन करोड़ों लोगों को टोपी पहना दी।

यह बात सही नहीं है

गांधी टोपी का ईजाद गांधीजी ने नहीं किया था, शताब्दियों से टोपी पहनी जाती रही है। दूसरी बात यह कि गांधी जी ने भी यह टोपी पहनी थी। कब? गांधी जी ने इस तरह की टोपी दक्षिण अफ्रीका में पहनी थी जब उन्हें अंग्रेजी सरकार के विरोध में जेल जाना पड़ा और जेल में भारतीयों को अलग तरह की टोपी पहनने पर मजबूर किया जाता था। गांधीजी ने उसी टोपी को अपनाया और गांधीजी के कारण पर टोपी स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बन गई। करोड़ों लोग गांधी टोपी पहनने लगे। कांग्रेस की सभाओं में गांधी टोपी बिकने लगी। गाँधी टोपी की बिक्री से होनेवाली आय आंदोलन में खर्च की जाने लगी।

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1920-21 में गांधीजी टोपी पहनते थे। वह टोपी खादी की बनी होती थी। विलायती कपड़ों के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा थी यह खादी। धीरे-धीरे यह खादी की टोपी जन आंदोलन का हिस्सा बन गई और कांग्रेस के सभी कार्यकर्ता इस तरह की टोपी पहनने लगे। सुभाष चंद्र बोस भी टोपी पहनते थे, लेकिन उस का रंग खाकी था। हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता काली टोपी पहना करते थे। कम्युनिस्ट और समाजवादी कार्यकर्ता लाल टोपी पहना करते थे।

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आज भी गांधी टोपी का चलन देश भर में है। आम आदमी पार्टी के नेता सफ़ेद खादी टोपी पहनती है जिस पर पार्टी का नाम लिखा होता है। समाजवादी पार्टी के लोग भी गाँधी टोपी पहनते हैं पर अलग रंग की। अभी भी गांधी टोपी भारत के कई इलाकों में पहनी जाती है। मराठवाड़ा के किसान आमतौर पर अभी गांधी टोपी पहने होते हैं। अन्ना हजारे के आंदोलन में भी गांधी टोपी का ही उपयोग किया गया।

सदियों से भारत में पगड़ी अथवा साफा पहनने का चलन है। गांधी जी के आंदोलन के दौरान भारत में कपड़ा इंग्लैंड से आयात किया जाता जबकि कपड़ा बनाने का कच्चा माल भारत से निर्यात होता था। गांधी जी इसके खिलाफ थे। कारण यह था कि इसके कारण कपड़ा इतना महंगा होता था कि हर आदमी उसे अफ़ोर्ड नहीं कर पाता। गरीब किसान और मज़दूर वर्ग के पुरुष अपना आधा बदन नहीं ढँक पाते थे। जो रईस लोग थे वे पगड़ी या साफा पहनते थे। गांधी जी अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में बेहद मितव्ययी थे। उनका स्पष्ट मानना था कि एक पगड़ी केवल एक ही व्यक्ति का सिर ढँक सकती है, जबकि उस पगड़ी के कपड़े से कम से कम 20 टोपियां बनाई जा सकती हैं। यह बात ठीक नहीं कि कोई व्यक्ति तो लंबा – चौड़ा वस्त्र पगड़ी के रूप में इस्तेमाल करें और बाकी लोग अपना सिर खुला रखें और धूप में काम करें।

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करीब एक साल तक टोपी पहनने के बाद गांधी जी ने कहा कि वे अब टोपी भी नहीं पहनेंगे, ताकि इस वस्त्र का उपयोग ज़रूरतमंद लोगों के लिए किया जा सके। गांधीजी ने केवल खादी से बनी टोपी पहनने का ही आग्रह किया था क्योंकि खादी चरखे से घर पर काते गए सूत से बनाई जाती थी और उसकी लागत बेहद कम थी। गरीब से गरीब आदमी भी इस तरह की टोपी अफोर्ड कर सकता था। अंग्रेज गांधी टोपी से इतना ज्यादा चिढ़ते थे कि एक बार तो उन्होंने गांधी टोपी पर बैन लगाने की भी कोशिश की, लेकिन लोगों के विरोध के कारण उनकी यह हिम्मत नहीं हो सकी।

शताब्दी के बाद भी गांधी टोपी आज तक सम्मान का प्रतीक है। जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई जैसे नेता आजादी के बाद भी आजीवन गांधी टोपी पहनते रहे। गांधी टोपी आज भी ससम्मान पहनी जाती है। इसे पहनने का अर्थ है अपनी आज़ादी के प्रति सम्मान प्रकट करना।